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अमरीकी राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप सीरिया में कुर्दों को 'धोखा' दे रहे हैं: नज़रिया

जिस तरह 2006-07 के समय अमरीका की वैश्विक छवि बहुत ख़राब हो गई थी और बराक ओबामा के राष्ट्रपति बनने के बाद दुनियाभर का भरोसा अमरीका में फिर से पैदा हुआ वैसे ही ट्रंप के जाने के बाद फिर कोई नया राष्ट्रपति आएगा और अमरीका को वहीं ले जाएगा जहां वो है.

लेकिन फिलहाल अमरीका जहां है वहां उसके लिए चीज़ें बहुत बेहतर नज़र नहीं आ रही हैं. ऐसा प्रतीत हो रहा है कि राष्ट्रपति ट्रंप अपने सलाहकारों और नीति निर्माताओं को विश्वास में लिए बिना ही इकतरफ़ा फ़ैसले ले रहे हैं. और इन फ़ैसलों की वजहें व्यक्तिगत ज़्यादा हो सकती हैं.

By BBC News हिन्दी
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अमरीकी राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप
Getty Images
अमरीकी राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप

अमरीकी राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप ने तुर्की के राष्ट्रपति रेचेप तेयेप अर्दोआन से फ़ोन पर बात के बाद अचानक लिए फ़ैसले में सीरिया में तैनात अमरीकी सैनिकों को वापस बुलाने का आदेश दिया.

राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप ने अपने चुनाव अभियान के दौरान बार-बार ये कहा था कि वो मध्य पूर्व में तैनात अमरीकी सैनिकों को वापस बुला लेंगा. मध्य पूर्व में सुरक्षा अभियान अमरीका को बहुत महंगे पड़ रहे हैं. कई बार एक सप्ताह में ही इस क्षेत्र में अमरीकी सेना का ख़र्च एक अरब डॉलर तक पहुंच जाता है.

राष्ट्रपति ट्रंप ने कहा था कि वो मध्य पूर्व में होने वाले सुरक्षा ख़र्च को कम करेंगे. इराक़, अफ़ग़ानिस्तान और सीरिया युद्ध में अमरीका भारी ख़र्च कर चुका है और उस पर इस वजह से क़र्ज़ भी बढ़ा है.

ट्रंप अपने चुनाव अभियान में ये बात दोहराते रहे थे कि मध्य पूर्व से अमरीका को कुछ हासिल नहीं हो रहा है और हम वहां अपना पैसा ख़र्च क्यों करें. ट्रंप का ये स्टैंड हमेशा से था लेकिन पिछले सप्ताह तुर्की के राष्ट्रपति अर्दोआन से बात के बाद ट्रंप ने अचानक अपने सैन्य बल वापिस बुलाने का फ़ैसला लिया.

ट्रंप ने ये तय तो पहले से ही कर रखा था कि वो अमरीकी बलों को वापस बुलाएंगे लेकिन ये फ़ैसला अब उन्होंने अर्दोआन से बात करने के बाद लिया है.

राष्ट्रपति बराक ओबामा के ज़माने में अमरीका पीछे से नेतृत्व करता रहता था लेकिन अगर अब अमरीकी सीनेटर लिंडसे ग्राहम के शब्दों में कहें तो सवाल उठा है कि क्या अमरीका अब पर्दे के पीछे से भी नेतृत्व नहीं कर पाएगा? अमरीका का ये क़दम सीरिया में प्रभावशाली रूस के लिए क्रिसमस के तोहफ़े की तरह होगा.

कुर्दों पर संकट

सीरिया में अमरीकी सैनिक सीरियन डेमोक्रेटिक फ़ोर्सेज़ की मदद कर रहे थे. कुर्द नेतृत्व वाले ये बल सीरिया में तथाकथित चरमपंथी समूह इस्लामिक स्टेट को हराने और उसके प्रभाव क्षेत्र को सीमित करने में बेहद अहम रहे हैं.

