कोरोना वायरस से जंग में अमेरिका ने क्या ग़लत किया और क्या सही
कोरोना वायरस के कारण दुनिया में सबसे अधिक मौतें अमरीका में हुई हैं. दो महीने पहले यहां वायरस के कारण नेशनल इमर्जेंसी लागू करने के बाद यहां 95 हज़ार से अधिक मौतें हुई हैं.
कोरोना वायरस संक्रमण की वजह से अमरीका में लगी नेशनल इमर्जेंसी को दो महीने हो गए हैं. देश में कोविड-19 से अब तक 95 हज़ार लोगों की मौत हो चुकी है और लाखों लोग बेरोज़गार हो गए हैं.
इस वक्त अमरीका में एक भारी बहस चल रही है. कई सवाल उठाए जा रहे हैं. मसलन, क्या यह देश महामारी का सामना करने के लिए पूरी तरह तैयार था? क्या सरकार ने अमरिकी धरती में इस वायरस के घुसते ही इसका सामना करने के लिए सही कदम उठाने शुरू कर दिए थे?
मध्य मार्च से ज़्यादातर सरकारी अफ़सरों ने यह मानना शुरू कर दिया था कोरोना का संकट इतना बड़ा है कि उसका सामना साधारण कदमों से नहीं किया जा सकता. इसके लिए विशालकाय प्रयासों की जरूरत है.
देश के ज़्यादातर हिस्सों में लॉकडाउन लगाया गया. इस अभूतपूर्व लॉकडाउन का मकसद देश में कोरोना वायरस संक्रमण की रफ़्तार को धीमा करना था.
दूसरा मकसद था हेल्थकेयर सिस्टम को कोरोना वायरस के बढ़ते मरीजों के दबाव के बोझ से बचाना ताकि संक्रमण से बचाव की तैयारियों के लिए पर्याप्त वक्त मिल जाए और गंभीर बीमारियों से जूझ रहे लोगों को बचाया जा सके.
इनमें से कई कोशिशें कामयाब रहीं लेकिन कुछ नाकाम भी साबित हुईं.
सफलताएं
कोरोनावायरस की रफ्तार धीमी करने में थोड़ी कामयाबी
यह सच है कि संक्रमण को कम करने में कुछ क़ामयाबी मिली है. लेकिन चलिए, पहले सफलताओं का जिक्र कर लेते हैं.
दरअसल अमरीका के लगभग सभी प्रांतों में जिस तरह शटडाउन और सोशल डिस्टेंसिंग के कदम उठाए गए उससे वायरस के तेज़ रफ़्तार संक्रमण को रोकने में मदद मिली.
इन कदमों की वजह से कोरोना की मार से सबसे ज़्यादा प्रभावित न्यूयॉर्क, मिशिगन और लुज़ियाना में महामारी बढ़ने की रफ़्तार कम हो गई. और एक वक्त बेहद तेज़ी से फैल रहा यह संकट काबू हो सका.
शटडाउन और सोशल डिस्टेंसिंग की वजह से कोरोना की मार से सबसे अधिक चोट खाए न्यूयॉर्क समेत कुछ अन्य प्रांतों में संक्रमण की रफ़्तार को कम करने में सफलता मिली.
लेकिन संक्रमण को लेकर चिंता बनी हुई है. इन तीन राज्यों (न्यूयॉर्क, मिशिगन और लुइजियाना) के बाहर बाकी अमरीका में मोटे तौर पर संक्रमण दर बढ़ी है. हां, अब इसकी रफ्तार पहले जैसी नहीं दिख रही.
कुल मिलाकर, नए मामलों का चार्ट देखें तो लगता है कि इसके संक्रमण की रफ़्तार सपाट हो गई है लेकिन शायद अभी इसका स्थिर होना बाकी है.
आइए, अब संक्रमण को लेकर चिंता बढ़ाने वाली कुछ बुरी ख़बरों का भी जिक्र कर लेते हैं. 'वॉशिंगटन पोस्ट' के मुताबिक़ जिन राज्यों ने आंशिक तौर पर लॉकडाउन खोलना शुरू किया, वहां उन राज्यों की तुलना में संक्रमण के मामले बढ़ गए, जहां यह अभी भी पूरी तरह लागू है.
