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पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान ख़ान की सबसे बड़ी समस्या क्या है?

पाकिस्तान की संसद में प्रधानमंत्री इमरान ख़ान ने अल-क़ायदा प्रमुख ओसामा बिन लदेन को 'शहीद' बताया था.

By हारून रशीद
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इमरान ख़ान
REUTERS/Saiyna Bashir/File Photo
इमरान ख़ान

इमरान ख़ान की सबसे बड़ी समस्या क्या है - सरकार चलाने के लिए अनुभव की कमी और अनुभवहीन कैबिनेट? सिर्फ़ अपनी सोच के अनुसार फ़ैसले करना? या फिर किसी की राय की परवाह न करना?

मेरे ख्याल से इमरान ख़ान की समस्या इनमें से कुछ भी नहीं है. उनकी असल समस्या लिखित भाषण न देने की उनकी ज़िद है.

वो बोलते किसी एक बेहद अहम मुद्दे पर हैं लेकिन मीडिया इस दौरान उनके किसी ग़लत ऐतिहासिक सन्दर्भ, या बिना सोचे समझे उनकी कही गई किसी बात को ले उड़ता है. ऐसा ही कुछ गुरुवार को संसद में उनकी असामान्य मौजूदगी और एक घंटे 13 मिनट के संबोधन के दौरान हुआ.

उन्होंने पूरी संसद को कोरोना वायरस, अर्थव्यवस्था, विदेश नीति और कई दूसरी बड़ी समस्याओं पर विश्वास में लेने की कोशिश की लेकिन जिस वाक्य पर बाद में मीडिया में ज़्यादा बहस हुई वो उनका अल-क़ायदा प्रमुख को 'शहीद' कहना था.

इसका नतीजा ये हुआ कि अब ट्विटर पर 'इमरान बिन लादेन' ट्रेंड कर रहा है. उन पर 'तालिबान ख़ान' होने का आरोप तो लंबे अरसे से लग रहा था अब उन्हें बिन लादेन से भी जोड़ दिया गया है. विपक्ष की माँग के बावजूद प्राइम मिनिस्टर हाउस ने अब तक कोई स्पष्टीकरण या खंडन जारी नहीं किया है.

हालांकि प्रधानमंत्री के विशेष सहायक डॉक्टर शहबाज़ गुल ने ट्विटर पर बयान में कहा है कि ओसामा के लिए प्रधानमंत्री ने दो बार क़त्ल का शब्द इस्तेमाल किया था. अब ये जानना मुश्किल है कि ये उनकी तरफ़ से स्पष्टीकरण था या और कन्फ्यूज़न पैदा करने की कोशिश.

प्रमुख विपक्षी पार्टी मुस्लिम लीग (नवाज़) का कहना है कि इसका मतलब है कि प्रधानमंत्री अपनी बात पर क़ायम हैं.

इमरान ख़ान की कैबिनेट में उनके साथी विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्री, फ़व्वाद चौधरी ने उनके बचाव में यह कहने की कोशिश की है कि ये "स्लिप ऑफ़ टंग" था लेकिन विपक्ष उनकी बात मानने को तैयार नहीं.

विपक्ष का कहना है कि फ़व्वाद चौधरी हाल ही में अपने एक इंटरव्यू के बाद इमरान ख़ान की नाराज़गी का शिकार हुए थे, जिसमें उन्होंने सत्ताधारी पार्टी तहरीक-ए-इन्साफ़ के अंदर असद उमर और जहांगीर तरीन के कथित नेतृत्व में पार्टी के दो धड़ों में बंटने की बात कही थी.

विदेश मंत्री शाह महमूद क़ुरैशी जो उस समय संसद में इमरान ख़ान के बग़ल में बैठे थे, उन्होंने भी बाद में पत्रकारों से बातचीत में इसका कोई स्पष्टीकरण नहीं दिया.

इमरान ख़ान बहुत ही जज़्बाती इंसान हैं और लगता है कि एक बार, जो कह दिया सो कह दिया. शायद इसकी वजह है, जो होना था वो हो गया, अब इसे वापिस नहीं लाया जा सकता है. लेकिन आशंका यही है कि पूर्व के तालिबान ख़ान की तरह बिन लादेन भी अब उनकी जान नहीं छोड़ेगा.

पहले जब तहरीक-ए-इंसाफ़ पार्टी सत्ता में नहीं थी तो इमरान ख़ान पाकिस्तान में अमरीकी नीतियों के कड़े आलोचक रहे हैं. उन्होंने ड्रोन हमलों के विरुद्ध पाकिस्तान में बड़ा अभियान चलाया और क़बाइली इलाक़े वज़ीरिस्तान तक विरोध मार्च भी किया और सिग्नेचर कैम्पेन भी चलाया.

उनका कहना था कि ड्रोन हमले संयुक्त राष्ट्र के घोषणापत्र का उल्लंघन हैं और क़ानून किसी भी व्यक्ति को शक की वजह से उसके घरवालों समेत मारने की इजाज़त नहीं देता, चाहे वो दुनिया का नंबर वन दहशतगर्द ही क्यों न हो.

