क्विक अलर्ट के लिए
अभी सब्सक्राइव करें  
क्विक अलर्ट के लिए
नोटिफिकेशन ऑन करें  
For Daily Alerts
Oneindia App Download

वुसअत का ब्लॉग: अमरीका को भारत-अफ़ग़ान व्यापार की इतनी चिंता क्यों

पाकिस्तान के विदेश मंत्री शाह महमूद क़ुरैशी ने क़ाबुल स्थित अमरीकी राजदूत जॉन बास की इस सूचना को ग़लत बताया है कि पाकिस्तान भारत और अफ़ग़ानिस्तान के दरम्यान रास्ता देने पर ग़ौर कर रहा है.

शाह महमूद क़ुरैशी मंत्री बनने के बाद दो दिन पहले ही क़ाबुल की पहली यात्रा से लौटे हैं.

लगता है कि न तो क़ाबुल में बने अमरीकी राजदूत की ख़बर मुकम्मल ग़लत है और न ही पाकिस्तान के विदेश मंत्री की तरफ़ से इसे झुठलाना आश्चर्यजनक है.

By वुसअतुल्लाह ख़ान , पाकिस्तान से बीबीसी हिंदी के लिए
Google Oneindia News
पाकिस्तानी विदेश मंत्री शाह महमूद क़ुरैशी
EPA
पाकिस्तानी विदेश मंत्री शाह महमूद क़ुरैशी

पाकिस्तान के विदेश मंत्री शाह महमूद क़ुरैशी ने क़ाबुल स्थित अमरीकी राजदूत जॉन बास की इस सूचना को ग़लत बताया है कि पाकिस्तान भारत और अफ़ग़ानिस्तान के दरम्यान रास्ता देने पर ग़ौर कर रहा है.

शाह महमूद क़ुरैशी मंत्री बनने के बाद दो दिन पहले ही क़ाबुल की पहली यात्रा से लौटे हैं.

लगता है कि न तो क़ाबुल में बने अमरीकी राजदूत की ख़बर मुकम्मल ग़लत है और न ही पाकिस्तान के विदेश मंत्री की तरफ़ से इसे झुठलाना आश्चर्यजनक है.

अगर वाघा-अटारी से तुर्ख़म तक का रास्ता भारत-अफ़ग़ान व्यापार के लिए खुल जाए, तो इसका लाभ सभी को होगा.

आज अगर भारतीय पंजाब के किसान को एक बोरी अनाज अफ़ग़ानिस्तान भेजना हो तो ये बोरी पहले तो जालंधर से सूरत या मुंबई जाएगी. वहां से जहाज़ में लद के ईरानी बंदरगाह चाबहार पहुंचेगी. और चाबहार से अफ़ग़ानिस्तान के पहले शहर ज़रिंज तक सड़क के रास्ते जाएगी, और फिर ज़रिंज से क़ाबुल तक.

इस तरह जालंधर से क़ाबुल तक अनाज की ये बोरी 4,750 किलोमीटर नाप के कम से कम आठ दिन में पहुंचेगी.

अगर यही बोरी जालंधर से वाघा-अटारी के ज़रिए पाकिस्तान से होती हुई क़ाबुल जाए तो उसे ज़्यादा ये ज़्यादा 768 किलोमीटर का फ़ासला तय करने में दो दिन लगेंगे.

सोचिए एकदम चार हज़ार किलोमीटर का रास्ता कम होने से किसको कितना कितना फ़ायदा होगा.

माइक पोम्पियो, शाह महमूद क़ुरैशी
Reuters
माइक पोम्पियो, शाह महमूद क़ुरैशी

पाकिस्तान को भी होगा फ़ायदा

कुछ आंकड़ों के अनुसार पाकिस्तान को भारत-अफ़ग़ान ट्रांज़िट ट्रेड से चुंगी, किराए और रोड टैक्स वगैरह मिला कर कम से कम डेढ़ से दो बिलियन डॉलर सालाना की कमाई होगी.

मगर अमरीका इस बारे में आख़िर इतना उतावला क्यों हो रहा है कि पाकिस्तान और भारत जल्द से जल्द वाघा-तोर्ख़म रास्ता खोलने पर राज़ी हो जाएं.

कारण शायद ये है कि अमरीका नवंबर के महीने से ईरान की मुकम्मल आर्थिक नाकाबंदी करना चाहता है. ये घेराबंदी तब तक कामयाब नहीं हो सकती जब तक ईरान से भारत के आर्थिक संबंधों में नुक़सान की किसी हद से भरपाई का (इमकान) नज़र ना आए.

अटारी-तोरख़म रास्ता खुल जाए तो अमरीका के ख़्याल में भारत चाबहार प्रोजेक्ट में निवेश करना फ़िलहाल रोक ले और ईरान की बजाय सऊदी और ईराक़ी तेल लेने पर राज़ी हो जाए.

मगर पाकिस्तान शायद रास्ता खोलने पर तब राज़ी हो जब अमरीका अफ़ग़ान मसले में पाकिस्तान की गरदन पर हाथ ढीला करते हुए उसकी कुछ ना कुछ इमदाद बहाल करे.

भारत ईरान में चाबहार बंदरगाह बना रहा है
AFP
भारत ईरान में चाबहार बंदरगाह बना रहा है

पाकिस्तान को इस वक्त अपनी अर्थव्यवस्था संभालने के लिए कम से कम नौ से बारह बिलियन डॉलर का फौरन ज़रूरत है.

पाकिस्तान की कोशिश है कि चीन जैसे दोस्त उसकी मदद को आएं और वो आईएमएफ़ (विश्व मुद्रा कोष) का दरवाज़ा खटखटाने से बच जाए क्योंकि इस दरवाज़े के पीछे अमरीका कुर्सी डाले बैठा है.

एक बार तय हो जाए कि पाकिस्तान को फौरी तौर पर बारह बिलियन डॉलर कहीं से उपलब्ध हो रहे हैं के नहीं. अगर हो रहे हैं तो रास्ता नहीं खुलेगा. अगर नहीं तो रास्ता खुलने की संभावनाएं बढ़ जाएंगी.

अंतरराष्ट्रीय राजनीति में उसूल-वुसूल की अहमियत कली-फुंदनों से ज़्यादा नहीं होती.

क्योंकि सियासत की कोख से अर्थव्यवस्था नहीं बल्कि माया की कोख से सियासत जन्म लेती है.

BBC Hindi
Comments
देश-दुनिया की ताज़ा ख़बरों से अपडेट रहने के लिए Oneindia Hindi के फेसबुक पेज को लाइक करें
English summary
Vusats blog why the US is so concerned about the Indo-Afghan trade
तुरंत पाएं न्यूज अपडेट
Enable
x
Notification Settings X
Time Settings
Done
Clear Notification X
Do you want to clear all the notifications from your inbox?
Settings X
X