रिलीज़ होने से पहले ही एनबीसी न्यूज़ पर लीक हो गई कोरोना वायरस टास्क फोर्स की एक रिपोर्ट में कहा गया कि देश के अंदरुनी इलाकों के शहरों में संक्रमण में तेजी देखी गई.
डे मोएन, नैशविले और एमरिलो समेत देश के अंदरुनी शहरों में सप्ताह-दर-सप्ताह संक्रमण में 70 फ़ीसदी का अधिक का इज़ाफा दर्ज किया गया.
अमरीका में पिछले छह सप्ताह के दौरान लोगों को बाहर निकलने से रोक कर और कारोबारों को बंद करके संक्रमण रोकने में सफलता तो मिली है. लेकिन यह सफलता बरकरार रहे इसके लिए जम कर टेस्टिंग प्रोग्राम चलाना होगा और बड़े पैमाने पर कॉन्टेक्ट ट्रैसिंग भी अपनानी होगी.
नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ एलर्जी एंड इनफेक्शियस डिजिज के चीफ और व्हाइट हाउस कोरोनावायरस टास्क फोर्स के सदस्य डॉ. एंथनी फॉची ने मंगलवार को सीनेट के सामने कहा. " हम सही दिशा में जा रहे हैं. इसका मतलब यह नहीं है कि संक्रमण अब किसी भी तरह से हमारे काबू में हैं. "
अधिक संख्या में वेन्टिलेटर
व्हाइट हाउस की प्रेस सेक्रेटरी कैली मैकेनानी से जब कोरोना वायरस संक्रमण के बारे में ट्रंप प्रशासन की अब तक की उपलब्धि के बारे में बताने को कहा गया तो उन्होंने वेन्टिलेटरों का ज़िक्र किया. (जब मरीज खुद सांस नहीं ले पाता है तो वेंटिलेंटर की मदद ली जाती है. )
उन्होंने कहा, "कोरोना वायरस संक्रमण में ट्रंप प्रशासन की सफ़लता यह है कि दूसरे विश्व युद्ध के बाद सबसे बड़े प्रयास के तहत हमने न्यूयॉर्क में कम से कम 4000 वेन्टिलेटर मुहैया कराए. उन्होंने कहा, "वेन्टिलेटरों की कमी से एक भी अमरिकी मरीज़ की मौत नहीं हुई है. "
अमेरिकी सरकार ने नए वेन्टिलेटर बनाने के लिए अरबों डॉलर के कॉन्ट्रेक्ट जारी किए. राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने 70 साल पुराने एक रक्षा निर्माण कानून का इस्तेमाल कार बनाने वाली कंपनी जनरल मोटर्स पर वेन्टिलेंटर तैयार करने और दूसरे मैनुफ़ैक्चरर्स के लिए भी सप्लाई चेन की दिक्कतें दूर करने का दबाव बनाया.
लेकिन वेन्टिलेटर्स को लेकर समस्या नहीं रही क्योंकि इसकी सप्लाई तो बढ़ गई. लेकिन राज्यों में इनका इस्तेमाल कम हो रहा था. एक तो इनकी डिमांड नहीं थी और दूसरे हेल्थकेयर प्रोफे़शनल्स के बीच इसके फायदों को लेकर कोई पक्की राय नहीं बन पा रही थी. क्योंकि वेन्टिलेंटर लगाए जाने के बावजूद मरीज़ों के बचने की दर कम थी.
जॉन्स हॉपकिंस यूनिवर्सिटी में ब्लूमबर्ग स्कूल ऑफ़ पब्लिक हेल्थ के प्रोफ़ेसर जेर्राड एंडरसन ने कहा, "मुझे लगता है कि इन लोगों (प्रशासन) ने वेन्टिलेटरों को कम जरूरत वाली जगहों से ज़्यादा ज़रूरत वाली जगहों पर पहुंचाने के मामले में काफी अच्छे तरीके से काम किया. मेरी जानकारी में ऐसी कोई जगह नहीं थी, जहां वेन्टिलेंटर की कमी रही हो"
ट्रंप ने 25 अप्रैल के एक ट्वीट में अमरीका को 'किंग ऑफ वेंटिलेटर्स' कहा. इसके बाद उन्होंने बाकी बचे वेन्टिलेटर लैटिन अमरीकी, यूरोपीय और अफ्रीकी देशों को भी देने की पेशकश की, यह जताते हुए कि वेन्टिलेटर सप्लाई अब ट्रंप प्रशासन के लिए गर्व का विषय है.