तुर्की ने इसी बीच सीरिया में बड़ा सैन्य अभियान शुरू करने का ऐलान किया है. तुर्की कह रहा है कि वो इस्लामिक स्टेट के ख़िलाफ़ लड़ेगा लेकिन उसके निशाने पर मूल रूप से कुर्द बल ही रहेंगे क्योंकि तुर्की सीरिया के उत्तरी इलाक़ों से कुर्दों का सफ़ाया चाहता है.

इन कुर्द बलों को अमरीका ने ही हथियार दिए थे और ज़मीनी स्तर पर मज़बूत किया था. अब अमरीका के अचानक पीछे हटने से इनके सामने बेहद मुश्किल हालात होंगे.

सीरिया में तुर्की के सैन्य अभियान के निशाने पर अब ये कुर्द बल ही होंगे और बहुत मुमकिन है कि तुर्की सेना इनका यहां से सफ़ाया ही कर दे. सीरिया के उत्तरी इलाक़ों में तुर्की सेना घुसी तो एक बड़ा और नया हिंसक संघर्ष शुरू होगा जिसके निशाने पर कुर्द होंगे.

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सीरिया में अमरीकी बल
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सीरिया में अमरीकी बल

अमरीकी रक्षा मंत्री जनरल जिन मैटिस भी ट्रंप की इस नीति से सहमत नहीं थे और उन्होंने भी इस्तीफ़ा दे दिया है. रिपब्लिकन पार्टी में ट्रंप की हर बात से सहमत रहने वाले लोग भी इस मुद्दे पर असहमत दिख रहे हैं और पार्टी के भीतर राजनीतिक तनाव भी बढ़ रहा है.

इसे लेकर अमरीकी फ़ौज में भी ग़ुस्सा और नाराज़गी दिख रही है क्योंकि ट्रंप की ये रणनीति अमरीकी की दीर्घकालिक सुरक्षा और विश्वसनीयता के लिए नुक़सानदेह हो सकती है.

ट्रंप के इस कद़म ने रूस के लिए भी मैदान खुला छोड़ दिया है. जब भी अमरीका कोई जगह छोड़ता है तो उस खाली जगह को भरने के लिए दुनिया की और ताक़तें तैयार रहती हैं.

ट्रंप के इस क़दम से सीरिया में रूस और ईरान का प्रभाव और ज़्यादा बढ़ेगा. इसी बीच इसराइल ने घोषणा कर दी है कि वो अमरीका के सीरिया से वापस लौटने की स्थिति में सीरिया में सैन्य अभियान शुरू कर देगा क्योंकि अमरीका के यहां से जाने से इस्लामिक स्टेट के मज़बूत होने की संभावना बढ़ेगी और इसराइल नहीं चाहेगा कि यहां इस्लामिक स्टेट फिर अपनी जड़े मज़बूत करे.

दूसरी बार कुर्दों को धोखा

बशर अल असद
AFP
बशर अल असद

ये दूसरी बार है जब अमरीका कुर्द समुदाय को धोखा दे रहा है. 1991 में हुए मध्य पूर्व युद्ध के दौरान अमरीका ने उत्तरी इराक़ के कुर्द समुदाय से कहा था कि वो सद्दाम हुसैन के ख़िलाफ़ विद्रोह करें. इसके बदले में अमरीका ने कुर्दो को उत्तरी इराक़ में कुर्दिस्तान स्थापित करने का भरोसा दिया था.

लेकिन जब कुवैत से इराक़ी सैनिक वापस लौट गए तो तत्कालीन राष्ट्रपति एच डब्ल्यू बुश ने अमरीका को पीछे हटा लिया. उसके बाद सद्दाम हुसैन ने कुर्द समुदाय पर बहुत ज़ुल्म किया. आरप यहां तक हैं कि लाखों कुर्दों पर गैस हमले किए गए.

