हाफ़िज़ सईद की गिरफ़्तारी के लिए अमरीका का दबाव था?
ये कार्रवाई पाकिस्तानी प्रधानमंत्री इमरान ख़ान के वाशिंगटन दौरे से कुछ दिन पहले हुई है. माना जा रहा है कि इस कार्रवाई से पाकिस्तान संदेश देना चाहता है कि वो चरमपंथियों के ख़िलाफ़ कार्रवाई कर रहा है. अमरीकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप ने ट्वीट कर कहा है कि 'दस साल की तलाश के बाद मुंबई हमलों के कथित मास्टरमाइंड को पाकिस्तान में गिरफ़्तार किया गया है.
मुंबई हमलों के अभियुक्त हाफ़िज सईद को बुधवार को पाकिस्तान के लाहौर में गिरफ़्तार किया गया है.
ये गिरफ़्तारी तब हुई जब वे पंजाब के आंतकवाद निरोधी विभाग के एक मामले में ज़मानत लेने के लिए गुजरांवाला रवाना हुए थे.
हाफ़िज़ सईद मुंबई हमलों के अभियुक्त हैं, उनपर चरमपंथ के लिए फ़ंड इकट्ठा करने के आरोप लगाए गए हैं.
ये कार्रवाई पाकिस्तानी प्रधानमंत्री इमरान ख़ान के वाशिंगटन दौरे से कुछ दिन पहले हुई है. माना जा रहा है कि इस कार्रवाई से पाकिस्तान संदेश देना चाहता है कि वो चरमपंथियों के ख़िलाफ़ कार्रवाई कर रहा है.
अमरीकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप ने ट्वीट कर कहा है कि 'दस साल की तलाश के बाद मुंबई हमलों के कथित मास्टरमाइंड को पाकिस्तान में गिरफ़्तार किया गया है. पिछले दो साल से उनकी तलाश के लिए बड़ा दबाव बनाया गया था.'
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लेकिन आलोचक पाकिस्तान की कार्रवाई को अभी भी संशंकित नज़रों से देख रहे हैं.
रक्षा विशेषज्ञ सुशांत सरीन का कहना है कि इस तरह की कार्रवाईयां दबाव में भले ही पाकिस्तान कर रहा हो लेकिन उसकी नीति में कोई बुनियादी बदलाव आया हो इसके कोई संकेत नहीं हैं.
उनसे बीबीसी संवाददाता दिलनवाज़ पाशा ने बात की. पढ़ें सुशांत सरीन का नज़रिया-
पहले भी ऐसा होता रहा है
पाकिस्तान ने हाफ़िज सईद को गिरफ़्तार किया है लेकिन अभी ये कहना जल्दबाज़ी होगी कि इस कार्रवाई में कितनी संजीदगी है.
क्योंकि इससे पहले हमने कई बार देखा है कि जब दबाव पैदा होता है तो पाकिस्तान कुछ इस तरह की कार्रवाई करता है. और जब समय के साथ दबाव कम होता है तो ये मामले अपने आप गिर जाते हैं.
पिछले 15-20 सालों में पाकिस्तान की ओर से ऐसी कार्रवाईयां क़रीब छह या सात बार हो चुकी है.
मुंबई हमलों के बाद भी हाफ़िज सईद को गिरफ़्तार किया गया था. उसके बाद भी कई बार उन्हें हिरासत में लिया गया और नज़रबंद भी किया गया.
लेकिन कुछ महीनों बाद मुक़दमा चलाकर रिहा कर दिया जाता है.
साल 2008 में जब सबसे पहले हाफ़िज सईद और उनके सहयोगियों पर कार्रवाई हुई थी तो उस समय भी भारत को ऐसा लगा था कि अब कड़ी कार्रवाई होगी.
लेकिन इसका कोई नतीजा नहीं निकल सका. इसलिए किसी भी एक कार्रवाई से ये मान लेना कि पाकिस्तान की ओर से दहशतगर्दी का समर्थन करने वाले इन संगठनों पर ठोस कार्रवाई की शुरुआत हो गई, ठीक नहीं है.
