चीन में नेपाल के राजदूत ने भारत के बारे में ऐसा क्या कह दिया कि हो गया विवाद
चीन में नेपाल के राजदूत ने चीन के अख़बार ग्लोबल टाइम्स को एक इंटरव्यू दिया था, लेकिन उस इंटरव्यू के कारण विवाद पैदा हो गया है.
चीन में नेपाल के राजदूत के एक इंटरव्यू के कारण नेपाल में विवाद पैदा हो गया है.
नेपाली राजदूत महेंद्र बहादुर पांडेय ने अपने इंटरव्यू में भारत-नेपाल सीमा विवाद के बारे में बातचीत की थी और भारतीय मीडिया की आलोचना की थी.
नेपाल के विदेशी मामलों के कई जानकारों का कहना है कि चीन सरकार के क़रीबी समझे जाने वाले अख़बर ग्लोबल टाइम्स की वेबसाइट पर छपा इंटरव्यू ग़ैर-राजनयिक है और इससे नेपाल और उसके दो पड़ोसी भारत और चीन के बीच ग़लतफ़हमी पैदा हो सकती है.
नेपाल के विदेश मंत्रालय ने हालांकि अभी तक इस इंटरव्यू पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी है, लेकिन सत्तारूढ़ पार्टी के नज़दीक माने जाने वाले चीन में नेपाल के एक पूर्व राजदूत ने बीबीसी नेपाली सेवा से कहा कि राजदूत महेंद्र बहादुर पांडेय इस विवाद से बच सकते थे, अगर उन्होंने अपने जवाब को अलग तरह से दिया होता.
चीन की सीमा से सेट नेपाल के हुमला ज़िले में पहाड़ी दर्रों के आस-पास चीन की ओर से बनाए गए इमारतों को लेकर जो विवाद पैदा हुआ था, राजदूत पांडेय ने यह इंटरव्यू ठीक उसके बाद दिया था.
हालांकि चीन और नेपाल दोनों ने बाद में स्पष्ट किया था कि सीमा के पास बनी इमारतें चीन की सीमा के अंदर हैं.
लेकिन नेपाल और भारत की मीडिया में इस तरह की कई ख़बरें लगातार छप रहीं हैं कि चीन नेपाल के अंदर इमारतों का निर्माण कर रहा है और नेपाली लोगों ने राजधानी काठमांडू में चीनी राजदूत के सामने विरोध प्रदर्शन किया और माँग की है कि चीन ने नेपाल की ज़मीन पर जो अवैध क़ब्ज़ा किया है, उसे वो छोड़ दे.
उस इंटरव्यू में मुख्य सवाल यही था कि विदेशी मीडिया में इस तरह की ख़बरें चल रही हैं कि नेपाल भारत और चीन के बीच फँस गया है और दोनों से रिश्तों की तालमेल बिठाने में नेपाल को परेशानी हो रही है.
नेपाल में प्रतिक्रिया
नेपाल इंस्टीट्यूट ऑफ़ इंटरनेशनल एंड स्ट्रैटेजिक स्टडीज़ के निदेशक भास्कर कोइराला का कहना है कि नेपाली राजदूत ने इंटरव्यू देकर बहुत बड़ी ग़ैर-ज़िम्मेदाराना हरकत की है, क्योंकि उन्होंने भारतीय मीडिया को भारत राज्य से मिलाने की कोशिश की.
उनका कहना था, "सवाल भारतीय मीडिया पर केंद्रित था, लेकिन राजदूत ने इसकी तुलना भारत देश से कर दी, जो बहुत ही ग़ैर-ज़िम्मेदाराना बात है. जो कोई भी चीन में नेपाली राजदूत का इंटरव्यू पढ़ेगा, उसे यही लगेगा कि भारतीय मीडिया जो फ़ेक और एकतरफ़ा ख़बर चला रही है, उसको भारत सरकार बढ़ावा दे रही है."
कोइराला कहते हैं कि चीन में बैठकर नेपाली राजदूत के लिए भारत-नेपाल सीमा विवाद पर बात करना किसी भी तरह राजनयिक नहीं है.