अब ये दूसरी बार है जब अमरीका कुर्दों को भरोसा देकर पीछे हट रहा है. इस्लामिक स्टेट के ख़िलाफ़ लड़ाई में पहले अमरीका ने कुर्दों को आगे किया. उन्हें हथियार दिए और ज़मीनी और हवाई अभियानों से मदद की. इस्लामिक स्टेट को हराने में कुर्दों की भूमिका बेहद अहम रही है.

कुर्द औरतों तक ने बटालियन बनाकर इस्लामिक स्टेट से लोहा लिया. लेकिन अब अमरीका के पीछे हटने के बाद इन बलों के सामने बेहद मुश्किल हालात होंगे और एक नया मानवीय संकट सीरिया में पैदा होगा. इससे भविष्य में अमरीकी सहयोगी अमरीका पर बहुत आसानी से भरोसा भी नहीं करेंगे. इससे अमरीका की विदेश नीति भी प्रभावित होगी.

तुर्की ने अमरीका को प्रभावित किया?

ट्रंप और अर्दोआन
Reuters
ट्रंप और अर्दोआन

बहुत संभव है कि अमरीका ने तुर्की के साथ कोई समझौता किया है. ट्रंप ने अमरीका के महाधिवक्ता से भी ये कहा है कि वो फतेहउल्ला गुलेन को तुर्की प्रत्यर्पित करने की संभावना तलाशे. अर्दोआन गुलेन को ही तुर्की में हुई नाकाम तख़्तापलट की साज़िश के पीछे मानते हैं. तुर्की गुलेन को अमरीका से वापस लाकर मुक़दमा चलाना चाहता है. ट्रंप ने उनके प्रत्यर्पण की प्रक्रिया शुरू कर दी है.

वहीं ट्रंप के पहले राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार मेजर जनरल फ्लिन पर आरोप है कि उन्होंने अपने 27 दिनों के कार्यकाल के दौरान तुर्की के हितों को बढ़ाने के प्रयास किए. फ्लिन फिलहाल अदालत की कार्रवाई का सामना कर रहे हैं और बहुत संभव है कि उन्हें सज़ा का सामना करना पड़े. ऐसे में ये शक़ पैदा होता है कि ट्रंप का ये प्रशासन कई देशों से या तो वित्तीय दबाव में है या किसी अन्य दबाव में है. ये देश हैं तुर्की, रूस और अन्य.

अपना इस्तीफ़ा देने के बाद रक्षामंत्री जनरल जिम मैटिस ने कहा है कि ट्रंप की नीतियां ऐसी हैं कि 'वो दुश्मनों को दोस्त समझ रहे हैं और दोस्तों को दुश्मन.'

जेम्स मैटिस
AFP
जेम्स मैटिस

उन्होंने कहा है कि राष्ट्रपति को ये समझना चाहिए कि कुछ देश अमरीका के दुश्मन हैं और कुछ अमरीका के दोस्त और रूस अमरीका के दुश्मनों में शामिल है. लेकिन ट्रंप नेटो देशों को, फ़्रांस और जर्मनी जैसे दोस्त देशों के साथ दुश्मनों जैसा व्यवहार कर रहे हैं. इन परिस्थितियों में वो रिपब्लिकन भी ट्रंप से नाख़ुश हैं जो आंख बंद करके उनका समर्थन करते रहे थे.

ट्रंप का खुला समर्थन करने वाले चैनल फॉक्स एंड फ्रेंड्स ने कहा है, "जब ओबामा ने अमरीका को इराक़ से पीछे हटाया था तब उन्होंने इस्लामिक स्टेट को पैदा किया था. अब ट्रंप सीरिया से पीछे हटकर इस्लामिक स्टेट का पुनर्जन्म कर रहे हैं."

बहुत संभव है कि सीरिया में पीछे हट गए इस्लामिक स्टेट लड़ाके फिर से वापस लौटें और अमरीका की ग़ैर मौजूदगी में दोबारा शहरों में घुस जाएंगे. जो खालीपन अमरीका के जाने से पैदा होगा तुर्की उसे भरने की स्थिति में नहीं है.

तुर्की की बातों में क्यो आए ट्रंप?

