तय हुआ फिनलैंड पर भी हमला करेगा रूस! क्या सना मरीन को भी जेलेंस्की की तरह छोड़ देंगे बाइडेन?
वॉशिंगटन/मॉस्को, मई 13: फिनलैंड के नाटो की सदस्यता लेने के फैसले को लेकर रूस बुरी तरह से बौखला गया है और जिस तरह की रिपोर्ट्स आ रही हैं, माना जा रहा है कि, बेहद शांतिप्रिय देश फिनलैंड में रूस उसी तरह का सैन्य अभियान शुरू कर सकता है, जैसा उसने यूक्रेन में किया है। फिनलैंड में नाटो में शामिल होने की मंजूरी दे दी है और अगले हफ्ते आधिकारिक तौर पर इसकी घोषणा की जाएगी और इस बीच रूसी विदेश मंत्रालय ने चेतावनी देते हुए कहा कि, वो किसी भी हालत में रूस के ठीक बगल में नाटो को नहीं आने देगा और फिनलैंड अगर नाटो में शामिल होने पर सहमति जताता है, तो रूस सैन्य अभियान शुरू करेगा।

रूस की गंभीर चेतावनी
रूस ने चेतावनी जारी करते हुए कहा कि, फिनलैंड के नाटो में शामिल होने के फैसले के जवाब में उसे अनिर्दिष्ट "मिलिट्री-टेक्नोलॉजिकल" कदम उठाने होंगे। रूसी विदेश मंत्रालय ने गुरुवार को कहा कि, फिनलैंड के नाटो में शामिल होने से "रूसी-फिनिश संबंधों के साथ-साथ उत्तरी यूरोप में स्थिरता और सुरक्षा को गंभीर नुकसान होगा।" रूसी विदेश मंत्रालय ने कहा कि, "रूस को अपनी राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए उभरते खतरों का मुकाबला करने के लिए सैन्य-तकनीकी कदम उठाने के लिए मजबूर किया जा रहा है।" बयान में कहा गया है कि फिनलैंड को अपनी सुरक्षा और शांति सुनिश्चित करने पर ध्यान देना चाहिए और "हेलसिंकी को अपनी ज़िम्मेदारी और इस तरह के कदम उठाने के परिणामों के बारे में पता होना चाहिए।"

‘फिनलैंड ने तोड़े समझौते’
मंत्रालय ने आरोप लगाया कि फिनलैंड के इस कदम ने रूस के साथ पिछले समझौतों का भी उल्लंघन किया है। रूस की तरफ से जारी बयान में काफी सख्त लहजे में कहा गया है कि, 'इतिहास यह निर्धारित करेगा कि फिनलैंड को आखिर अपने क्षेत्र को जंग का मैदान बनाने की जरूरत क्यों पड़ी और अपने देश की स्वतंत्रता को खोने की जरूरत क्यों पड़ी'। रूस की ये चेतावनी काफी गंभीर मानी जा रही है और आशंका है कि, अगले हफ्ते नाटो में शामिल होने का आधिकारिक ऐलान करते ही रूस फिनलैंड के ऊपर आक्रमण कर देगा। वहीं, रूसी विदेश मंत्रालय की इस टिप्पणी का क्रेमलिन के प्रवक्ता दिमित्री पेसकोव ने भी समर्थन किया है और कहा कि, फिनलैंड के फैसले से यूरोप में स्थिरता और सुरक्षा में मदद नहीं मिलेगी। पेसकोव ने कहा कि रूस की प्रतिक्रिया, नाटो के रूसी सीमाओं के करीब अपने बुनियादी ढांचे का विस्तार करने के उसके कदमों पर निर्भर करेगी।
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नाटो में शामिल होगा फिनलैंड
आपको बता दें कि, यूक्रेन पर रूसी हमले के बाद फिनलैंड में जोरदार मांग उठी, कि देश को अपनी सुरक्षा की खातिर नाटो में सामिल होना चाहिए और फिनलैंड के नेता गुरुवार को उत्तरी अटलांटिक संधि संगठन (नाटो) में शामिल होने के लिए एप्लीकेशन फॉर्म भरने पर तैयार हो गये हैं और माना जा रहा है कि, फिनलैंड के बाद फौरन स्वीडन भी नाटो में शामिल होने का ऐलान कर सकता है। वहीं, माना जा रहा है कि, यूक्रेन में रूस ने जिस तरह से तबाही मचाई है, उससे रूस के पड़ोसी देशों में काफी ज्यादा डर घर कर गया है। जबकि, रूस अभी भी पूर्वी यूक्रेन में भीषण हमले कर रहा है और रूसी हमले में डोनबास क्षेत्र को काफी नुकसान पहुंचा है। लेकिन, कई लोग सवाल उठा रहे हैं, कि क्या अगर फिनलैंड के ऊपर रूस आक्रमण करता है, तो क्या अमेरिका उसे बचाने आएगा?