वो आगे कहते हैं, "यह न तो नेपाल के लिए अच्छा है और न ही चीन के लिए. यह भारत के साथ हमारे संबंधों के लिए भी सही नहीं है. भारत और चीन के बीच पहले से जारी सीमा विवाद के बीच नेपाली राजदूत ने बेवजह नेपाल को इसमें घसीट लिया. नेपाल को ऐसा कोई पक्ष नहीं लेना चाहिए, जिससे उसके किसी एक पड़ोसी को नाराज़ होने का मौक़ा मिल जाए. सामरिक रूप से अहम क्षेत्र में बसे होने के कारण हमें अपने देश को शांति का द्वीप बनाने की कोशिश करनी चाहिए."
काठमांडू पोस्ट अख़बार के पूर्व एडिटर इन चीफ़ अखिलेश उपाध्याय कहते हैं कि ऐसा लगता है कि चीन को ख़ुश करने के लिए यह इंटरव्यू दिया गया था, जो स्थापित राजनयिक मूल्यों और व्यवहार के बिल्कुल ख़िलाफ़ था.
वो कहते हैं, "नेपाल के लिए भारत और चीन के बीच संबंध बहुत महत्वपूर्ण हैं. साल 2008 ( इसी साल नेपाल में राजशाही ख़त्म हुई थी और यह एक गणराज्य बना था) से चीन ने नेपाल पर ख़ास ध्यान देना शुरू कर दिया था. उसके बाद से नेपाल में भारत और चीन के बीच सामरिक प्रतिद्वंद्विता जारी है. इन हालात में नेपाली राजदूत को गुट-निरपेक्ष विदेश नीति के सिद्धांत का पालन करना चाहिए था. नेपाली राजदूत का बयान ऐसा था, जैसे कोई राजनीतिक कार्यकर्ता बात कर रहा हो."
अखिलेश उपाध्याय कहते हैं कि राजनयिक करियर से आने वाले लोग कभी भी इस तरह का बयान नहीं देते, जो हाल के कुछ सालों में बहुत मामूली बात हो गई है, चाहे सरकार किसी भी पार्टी की हो.
उनके अनुसार नेपाल की सरकार को इस मामले में तुरंत सफ़ाई देनी चाहिए और स्पस्ट रूप से सरकार को कहना चाहिए कि नेपाल, भारत और चीन से अपने संबंधों को स्वतंत्र रूप से अलग-अलग करके देखता है.
सरकार अगर ऐसा नहीं करती है तो उस शक को और मज़बूती मिलेगी कि मौजूदा नेपाली सरकार चीन की तरफ़ झुकी हुई है.
चीन में रह चुके एक और पूर्व नेपाली राजदूत तनका कार्की की राय कुछ अलग है.
कार्की को सत्ताधारी नेपाली कम्युनिस्ट पार्टी का क़रीबी माना जाता है.
बीबीसी से बातचीत से कार्की ने कहा, "राजदूत पांडेय का एक अलग ही अंदाज़ है अपनी बातें कहने का. मुझे नहीं लगता कि उन्होंने ऐसा कुछ कहा है जो कि सचमुच में सवाल उठाने योग्य है जैसा कि मीडिया कर रही है. हालांकि मुझे भी यह लगता है कि कुछ सवालों के जवाब वो अलग तरह से दे सकते थे."
कार्की ने कहा कि ग्लोबल टाइम्स को दिए इंटरव्यू में राजदूत पांडेय ने भारत के संबंध में जो बातें कहीं, वो सिर्फ़ कालापानी में भारत और नेपाल के साथ जो सीमा विवाद है, उसके बारे में थीं.
कार्की आगे कहते हैं, "मेरा ख़याल है कि भारत में कुछ मीडिया सरकार का समर्थन करती है और कुछ मीडिया स्वतंत्र भी हैं. मुझे लगता है कि राजदूत पांडेय अपने इंटरव्यू में सिर्फ़ भारत की गोदी मीडिया के बारे में बात कर रहे थे."
कार्की ने कहा कि नेपाल भारत से अपने सीमा विवाद को सुलझाने में ख़ुद ही सक्षम है और बड़े और शक्तिशाली देशों की आपसी लड़ाई में नेपाल को खींचे जाने की कोई ज़रूरत नहीं है.
नेपाली राजदूत ने आख़िर कहा क्या था?
इंटरव्यू के दौरान नेपाली राजदूत से पूछा गया था कि विदेशी माडिया ख़ासकर भारतीय मीडिया यह कह रही है कि चीन के नेपाल से बढ़ते रिश्ते ने सुरक्षा चिंताओं को बढ़ा दिया है.