अमरीकी सैनिक
Getty Images
अमरीकी सैनिक

ट्रंप के पास कोई भी दीर्घकालिक नीति या रणनीति नहीं है. न ही घरेली राजनीति में और न ही अंतरराष्ट्रीय राजनीति. वो रेटिंग देखकर क़दम उठाते हैं. उन्होंने अपने चुनावी अभियान के दौरान बार-बार दोहराया था कि वो मैक्सिको और अमरीका के बीच दीवार खड़ा कर देंगे. ट्रंप किसी भी क़ीमत पर अपना ये चुनावी वादा पूरा करना चाहते हैं.

इस दीवार के लिए ट्रंप को कम से कम 25 अरब डॉलर चाहिए लेकिन अमरीकी संसद के निचले सदन में रिपब्लिकन पार्टी की हार के बाद इस पैसे को सदन से मंज़ूरी मिलना संभव नहीं है. ट्रंप 2020 चुनाव से पहले ये दीवार खड़ी करना चाहते हैं. ऐसे में ट्रंप ये सोच रहे होंगे कि मध्य पूर्व से सेनाएं वापस बुलाने से जो पैसा बचेगा उसे सुरक्षा के नाम पर मैक्सिको की दीवार पर लगाया जा सकेगा.

दीवार खड़ी करने का अपना वादा करने के बाद ट्रंप ये कहकर वोट मांगेगे कि मैंने अपने वादे पूरे किए. ट्रंप इस समय बेहद मुश्किल हालत में भी है. राष्ट्रपति पद पर रहते हुए उनके ख़िलाफ़ कोई मुक़दमा चलाना बहुत मुश्किल है लेकिन एक बार राष्ट्रपति पद से वो हटे तो कई तरह के मुक़दमे इंतेज़ार कर रहे हैं.

इन मुक़दमों में सिर्फ़ ट्रंप ही नहीं बल्कि उनके परिजन और क़रीबी लोग भी फंसेगे ऐसे में अगला चुनाव जीतना और राष्ट्रपति पद पर बने रहना ट्रंप के लिए बेहद अहम हो गया है. बहुत संभव है कि वो अपने व्यक्तिगत हितों को ध्यान में रखकर इस तरह के फ़ैसले ले रहे हों.

क्या अमरीका अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कमज़ोर होगा?

अमरीकी सैनिक
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अमरीकी सैनिक

अमरीका आर्थिक और सैन्य शक्ति के मामले में दुनिया का अग्रणी देश है. सीरिया से बाहर निकलने से न अमरीकी सेना की ताक़त कम होगी और न ही आर्थिक ताक़त. इससे सिर्फ़ उसकी विदेश नीति पर असर पड़ेगा. ऐसे में ये कहना कि अमरीका वैश्विक स्तर पर कमज़ोर होगा ग़लत होगा, हां ट्रंप की नीतियों की वजह से अमरीका कुछ समय के लिए अलग-थलग ज़रूर पड़ सकता है.

जिस तरह 2006-07 के समय अमरीका की वैश्विक छवि बहुत ख़राब हो गई थी और बराक ओबामा के राष्ट्रपति बनने के बाद दुनियाभर का भरोसा अमरीका में फिर से पैदा हुआ वैसे ही ट्रंप के जाने के बाद फिर कोई नया राष्ट्रपति आएगा और अमरीका को वहीं ले जाएगा जहां वो है.

लेकिन फिलहाल अमरीका जहां है वहां उसके लिए चीज़ें बहुत बेहतर नज़र नहीं आ रही हैं. ऐसा प्रतीत हो रहा है कि राष्ट्रपति ट्रंप अपने सलाहकारों और नीति निर्माताओं को विश्वास में लिए बिना ही इकतरफ़ा फ़ैसले ले रहे हैं. और इन फ़ैसलों की वजहें व्यक्तिगत ज़्यादा हो सकती हैं.

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English summary
US President Donald Trump is cheating the Kurds in Syria Nazeeria
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