दलाई लामा को शरण देने के लिए अमेरिका ने भारत को कहा शुक्रिया, चीन को बताया दमनकारी
नई दिल्ली। तिब्बत के धार्मिक गुरू दलाई लामा को भारत ने 1959 में शरण दी थी और उसके बाद से वह भारत में ही रह रहे हैं। भारत के इस कदम की अमेरिका ने भी तारीफ की है। अमेरिका ने भारत का शुक्रिया अदा करते हुए कहा कि दलाई लामा को 85वें जन्मदिन की बधाई, उन्होंने पूरी दुनिया को शांति, दया और तिब्बत के लिए अपने संघर्ष से दुनिया को प्रेरित किया है। हम भारत का शुक्रिया अदा करते हैं जिसने उनका स्वागत किया और 1959 से तिब्बत के स्वतंत्रता आंदोलन के समय से उन्हें शरण दी।
अमेरिका के साउथ एंड सेंट्रल एशियन अफेयर्स ब्यूरो की ओर से ट्वीट करके भारत को शुक्रिया कहा गया है। यूएस हाउस रिप्रेजेंटेटिव नैंसी पेलोसी ने भी दलाई लामा को उनके जन्मदिन की बधाई दी है। उन्होंने कहा कि दलाई लामा उम्मीद का संदेश हैं, उनकी अध्यात्मिक सलाह लोगों में खुशी बांटती है, धर्म और प्रेम को बढ़ावा देते हैं, मानवाधिकारों की रक्षा और तिब्बत के लोगों की संस्कृति और भाषा को बचाने में वह तत्पर हैं। दुर्भाग्य से दलाई लामा की उम्मीदों, तिब्बत के लोगों की उम्मीदें चीन की दमनकारी नीतियों की वजह से अधूरी हैं।
बता दें कि दलाई लामा को शांति का नोबेल पुरस्कार भी मिल चुका है। भारत का दलाई लामा के साथ काफी पुराना और घनिष्ठ रिश्ता है। भारत ने उन्हें 1959 में शरण दी थी और 1962 में भारत-चीन युद्ध की दलाई लामा एक बड़ी वजह थे। गौरतलब है कि दलाई लामा तिब्बत के 14वें दलाई लामा हैं और वह तिब्बतियों के धर्मगुरू हैं। उन्हें बोधिसत्व और तिब्बत का संरक्षक माना जाता है। बौद्ध धर्म में बोधिसत्व उसे कहा जाता है जो मानवता की सेवा के लिए फिर से जन्म लेने का संकल्प लेते हैं। दलाई लामा का असली नाम ल्हामो दोंडुब है और महज दो वर्ष की आयु में ही उन्हें 13वां लालमा घोषित कर दिया गया था।