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वुसत का ब्लॉग: कोरिया से क्यों सबक नहीं ले सकते भारत पाकिस्तान?

न दिन से मैं सोशल मीडिया पर पढ़-पढ़कर ऊब गया हूं कि अगर उत्तर और दक्षिण कोरिया के नेता दूसरे विश्वयुद्ध में होने वाले विभाजन के बाद तीन साल चली लड़ाई और 65 सालों में सैकड़ों-हज़ारों टन धमकियों, लाखों टन गालियों और सीमा के एक-एक इंच को सैनिकों से भर देने के बाद इस नतीजे पर पहुंचते हैं कि हाथ तो मिलाना ही पड़ता है तो फिर भारत-पाकिस्तान ऐसा क्यों नहीं कर सकते?

By BBC News हिन्दी
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तीन दिन से मैं सोशल मीडिया पर पढ़-पढ़कर ऊब गया हूं कि अगर उत्तर और दक्षिण कोरिया के नेता दूसरे विश्वयुद्ध में होने वाले विभाजन के बाद तीन साल चली लड़ाई और 65 सालों में सैकड़ों-हज़ारों टन धमकियों, लाखों टन गालियों और सीमा के एक-एक इंच को सैनिकों से भर देने के बाद इस नतीजे पर पहुंचते हैं कि हाथ तो मिलाना ही पड़ता है तो फिर भारत-पाकिस्तान ऐसा क्यों नहीं कर सकते?

मगर मेरा मानना है कि कोरिया का उदाहरण भारत और पाकिस्तान पर फ़िट नहीं बैठता, लिहाजा बेवजह आस-उम्मीद के दलदल में गोते खाने से खुद को न थकाएं. कारण ये है कि इंडिया-पाकिस्तान दो अलग-अलग देश हैं जबकि कोरिया के दोनों हिस्से ऐसे ही हैं, जैसे पूर्वी और पश्चिमी जर्मनी यानी कोल्ड वॉर की निशानियां.

दोनों शायद एक दिन जर्मनी की तरह जुड़ भी जाएं क्योंकि वे जुड़ना ही चाहते हैं. दोनों कोरियाओं का राष्ट्र चलाने का नज़रिया भले अलग-अलग हो मगर ज़बान, नस्ल, रंग, खान-पान और इतिहास एक ही है.

लंबी नाक का मसला!

लेकिन सोचिए अगर उत्तर कोरिया में मुसलमान और दक्षिण कोरिया में हिंदू बहुमत होता तो आज 2018 की दुनिया में 72 वर्ष पुराने विभाजन को लेकर वो एक-दूसरे के बारे में किस तरह से सोच रहे होते.

कोरियाइयों की नाक ऐसी होती है कि वे एक-दूसरे से आसानी से मिला सकते हैं. हमारी नाकें इतनी लंबी हैं कि कट तो सकती हैं, मिल नहीं सकतीं. टूट सकती हैं मगर नीची नहीं हो सकतीं.

तो क्या इतनी लंबी नाकें रखने के बावजूद हम दो सामान्य देशों की तरह नहीं रह सकते? बिल्कुल रह सकते हैं, मगर क्यों रहें? उसके बाद जीवन में बोरियत के सिवा बचेगा क्या? बाक़ी दुनिया और हममें क्या फ़र्क रह जाएगा?

भारत पाकिस्तान
Getty Images
भारत पाकिस्तान

वैसे भी हम और आप ग़ालिब को मानने वाले हैं जिन्होंने कोरियाई लोगों के बारे में नहीं, हमारे बारे में ही फ़रमाया है-

छेड़ ख़ूबां से चली जा असद

गर नहीं वस्ल, अदावत ही सही

हमारे पास कश्मीर है, परमाणु हथियार हैं, आरएसएस का नज़रिया है, हाफ़िज सईद हैं, रॉ है, आईएसआई है, अफ़ग़ानिस्तान है, वाघा-अटारी की जिन्नाती परेड है, एक-दूसरे से मुलाक़ात न करने के सौ-सौ बहाने हैं, तंज के तीर हैं, अपनी-अपनी पीढ़ियों को उल्लू बनाने के लिए नकली इतिहास गढ़ने वाली फ़ैक्टरियां हैं.

कोरियन्स के पास क्या है लकीर के आसपास पथराई आंखों वाली बूढ़ी मांओं के सिवा? लिहाजा कहां कोरियन्स, कहां हम? बात बनी नहीं, न बनेगी.

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English summary
Vusat's blog: Why can not India take lessons from Korea
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