Netflix पर HD वीडियो देखने से जलवायु को हो रहा नुकसान, ब्रिटेन के वैज्ञानिकों ने किया दावा
नई दिल्ली। भारत सहित दुनियाभर में लोकप्रिय ओटीटी प्लेटफॉर्म नेटफ्लिक्स (Netflix) हमारी पृथ्वी के लिए खतरनाक है। जी हां, यह दावा हम नहीं बल्कि वैज्ञानिकों ने अपने एक अध्ययन में किया है। डिवाइस पर HD क्वालिटी वीडियो को लेकर किए कए एक शोध में दावा किया गया है कि हाई डेफिनेशन (HD) क्वालिटी में नेटफ्लिक्स पर शोज या वेब सीरीज देखना हमारे ग्रह की सेहत के लिए अच्छा नहीं है। शोधकर्ताओं के मुताबिक स्मार्टफोन पर एचडी वीडियो स्ट्रीमिंग करना स्टैंडर्ड डेफिनेशन (SD) की तुलना में लगभग आठ गुना अधिक कार्बन उत्सर्जन करता है।
HD में वीडियो देखने से हो रहा जलवायु को नुकसान
इंडिया टुडे की रिपोर्ट के मुताबिक ब्रिटेन में प्रतिष्ठित रॉयल सोसाइटी के वैज्ञानिकों द्वारा किए गए शोध के अनुसार, स्मार्टफोन पर एचडी वीडियो स्ट्रीमिंग मानक परिभाषा (एसडी) की तुलना में लगभग आठ गुना अधिक उत्सर्जन करता है। यह आंकड़ा विशेष रूप से स्मार्टफोन पर देखे जाने वाले वीडियो से लिया गया है। यूजर्स आमतौर पर अपने फोन पर 480p और 720p स्ट्रीमिंग के बीच अंतर नहीं कर पाते। यही वजह है कि दुनियाभर में इंटरनेट की भी खपत बढ़ गई है।
कार्बन उत्सर्जन को कम किया जा सकता है
रिसर्च के शोधकर्ताओं ने अपनी रिपोर्ट में ऑनलाइन प्लेटफॉर्म और नियामकों से स्ट्रीमिंग रिजॉल्यूशन को सीमित करने और प्रति व्यक्ति कार्बन उत्सर्जन को कम करने के लिए एसडी को डिफॉल्ट सेट करने का आग्रह किया है, ताकि पृथ्वी पर कार्बन उत्सर्जन के बढ़ते खतरे को कम किया जा सके। रिपोर्ट में कहा गया है, प्लेटफार्मों और नियामकों को वेब सीरीज, फिल्मों और शोज के स्ट्रीमिंग रिजॉल्यूशन को सीमित करने के लिए निर्णय लिया जाना चाहिए।
गानें सुनते समय स्मार्टफोन की स्क्रीन को कर दें बंद
मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक शोधकर्ताओं ने कहा है कि वैश्विक कार्बन उत्सर्जन में डिजिटल क्षेत्र का अनुमानित योगदान विश्व में कुल 1.4% से 5.9% तक है। रिपोर्ट के मुताबिक उर्जा बचाने के कई और आसन तरीके हैं। जैसे कि लोगों को म्यूजिक स्ट्रीमिंग करते समय अपने स्मार्टफोन की स्क्रीन को बंद कर देना चाहिए। शोधकर्ताओं का मानना है कि इस तरह की छोटी-छोटी आदतों से स्ट्रीमिंग से होने वाले उत्सर्जन में 5% तक की कमी की जा सकती है। अक्षय ऊर्जा पर चलने वाले YouTube सर्वर की तुलना में यह काफी कम है।
उपभोक्ता, सरकार और उद्योग से अपील
रिपोर्ट में उन तरीकों को अपनाने की सिफारिश की गई है जो उपभोक्ता, सरकार और उद्योग, पृथ्वी पर जलवायु को होने वाले नुकसान को कम कर सकते हैं। गौरतलब है कि फोन, लैपटॉप, टैबलेट और स्मार्ट टीवी का विनिर्माण एक कार्बन-गहन प्रक्रिया है। हालांकि, लोग अक्सर अपने स्मार्टफोन को हर दूसरे साल बदलते हैं। लेकिन मोबाइल फोन को दो साल तक रखने का मतलब है कि विनिर्माण में इस्तेमाल होने वाला कार्बन उत्सर्जन पूरे जीवनकाल में उत्पन्न होने वाले उत्सर्जन का लगभग आधा हिस्सा ।
जियो लॉन्च होने के बाद बढ़ा इंटरनेट का उपयोग
बता दें कि 2016 के अंत में रिलायंस जियो 4 जी नेटवर्क के आगमन के बाद से ही भारत में इंटरनेट क्रांति आ गई है। भारत में डेटा की कीमतें काफी गिर गईं, जिसके बाद भारत दुनिया में सस्ता इंटनेट देने वालों की लिस्ट में शामिल हो गया। इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं है कि डेटा सस्ता होने के बाद भारत में एचडी क्वालिटी में फिल्में, शो और गानों की स्ट्रीमिंग एक आम बात हो गई है। हालांकि, शायद ही कोई इस बात पर ध्यान देता होगा कि उसके लापरवाह ऑनलाइन एंटरटेनमेंट की वजह से पर्यावरण पर भी प्रभाव पड़ता है।
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