भारत-नेपाल के बीच रॉ और सेना प्रमुख के दौरे के बाद क्या है स्थिति?
भारतीय खुफ़िया एजेंसी के प्रमुख और सेना प्रमुख के नेपाल दौरे के बाद क्या दोनों देश राजनीतिक संवाद की राह पर लौटने का माहौल बना रहे हैं?
पहले भारत की खुफ़िया एजेंसी - रिसर्च एंड एनालिसिस विंग (रॉ) के प्रमुख सामंत कुमार गोयल और फिर भारतीय सेना के प्रमुख जनरल मनोज मुकुंद नरवणे, ये दो बड़े भारतीय अधिकारी हाल ही में नेपाल का दौरा कर चुके हैं.
ख़बरों के अनुसार, सामंत गोयल नौ सदस्यीय दल के साथ एक विशेष चार्टर्ड विमान से नेपाल पहुँचे और उन्होंने प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली से मुलाक़ात की. बैठक के बाद गोयल ने कहा कि 'भारत नेपाल के साथ मित्रवत द्विपक्षीय संबंधों में किसी भी दखल को अनुमति नहीं देगा और हर विवाद बातचीत के ज़रिये हल किया जाएगा.'
इसके बाद, 4 नवंबर को जनरल मनोज मुकुंद नरवणे नेपाल पहुँचे. उन्हें नेपाल की सेना के ऑनरेरी (मानद) जनरल की उपाधि से सम्मानित किया गया. वे भी अपनी तीन दिवसीय यात्रा के दौरान नेपाल के बड़े अधिकारियों से मिले और शुक्रवार को वे नेपाल के प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली से मुलाक़ात करेंगे.
General MM Naravane #COAS was conferred the Honorary Rank of General of #NepaliArmy by Rt Hon'ble President of Nepal Smt Bidhya Devi Bhandari. This unique & deep-rooted tradition has no parallel in the world. #IndiaNepalFriendship pic.twitter.com/K0s4XIhAqz
— ADG PI - INDIAN ARMY (@adgpi) November 5, 2020
भारत और नेपाल के बीच अप्रैल से अगस्त, 2020 के बीच सीमा विवाद को लेकर काफ़ी बयानबाज़ी हुई थी जिसकी वजह से दोनों देशों में तनाव की स्थिति बनी रही. इसी दौरान नेपाल ने कालापानी, लिपुलेख और लिम्पियाधुरा क्षेत्र को अपने नक्शे में शामिल किया जिससे दोनों देशों के बीच विवाद को और हवा मिली, क्योंकि भारत इन इलाक़ों को अपना बताता है.
लेकिन महीनों के तनाव, सीमा-विवाद और बातचीत में आयी कमी के बीच दो भारतीय सुरक्षा एजेंसियों के शीर्ष अधिकारियों ने नेपाल का दौरा किया जिन्हें काफ़ी अहम माना जा रहा है.
नेपाल में कोरोना वायरस महामारी अब भी बढ़ रही है. अंतरराष्ट्रीय सीमाएं भी बंद हैं. मगर गोयल और नरवणे को नेपाल जाने से कुछ भी रोक नहीं पाया.
कुछ लोग यह सोचने लगे हैं कि 'दोनों देश राजनीतिक संवाद की राह पर लौटने का माहौल बना रहे हैं.' नेपाल के विदेश मंत्री प्रदीप ज्ञवाली को भी उम्मीद है कि यहाँ से बातचीत आगे बढ़ेगी.
बीबीसी से हुई एक संक्षिप्त बातचीत में ज्ञवाली ने कहा, "भारतीय प्रधानमंत्री के प्रतिनिधि के रूप में भारतीय खुफ़िया एजेंसी के प्रमुख का आगमन और भारतीय सेना प्रमुख के दौरे से कुछ नई परिस्थितियाँ बनी हैं. नेपाल और भारत के बीच चर्चाओं की एक श्रृंखला अब आगे बढ़ने की उम्मीद है."
