ट्रंप ने ईरान के साथ समझौता तोड़ा तो क्या होगा
जुलाई 2015 में ओबामा प्रशासन में हुए इस समझौते में के तहत ईरान पर हथियार ख़रीदने पर पाँच साल तक प्रतिबंध लगाया गया था, साथ ही मिसाइल प्रतिबंधों की समयसीमा आठ साल तय की गई थी.
बदले में ईरान ने अपने परमाणु कार्यक्रम का बड़ा हिस्सा बंद कर दिया और बचे हुए हिस्से की निगरानी अंतरराष्ट्रीय निरीक्षकों से कराने पर राज़ी हो गया था.
ईरान परमाणु समझौते की अब तक की कहानी
- अमरीका और दूसरे कई पश्चिमी देशों को था ईरान पर परमाणु बम बनाने का शक
- ईरान बार-बार दोहराता रहा कि उसका परमाणु कार्यक्रम सैनिक कार्यों के लिए नहीं है
- लेकिन दुनिया को ईरान की बातों पर नहीं था यकीन
- संयुक्त राष्ट्र ने ईरान पर 10 साल के लिए प्रतिबंध लगाए
- विएना में जुलाई 2015 में ईरान का अमरीका और अन्य पांच देशों के साथ हुए समझौता
- ट्रंप ने इसे सबसे बुरे समझौतों में से एक बताया
ईरान के साथ हुए अंतरराष्ट्रीय परमाणु समझौते से अमरीका अलग होगा या नहीं, इस सवाल से पर्दा उठने में अब कुछ ही घंटे बाक़ी रह गए हैं.
अमरीका के राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप मंगलवार को ये घोषणा करेंगे. ट्रंप ने ट्वीट कर बताया कि वह व्हाइट हाउस में अमरीकी समयानुसार दोपहर दो बजे घोषणा होगी.
राष्ट्रपति बनने के बाद से ही डोनल्ड ट्रंप, ईरान के साथ हुए अंतरराष्ट्रीय समझौते के मुखर विरोधी रहे हैं. वो इसे 'सबसे बुरे समझौतों में से एक' बता चुके हैं.
कई साल तक ज़िद पर अड़े रहने के बाद ईरान छह देशों अमरीका, ब्रिटेन, फ्रांस, रूस और चीन के अलावा जर्मनी के साथ समझौते के लिए तैयार हुआ था. ईरान ने अपने परमाणु कार्यक्रम को बंद किया था, बदले में ईरान पर लगे आर्थिक प्रतिबंधों में ढील दी गई थी.
पृष्ठभूमि
जुलाई 2015 में ओबामा प्रशासन में हुए इस समझौते में के तहत ईरान पर हथियार ख़रीदने पर पाँच साल तक प्रतिबंध लगाया गया था, साथ ही मिसाइल प्रतिबंधों की समयसीमा आठ साल तय की गई थी.
बदले में ईरान ने अपने परमाणु कार्यक्रम का बड़ा हिस्सा बंद कर दिया और बचे हुए हिस्से की निगरानी अंतरराष्ट्रीय निरीक्षकों से कराने पर राज़ी हो गया था.
समझौते पर दस्तख़त करने वाले ब्रिटेन, फ्रांस और जर्मनी ने राष्ट्रपति ट्रंप से इस समझौते से अलग न होने की अपील की है. फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों ने अपने हाल की अमरीकी यात्रा के दौरान भी कहा था कि वे मानते हैं कि ईरान के साथ हुआ समझौता 'बेस्ट' नहीं था, लेकिन इसके अलावा कोई विकल्प भी नहीं था.
इन देशों ने ये संकेत भी दिया है कि राष्ट्रपति ट्रंप चाहे जो भी फ़ैसला करें, वे ईरान के साथ हुए तीन साल पुराने समझौते पर कायम रहेंगे.
ईरान के राष्ट्रपति हसन रूहानी भी कह चुके हैं कि राष्ट्रपति ट्रंप ने ईरान के साथ परमाणु समझौता खत्म किया तो अमरीका को ऐतिहासिक रूप से पछताना होगा.
लेकिन राष्ट्रपति ट्रंप कहते रहे हैं कि ये समझौता बहुत उदार था और ईरान 'मौत, तबाही और अराजकता' फैला रहा है.
