उत्तर कोरिया में बंदियों के साथ होता है कैसा सलूक, HRW की रिपोर्ट से सामने आया सच
नई दिल्ली- अत्याचार, अपमान, जबरन अपराध कबूल कराना और बंदियों को भूखे रखना उत्तर कोरिया के क्रिमिनल जस्टिस सिस्टम का हिस्सा बन चुका है। सोमवार को ह्यूमैन राइट्स वॉच ने उत्तर कोरिया के कुछ पूर्व अधिकारियों और बंदियों से बातचीत के आधार पर दावा किया है कि 2011 में जब से वहां की सत्ता पर किम जोंग उन काबिज हुए हैं- ये सब वहां की मूल विशेषताएं बन चुकी हैं। 88 पेज की इस रिपोर्ट में 2014 के संयुक्त राष्ट्र के जांचकर्ताओं की ओर से वहां मानवाधिकारों के उल्लंघन से जुड़ी रिपोर्ट को भी शामिल किया है। यूएन के जांचकर्ताओं ने किम और उनके सिक्योरिटी चीफ की हरकतों को नाजी-काल के अत्याचार से तुलना करते हुए उन्हें व्यवस्थित यातनाओं, भूखा रखने और हत्याओं का आदेश देने के लिए खुद न्याय का सामना करने को कहा था।
ह्यूमैन राइट्स वॉच की रिपोर्ट को 8 पूर्व सरकारी अधिकारियों और 22 पूर्व बंदियों का इंटरव्यू लेकर तैयार किया गया है। इनमें से एक ने इस अमेरिकी संस्था से कहा है कि वहां 'बंदियों के साथ ऐसा सलूक होता है, जैसे कि वह 'जानवरों से भी बदतर हों' और आखिरकार वही स्थिति बना दी जाती है।' ह्यूमैन राइट्स वॉच के एशिया डायरेक्टर ब्रैड एडम्स ने कहा है, 'उत्तर कोरिया का दिखावे वाला हिरासत और जांच व्यवस्था मनमाना, हिंसक, क्रूर और अपमानजनक है।' उन्होंने कहा कि 'उत्तर कोरियाई कहते हैं कि वह हमेशा सिस्टम में पकड़े जाने के डर से डरे रहते हैं, जहां आधिकारिक प्रक्रिया आमतौर पर बेमानी है, दोषी मान लिया जाता है और सिर्फ रिश्वत देकर और संपर्कों के आधार पर ही उससे निकला जा सकता है।'
सभी पूर्व बंदियों ने बताया कि उन्हें सिर झुकाकर रोजाना 7 से 8 घंटे और कभी-कभी 13-16 घंटे तक जमीन पर बैठे रहना पड़ता है। आंखें जमीन की ओर रखनी होती है। अगर किसी ने जरा भी हिलने की कोशिश की तो गार्ड उसे सजा दे सकते हैं या सबको एक साथ सजा दी जा सकती है। दक्षिण कोरिया भागने की कोशिश मे पकड़े गए एक सैनिक ने बताया कि उसकी रोजाना इतनी बेरहमी से पिटाई होती थी कि एक समय लगा कि अब मर जाएंगे। 50 साल की ज्यादा उम्र की एक पूर्व कारोबारी महिला ने बताया कि एक जांचकर्ता ने उसके साथ पूछताछ के दौरान रेप किया और दूसरे पुलिस वाले ने उसका यौन उत्पीड़न किया। लगभग सभी ने बताया है कि शुरुआत में तो प्रताड़ना की इंतहा कर दी जाती है।
उत्तर कोरिया के एक पूर्व अधिकारी ने बताया कि 'नियम कहता है कि पिटाई नहीं होनी चाहिए। लेकिन, हमें जांच के दौरान ही कबूलनामा चाहिए और वह भी शुरुआत में ही। इसलिए आपको उनकी पिटाई करनी पड़ती है। चाहे पाइन स्टिक से पिटाई कीजिए या फिर बूट से।' तस्करी के आरोप में चार बार पकड़े गए एक शख्स ने बताया कि 'मुझे इतना पीटा गया कि मैं एक ही काम कर सकता था और मैंने कह दिया कि मैंने गलती की।'
यातनाएं सिर्फ पिटाई से ही नहीं दी जाती। पूर्व बंदियों के मुताबिक उन्हें बहुत ही गंदगी वाली स्थिति में रखा जाता है, बहुत कम खाना दिया जाता है, छोटे से सेल में बहुत ज्यादा भीड़ कर दी जाती है। नहाने और कंबल के लिए तरसते हैं। महिला बंदियों की जरूरतों पर भी ध्यान नहीं दिया जाता। यातना भुगत चुके लोगों का कहना है कि ऐसा इसलिए किया जाता है कि वो आसानी से गुनाह कुबूल लें।
एक पूर्व अधिकारी ने स्वीकार किया कि 'कई बार डिटेंशन सेंटर में इतनी बदबू होती है कि वहां ठहरना नाममुकिन होता है। जब भी मैं वहां से लौटता था तो मुझे अपने कपड़े बदलने पड़ते थे।' सबसे अजीब बात तो ये है कि जब एक समय यूएन में इन वजहों से उत्तर कोरिया के राजदूत को मानवाधिकार के उल्लंघनों को लेकर आलोचनाओं का सामना करना पड़ रहा था तो उन्होंने मानवाधिकार परिषद से कहा कि 'आप अपना काम देखिए।'