क्या करेगा अमेरिका?
फिनलैंड और जल्द ही स्वीडन के नाटो में शामिल होने के फैसने के बाद अमेरिका और अमेरिका के सहयोगी अपने उस दावे को और भी पुख्ता मान रहे हैं, कि रूस ने यूक्रेन पर हमला कर बहुत बड़ी रणनीतिक गलती की है और अब राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन को बनाने का समय आ गया है, कि उन्हों एक बड़ी कीमत चुकानी पड़ेगी। लेकिन इस फैसले से कई बड़े सवाल लटके हुए हैं, कि क्या अमेरिका फिनलैंड की उसी तरह से समर्थन करेगा, जिस तरह का समर्थन उसने यूक्रेन पर किया है, क्योंकि यूक्रेन के पास तो फिर भी थोड़ी मजबूत सेना है, जो अमेरिकी हथियारों के साथ रूसी सैनिकों का मुकाबला कर रही है, लेकिन फिनलैंड की मिलिट्री ताकत तो काफी ज्यादा कमजोर है और एक्सपर्ट्स सवाल उठा रहे हैं, कि अमेरिका ने यूक्रेन की सैन्य मदद इसलिए नहीं कि, क्योंकि अमेरिका दुनिया को विश्वयुद्ध या न्यूक्लियर युद्ध में नहीं झोंकना चाहता था, लेकिन फिनलैंड को लेकर भी तो यही खतरा होगा, तो फिर अगर रूस फिनलैंड पर हमला कर देता है, तो क्या उस वक्त भी बाइडेन हाथ पर हाथ धरे बैठे रहेंगे?

नाटो में हो जाएंगे 32 देश
अगर फिनलैंड और स्वीडन, दोनों ही देशों को नाटो की सदस्यता दे दी जाती है, तो फिर नाटो में शामिल कुल सदस्य देशों की संख्या बढ़कर 32 हो जाएगी, लेकिन सवाल ये उठ रहे हैं, कि क्या नाटो सैन्य गठबंधन यह सुनिश्चित करेगा, कि रूस फिनलैंड पर आक्रमण नहीं करेगा? क्योंकि रूस ने प्रतिशोध की ना सिर्फ चेतावनी ही दी है, बल्कि रिपोर्ट है कि, रूस ने बाल्टिक सागर में परमाणु फोर्स को तैनात करने का फैसला लिया है। वहीं, अगर फिनलैंड नाटो में शामिल होता है, तो इसका मतलब ये हुआ, कि रूस की सीमा रेखा पर अमेरिकी सेना मौजूद होगी और पुतिन हरगिज ऐसा नहीं होने देंगे। लेकिन, व्हाइट हाउस ने फिनलैंड के नेताओं के नाटो में शामिल होने की घोषणा का स्वागत किया, कि उनके देश को "बिना देरी के नाटो सदस्यता के लिए आवेदन करना चाहिए'।

