ताइवान का जीवनरक्षक कवच क्या है, जो उसे चीन से बचाता आया है
महंगे लड़ाकू विमान और पनडुब्बियां खरीदना ताइवान की प्राथमिकता नहीं है. इसकी तुलना में वो गुप्त हथियारों की तैनाती को प्राथमिकता देता है.
चीन ताइवान के पास भारी सैन्य अभ्यास कर रहा है. अमेरिकी कांग्रेस की स्पीकर नैंसी पेलोसी के ताइवान दौरे से गुस्साए चीन ने सैन्य अभ्यास के दौरान समुद्र में मिसाइलें दागी हैं और ताइवान के हवाई क्षेत्र में घुसपैठ की है.
पिछले कई दिनों से चीन और ताइवान के बीच जारी तनाव घटने के बजाय बढ़ता जा रहा है.
अब तो ये लग रहा है कि चीन की ताकतवर पीपुल्स लिबरेशन आर्मी ताइवान पर हमले भी कर सकती है.
अगर चीन ताइवान पर हमला करता है तो यह इकतरफा लड़ाई होगी. ये एक ऐसा संघर्ष होगा जिसमें एक पक्ष सैन्य क्षमता के मामले में दूसरे से काफी मजबूत होगा.
यूक्रेन और रूस के बीच इस तरह के युद्ध के आसार हमें दिख रहे हैं. हालांकि जरूरी नहीं कि दोनों पक्षों में ये शक्ति असंतुलन लड़ाई के नतीजों में भी दिखे .
बचाव की रणनीति
चीन की आबादी है एक अरब चालीस करोड़. इसकी तुलना में ताइवान की आबादी है लगभग 2.45 करोड़. ताइवान की तुलना में चीन का रक्षा बजट 13 गुना अधिक है. सेना, सैनिक साजोसामान और हथियारों में चीन ताइवान से बहुत आगे है.
ताइवान को इस असंतुलन का पता है इसलिए इसने 'सुरक्षा कवच' की वैसी रणनीति अपनाई है जैसे कोई साही हमले से बचाव के वक्त अपने कांटे फैला देता है. ताइवान की यही रणनीति है.
इस रणनीति पर टिप्पणी करते हुए ताईपे टाइम्स ने अपनी संपादकीय में लिखा, "अगर इसके बावजूद भी हमलावर साही पर हमला करने के लिए अड़ा रहा तो उसे बड़ी भयावह सजा मिल सकती है. यह सजा इतनी पीड़ा देगी कि आखिरकार हमलावर हमला करना छोड़ देगा."
ताइवान ने इसी रणनीति के आधार पर चौतरफा सुरक्षा व्यवस्था अपनाई है. इस रणनीति के तहत दुश्मन को उसके तट पर रोकना, समुद्र में हमला, तटीय जोन पर हमला और दुश्मन के तटीय मोर्चे पर हमला शामिल है.
मजबूत क्षमता वाले दुश्मन के मुकाबले में ताइवान की यही रणनीति है. महंगे लड़ाकू विमान और पनडुब्बियां खरीदना ताइवान की प्राथमिकता नहीं है. इसकी तुलना में ये गतिमान और गुप्त हथियारों की तैनाती को प्राथमिकता देता है. जैसे एंटी-एयरक्राफ्ट और एंटी-शिप मिसाइलें.
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क्या कह रहे हैं रक्षा विशेषज्ञ?
ताइवान जिस जीव साही के बचाव की रणनीति पर काम कर रहा है उसके बारे में किंग्स कॉलेज लंदन के इंटरनेशनल ऑर्डर, डिफेंस और चाइना-वेस्ट रिलेशन के विशेषज्ञ जेनो लियोनी विस्तार से समझाते हैं.
उनका कहना है, "सुरक्षा की सबसे बाहरी परत खुफिया और निगरानी रणनीति का मेल है. इसका लक्ष्य सेना को पूरी तरह तैयार रखना है. वर्षों से ताइवान ने हमले से काफी पहले चेतावनी देने का वॉर्निंग सिस्टम विकसित कर रखा है ताकि चीन की किसी भी हिट-एंड-रन अटैक से वह भौचक न रह जाए."
लियोनी कहते हैं, "चीन को अगर ताइवान पर हमला करना होगा तो उसे शुरुआत मीडियम रेंज की मिसाइलों और हवाई हमलों से करनी होगी ताकि ताइवान के रडार स्टेशनों, हवाई पट्टियों और मिसाइलों की खेप को नष्ट किया जा सके."
