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वुसत का ब्लॉग: 'लोग चीख रहे हैं, पाकिस्तान में इलेक्शन नहीं सेलेक्शन होने जा रहा है'

इतनी उथल-पुथल और जोड़-तोड़ के माहौल में जो भी 25 जुलाई के बाद सरकार बनाएगा, वह कितनी देर चल पाएगी और देश को आर्थिक, राजनीतिक और विदेशी चेतावनियों के दलदल से कैसे निकाल पाएगी, फ़िलहाल ये सोचने का समय किसी के पास नहीं.

हर चुनाव में वोट डालने वाले की ख़्वाहिश होती है 

By BBC News हिन्दी
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पाकिस्तान चुनाव
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आज चुनाव से सिर्फ़ नौ दिन की दूरी पर पाकिस्तान के जो हालात हैं, उन्हें देखकर माओत्से तुंग का ऐतिहासिक विश्लेषण याद आता है कि आकाश तले ज़बरदस्त उथल-पुथल है और परिस्थिति अति उत्तम है.

जो कल तक सत्ता में थे आज उनपर एक के बाद एक पर्चे कट रहे हैं. जिसके पास भी मुस्लिम लीग नवाज़ का टिकट है, उस पर ऊपर-नीचे, दाएं-बाएं से दबाव है- टिकट वापस करो या दूसरी पार्टी में शामिल हो जाओ या फिर आज़ाद चुनाव लड़ो या फिर फ्लां-फ्लां मुकदमे में सरकारी गवाह बन जाओ.

वरना ये बताओ इतने ठाटबाट से अब तक कैसे रह रहे हो, टैक्स कितना दिया, कितना छुपाया, फ्लां ठेके में कितना कमाया, अदालतों की तौहीन क्यों की, सरकारी काम में बाधा क्यों पहुंचाई, लोगों को तोड़-फोड़ के लिए क्यों उकसा रहे हो? नैब, एफ़आईए और अदालत का सामना करो या फिर सामने की लॉन्ड्री में जाओ और सारे गंध से पाक साफ़ हो जाओ.

इमरान की तहरीक-ए-इंसाफ जिसे 2013 के चुनाव में पहली बार कौमी असेंबली की 32 सीटें मिली थीं वो 166 सीटें जीतने वाली नवाज़ शरीफ़ की पार्टी पर चुनाव में धांधली के आरोपों पर धरने देती रही और करप्शन फ़्री पाकिस्तान के पांच वर्ष नारे लगाती रही.

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इस बार सिवाय इमरान ख़ान के हर कोई चीख रहा है कि 25 जुलाई को इलेक्शन नहीं सेलेक्शन होने जा रहा है मगर इमरान ख़ान के समर्थक कहते हैं कि इस बार कोई धांधली नहीं होगी.

टीवी चैनलों को देखा जाए तो इमरान ख़ान जीत चुके हैं. जो एक-आध चैनल ऐसा नहीं कह पा रहे, उनकी कहीं तस्वीर ग़ायब हो रही है तो कहीं आवाज़. इमरान ख़ान कहते हैं कि इस वक़्त ऊपर वाला उनके साथ है. बाक़ी कह रहे हैं ऊपर वाला साथ हो न हो, धरती के ख़ुदा उनके साथ ज़रूर हैं.

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ख़ूनी खेल

जब सारी मशीनरी इलेक्शन का रुख़ मोड़ने पर लगी हुई है तो चरमपंथी भी खुल कर खेल रहे हैं. सिर्फ़ एक हफ़्ते में तीन बड़ी घटनाएं 168 जानें ले चुकी हैं. बलूचिस्तान के मस्तूम शहर में एक चुनावी रैली में आत्मघाती हमले में 142 लोग मारे गए.

चार साल पहले पेशावर के आर्मी पब्लिक स्कूल पर हमले में 150 बच्चों और अध्यापकों के मारे जाने और बाद में फ़ौजी ऑपरेशन में आतंकवाद की कमर तोड़ने के बाद मस्तूम का हमला सबसे ख़ूनी है.

मगर जिस दिन मस्तूम में लाशें उठाई जा रही थीं मीडिया के कैमरे लाहौर एयरपोर्ट पर नवाज़ शरीफ़ और मरियम नवाज़ की गिरफ्तारी कवर कर रहे थे.



पाकिस्तान चुनाव
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वोटर की दुविधा

इतनी उथल-पुथल और जोड़-तोड़ के माहौल में जो भी 25 जुलाई के बाद सरकार बनाएगा, वह कितनी देर चल पाएगी और देश को आर्थिक, राजनीतिक और विदेशी चेतावनियों के दलदल से कैसे निकाल पाएगी, फ़िलहाल ये सोचने का समय किसी के पास नहीं.

हर चुनाव में वोट डालने वाले की ख़्वाहिश होती है कि देश का कल आज से बेहतर हो. मगर नौ दिन बाद वोटर इस दुआ के साथ वोट डालेगा कि जैसे हालात आज हैं, कल कम से कम इससे ज़्यादा ख़राब न हों.

अगर चुनाव का मक़सद यही है तो पांच-छह अरब रुपये का खर्चा क्यों किया जा रहा है? क्या दुनिया को ये बताने के लिए हमारे यहां भी चुनाव होते हैं?

BBC Hindi
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English summary
Vusat s blog People are screaming, elections in Pakistan are not going to be selection
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