इस पर नेपाली राजदूत ने कहा था, "यह तथ्यों पर आधारित नहीं है और यह पक्षपातपूर्ण रवैया है. यह भय की मनोवृति को दर्शाता है. नेपाल उस समय से एक स्वतंत्र और सार्वभौम देश है जब भारत एक उपनिवेश था. हमलोग का किसी भी तरह के वैचारिक समूह या किसी शक्तिशाली देश के प्रति झुकाव नहीं है."
उन्होंने आगे कहा, "भारतीय मीडिया पक्षपातपूर्ण हो सकती है या फिर यह भी हो सकता है कि किसी ने उनको ग़लत जाकारी दी हो. इसलिए उन्होंने फ़ेक न्यूज़ और प्रोपगैंडा को प्रसारित किया. लेकिन यह सच नहीं है. चीन और भारत के बीच सहयोग बहुत स्वाभाविक और दोस्ताना है."
उन्होंने ये भी कहा था कि चीन और भारत दोनों ही नेपाल के पड़ोसी हैं और पड़ोसियों को एक दूसरे से डरना नहीं चाहिए बल्कि उन्हें हाथ मिलाकर एक दसरे से सहयोग करते हुए आगे बढ़ना चाहिए.
राजदूत से जब कुछ पश्चिमी मीडिया का हवाला देते हुए पूछा गया कि नेपाल, भारत-चीन सीमा विवाद के बीच में फँस गया है, इस पर राजदूत ने भारत और नेपाल के बीच सीमा विवाद की बात की थी.
उन्होंने कहा कि नेपाल और चीन के बीच कोई सीमा विवाद नहीं है, क्योंकि माओत्से तुंग और चाउ एन लाई के समय में ही उनको सुलझा लिया गया था.
राजदूत ने आगे कहा कि भारत ने नेपाल की कुछ ज़मीन पर क़ब्ज़ा कर लिया था और चीन से 1962 की जंग हारने के बाद नेपाल की उस ज़मीन पर रहे भी थे, लेकिन बाद में भारत ने कह दिया कि यह भारत की ज़मीन है.
उनके अनुसार नेपाल ने भारत से इस मामले में बातचीत के लिए कई बार अनुरोध किया, लेकिन भारत बात करने के लिए इच्छुक नहीं था, लेकिन अब भारत ने अपनी इच्छा जताई है कि वो बैठकर बातचीत करना चाहता है.
राजदूत पांडेय नेपाल के पूर्व विदेश मंत्री भी हैं. उन्होंने कहा कि भारत-चीन सीमा विवाद या भारत-नेपाल सीमा विवाद को बातचीत के ज़रिए सुलझाया जाना चाहिए और इसका प्रोपेगैंडा नहीं किया जाना चाहिए.
उनका कहना था, "आधुनिक दुनिया में हर मुद्दे को गोली से नहीं सुलझाया जा सकता है. लेकिन हम एक साथ बैठकर उसे सुलझा सकते हैं. हमें अपने ज्ञान, हुनर और बुद्धि का इस्तेमाल करना चाहिए और हमारा देखने का नज़रिया वैश्विक होना चाहिए."
नेपाली राजदूत ने कहा कि नेपाल को तिब्बत से कोई परेशानी नहीं है. उन्होंने तिब्बती शरणार्थियों की भी बात की, जो चीन के क़ब्ज़े वाले तिब्बत से भागकर भारत में रह रहे हैं.
उनका कहना था, "कभी-कभी नेपाल और भारत की सीमा के खुले होने के कारण कुछ असामाजिक तत्व नेपाल में दाख़िल हो जाते हैं. वो हमारे संबंधों के ख़िलाफ़ जाने की पूरी कोशिश करते हैं. हम इसकी इजाज़त नहीं देते हैं और उनको क़ाबू में रखते हैं. हमारी धरती का इस्तेमाल हमारे किसी भी मित्र देश के ख़िलाफ़ नहीं हो सकता."
नेपाल के विदेश मंत्रालय ने अभी तक राजदूत पांडेय के इंटरव्यू पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी है.
काठमांडू पोस्ट से बात करते हुए राजदूत पांडेय ने कहा कि वो साफ़-साफ़ बात करने वाले हैं और वो इस बात पर कोई टिप्पणी नहीं करना चाहते हैं कि उनका इंटरव्यू राजनयिक था या नहीं. बीबीसी ने भी राजदूत महेंद्र बहादुर पांडेय से कई बार संपर्क करने की कोशिश की लेकिन उनसे बात नहीं हो सकी.