कश्मीर, भारत और तालिबान पर क्या है इमरान ख़ान की राय
इमरान ख़ान के आलोचकों के मुताबिक़ उन्हें इन चुनावों में पाकिस्तान की सेना का समर्थन मिला है जिससे उन्हें काफी मदद मिली.
हालांकि, इमरान ख़ान और सेना इन आरोपों का खंडन करते हैं.
लेकिन इमरान ख़ान उन लोगों में से एक हैं जो काफ़ी समय से सेना की तारीफ़ करने वाले बयान देने के लिए चर्चित हैं.
पाकिस्तान के चुनाव में जीत दर्ज करने के बाद इमरान ख़ान पाकिस्तान के अगले प्रधानमंत्री बनने जा रहे हैं.
वर्ष 1996 से राजनीतिक गलियारों में चक्कर काटने के बाद दो दशक बाद आख़िरकार उनकी पार्टी पीटीआई ने चुनाव में शानदार प्रदर्शन किया है.
इमरान ख़ान ने चुनाव जीतने के बाद प्रशासन और पड़ोसी मुल्कों के साथ बेहतर रिश्तों क़ायम करने से जुड़ा जो भाषण दिया है, वो सधे हुए शब्दों में था और सकारात्मक भी.
लेकिन कुछ मुद्दों पर इमरान ख़ान की राय बीते कई सालों से एक जैसी ही रही है.
ब्रिटेन के ऑक्सफ़र्ड यूनिवर्सिटी से पढ़ाई करने वाले इमरान ख़ान जब 1970 और 1980 के दशक के दौरान क्रिकेट खेला करते थे तो वह अपनी बेबाक जीवनशैली के लिए चर्चित थे.
लंदन के कुछ ख़ास नाइट क्लब्स में इमरान ख़ान विशेष सदस्य हुआ करते थे और उनके कथित प्रेम संबंधों से ब्रितानी टैबलॉयड भरे रहते थे.
वर्ष 2016 में हिंदुस्तान टाइम्स से बात करते हुए इमरान ख़ान ने खुद भी कहा था, "मैंने जिस तरह की जवानी जी है, उससे कई लोगों को ईर्ष्या होती थी. कई लोग मेरे जैसी ज़िंदगी जीना चाहेंगे."
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लेकिन अब ये सब काफ़ी कुछ बदल चुका है. अब इमरान ख़ान राजनीतिक रूप से संरक्षणवादी और धर्मनिष्ठ व्यक्ति के रूप में दिखाई पड़ते हैं.
राजनीतिक रूप से वह पाकिस्तान के उदारवादियों के कड़े आलोचक हैं.
उदारवादियों से नाराज़गी
इमरान ख़ान ने न्यूज़ चैनल एनडीटीवी से 2012 में बात करते हुए कहा था, "ये उदारवादी लोग गांवों पर बमबारी का समर्थन करते हैं, ये ड्रोन हमलों का समर्थन करते हैं. मेरा मतलब ये है कि मेरे मुताबिक़ ये उदारवादी नहीं बल्कि फासिस्ट हैं. ये पाकिस्तान की गंदगी हैं जो खुद को उदारवादी कहते हैं."
पांच साल बाद 2017 में इमरान ख़ान ने पाकिस्तान और पश्चिमी देशों के उदारवादियों में अंतर स्थापित करने की कोशिश की.
इस्लामाबाद में धार्मिक पार्टियों के आंदोलन पर पुलिसिया कार्रवाई के बाद प्रेस कॉन्फ़्रेंस में इमरान ख़ान ने कहा था, "उदारवादी वो होते हैं जो मानवीय अधिकारों को अहमियत देते हैं. एक उदारवादी हमेशा युद्ध के ख़िलाफ़ होता है. मैंने हमारे यहां जैसे ख़ून के प्यासे उदारवादी कहीं नहीं देखे हैं. उन्हें बस ख़ून-ख़राबा चाहिए."