अस्पतालों की क्षमता
18 मार्च को न्यूयॉर्क के गवर्नर एंड्र्यू कुमो ने एक बेहद डरा देने वाली चेतावनी जारी की. उन्होंने कहा, "अगले 45 दिनों में न्यूयॉर्क शहर को कोरोना वायरस मरीज़ों के लिए अपने अस्पतालों में 1,10,000 बिस्तरों का इंतजाम करना होगा. जबकि अभी सिर्फ 53,000 बेड हैं."
इस चेतावनी के बाद डोनाल्ड ट्रंप ने तुरंत कदम उठाने के निर्देश दिए और न्यूयॉर्क ने जेविज सेंटर ( वह जगह जहां हिलेरी क्लिंटन की इलेक्शन नाइट पार्टी हुई थी) को 2000 बिस्तरों वाली मेडिकल फेसिलिटी में तब्दील कर दिया.
लेकिन आख़िर में 12 अप्रैल को जब न्यूयॉर्क में कोरोना वायरस के मरीज़ों की संख्या गिनी गई तो यह 18,825 निकली. यह अधिकतम संख्या थी. जितने मरीज़ों के भर्ती होने की चेतावनी दी गई थी उससे काफी कम. इसके बाद से मरीज़ों की संख्या में लगातार कमी आई है.
कोरोना वायरस संक्रमण की वजह से पूरे अमरीका में कई जगहों के हेल्थकेयर सिस्टम पर दबाव बढ़ा है. मसलन- न्यू जर्सी, मैरीलैंड और मेसाचुसेट्स में हेल्थकेयर सिस्टम पर दबाव देखा गया था लेकिन मरीड़ों की बढ़ी हुई तादाद को देखते हुए इन जगहों पर हेल्थकेयर सिस्टम ने अपनी क्षमता भी बढ़ाई.
एंडरसन ने कहा, "इलाज के लिहाज़ से देखें तो यह ज़बरदस्त सफलता है. जितने भी मरीज़ आ रहे थे वे सबका इलाज कर रहे थे. मरीज़ों को थोड़ा इंतजार करना पड़ा होगा लेकिन जिन लोगों को भी इंटेंसिव केयर की जरूरत थी, उन्हें दी गई."
जिस तरह की गंभीर चेतावनी दी गई थी वैसी स्थिति पैदा नहीं हुई. जिस स्थिति की आशंका जताई जा रही थी, वैसी उत्तरी इटली में पैदा हुई थी.
वैक्सीन और इलाज
कोरोना वायरस के कई वैक्सीन के इंसान पर ट्रायल चल रहे हैं. विश्व स्वास्थ्य संगठन यानी WHO के मुताबिक़ इस वक्त दुनिया भर में 100 संभावित वैक्सीन अपने विकास के विभिन्न चरणों में हैं.
पहले कहा गया था कोरोना वायरस की कोई भी प्रभावी वैक्सीन तैयार होने में डेढ़ साल लग जाएंगे. लेकिन अब कहा जा रहा है कि इस तरह की वैक्सीन 2021 की शुरुआत में ही आ जाएगी.
एंडरसन कहते हैं, "वैक्सीन विकसित करने के लिहाज़ से हम ज़बरदस्त काम रहे हैं. हमने बड़ी तादाद में कंपनियों और संगठनों को वैक्सीन विकसित करने के काम में लगा दिया है. अब हमारे सबसे बड़ा सवाल यह कि जो पहली वैक्सीन आए हम उसी का इस्तेमाल शुरू कर दें या फिर इससे और ज़्यादा प्रभावी वैक्सीन का इंतज़ार करें?"