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मोदी के 'तीन संदेश'
भारतीय खुफ़िया एजेंसी रॉ के प्रमुख सामंत कुमार गोयल ने अपनी यात्रा के दौरान नेपाल के प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली से मुलाक़ात की थी. प्रधानमंत्री ओली के विदेश मामलों के सलाहकार राजन भट्टाराई के अनुसार, 'गोयल की यात्रा ने दोनों प्रधानमंत्रियों के बीच संदेशों के आदान-प्रदान का कार्य किया. गोयल के ज़रिए ओली को नरेंद्र मोदी के तीन संदेश मिले.'
भट्टाराई के मुताबिक़, पहला संदेश था कि 'भारत दोनों देशों के बीच संबंधों में सुधार जारी रखना चाहता है.'
दूसरा संदेश था कि 'दोनों देशों के बीच कुछ समस्याएं हैं, उन्हें बातचीत के माध्यम से हल किया जा सकता है और भारत का मानना है कि ये मुद्दे शांतिपूर्वक तरीक़े से सुलझाये जा सकते हैं.'
और तीसरा संदेश था कि 'भारत इन मुद्दों को हल करने के बाद, दोनों देशों के संबंधों को नई ऊंचाइयों तक ले जाना चाहता है.'
राजनीतिक या कूटनीतिक बातचीत को पहले बिंदु पर विश्वास का माहौल बनाने और दूसरे बिंदु में प्रवेश करने के लिए आवश्यक माना जाता है.
इस बीच कुछ जानकारों ने तो भारत और नेपाल के बीच किसी राजनीतिक यात्रा की संभावना भी जताई है.
क्या यह राजनीतिक यात्रा थी?
विशेषज्ञों का मानना है कि यह प्रक्रिया अब धीरे-धीरे आगे बढ़ेगी, लेकिन अभी यह जानने का सही समय नहीं है कि किस स्तर से यह आगे बढ़ेगी.
भट्टाराई, जिन्हें कोरोना वायरस महामारी के कारण तुरंत अनुकूल परिस्थितियों की उम्मीद नहीं थी, उन्होंने कहा कि 'उन्हें किसी भी स्तर पर राजनीतिक यात्रा की तैयारी के बारे में नहीं पता था.'
भट्टाराई ने कहा, "जब माहौल थोड़ा अनुकूल हो जाता है, तो और बेहतर स्थिति तक पहुँचने और समस्याओं को सुलझाने पर ध्यान केंद्रित करने में मदद मिलती है."
मगर कुछ जगहों पर इन मुलाक़ातों से खलबली भी है. विशेष रूप से, रॉ प्रमुख गोयल की यात्रा से. गोयल और प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली की बैठक ने उनकी पार्टी सीपीएन (माओवादी) के भीतर खलबली मचा दी है.
कुछ नेता कह रहे हैं कि यह पार्टी की नीति और निर्णय के ख़िलाफ़ है.
इसी तरह, कुछ पर्यवेक्षकों ने चिंता ज़ाहिर की है कि खुफ़िया और सैन्य स्तर की बातचीत, दोनों देशों के बीच राजनैतिक और राजनयिक संबंधों को ख़तरे में डाल सकती हैं.
'सैन्य कूटनीति' की भूमिका क्या है?
भट्टाराई कहते हैं कि "जो भी पीएम मोदी के संदेश के साथ नेपाल आया, वह गौण है. उसने (गोयल) हमें पीएम मोदी का ही संदेश दिया."
शुक्रवार को, भारतीय सेना प्रमुख जनरल मनोज मुकुंद नरवणे पीएम ओली से मिलेंगे जिन्होंने अपने भरोसेमंद उप-प्रधानमंत्री ईश्वर पोखरियाल को अपने कार्यकाल में खींचकर रक्षा मंत्री का पदभार सौंपा था.
एक समय यह भी दावा किया गया था कि 'सैन्य कूटनीति' का इस्तेमाल भारत की नाकेबंदी के दौरान, दोनों देशों के बीच तनाव को समाप्त करने के लिए किया गया था. उस समय, ओली नेपाल के प्रधानमंत्री थे और मोदी भारत के प्रधानमंत्री थे.