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तालिबान पर क्या है इमरान की राय
इमरान ख़ान पर अक्सर तालिबान के प्रति सहानुभूतिपूर्ण विचार रखने का आरोप लगता है. इसकी वजह से उनके आलोचक उन्हें तालिबान ख़ान कहकर भी बुलाते हैं.
उन्होंने 26 जुलाई की दी अपनी स्पीच में चरमपंथ और तालिबान से निपटने के लिए अपनी किसी योजना को सामने नहीं रखा है लेकिन उनके नियमित बयान ये बताते हैं कि वह इस संगठन के पक्ष में हैं.
जुलाई 2002 में इमरान ने कहा था कि वह तालिबान की न्याय व्यवस्था से बेहद प्रभावित हैं और अगर उनकी सरकार बनी तो वह भी वैसी ही शासन प्रक्रिया को अपनाएंगे.
पाकिस्तानी न्यूज़ चैनल द न्यूज़ ने उनके हवाले से लिखा था, "मैं सरकार बनाने के बाद वही शासन प्रक्रिया को लागू करूंगा."
पाकिस्तानी न्यूज़ पेपर द डॉन के मुताबिक़, वर्ष 2013 में जब वह एक राजनीतिक ताक़त बन गए तो उन्होंने कहा, "अगर सरकार तहरीके तालिबान पाकिस्तान के साथ संवाद की प्रक्रिया शुरू करने में गंभीर है, तो इसे पाकिस्तान में अपना दफ़्तर खोलने की अनुमति मिलनी चाहिए, जिस तरह क़तर में अफ़गान तालिबान को अपना दफ़्तर खोलने की अनुमति मिली है."
इसी साल उन्होंने ट्वीट किया था, "जिस ड्रोन अटैक में शांति समर्थक वलीउर्रहमान की मौत हुई, उसकी वजह से बदले की कार्रवाई में हमारे सैनिकों की जान गई. साल 2013 में ये पूरी तरह स्वीकार्य नहीं है."
कश्मीर और भारत पर क्या है राय
चुनाव जीतने के बाद इमरान ख़ान ने कहा, "मुझे लगता है कि ये हमारे लिए बहुत अच्छा होगा अगर भारत से हमारे रिश्ते बेहतर हो सकें. हमारे बीच व्यापारिक संबंध होने चाहिए. हमारे बीच में जितना ज़्यादा व्यापार होगा उतना ही दोनों देशों को फायदा होगा."
इमरान ख़ान ने दोनों देशों के बीच शांति क़ायम करने के मुद्दे पर कहा, "अगर आप एक क़दम आगे बढ़ाएंगे तो हम दो क़दम आगे बढ़ाएंगे."
इन बयानों से पहले इमरान ख़ान के बयान इतने कूटनीतिक नहीं हुआ करते थे, हालांकि उनका मतलब यही हुआ करता था.
द न्यूज़ के मुताबिक़, जून 2002 में इमरान ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा था, "कश्मीर में शांति क़ायम करने का बस एक ही तरीक़ा है कि कश्मीर के मामले में यूएन के प्रस्ताव का पालन करना चाहिए जिसके मुताबिक़ कश्मीरियों को जनमत संग्रह करने का अधिकार है."
भारत ने जनमत संग्रह के इस विचार का कभी समर्थन नहीं किया है, क्योंकि इसमें कश्मीर में रहने वाले लोगों को भारत, पाकिस्तान या स्वतंत्र होने का अधिकार होगा.
हाल ही में इमरान ख़ान ने भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर टिप्पणी करते हुए कहा था, "मुझे लगता है कि नरेंद्र मोदी सरकार की नीति पाकिस्तान को अलग-थलग करना है. उनका पाकिस्तान के ख़िलाफ़ रवैया बेहद आक्रामक है क्योंकि वह कश्मीर में जो भी बर्बरता कर रहे हैं उसके लिए वे पाकिस्तान को ज़िम्मेदार ठहराना चाहते हैं."
इमरान ख़ान ने ये बात द डॉन न्यूज़ पेपर से बात करते हुए कही थी.