जब तक कोई वैक्सीन बन कर ज़्यादा से ज़्यादा लोगों तक न पहुंचे तब तक सरकारों के लिए सबसे अच्छा उपाय यही है कि संक्रमण को फैलने से कैसे रोका जाए, पूरी शिद्दत से इसका इंतजाम हो. सरकारें अपने कमजोर लोगों को बचाने पर ध्यान दें.
जब तक कोविड-19 को ख़त्म करने का टीका बन कर न आ जाए तब तक इस दुनिया का अपनी रवानी में लौटना मुश्किल लगता है. हालांकि अब ऐसा लग रहा है कि इस दिशा में प्रयास जारी हैं.
इस बीच, एंटी वायरल दवा रेमडिसिविर की वजह से मरीड़ों को अस्पतालों से जल्दी छुट्टी मिल रही है. इस दवा की वजह से अब उन्हें 15 की जगह 11 दिन में ही छुट्टी दे दी जा रही है.
यूएस नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ एलर्जी एंड इन्फे़शियस डिज़ीज़ के हेड एंथनी फाउची ने इस दवा के बारे में पिछले सप्ताह कहा था, " इससे हालात में 31 फ़ीसदी सुधार आता है. इसका मतलब यह नहीं कि हमें 100 फ़ीसदी सफलता मिल गई. जबकि 100 फ़ीसदी सफ़लता जरूरी है. इससे यह साबित हुआ है कि दवा वायरस को रोक सकती है. यह पहली दवा है जिसके प्रभाव के दस्तावेजी प्रमाण हैं."
गलतियां
बढ़ा-चढ़ा कर किए गए गलत दावे
पिछले कुछ सप्ताह के दौरान ट्रंप और कई कंज़्रवेटिव टिप्पणीकारों ने मलेरिया रोधी दवा क्लोरोक्वीन के बारे में यह ज़ोर-शोर से कहना शुरू किया कि इससे कोरोना वायरस ठीक हो सकता है.
कुछ अस्पतालों और हेल्थकेयर फे़सिलिटीज ने इस दवा का तेज़ी से स्टॉक करना शुरू कर दिया. इससे बड़ी तेज़ी से इस दवा की कमी हो गई.
टेक्सस के एक नर्सिंग होम में परिवार की बगैर अनुमति के कुछ मरीज़ों को यह दवा दे दी गई. कई राज्यों में पब्लिक हेल्थ अफसर अपने यहां कोरोना वायरस संक्रमण को ख़त्म करने की हड़बड़ाहट में दिख रहे थे और इस चक्कर में वहां क्लोरोक्वीन का इस्तेमाल होने लगा था.
बाद में अध्ययनों से पता चला कि यह दवा तो कोरोना वायरस रोकने में नाकाम है. इसके इस्तेमाल से मरीज़ की जान को ख़तरा हो सकता है.
एंडरसन कहते हैं, "आपको विज्ञान पर भरोसा जताना पड़ता है." क्लोरोक्वीन के संदर्भ में उन्होंने कहा कि इमरजेंसी की हालत में किसी भी चीज को बाजार में उतारने से हालात बेहद ख़तरनाक हो सकते हैं."
अप्रैल में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान ट्रंप ने कहा था कि आदमी के भीतर मौजूद कोरोना वायरस संक्रमण को डिसइन्फेक्टेंट्स और अल्ट्रावायलेट रेडिएशन से खत्म़ किया जा सकता है. इस पर उनकी खू़ब आलोचना हुई. इससे कुछ राज्यों में पॉयज़न हॉटलाइन पर आने वाले कॉल्स की संख्या बढ़ गई थी.
व्हाइट हाऊस के कोरोना वायरस टास्क फोर्स में वैज्ञानिकों और पब्लिक हेल्थ अफसरों की अहम भूमिका रही है. लेकिन राष्ट्रपति अक्सर उनकी सलाह से अलग हट कर कुछ अजीबोगरीब सलाह देते नजर आए हैं.
इस तरह के विचारों का सरकार के कामकाज पर भी असर देखा गया और लोगों में भी ख़तरनाक नुस्खों का आज़माने की प्रवृति दिखी. इसके साथ ही इसने विज्ञान आधारित नीतियों को अपनाने में भी कठिनाइयां पैदा की.