इमरान ख़ान बेहद चुनौतीपूर्ण हालात में पाकिस्तान के प्रधानमंत्री पद पर आसीन हुए हैं. वो वादा करते रहे हैं नए पाकिस्तान का.
पाकिस्तान के रवैये में कोई बदलाव नहीं
लेकिन देखने को मिल रहा है कि इमरान ख़ान पहले के शासकों की तरह ही तानाशाही रवैया अपनाए हुए हैं.
मीडिया पर अंकुश लगाने से लेकर विपक्ष को परेशान करने तक के मामले सबके सामने हैं.
तीसरी सबसे महत्वपूर्ण बात ये है कि जिस तरह से सेना और उनके बीच सहयोग है वो भी पुराने पाकिस्तान की याद ताज़ा करता है.
इसलिए इमरान ख़ान के नेतृत्व में सचमुच पाकिस्तान बदल चुका है और भारत को इस नए पाकिस्तान के साथ नए रिश्ते की शुरुआत करनी चाहिए, अभी तक इसके कहीं से संकेत नहीं मिले हैं.
अगर दहशतगर्दी को देखा जाए तो चाहे वो कश्मीर हो या चाहे ख़ालिस्तान की मांग को फिर से शुरू करने की पाकिस्तान की कोशिशें हों पाकिस्तान की रणनीति में कोई बड़ा बदलाव देखने को नहीं मिल रहा है.
पाकिस्तान पश्चिमी देशों के दौरे पर जा रहे हैं और माना जा रहा है कि उन देशों का पाकिस्तान पर चरमपंथ को नियंत्रण करने के लिए भारी दबाव है.
इस समय पाकिस्तान पर चौतरफ़ा दबाव है. आईएमएफ़ और फ़ाइनेंशियल एक्शन टास्क फ़ोर्स का पाकिस्तान पर काफ़ी दबाव है. टास्क फ़ोर्स ने तो अक्तूबर तक का समय दिया है.
यही वजह है कि पाकिस्तान ने पिछले दिनों चरमपंथ को बढ़ावा देने वाले संगठनों की संपत्तियों और अकाउंट को ज़ब्त करने और फ़्रीज़ की कार्रवाईयां कीं और उनके ख़िलाफ़ एफ़आईआर भी दर्ज की गई थीं.
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अमरीका को ख़ुश करने के लिए गिरफ़्तारी
लेकिन इसके चंद दिनों बाद ही हाफ़िज़ सईद समेत अन्य लोगों को ज़मानत दे दी गई और इसका अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कड़ी प्रतिक्रिया आई.
पाकिस्तान से बड़ी आस लगाए देशों ने एक बार फिर ख़ुद को ठगा हुआ महसूस किया.
ज़ाहिर है हाफ़िज़ सईद को लेकर पाकिस्तान पर दबाव तो है लेकिन अभी तक ये नहीं पता चला है कि आरोप कितने संगीन लगाए गए हैं..
परवेज़ मुशर्रफ़ के ज़माने में भी जब कोई अमरीकी प्रतिनिधि मंडल का पाकिस्तान दौरा होता था या पाकिस्तानी प्रतिनिधिमंडल का अमरीकी दौरा होता था तो इसी तरह की कार्रवाई होती थी.
तब अल-क़ायदा का कोई बड़ा नाम पकड़ा जाता था और अमरीका को सौंप दिया जाता था और जो दबाव बन रहा होता था वो ख़त्म हो जाता था.
इसलिए अभी इमरान ख़ान के अमरीकी दौरे से पहले ऐसा जानबूझ कर किया गया है या वाक़ई इसके पीछे ठोस कार्रवाई की नीयत है, कहना मुश्किल है.
क्योंकि हो सकता है कि पाकिस्तान जो चाहता है वो अमरीका से हासिल करने के बाद वही करे जो वो करता आया है.