क्विक अलर्ट के लिए
अभी सब्सक्राइव करें  
क्विक अलर्ट के लिए
नोटिफिकेशन ऑन करें  
For Daily Alerts
Oneindia App Download

फ्रांस के कट्टरपंथी इस्लाम को 'ठीक करने' के लिए क्या कर रहे हैं राष्ट्रपति मैक्रों

राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों ने देश के सबसे बड़े मुस्लिम संगठन को बदलाव लाने के लिए पंद्रह दिनों की मोहलत दी है.

By ज़ुबैर अहमद
Google Oneindia News
फ़्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों
LUDOVIC MARIN
फ़्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों

फ़्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों ने अपने देश के मुस्लिम प्रतिनिधियों से कहा है कि वो कट्टरपंथी इस्लाम को नष्ट करने के लिए 'रिपब्लिकन मूल्यों के चार्टर' को स्वीकार करें.

बुधवार को राष्ट्रपति फ़्रेंच काउंसिल ऑफ़ द मुस्लिम फेथ (सीएफसीएम) के आठ नेताओं से मिले और कहा कि इसके लिए उन्हें 15 दिनों की मोहलत दी जाती है.

उनके अनुसार, इस चार्टर में दूसरे मुद्दों के अलावा दो ख़ास बातें शामिल होनी चाहिए: फ़्रांस में इस्लाम केवल एक धर्म है, कोई राजनीतिक आंदोलन नहीं और इस लिए इसमें से सियासत को हटा दिया जाए. और फ़्रांस के मुस्लिम समुदाय में किसी भी तरह के 'विदेशी हस्तक्षेप' पर प्रतिबंधित लगाना पड़ेगा.

राष्ट्रपति का कड़ा रुख पिछले महीने देश में तीन संदिग्ध इस्लामी चरमपंथी हमलों के बाद से देखने को मिल रहा है.

इन हमलों में 16 अक्टूबर को एक 47 वर्षीय शिक्षक की हत्या भी शामिल है, जिसने अपनी एक क्लास में पैग़ंबर मोहम्मद के कुछ कार्टून दिखाए थे.

यूरोप की सबसे बड़ी मुस्लिम आबादी वाला देश

मुस्लिम समुदाय में इस पर नाराज़गी जताई गई और 18 वर्षीय चेचन मूल के एक युवा ने शिक्षक की सिर काट कर हत्या कर दी थी.

फ़्रेंच काउंसिल ऑफ़ द मुस्लिम फेथ (सीएफसीएम) के नेताओं ने राष्ट्रपति को आश्वासन दिया है कि वो चार्टर जल्द ही तैयार कर लेंगे.

सीएफसीएम, सरकार में मुसलमानों का नेतृत्व करने वाली अकेली बड़ी संस्था है जिसे सरकारी मान्यता प्राप्त है और जिसकी स्थापना पूर्व राष्ट्रपति निकोलस सार्कोज़ी ने 2003 में की थी, जब वो देश के गृह मंत्री थे. इस संस्था में मुस्लिम समुदाय की तमाम बड़ी जमातें शामिल हैं.

फ़्रांस की कुल आबादी में 10 प्रतिशत मुसलमानों की है, जो यूरोप में मुस्लिम समुदाय की सबसे बड़ी आबादी है.

फ़्रांस के अधिकतर मुस्लिम इसकी पूर्व कॉलोनी मोरक्को, ट्यूनीशिया और अल्ज़ीरिया से आकर बसे हैं. लेकिन इस समुदाय की दूसरी और तीसरी पीढ़ियाँ फ़्रांस में ही पैदा हुई हैं.

विवादास्पद बिल का प्रस्ताव

फ़्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों की कट्टरपंथी इस्लाम के ख़िलाफ़ जंग, चार्टर के बनाए जाने पर ज़ोर देने पर ही ख़त्म नहीं हो जाती है.