पीपीई के उत्पादन और सप्लाई में कमी
व्हाइट हाऊस आई एक नर्स ने जब पिछले सप्ताह राष्ट्रपति से कहा कि पीपीई, दस्ताने, फे़स मास्क और गाउन की सप्लाई रेगुलर नहीं थी लेकिन हम काम चला ले रहे हैं तो उन्होंने कहा कि आपके लिए भले ही सप्लाई रेगुलर न रही हो लेकिन बहुत सारे दूसरे लोगों के सामने यह स्थिति नहीं आई.
पिछले कुछ महीनों में ऐसी रिपोर्टें आई हैं, जिनके मुताबिक़ हेल्थकेयर वर्कर्स को बिना सुरक्षा उपकरणों (फे़स मास्क, पीपीई वगैरह) के काम करना पड़ा या इस्तेमाल किए गए मास्क, पीपीई को पहन कर काम चलाना पड़ा.
आम लोगों को भी स्कार्फ़, कॉफ़ी फ़िल्टर जैसी चीज़ों से मास्क बनाने पड़े क्योंकि कोरोना वायरस से बचाव के लिए ये चीजें बाज़ीर में कम पड़ गई थीं.
एंडरसन कहते हैं कि कोरोना वायरस संक्रमण से सप्लाई चेन में जो दिक्कत आई उससे प्रोटेक्टिव गियर (फे़स मास्क, पीपीई आदि) की कमी पैदा हुई. दरअसल इससे चीन से आने वाले प्रोटेक्टिव किट आ नहीं पाए. ट्रंप प्रशासन ने सप्लाई बढ़ाने की कोशिश की लेकिन घरेलू उत्पादन के मिले-जुले नतीजे देखने को मिले. अमरीका में जो स्टॉक था, वह इतने बड़े पैमाने पर फैले संक्रमण के लिए पर्याप्त नहीं था.
ट्रंप ने राज्यों से कहा कि सप्लाई पर्याप्त रखने का काम पहले उनका बनता है. उन्होंने कहा कि फे़डरल सरकार कोई 'शिपिंग क्लर्क' नहीं है. इससे राज्यों में अफ़रातफरी फैल गई और वे ओपन मार्केट एक दूसरे से ज़्यादा दाम देकर बिडिंग मंगवाने लगे. कई मौकों पर तो ऐसा भी हुआ कि राज्यों के ऑर्डर को फे़डरल सरकार ने ज़ब्त कर लिया.
बाहरी देशों से विमानों से प्रोटेक्टिव गियर की सप्लाई को सब्सिडी देने के लिए ट्रंप प्रशासन ने 'प्रोजेक्ट एयरब्रिज' शुरू किया था लेकिन इस पर पारदर्शिता के अभाव का आरोप लगा. सरकार ने दावा किया कि दस लाख से ज्यादा आइटम बाहर से मंगाए गए. लेकिन 'वाशिंगटन पोस्ट' ने एक खोजी रिपोर्ट करके सवाल उठाया कि आख़िर यह सप्लाई गई कहां?
हाल के दिनों में प्रोटेक्टिव गियर्स का घरेलू उत्पादन बढ़ा है, लेकिन ड्रिस्टीब्यूशन नेटवर्क को लेकर चिंता बनी हुई है. अभी भी कोरोना वायरस संक्रमण के ख़िलाफ़ अग्रिम मोर्चे पर तैनात हेल्थकेयर वर्कर्स को सप्लाई जल्दी नहीं पहुंच पा रही है.
टेस्टिंग की खामियां
सोमवार को दोपहर को ट्रंप रोज़ गार्डन में लगे बैनरों के सामने खड़े थे. इनमे लिखा था- "अमरीका टेस्टिंग में दुनिया में सबसे आगे है". उन्होंने वहां इकट्ठा रिपोर्टरों से कहा, "हमने वह मुकाम हासिल कर लिया है. हम जीत गए हैं."
उन्होंने कहा, टेस्टिंग प्रोग्राम के लिए फे़डरल सरकार राज्यों को 11 अरब डॉलर देगी. ट्रंप ने कहा कि अब तक अमरीका में 90 लाख कोरोना वायरस टेस्ट हो चुके हैं. इनमें इस वक्त हर दिन तीन लाख की रफ़्तार से हो रहे टेस्ट शामिल हैं.