अब सवाल ये है कि कई सालों के तनाव के बाद अमल में आ सकी ये डील अगर ट्रंप रद्द कर देते हैं तो क्या असर पड़ेगा और राष्ट्रपति ट्रंप के पास क्या विकल्प हैं?
ईरान पर आर्थिक नकेल कसेगा अमरीका?
अमरीकी राष्ट्रपति ईरान पर फिर से आर्थिक प्रतिबंध लगा सकते है. इनमें ईरान के केंद्रीय बैंक के साथ लेन-देन बंद करना हो सकता है, जिसका मकसद दुनियाभर के तेल कंपनियों पर ईरान से पेट्रोल, डीज़ल नहीं ख़रीदने के लिए दबाव बनाना होगा.
पुराने प्रतिबंधों पर अमल
राष्ट्रपति ट्रंप एक बार फिर ईरान पर वही प्रतिबंध लगा सकते हैं, जो परमाणु समझौते से पहले लगे थे. वैसे भी ट्रंप ने कई बार और खुलकर इस बात का ऐलान किया है कि वो ईरान के साथ हुए परमाणु समझौते को कतई सही नहीं मानते. ख़ासकर ट्रंप उस 'सनसेट क्लॉज' से ख़फा हैं जिसमें कहा गया है कि ईरान अपने परमाणु कार्यक्रम का कुछ हिस्सा 2025 के बाद शुरू कर सकता है.
अमरीका के प्रति क्या होगी भावना
जानकारों का मानना है कि अगर समझौता टूटा तो ईरान में अमरीका के प्रति नफ़रत की भावना और प्रबल होगी. ईरान पहले ही धमकी दे चुका है कि अगर अमरीका समझौते से पीछे हटा और उस पर फिर से प्रतिबंध लगाए गए तो परमाणु गतिविधियां बढ़ा देगा और मिसाइल परीक्षण भी नहीं रोकेगा. रूहानी कह चुके हैं, "हम अमरीका के फैसले को लेकर चिंतित नहीं हैं, हम सभी परिस्थितियों के लिए तैयार हैं और इससे उनकी ज़िंदगियों पर कोई असर नहीं पड़ेगा."
उत्तर कोरिया
कुछ पर्यवेक्षक ये भी मानते हैं कि ट्रंप ईरान के प्रति इसलिए भी सख्त रुख़ अपना रहे हैं ताकि उत्तर कोरिया पर अपनी मनमाफ़िक शर्तों पर बातचीत के लिए दबाव बना सकें. लेकिन सवाल ये भी है कि अगर ट्रंप ईरान के साथ समझौता तोड़ते हैं तो उत्तर कोरिया बातचीत की मेज पर क्यों आएगा और वो किसी तरह के समझौते पर दस्तखत क्यों करेगा?
बीबीसी मॉनिटरिंग के मुताबिक दुनियाभर में ट्रंप के ट्वीट की चर्चा भले ही हो रही हो, लेकिन मंगलवार को ईरान के अधिकतर अख़बारों ने इस ख़बर को ख़ास अहमियत नहीं दी. न तो ट्रंप की तस्वीर और न ही उनका ट्वीट अख़बारों के पहले पन्ने पर जगह बना सके. कुछ मध्यमार्गी अख़बारों जैसे ईरान और जम्हूरी-ए-इस्लामी और हमशाहरी ने राष्ट्रपति रुहानी के समझौते के कायम रहने की संभावना वाले बयान को प्रमुखता से छापा.
ईरान में सोशल मीडिया पर भी लोगों की आम प्रतिक्रिया ये थी वे नहीं समझौते कि ट्रंप इस समझौते से बाहर निकलेंगे. ट्विटर हैंडल @Gavaazn से लिखा गया, "निजी तौर पर मैं नहीं समझता कि वो समझौता तोड़ेंगे, लेकिन वो प्रतिबंध कड़े कर सकते हैं. वो शायद इसमें मिसाइल मुद्दे को शामिल कर दें."
@teriboun1 हैंडल से लिखा गया, "अमरीका समझौते से बाहर निकला तो ईरान क्षेत्रीय और अंतरराष्ट्रीय रूप से मजबूत होगा. अंतरराष्ट्रीय विवादों में मध्यस्थ के रूप में अमरीका की भूमिका कमज़ोर होगी और रूस का रूतबा बढ़ेगा."
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