अमरीकी राष्ट्रपति चुनाव: कमला हैरिस को उप राष्ट्रपति उम्मीदवार बनाने के पीछे वजह क्या है?
जो बाइडन ने पहले ही वादा किया था कि उपराष्ट्रपति पद के लिए किसी महिला को ही उतारा जाएगा.
अमरीकी राष्ट्रपति चुनाव में कई दिनों से डोमोक्रेटिक पार्टी के उम्मीदवार जो बाइडन के सहयोगी यानी उप-राष्ट्रपति पद की उम्मीदवारी को लेकर कई कयास लगाए जा रहे थे. अब वो नाम आखिरकार सामने आ गया है.
कैलिफ़ोर्निया की सांसद कमला हैरिस जमैकाई और भारतीय मूल की पहली अमरीकी महिला होंगी जो एक बड़ी राजनीतिक पार्टी से इस पद के लिए चुनाव लड़ेंगी.
बाइडन ने पहले ही वादा किया था कि उपराष्ट्रपति पद के लिए किसी महिला को ही उतारा जाएगा.
कोरोना महामारी वजह से अमरीका के लिए यह काफ़ी असाधारण वक्त है. यहां कोरोना संक्रमण की वजह से एक लाख 64 हज़ार से अधिक लोग मारे जा चुके हैं, लाखों लोग बेरोज़गार हो गए हैं और अर्थव्यवस्था भी बुरे दौर में है.
लेकिन सुसान राइस, कैरेन बास या किसी और की बजाय कमला हैरिस को ही क्यों इस पद की उम्मीदवारी के लिए चुना गया?
अमरीका में जो वजहें चर्चा में हैं, वो ये हैं-
1. जो बाइडन ने अपने चुनाव प्रचार से जुड़े एक मेल में कहा, "मुझे किसी ऐसे शख़्स का साथ चाहिए जो स्मार्ट हो, कड़ी मेहनत करे और नेतृत्व के लिए तैयार रहे. कमला वो शख़्सियत हैं."
कमला हैरिस में वो सारी खूबियां हैं जो चुनाव में पार्टी का फायदा करवा सकती हैं. वो एक प्रवासी परिवार से हैं, काली महिला हैं, राष्ट्रीय स्तर पर उनकी पहचान है, एक बड़े राज्य और देश में भी उन्हें नेतृत्व का अनुभव है और बतौर एक कमेंटेटर भी वो बेहतरीन हैं. ये सारी खूबियां उन्हें पहले दिन से ही सबसे आगे रख रही हैं.
उनका नाम आने से प्रगतिशील मतदाताओं पर असर पड़ सकता है जो प्रवासन और नस्लीय न्याय के बारे में सोचते हैं.
हैरिस लॉ स्कूल से ग्रैजुएट हैं और सैन फ्रांसिस्को की सिटी अटॉर्नी (अधिवताक्त) तौर पर काम भी कर चुकी हैं. इसके बाद वो कैलिफ़ोर्निया की अटॉर्नी जनरल बन गईं.
वो मुखर, करिश्माई और तीखी बहस और सवाल करने वाली हैं, जिन्होंने सीनेट में बहुत कम समय के भीतर राष्ट्रीय पहचान बना ली है.
कमला हैरिस की ऑनलाइन मौजूदगी भी मज़बूत है. उनकी खूबियां उस वक़्त देशभर में दिखीं थीं जब उन्होंने राष्ट्रपति पद की उम्मीदवारी के लिए दावा शुरू किया. हालांकि बाद में उन्होंने अपना अभियान रोक दिया.
उप राष्ट्रपति माइक पेंस के साथ बहस के दौरान उनकी भाषण देने की कला बेहतर होने की उम्मीद की जा रही है.
एक स्थानीय मीडिया रिपोर्ट में सूत्रों के हवाले से कहा गया है कि बाइडन का अभियान ऐसा उम्मीदवार नहीं चाहता जो स्क्रूटनी में ही लड़खड़ा जाए.
अपने कैंपेन ईमेल में बाइडन ने लिखा, "सीनेट की दो महत्वपूर्ण समितियों-ख़ुफिया और न्याय में सबसे सशक्त और सबसे असरदार सांसद रही हैं."
ईमेल में यह भी कहा गया है, "क्रिमिनल जस्टिस और शादी में बराबरी जैसे मुद्दों पर वो प्रभावी नेता हैं. कोरोना वायरस की वजह से देश में फैली नस्लीय विषमता पर भी उनका ध्यान है.
2. एक मौका था जब बाइडन का कैंपेन बिल्कुल अच्छा नहीं चल रहा था और ऐसा लग रहा था कि बर्नी सैंडर्स के पक्ष में माहौल बना है. लेकिन 29 फरवरी को माहौल बदला जब बाइडन को साउथ कैरोलीना में अफ्रीकी अमरीकियों के वोट की वजह से बड़ी जीत मिली.
एक के बाद एक राज्यों में बाइडन को अफ्रीकी अमरीकी समुदाय का समर्थन मिलता गया और डेमोक्रेटिक धड़े को एकजुट रखने के लिए आखिरकार बर्नी को अपना नाम वापस लेना पड़ा.