उन्होंने इस बैठक के कुछ घंटों के बाद एक बिल का प्रस्ताव भी रखा जिसे कई लोग विवादास्पद बताते हैं. इस बिल के कुछ अहम पहलू इस प्रकार हैं:

  • धार्मिक आधार पर सार्वजनिक अधिकारियों को डराने-धमकाने वालों को कठोर दंड दिया जाएगा. बच्चों को घर में पढ़ाए जाने पर रोक लगाई जाएगी.
  • हर बच्चे को उसकी शिनाख़्त के लिए एक शिनाख्ती नंबर दिया जाएगा ताकि इस बात पर नज़र रखी जा सके कि वो स्कूल जा रहा है या नहीं. क़ानून तोड़ने वाले माता-पिता को छह महीने की जेल के साथ-साथ बड़े जुर्माने का भी सामना करना पड़ सकता है.
  • एक व्यक्ति की व्यक्तिगत जानकारी को इस तरह से साझा करने पर प्रतिबंध लगाया जाएगा जिसके कारण उन्हें उन लोगों से नुक़सान हो सकता है जो उन्हें नुक़सान पहुंचाना चाहते हैं.

राष्ट्रपति ने 2 अक्टूबर को भी कुछ इसी तरह के प्रस्ताव रखे थे और कहा था कि इस्लाम में संकट है.

चरमपंथी हमलों के बाद दिए गए उनके बयानों को इस्लाम विरोधी बताया गया और कई मुस्लिम देश उनसे नाराज़ हो गए. कुछ देशों में फ़्रांस में बने हुए सामानों के बॉयकॉट की मांग भी की गई.

फ़्रांस में मुसलमान
Getty Images
फ़्रांस में मुसलमान

फ़्रेंच इस्लाम

दरअसल फ़्रांस में पिछले कुछ सालों से इस्लाम सब से बड़ा मुद्दा बना हुआ है. फ़्रांस का कोई सरकारी धर्म नहीं है क्योंकि ये एक सेक्युलर स्टेट है. इस सेक्युलरिज़्म को देश में laïcité या 'लाइसीते' कहा जाता है.

ये एक ऐसा सेक्युलरिज़्म है जिसमे लेफ्ट विंग और राइट विंग दोनों ने बख़ूबी अपनाया हैं. सरकार के विचार में इस्लाम इस में पूरी तरह से फ़िट होता नज़र नहीं आता.

पिछले दो सालों से राष्ट्रपति मैक्रों फ़्रेंच इस्लाम को 'लाइसीते के दायरे में लाने की एक ऐसी कोशिश कर रहे हैं जिसमे पिछले राष्ट्रपतियों को नाकामी मिली थी.

प्रोफेसर अहमत कुरु अमेरिका में सैन डिएगो स्टेट यूनिवर्सिटी में इस्लामी इतिहास के विशेषज्ञ हैं. उनके अनुसार, राष्ट्रपति मैक्रों फ्रेंच इस्लाम की अपनी कल्पना को ऊपर से थोप रहे हैं और एक तरह से दोहरी पॉलिसी अपना रहे हैं.

वो कहते हैं, "फ्रांस के सबसे बड़े मुस्लिम संगठन सीएफ़सीएम से मैक्रों की नई मांग, जिसमें एक रिपब्लिकन चार्टर की स्वीकृति भी शामिल है, धर्मनिरपेक्ष राज्य के सिद्धांतों का उल्लंघन करती है."

प्रोसेर कुरू कहते हैं, "फ्रांस की धर्मनिरपेक्ष शक्तियों ने कैथोलिक चर्च के दबदबे को ख़त्म करके इसे विकेंद्रित करने की मांग बरसों तक की. लेकिन अब, मैक्रों, सीएफ़सीएम को पुराने चर्च जैसा दर्जा देकर इस्लाम पर इसका दबदबा स्थापित करने की कोशिश कर रहे हैं, ये मानते हुए कि सीएफ़सीएम के फ़ैसले सभी मस्जिदों के लिए बाध्यकारी होंगे. कैथोलिक चर्च का विकेंद्रीकरण फ्रांस का ऐतिहासिक लक्ष्य रहा है लेकिन अब इस्लाम के ऊपर सीएफ़सीएम को बिठाना एक स्पष्ट विरोधाभास है."

