ऐतिहासिक गिरावट के बाद अमेरिका में तेल की कीमत में सुधार, जानिए भारत पर क्या होगा असर
नई दिल्ली। दूनियाभर में कोरोना वायरस के चलते आर्थिक मंदी का दौर है। इसका सबसे बड़ा असर अमेरिका के कच्चे तेल पर देखने को मिला है। अमेरिका में कच्चे तेल की कीमत सोमवार को शून्य डॉलर से भी नीचे चली गई थी। लेकिन आज इसके हालत में कुछ सुधार हुआ है। आज तेल की कीमतें शून्य से उपर पहुंची। मई डिलीवरी के लिए यूएस बेंचमार्क वेस्ट टेक्सास इंटरमीडिएट की कीमत सोमवार को पहली बार शून्य से नीचे चली गई थी। सोमवार को यह शून्य से 37.63 डॉलर प्रति बैरल तक पहुंच गया था। मौजूदा समय में यह फिलहाल 3.75 पर ट्रेड कर रहा है।
वहीं भारत के लिहाज से बात करें तो इसका खास असर भारत पर नहीं होगा क्योंकि भारत कच्चा तेल लंदन और खाड़ी देशों के मिश्रत पैकेज से लेता है, जिसे इंडियन क्रूड बास्केट कहते हैं। इसमे 80 फीसदी हिस्सा ओपेक देशों का है और बाकी का हिस्सा लंदन ब्रेंट क्रूट का व अन्य का है। अहम बात यह है कि दुनिया के करीब 75 फीसदी तेल की कीमत ब्रेंट क्रूड से तय होता है, लिहाजा भारत के लिए ब्रेंट क्रूड का दाम अहम है ना कि अमेरिकी क्रूड का। ब्रेंट क्रूड की बात करें तो यह सोमवार को 26 डॉलर प्रति बैरल था। मई माह में ब्रेंट क्रूड का वायदा रेटल 23 डॉलर प्रति बैरल है। लिहाजा ब्रेंट क्रूट अमेरिकी क्रूड की तुलना में काफी मजबूत है।
जानकारों का कहना है कि दुनिया के पास फिलहाल इस्तेमाल की जरूरत से ज्यादा कच्चा तेल है और आर्थिक गिरावट की वजह से दुनियाभर में तेल की मांग में कमी आई है। तेल के सबसे बड़े निर्यातक ओपेक और इसके सहयोगी जैसे रूस, पहले ही तेल के उत्पादन में रिकॉर्ड कमी लाने पर राजी हो चुके थे। अमरीका और बाकी देशों में भी तेल उत्पादन में कमी लाने का फैसला लिया गया था। लेकिन तेल उत्पादन में कमी लाने के बावजूद दुनिया के पास इस्तेमाल की जरूरत से अधिक कच्चा तेल उपलब्ध है। उनका मानना है कि सवाल सिर्फ इस्तेमाल का नहीं है, सवाल यह भी है कि क्या लॉकडाउन खुलने और हालात सामान्य होने के इंतजार में तेल उत्पादन जारी रखकर इसे स्टोर करते रहना सही है?