फिनलैंड-स्वीडिश अधिकारियों से बात
न्यूयॉर्क टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक, पिछले कई हफ्तों से अमेरिकी अधिकारी चुपचाप फिनलैंड और स्वीडन, दोनों देशों के अधिकारियों के साथ बैठक कर रहे हैं और यह योजना बना रहे हैं कि दोनों देशों के लिए सुरक्षा गारंटी को कैसे बढ़ाया जाए, अगर उनके नाटो में शामिल होने के बाद रूस उनके खिलाफ सैन्य अभियान चलाने की घोषणा करता है। जबकि, मांग ये भी उठ रही है, कि जब फिनलैंड और स्वीडन को नाटो में शामिल किया जा सकता है, तो फिर यूक्रेन को क्यों नहीं, तो बाइडेन और उनके सहयोगियों के पास फिनलैंड और स्वीडन को नाटो में शामिल होने देने और यूक्रेन को बाहर रखने का तर्क काफी सीधा है। उनका मानना है कि, दोनों नॉर्डिक राज्यों का मॉडल लोकतंत्र और आधुनिक सेनाएं हैं जिनके साथ संयुक्त राज्य अमेरिका और अन्य नाटो राष्ट्र नियमित रूप से अभ्यास करते हैं और बाल्टिक सागर में हवाई गश्त लगाने के साथ साथ समुद्र के अंदर कम्युनिकेशन केबल्स की रक्षा करते हैं। अमेरिका और सहयोगियों का मानना है कि, ये दोनों देश, सिर्फ आधिकारिक तौर पर ही नाटो का हिस्सा नहीं हैं, लेकिन उन्होंने हर मायने में नाटो की काफी मदद की है और यूक्रेन के आक्रमण ने लगभग सभी बहस को समाप्त कर दिया कि क्या दोनों देश गठबंधन से कुछ दूरी बनाकर सुरक्षित रहेंगे?

1994 में बने थे नाटो के भागीदार
वैसे देख जाए, तो पता यही चलता है, कि फिनलैंड और स्वीडन के नाटो में शामिल होने से कुछ ज्यादा बदलाव नहीं आएगा, क्योंकि, स्वीडन और फ़िनलैंड 1994 में नाटो के आधिकारिक भागीदार बन गए थे और तब से ही ये दोनों देश नाटो गठबंधन में प्रमुख योगदानकर्ता बन गए हैं। शीत युद्ध की समाप्ति के बाद से उन्होंने कई नाटो मिशनों में भाग भी लिया है। लेकिन, सबसे बड़ा बदलाव ये होगा, कि नाटो के "अनुच्छेद 5" का अनुप्रयोग शुरू हो जाएगा, जो एक सदस्य राज्य पर हमले को सभी सदस्य राज्यों पर हमले के रूप में देखता है और नाटो में शामिल होने पर पहली बार, फिनलैंड और स्वीडन को परमाणु राज्यों से सुरक्षा की गारंटी मिलेगी। यद्यपि बहस दोनों देशों में सदस्यता के पक्ष में बहुत तेज़ी से स्थानांतरित हो गई है, वहीं, बीबीसी की एक रिपोर्ट के मुताबिक, इतिहासकार हेनरिक मेनेंडर का तर्क है कि फ़िनलैंड मानसिक रूप से इसके लिए तैयार है। उनका कहना है कि सोवियत संघ के पतन के बाद से नाटो की ओर छोटे-छोटे कदम लगातार उठाए गए हैं।

नाटो की तरफ झुकता स्वीडन, फिनलैंड
बात अगर फिनलैंड की सैन्य ताकत की करें तो 1992 में फिनलैंड ने 64 अमेरिकी लड़ाकू विमान खरीदे थे और इसके तीन साल बाद ही फिनलैंड स्वीडन के साथ यूरोपीय संघ में शामिल हो गया। तब से हर फिनिश सरकार ने तथाकथित नाटो विकल्प की समीक्षा की है। फिनलैंड की आबादी करीब 55 लाख की है और फिनलैंड के पास 2 लाख 80 हजार एक्टिव सैनिक हैं, जबकि 9 लाख सैनिक रिजर्व हैं। वहीं, स्वीडन ने 1990 के दशक में एक अलग रास्ता अपनाया और अपनी सेना के आकार को कम किया और क्षेत्रीय रक्षा से लेकर दुनिया भर के शांति मिशनों तक अपनी प्राथमिकताओं को बदल दिया। लेकिन यह सब 2014 में बदल गया, जब रूस ने क्रीमिया को यूक्रेन से अलग कर लिया। जिसके बाद स्वीडन ने अपनी सैन्य ताकत को मजबूत करने की तरफ ध्यान दिया और साल 2018 में स्वीडन के हर घर को "अगर संकट या युद्ध आता है" शीर्षक से सेना के पर्चे बांटे गये। फ़िनलैंड पहले ही नाटो की जीडीपी के 2% के रक्षा खर्च लक्ष्य तक पहुंच चुका है, और स्वीडन ने ऐसा करने की योजना तैयार की है।
ड्रैगन
की
नाक
के
नीचे
विध्वंसक
जहाज
लेकर
पहुंचा
US,
बौखलाया
चीन,
ताइवान
में
भी
छिड़ेगी
जंग?