हालांकि, 26 जुलाई के भाषण के बाद पीएम मोदी ने फोन करके इमरान को बधाई दी थी और उम्मीद जताई कि अब पाकिस्तान में लोकतंत्र गहराई से अपनी जड़ें जमा पाएगा.
सेना पर इमरान ख़ान की राय
इमरान ख़ान के आलोचकों के मुताबिक़ उन्हें इन चुनावों में पाकिस्तान की सेना का समर्थन मिला है जिससे उन्हें काफी मदद मिली.
हालांकि, इमरान ख़ान और सेना इन आरोपों का खंडन करते हैं.
लेकिन इमरान ख़ान उन लोगों में से एक हैं जो काफ़ी समय से सेना की तारीफ़ करने वाले बयान देने के लिए चर्चित हैं.
वर्ष 1999 के अक्तूबर महीने में इमरान ख़ान ने पाकिस्तान के सैन्य तख़्तापलट का समर्थन किया था, जिसके बाद परवेज़ मुशर्रफ सत्ता में आए और प्रधानमंत्री नवाज़ शरीफ़ को बाहर जाना पड़ा.
द न्यूज़ की ख़बर के मुताबिक़, ख़ान ने तब ये कसम खाई थी कि वह सैन्य नेतृत्व का सहयोग करेंगे.
द डॉन के मुताबिक़, इमरान ख़ान ने 2016 में एक बार फिर विवाद खड़ा करते हुए कहा था, "पाकिस्तान में नवाज़ शरीफ़ की राजशाही की वजह से लोकतंत्र ख़तरे में हैं और अगर आर्मी तख़्तापलट कर दे तो लोग ख़ुशी मनाएंगे और मिठाई बांटेंगे."
अमरीका और चीन पर इमरान का रवैया
इमरान ख़ान ने चुनाव जीतने के बाद अपने भाषण में कहा, "अमरीका के साथ हम परस्पर लाभ के रिश्ते रखना चाहते हैं, अभी तक ऐसा ही रहा है. अमरीका सोचता है कि वह हमें युद्ध लड़ने के लिए मदद देता है. हम चाहते हैं कि दोनों देशों का फ़ायदा हो और हम संतुलित रिश्ता रखना चाहते हैं."
हालांकि, इमरान ने ये नहीं बताया कि उनके नेतृत्व में अमरीका और पाकिस्तान के बीच रिश्ते कैसे रहेंगे लेकिन वह अमरीका की आतंकवाद विरोधी नीति और विशेषकर पाकिस्तान के क़बायली इलाक़ों में ड्रोन हमलों का सालों से विरोध करते रहे हैं.
वर्ष 2010 में इमरान ख़ान ने तत्कालीन अमरीकी विदेश मंत्री हिलेरी क्लिंटन के ख़िलाफ़ बयान दिया था.
द न्यूज़ ने उनके हवाले से कहा था, "अगर पश्चिमी समाज में रह रहे मध्यवर्गीय युवा आतंकवादी गतिविधियों में शामिल होते हैं तो इसकी ज़िम्मेदारी अमरीकी नीति की है क्योंकि ये नीति उदारवादी बहुसंख्यक आबादी का दिल जीतने में नाकाम रही है."
इसी बीच इमरान ख़ान चीन के क़रीब जाते दिख रहे हैं क्योंकि चीन सीपीईसी (चीन-पाकिस्तान आर्थिक कॉरिडोर) परियोजना पर काफ़ी पैसा ख़र्च कर रहा है.
26 जुलाई को अपने भाषण में इमरान ने कहा, "चीन सीपीईसी के माध्यम से एक बड़ा अवसर दे रहा है जिससे हम पाकिस्तान में निवेश ला सकते हैं. हम चीन से सीखना चाहते हैं कि उन्होंने कैसे 70 करोड़ लोगों को ग़रीबी से बाहर निकाला. चीन से हम जो दूसरी चीज सीख सकते हैं, वो ये है कि वो किस तरह भ्रष्टाचार के ख़िलाफ़ क़दम उठाता है और उन्होंने किस तरह अपने चार सौ मंत्रियों को गिरफ़्तार किया."