उन्होंने इस बात का भी बखान किया कि टेस्ट में अब अमरीका ने दक्षिण कोरिया को भी पछाड़ दिया है, जिसे अब तक इस संक्रमण को सबसे बेहतर तरीके़ से क़ाबू करने वाले देश के तौर पर देखा जा रहा था. लेकिन हकीकत यह है कि दक्षिण कोरिया ने फ़रवरी और मार्च में ही अपनी टेस्टिंग रफ़्तार काफी बढ़ा दी थी. अमेरिका ने भले ही उसकी बराबरी कर ली हो या फिर इससे आगे निकल गया हो लेकिन यहां अब तक 80 हजार लोगों की मौत हो चुकी है और कोरोना वायरस का संक्रमण फैलता ही जा रहा है.
मंगलवार को सीनेट में कोरोना वायरस पर सुनवाई के दौरान रिपब्लिक सीनेटर मिट रोमनी ने कहा कि हमने फरवरी और मार्च में टेस्टिंग की शुरुआत की. मुझे तो अपने यहां के टेस्टिंग रिकार्ड में ऐसा कुछ नहीं दिखता जिसे सेलिब्रेट किया जाए.
ट्रंप प्रशासन ने टेस्टिंग को लेकर जिस तरह के बढ़-चढ़ कर वादे किए उससे मामला और जटिल हो गया. जितना दावा किया गया उतना कभी पूरा होता नहीं दिखा. 10 मार्च को उप राष्ट्रपति माइक पेंस ने कहा कि अमरीका इस सप्ताह 40 लाख टेस्टिंग की संख्या पार कर लेगा. लेकिन अप्रैल के आखिर तक भी यह लक्ष्य पूरा नहीं हो सका. (बाद में माइक पेंस ने कहा कि वह टेस्ट ड्रिस्टीब्यूशन की बात कर रहे थे प्रोसेसिंग की नहीं).
मध्य मार्च में ट्रंप ने कहा था पब्लिक-प्राइवेट पार्टनरशिप के ज़रिये अब देश भर के शॉपिंग सेंटर्स में ड्राइव-थ्रू टेस्टिंग (सीधे कार से आकर टेस्टिंग कराने की सुविधा) शुरू हो जाएगी. लेकिन एक महीने के बाद भी बहुत कम मार्केट खुल पाए हैं.
अभी भी अमरीका के 2.74 फ़ीसदी लोगों की ही टेस्टिंग हुई है. यह दूसरे विकसित देशों की तुलना में बहुत कम है. हार्वर्ड यूनिवर्सिटी का अनुमान है कि अभी जो एक दिन में नौ लाख टेस्टिंग का जो दावा किया जा रहा है वह भी संदेह के घेरे में है. यूनिवर्सिटी का कहना है कि देश में बहुत बड़े पैमाने पर कोरोना वायरस संक्रमण न फैल जाए इसके लिए पूरे देश में ठीक तरीके से हॉटस्पॉट की पहचान ज़रूरी है.
आर्थिक सहायता में गड़बड़ी
अमरीका में कोरोनावायरस फैलने के बाद से अमेरिकी संसद तीन ट्रिलियन डॉलर से अधिक की आर्थिक मदद दे चुकी है. इसका एक बड़ा हिस्सा कोरोना वायरस संक्रमण से चोट खाई अर्थव्यवस्था को संभालने के लिए है. पूरे देश में लॉकडाउन और शटडाउन से लोगों की नौकरियां चली गई हैं.
उद्योग और कारोबारों को कम ब्याज पर अरबों डॉलर का कर्ज़ दिया गया है. अगर वे कर्मचारियों को नहीं हटाते हैं तो यह माफ हो जाएगा. अमेरीकियों को सीधे कैश दिया जा रहा है. जो लोग बेरोज़गार हो गए हैं कि उन्हें अतिरिक्त मदद दी जा रही है.
संसद से इन खर्चों को मंजूरी देना आसान था. लेकिन आर्थिक मदद सही जगह पहुंचे, यह काम सुनिश्चित करना ज़्यादा कठिन है. इस लिहाज़ से यह कुछ ज़्यादा ही मुश्किल साबित हुआ है.