फ़्रांस में मुसलमा
Getty Images
फ़्रांस में मुसलमा

सीएफ़सीएम की आलोचना

"दा बैटल फ़ॉर ए फ़्रेंच इस्लाम" ('फ्रेंच इस्लाम' के लिए लड़ाई) नामी एक लेख में फ्रेंच लेखक करीना पिसर लिखती हैं कि फ़्रांस में इस्लाम को फ्रेंच मिज़ाज में ढालने की कोशिश नई नहीं है.

वो कहती हैं, "धर्म के मैनेजमेंट और धार्मिक प्रश्नों के प्रबंधन में स्टेट हस्तक्षेप नहीं कर सकता. लेकिन सरकारों ने इस्लाम के हवाले से पिछले 30 सालों से बस यही करने की कोशिश कर रही हैं. ये एक गहरा विरोधाभास है."

अब सीएफ़सीएम को ही ले कीजिए. ये एक ऐसी संस्था है जो सरकार की मदद से 2003 में स्थापित की गई लेकिन आम मुसलमान इसके बारे में अधिक जानकारी भी नहीं रखते.

करीना पिसर 2016 में हुए एक सर्वेक्षण का हवाला देकर कहती हैं, "दो तिहाई फ्रेंच मुसलमानों ने इस संस्था का नाम ही नहीं सुना था."

फ़्रांस के एक जाने-माने सामाजिक कार्यकर्ता मरवान महमूद कहते हैं, "सीएफ़सीएम की आलोचना इस बात के लिए कम होती है कि इसके विदेश से संबंध हैं बल्कि इसकी आलोचना इस बात के लिए अधिक होती है कि ये मुसलमानों के लिए बिलकुल नाकाम रही है. ये एक ऊपर से थोपी हुई संस्था है."

फ्रांस में मुसलमान
Getty Images
फ्रांस में मुसलमान

विदेशी हस्तक्षेप बंद हो

राष्ट्रपति ने चार्टर में विदेशी हस्तक्षेप पर रोक लगाने की भी बात कही है.

फ़्रांस में मस्जिदों के इमाम अक्सर मोरक्को, ट्यूनीशिया और अल्ज़ीरिया से आते हैं. पेरिस की जामा मस्जिद की माली मदद अल्ज़ीरिया से की जाती है. ये भी आम तौर से सही माना जाता है कि 2015 के बाद से हुए सभी इस्लामी चरमपंथी हमलों में फ़्रांस में पैदा हुए युवा शामिल थे.

लेकिन स्विट्ज़रलैंड में जिनेवा इंस्टीट्यूट ऑफ जियोपॉलिटिकल स्टडीज के अध्यापक डॉ. अलेक्ज़ांडर लैंबर्ट कहते हैं कि फ्रेंच सरकार के लिए पता लगाना ज़रूरी है कि देश के मुस्लिम संस्थाओं में कौन विदेश ताक़त हस्तक्षेप कर रही है.

उनके विचार में ये एक कठिन और पेचीदा काम साबित होगा जिसके नतीजे में ये भी स्थापित हो सकता है कि हस्तक्षेप करने वाली ताक़तें मुस्लिम बहुमत वाले देशों में नहीं बल्कि वो ताक़तें पश्चिमी देशों में ही बैठी हैं.

वो कहते हैं, "आप ये मत भूलें कि मैक्रों फ्रांसीसी गणराज्य की ओर से ज़रूर बोलते हैं लेकिन वो एक करियर-राजनीतिज्ञ नहीं हैं, वो अंततः एक रोथस्चाइल्ड बैंकर है यानी कॉर्पोरेट की दुनिया के हैं.''