एक समुदाय से इतना समर्थन मिलने पर इस बात की चर्चा शुरू हो गई कि बाइडन और पार्टी को एक ऐसा नेता उप राष्ट्रपति पद के लिए चुनना चाहिए जो इसी समुदाय से हो.
हाई प्रोफाइल अफ्रीकी अमरीकी नेता जेम्स क्लाईबर्न ने बाइडन से आग्रह किया कि वो एक काली महिला को उपराष्ट्रपति पद की उम्मीदवारी के लिए चुनें.
3. पुलिस के हाथों अफ्रीकी मूल के अमरीका नागरिक जॉर्ज फ्लॉयड की मौत के बाद से जो बाइडन और डेमोक्रेटिक पार्टी पर दबाव बढ़ता गया. 'ब्लैक लाइव्स मैटर' आंदोलन चल पड़ा. प्रदर्शनकारी जुबानी वादों के बजाय सुधारों और एक्शन की मांग कर रहे थे.
4. निजी पारिवारिक रिश्तों की भी इसमें काफ़ी भूमिका बताई जा रही है. जैसा कि जो बाइडन ने अपने ईमेल में लिखा, "मैं पहली बार कमला से अपने बेटे बो के ज़रिए मिला. वो दोनों एक साथ अटॉर्नी जनरल थे. उसके मन में कमला और उनके काम के प्रति काफ़ी इज्ज़त है. यह फ़ैसला लेने से पहले मैंने इसके बारे में काफ़ी सोचा है. बो के मुकाबले मैंने किसी और के नज़रिये को इतनी गंभीरता से नहीं लिया. मुझे गर्व है कि कमला मेरे साथ इस मुहिम में खड़ी हैं."
5.अफ्रीकी मूल के अमरीकियों के करीब 13 फ़ीसदी वोट हैं और कई राज्यों में उनके वोट काफ़ी अहम हैं.
साल 2016 में अमरीकी चुनाव में ट्रंप के मुकाबले हिलेरी क्लिंटन की हार की वजह के लिए अफ्रीकी मूल के अमरीकियों के वोट कम होना बताया जाता है.
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हालांकि यह स्पष्ट नहीं है कि कमला हैरिस किस हद तक जो बाइडन के कैंपेन में तेज़ी ला पाएंगी और अफ्रीकी अमरीकी समुदाय को वोटिंग बूथ तक ला पाएंगी.
बाइडन धड़े का मानना है कि उन्होंने पहले कमला हैरिस को दरकिनार कर दिया था और बाइडन की उम्मीदवारी में दिलचस्पी थी.
दूसरी वजह यह भी है कि बाइडन कैंप एक ऐसे उम्मीदवार की तलाश में था जो बाइडन-ओबामा की जोड़ी वाली छवि को बरकरार रख पाए.
पहले यह जोड़ी विदेश मामलों के अनुभवी एक बुज़ुर्ग गोरे आदमी और प्रवासी जड़ों वालों काले युवा की थी. हालांकि इस बार बाइडन की नज़र राष्ट्रपति पद पर है. लेकिन सवाल फिर भी पूछा जा रहा है कि क्या ये जोड़ी भी वैसा की कमाल कर पाएगी?
बाइडन की उम्र 70 साल के ऊपर है. उन्होंने खुद को भविष्य के डेमोक्रेटिक नेताओं के लिए ज़रिया बताया है.
अगर कमला और बाइडन की जोड़ी 2020 चुनाव में जीत दर्ज करती है तो ऐसा कहा जा रहा है कि इससे कमला हैरिस के लिए साल 2024 के राष्ट्रपति चुनावों में दावेदारी का रास्ता मज़बूत हो जाएगा.
कमला हैरिस पर कंज़र्वेटिव पार्टी की तरफ से हमले तेज़ हो गए हैं. एक ट्विटर अकाउंट जिसने खुद के कंज़र्वेटिव प्रतिनिधित्व से जुड़ा बताया है, ने कहा, " कमला हैरिस न तो काली है, न अफ्रीकी मूल की अमरीकी हैं." इसमें उनके भारतीय और जमैकाई वंश की बात की गई है.
एक लेख में कहा गया है, "हैरिस ने कैंपेन में बाइडन की तुलना में अधिक उदारवादी कदम उठाए हैं. चाहे वो हेल्थ केयर हो या फिर इमिग्रेशन, उन्होंने रिपब्लिकन को विज्ञापनों के जरिए हमले के लिए मौके दिए हैं."
"प्राइमरी डिबेट के दौरान जब मॉडरेटर ने सवाल कि कौन प्राइवेट हेल्थ इंश्योरेंस ख़त्म करेगा और गैरकानूनी रूप से अमरीकी सीमा में घुसने को कौन गैर-आपराधिक घोषित करेगा? इस पर कमला हैरिस ने हाथ उठाया था.
हैरिस ने बाद में इस लगातार स्थिति स्पष्ट करने की कोशिश की लेकिन ट्रंप कैंपेन आसानी से ऐसी क्लिप्स का इस्तेमाल विज्ञापनों में कर सकता है."