तत्कालीन सेनाध्यक्ष राजेंद्र छेत्री ने अपने भारतीय समकक्ष दलबीर सिंह, भारत के गृह मंत्री और राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार के साथ इस मुद्दे पर चर्चा की थी.
उन्होंने बीबीसी को बताया कि 'अगर वार्ता के दौरान दोनों देशों में भारत विरोधी या नेपाल विरोधी भावनाएं फैल रही हैं, तो इसका इस्तेमाल अनावश्यक तत्वों के साथ किया जा सकता है.'
बहरहाल, आंतरिक 'होमवर्क' के बाद ओली की भारत-यात्रा का रास्ता, बंद सीमा के साथ खोला गया था.
दलबीर सिंह को गोरखा राइफ़ल्स से भारत के सेना प्रमुख बनने वाला तीसरा सैन्य अधिकारी कहा जाता है.
उनके बाद जनरल बिपिन रावत भारत के सेना प्रमुख बने जिन्हें सेवानिवृत्ति के बाद भारत का चीफ़ ऑफ़ डिफ़ेंस स्टाफ़ बनाया गया है. मनोज मुकुंद नरवणे रावत के बाद भारत के सेना प्रमुख बने हैं.
कुछ महीने पहले ही नेपाल में भारत-नेपाल सीमा विवाद पर नरवणे की टिप्पणी की काफ़ी आलोचना की गई थी. मगर बाद में उन्होंने कहा कि 'नेपाल के साथ संबंध हमेशा मज़बूत होंगे.'
नेपाल-भारत सीमा विवाद: हालिया घटनाक्रम
- 3 नवंबर, 2019: भारत ने जम्मू-कश्मीर और लद्दाख को दो केंद्र शासित प्रदेशों में विभाजित करने के बाद, एक नया राजनीतिक नक्शा जारी किया जिसमें लिपुलेख और लिम्पियाधुरा क्षेत्र को भारत के हिस्से के रूप में दिखाया गया. नेपाल इन इलाक़ों पर अपना दावा करता है, हालांकि भारत इस दावे को ख़ारिज करता रहा है.
- 7 नवंबर, 2019: नेपाल सरकार ने स्पष्ट किया कि कालापानी क्षेत्र नेपाल का हिस्सा है.
- 7 नवंबर, 2019: भारतीय विदेश मंत्रालय ने कहा कि उसने अपने नए नक्शे में नेपाल के साथ सीमा में कोई हेरफेर नहीं किया.
- 20 नवंबर, 2019: भारत के नए नक्शे पर, नेपाल का भारत सरकार को एक 'राजनयिक नोट' भेजना, याद दिलाता है कि सुगौली संधि के अनुसार, लिम्पियाधुरा के पूर्व में काली (महाकाली नदी), कालिंदी और लिपुलेख क्षेत्र नेपाल की भूमि में हैं.
- 10 अप्रैल, 2020: भारतीय रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने वीडियो कॉन्फ़्रेंस के माध्यम से धारचूला-लिपुलेख क्षेत्र में निर्मित कैलाश-मानसरोवर लिंक रोड नेटवर्क का उद्घाटन किया. इसमें से कुछ इलाक़े पर नेपाल द्वारा दावा किया गया. नेपाल ने कहा कि एकतरफा सड़क निर्माण, दोनों देशों के बीच बनी हुई आपसी समझ के ख़िलाफ़ है.
- 27 अप्रैल, 2020: भारतीय विदेश मंत्रालय ने जवाब दिया कि सड़क नेटवर्क उत्तराखण्ड राज्य के पिथौरागढ़ ज़िले में भारतीय सीमा के भीतर है.
- 7 जून, 2020: नेपाल की मंत्री परिषद द्वारा नेपाल का नया आधिकारिक राजनीतिक नक्शा जारी किया गया जिसमें कालापानी, लिपुलेख और लिम्पियाधुरा क्षेत्र को नेपाल ने अपने इलाक़े में दिखाया.
- 12 जून, 2020: प्रतिनिधि सभा ने नेपाल द्वारा जारी किये गए नये नक्शे के अनुसार, निसान सील में संशोधन के लिए एक विधेयक भी पारित किया.