इस वजह से इमरान ख़ान पाकिस्तानी चरमपंथियों की गुड बुक्स में रहे और उन्होंने कभी उन्हें परेशान नहीं किया.

लेकिन पकिस्तान की सिविल सोसायटी और लिबरल पार्टियां इससे सहमत नहीं रही. इमरान ख़ान के बारे में मानवाधिकार कार्यकर्ता मृतक आसमां जहांगीर कहती थीं कि वो तालिबान के जासूस हैं.

उनकी अपनी पार्टी के पूर्व नेता जावेद हाश्मी का उन पर आरोप था कि ड्रोन विरोधी अभियान इमरान ख़ान ख़ुद से नहीं बल्कि फ़ौज के कहने पर चला रहे थे.

जावेश हाश्मी का दावा है कि, "कराची में गाड़ी चलाते हुए इमरान ख़ान ने उन्हें बताया था कि पाशा साहब ( शुजा पाशा पाकिस्तान के ख़ुफ़िया संगठन आईएसआई के प्रमुख थे) से बात हो गई है.''

ओसामा बिन लादेन
Getty Images
ओसामा बिन लादेन

इमरान ख़ान हमेशा अफ़ग़ानिस्तान में भी ताक़त की बजाए, राजनीतिक समाधान की ही बात करते रहे हैं.

अमरीका और अफ़ग़ानिस्तान तालिबान के बीच दोहा समझौते का भी वो क्रेडिट लेते हैं. लेकिन पूर्व में समस्या ये रही कि न अमरीका और न ही तालिबान आपस में बातचीत के लिए तैयार रहे.

कई लोगों को लाहौर के लिबरल एचिसन कॉलेज, कैथेड्रल स्कूल, ब्रिटेन में रॉयल ग्रामर स्कूल के बाद ऑक्सफ़ोर्ड यूनिवर्सिटी से शिक्षा प्राप्त करने वाले इमरान ख़ान के वामपंथी विचारधारा वाले राजनेता होने पर हैरत होती है.

क्रिस्टोफ़र सैंडफ़ोर्ड ने अपनी किताब 'इमरान ख़ान: द क्रिकेटर, द सेलेब्रेटी, द पॉलिटिशियन' में इमरान ख़ान की जवानी के क़िस्से विस्तार से लिखे हैं. लेकिन कहा जाता है कि इमरान ख़ान जब 41 वर्ष के थे तब उन्होंने अपनी 'प्ले बॉय' वाली इमेज धीरे-धीर कम करना शुरू कर दी थी.

उन्हें मिया बशीर के रूप में एक आध्यात्मिक गुरु मिले थे. फिर राजनीति के मैदान में उन्होंने आईएसआई के पूर्व प्रमुख और कट्टर माने जाने वाले जनरल हमीद गुल और मोहम्मद अली दुर्रानी से हाथ मिला लिया.

सोने पर सुहागा ये कि तहरीक-ए-इन्साफ़ 'तालिबान के संरक्षक' मौलाना समी उल-हक़ के भी नज़दीक आई और उनके मदरसे, जिसे दुनिया 'यूनिवर्सिटी ऑफ़ जिहाद' के नाम से जानती है, उसको सरकारी साहयता प्रदान की. उन्हें जनरल परवेज़ मुशर्रफ़ की सहानुभूति भी मिली.

जनरल परवेज मुशर्रफ
BBC
जनरल परवेज मुशर्रफ

पीटीआई को अपने समर्थकों की वजह से पढ़ी-लिखी लिबरल पार्टी समझा जाता रहा है लेकिन हैरत की बात ये है कि पार्टी का नेतृत्व रूढ़िवादी बना रहा है.

तहरीक-ए-इन्साफ़ के कार्यकर्ता दूसरी राजनीतिक पार्टियों के कार्यकर्ताओं की तरह विचारधारा को लेकर उतने कट्टर नहीं हैं और न ही उनका कोई राजनीतिक प्रशिक्षण ही हुआ है.

2013 में चुनावी अभियान के दौरान बीबीसी उर्दू ने रेडियो प्रोग्राम 'सैरबीन' में इमरान ख़ान को बुलाया था.

उन्हें एक 30 सेकेण्ड का एक छोटा-सा प्रोमो बनाने के लिए एक वाक्य लिख कर भेजा गया था कि वो उसे पढ़ कर रिकॉर्ड करवा दें जिसमें लोगों से सवाल भेजने के लिए कहा जा रहा था. उन्होंने वो लिखा हुआ पढ़ने से मना कर दिया और अपने आप से तीन मिनट का संदेश रिकॉर्ड कर दिया जो एडिट करने के बावजूद नहीं चल सका.

ये पता किया जाना चाहिए कि उन्हें पढ़ने में समस्या है या वो वैचारिक तौर पर लिखी हुई चीज़ पढ़ने के ख़िलाफ़ हैं.

BBC Hindi
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English summary
What is the biggest problem of Pakistan Prime Minister Imran Khan?
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