फ्रेंच इस्लाम को फ़्रांसीसी मूल्यों में ढालने की कोशिश में राष्ट्रपति अकेले नहीं हैं. फ़्रांस के कुछ मुस्लिम भी यही चाहते हैं लेकिन उनका सुझाव थोड़ा हट कर है.

मोरक्को मूल के यूनुस अल-अज़ीज़ दक्षिण फ़्रांस के शहर मारसे में आईटी के पेशे से जुड़े हैं, वो कहते हैं, "हम लिबरल युवा पीढ़ी हैं. हमारे मित्र भी अधिकतर गोरी नस्ल के हैं. हम उनसे अलग-थलग महसूस नहीं करते हैं. लेकिन जब हमें सरकार हमारे मज़हब के बारे में अपनी राय थोपना चाहती है तो बड़ी दिक्कत होती है."

यूनुस आगे कहते हैं, "वो (मैक्रों) एक मीडिया-अनुकूल इस्लाम चाहते हैं, एक ऐसा इस्लाम जो लिविंग रूम बहस में कूल लगे और अधिकारियों को पसंद हो और जो अपने पसंद के मुसलमानों के प्रतिनिधित्व का चयन कर सकें."

इस्लाम और सियासत

प्रोफ़ेसर अहमत कुरु राष्ट्रपति के इस्लाम के बारे में हाल के बयानों और एक्शन के पीछे 2022 में राष्ट्रपति पद का चुनाव भी बताते हैं.

वो कहते हैं, "ऐसा लगता है कि राष्ट्रपति मैक्रों अप्रैल 2022 में होने वाले राष्ट्रपति चुनाव तक इस्लाम पर सार्वजनिक बहस जारी रखेंगे. वो उन वोटरों को लुभाने की कोशिश करेंगे जो उनके और उनकी राइट विंग प्रतिद्वंदी मरीन ल पेन के बीच किसे वोट दें ये फैसला नहीं कर सके हैं."

प्रोफ़ेसर अहमत के अनुसार राष्ट्रपति ऐसा करके भारी ग़लती कर रहे हैं.

"एक ग़लती वो फ़्रांस के मुसलमानों को अपने से अलग-थलग करके कर रहे हैं. ये मुसलमान कट्टरवादी इस्लाम से फ़्रांस की लड़ाई में इसके सहयोगी साबित हो सकते हैं. दूसरी ग़लती वो ये कर रहे हैं कि वो फ्रेंच सेक्युलर स्टेट के उसूलों के ख़िलाफ़ पॉलिसी अपनाए हुए हैं. फ्रेंच सेक्युलर स्टेट का सिद्धांत है कि वो धर्मों से ख़ुद को अलग रखे. लेकिन मैक्रों दावा कर रहे हैं कि फ़्रेंच स्टेट एक रोशन ख्याल इस्लाम लाने वाला है. ये फ़्रांस की धर्मनिरपेक्षता नीति के ख़िलाफ़ है."

यूनुस अल-अज़ीज़ी के विचार में सरकार और स्टेट का कोई क़दम भी ऐसा नहीं होना चाहिए जिसे मुस्लिम ऊपर से थोपने जैसा देखें.

"ये कभी कामयाब नहीं होगा. बल्कि इसके ख़िलाफ़ नकारात्मक प्रतिक्रियाएं आ सकती हैं. तो मैं समझता हूँ कि इस्लाम को बाहर के ग़लत असर से ज़रूर बचाया जाए लेकिन लाइसीते के मूल्यों को पूरी तरह से अपनाने को स्वाभाविक तरीके से होने दिया जाए."

BBC Hindi
देश-दुनिया की ताज़ा ख़बरों से अपडेट रहने के लिए Oneindia Hindi के फेसबुक पेज को लाइक करें
English summary
What President Macron is doing to 'fix' French radical Islam
तुरंत पाएं न्यूज अपडेट
Enable
x
Notification Settings X
Time Settings
Done
Clear Notification X
Do you want to clear all the notifications from your inbox?
Settings X
X