छोटे कारोबारों के लिए सरकार ने जो पैकेज जारी किए हैं उनमें खामियां हैं. मदद के लिए आवेदन करने वाले कारोबार मालिकों और कर्ज देने वाले प्राइवेट बैंकों, दोनों के बीच सरकार की नीतियों को लेकर भ्रम की स्थिति है.
ये सवाल भी उठ रहे हैं कि बड़ी कंपनियों, रेस्तरां चेन, समृद्ध यूनिवर्सिटी और राजनीतिक रसूख रखने वाले कारोबारियों और कंपनियों को पहले ही आर्थिक मदद मिल गई. फंड जब खत्म हो गया तो छोटे कारोबारियों के लिए संसद को और फंड का इंतजाम करना पड़ा.
स्टेनफोर्ड यूनिवर्सिटी के ग्रेजुएट स्कूल ऑफ़ बिजनेस में अर्थशास्त्र के प्रोफेसर अनत अदमाती का कहना है कि अमरीका में राहत के लिए जो कदम उठाए गए हैं, उसे लेकर एक दिक्कत और है. यहां सरकार लोगों तक मदद पहुंचाने के लिए कई प्राइवेट इंटरमीडियरी (बीच की कड़ी) पर निर्भर है. इंटरमीडियरी में फ़ाइनेंशियल मार्केट तक पहुंच रखने वाली निजी और सार्वजनिक कंपनियां भी शामिल हैं.
उन्होंने कहा, " अभी छोटे कारोबारों के लिए जो लोन प्रोग्राम है उसमें शर्तें गड्डमड्ड हैं. पता नहीं चल रहा है किसे लोन मिलेगा और किस शर्त पर. लोन चुकाने को लेकर जिम्मेदारियों की शर्तें भी स्पष्ट नहीं हैं."
हालांकि राज्य जो रोज़गार सिस्टम चला रहे हैं उसकी तुलना में लोन प्रोग्राम ठीक से काम कर रहा है. कुछ राज्य नौकरी से हटाए गए लोगों को साप्ताहिक भुगतान करने में अभी पीछे चल रहे हैं. फ्लोरिडा में तो भुगतान लेने के लिए बना ऑनलाइन सिस्टम आवेदनों से चरमरा गया. फिर राज्य सरकार ने कागज के फॉर्म जारी किए. कुछ जगहों पर आवेदकों की लंबी-लंबी लाइनें देखी गईं.
कहा जा रहा है कि राष्ट्रपति के सलाहकारों ने उन्हें इस वक्त पब्लिक हेल्थ के मुद्दों से ज्यादा अर्थव्यवस्था पर ध्यान देने को कहा है.
कंज्यूमर डेटा इंडस्ट्री एसोसिएशन के प्रेसिडेंट फ्रांसिस क्रेगथन ने चेतावनी दी है कि अमरीकी अर्थव्यवस्था को फिर से उठाने के लिए जो बड़ी रकम झोंकी जा रही है, उससे आगे चल कर कुछ दिक्कतें आ सकती हैं.
उन्होंने कहा, अभी सवाल इस बात का है कि पैसे को ब्लॉक कर न रखें. इसे बाहर निकालें. अभी तक ट्रंप प्रशासन ने जो किया है, वह वास्तव में बहुत अच्छा कदम है. लेकिन अभी हम जिस अभूतपूर्व हालात में हैं, उसमें और कितना पैसा झोंकना पर्याप्त होगा, कहा नहीं जा सकता.
संसद में डेमोक्रेटिक और रिपब्लिक दोनों दलों के सांसद अर्थव्यवस्था को तीसरा स्टिम्युलस पैकेज देने पर बात कर चुके हैं. लेकिन दोनों ओर के सांसद इस बात पर सहमति से काफी दूर हैं कि आखिर यहां से आगे बढ़ें तो किधर.
कोरोना वायरस संक्रमण का यह संकट अब महीनों लंबा खिंच चुका है. लेकिन सरकार को अभी कई कदम उठाने होंगे, चाहे वे अच्छे हों या बुरे.