ताइवान की इस रणनीति के मुताबिक बीच की सुरक्षा परत समुद्र के बीचोंबीच गुरिल्ला लड़ाई के लिए नौसैनिकों को तैयार रखना है. इनकी मदद के लिए अमेरिका से आए लड़ाकू विमान तैयार रहेंगे.
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छोटे और फुर्तीले नाव मिसाइलों से तैनात रहेंगे जिन्हें हेलीकॉप्टरों और जमीन से मिसाइल लॉन्चरों से मदद मिलेगी. ये चीनी बेड़ों को ताइवान की जमीन पर पहुंचने से रोकेंगे.
लियोनी कहते हैं, "सुरक्षा की तीसरी परत की रणनीति के मुताबिक़ अपनी जमीन और आबादी का बचाव ताइवान के लिए बेहद अहम है.
चीन के सैनिकों की संख्या ताइवान के सैनिकों की संख्या से 12 गुना अधिक है. चीन के पास 15 लाख रिजर्व सैनिक हैं. अगर ताइवान की जमीन पर कब्जा करना हो तो चीन इसका इस्तेमाल कर सकता है.
तीसरी सुरक्षा परत के तौर ताइवान तेजी से गतिमान, मारक और आसान से छिपाए जाने वाले हथियार काम आएंगे.
यूक्रेन की लड़ाई में कंधे पर लाद कर हमले करने वाले जेवलिन और स्टिंगर मिसाइल सिस्टम इसी का उदाहरण हैं. ये हथियार रूसी जहाजों और टैंकों के लिए भारी सिरदर्द साबित हुए हैं.
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अमेरिका क्या करेगा?
चीन और ताइवान के बीच युद्ध छिड़ने की स्थिति में अमेरिका क्या करेगा? अभी तक के संकेतों से ऐसा लगता है कि अमेरिका जानबूझ कर अपनी रणनीति छिपाए हुए है.
अमेरिकी राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार जेक सुलिवन ने हाल में कहा, "अमेरिका के इस अस्पष्ट रवैये ने ही हमें ताइवान जल डमरूमध्य में दशकों से शांति बनाए रखने में मदद की है. सिर्फ ताइवान में ही नहीं, कुछ दूसरे इलाकों में भी हमें इस रणनीति से मदद मिली है."
मई में अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन ने यह कह कर चौंका दिया था कि ताइवान की रक्षा करना के लिए उनका देश 'प्रतिबद्ध' है.
हालांकि बाद में उन्होंने अपने बयान को सुधारते हुए कहा कि 'रणनीतिक अस्पष्टता' की नीति में कोई बदलाव नहीं आया है.
अमेरिका की इस नीति का इरादा चीन को ताइवान पर हमले से हतोत्साहित करना है. लेकिन यह नीति को ताइवान को भी अपनी आजादी के एलान करने से रोकती है.
अमेरिकी सांसदों ने इस रणनीति में बदलाव की मांग की है और कहा है कि इसमें स्पष्टता होनी चाहिए ताकि ताइवान पर दबाव बढ़ाते जा रहे चीन को ऐसा करने से रोका जा सके.
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कई और तरीके आजमा सकता है अमेरिका
बहरहाल इन सबके बावजूद बहुत कम लोग ही मानेंगे कि चीन ताइवान पर हमला करता है तो अमेरिका चुप बैठेगा.
नेटो के स्ट्रेटजी विश्लेषक क्रिस पैरी कहते हैं, "आप अपने संभावित प्रतिद्वंद्वी को कभी ये नहीं बताते कि आप क्या करने जा रहे हैं. लेकिन मुझे इस बात में संदेह है कि चीन को रोकने और ताइवान पर कब्जे की कोशिश को रोकने को नाकाम करने के लिए अमेरिका जो कुछ करेगा, उसमें सिर्फ सैन्य तरीका ही शामिल नहीं होगा."
"चीन के खिलाफ अमेरिका कई तरीके आजमा सकते हैं. ये व्यापारिक, वित्तीय और सूचना रणनीति से जुड़े तरीके हो सकते हैं."
चीन जिस तरह से ताइवान के सामने अपना शक्ति प्रदर्शन करता आया है इससे वहां के लोगों में डर के बजाय गुस्सा है. चीन की धमकियों से समुद्री और हवाई यातायात में बाधाएं आ रही हैं.
कई जहाज समुद्र तट पर अटके हुए हैं. कई फ्लाइट रद्द हो गई हैं. ताइवान के इर्द-गिर्द चीन के सैन्य अभ्यास ने ताइवान में लोगों की जिंदगी अस्त-व्यस्त कर दी है.
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