अमेरिकी सेना की संविधान बचाने की शपथ, संदेश में कहा, लोकतंत्र बचाने के लिए हर कदम उठाएंगे
अमेरिकी संविधान और लोकतंत्र की रक्षा के लिए मैदान में उतरने का फैसला कर ही लिया है। अमेरिकी सेना ने साफ और खुले शब्दों में चेतावनी जारी कर दी है
Trump Impeachment: वाशिंगटन: 6 जनवरी को अमेरिकी संसद को ट्रंप (Trump) समर्थकों ने जिस तरह से हाईजैक करने की कोशिश की, जिस तरह से लोकतंत्र को बंधक बनाने की कोशिश की, अमेरिका की चुनी हुई सरकार को उखाड़ फेंकने की कोशिश की, और अब जिस तरह से आशंका जताई जा रही है, कि ट्रंप के हजारों हजार हथियारबंद समर्थक 20 जनवरी को नये राष्ट्रपति के शपथ ग्रहण से पहले अमेरिका के पूरे 50 राज्यों में दंगे कर सकते हैं, उसे देखते हुए अब अमेरिकी सेना ने अमेरिकी संविधान और लोकतंत्र की रक्षा के लिए मैदान में उतरने का फैसला कर ही लिया है। अमेरिकी सेना ने साफ और खुले शब्दों में चेतावनी जारी कर दी है, कि जो भी तख्तापलट की कोशिश करेगा, जो भी अमेरिकी संविधान के खिलाफ जाएगा, उसे अमेरिका की सेना का सामना करना पड़ेगा, भले ही वो अमेरिका के राष्ट्रपति ही क्यों ना हों।
ट्रंप ने अपने शासनकाल के दौरान कई दफे अमेरिकी सेना को राजनीति में घसीटने की कोशिश की, लेकिन पेंटागन राजनीति से दूर रहा, लेकिन अब पेंटागन का मानना है, कि पानी सिर के ऊपर आ चुका है, लिहाजा उसे सख्त संदेश देने की जरूरत है।
सीनियर मिलिट्री अफसरों की चेतावनी
अमेरिका के सीनियर मोस्ट मिलिट्री अफसर और ज्वाइंट चीफ स्टाफ ने सामूहिक तौर पर अमेरिकी नागरिक और पूरे विश्व के लिए एक संदेश जारी किया है। ज्वाइंट चीफ के चेयरमैन जनरल मार्क मिले ने पिछले एक हफ्ते में अमेरिकी सैन्य अधिकारियों के साथ लगातार दो बैठकें कर अमेरिका के वर्तमान हालात पर एक 'मेमोरेंडम फॉर द ज्वाइंट फोर्स' ड्राफ्ट तैयार किया है, और उन्होंने कहा है, '' हम अमेरिकी संविधान के साथ हैं और उसकी रक्षा करने के लिए सदैव तत्पर हैं, संवैधानिक प्रक्रिया को व्यवधान पहुंचाने की कोई भी कोशिश अमेरिकी सेना के पारंपरिक विचार, शपथ और अमेरिकी कानून के खिलाफ होगी''
लोकतंत्र पर गर्व करने का पल
हालांकि, अमेरिकी सेना पर कई आरोप लगते रहे हैं, कि उसने अलग-अलग देशों के आंतरिक लोकतंत्र का सम्मान नहीं किया, कई देशों में अमेरिका के इशारों पर चलने वाले कठपुतली सरकारों को बनाने का काम किया, कई देशों में चुनी हुई सरकार को उखाड़ने का काम किया, लेकिन, अमेरिकी सेना के मोस्ट सीनियर अफसरों ने जो संदेश देश की जनता के लिए जारी किया है, वो दर्शाता है, कि कम से कम अमेरिकी सेना अपने देश के लोकतंत्र और संविधान का सम्मान करती है। और देखा जाए तो किसी भी लोकतांत्रिक देश में यही होता है, क्योंकि जिन देशों में सरकार या किसी राजनीतिक शख्सियत के इशारे पर सेना काम करती है, या फिर सेना के इशारे पर सरकार काम करती है, वहां का लोकतंत्र सिर्फ कहने के लिए होता है। लिहाजा, सेना का ये कदम लोकतांत्रिक व्यवस्था पर गर्व करने वाला जरूर है।
अब ट्रंप का आदेश नहीं मानेगी अमेरिकी सेना
अमेरिकी सेना जानती है, कि उसके द्वारा जारी किया गया मैसेज पूरी दुनिया में जाएगा, लिहाजा सेना ने अपने मैसेज में साफ कहा है, कि ''यूएस मिलिट्री चुनी हुई सरकार के हर आदेश को हमेशा मानती आई है और हमेशा मानती रहेगी''। लेकिन, अगर वर्तमान राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप सेना को कोई गैरकानूनी आदेश देते हैं, तो फिर सेना क्या करेगी ? ये सवाल विश्व भर में फैले अमेरिकी सैनिकों के मन में लगातार उठ रहे थे, जिसका जवाब है, नहीं, ट्रंप के आदेश को अब अमेरिकी सेना नहीं मानेगी। पेंटागन के अफसरों का मानना है, कि सभी अमेरिकी सैनिकों को सिर्फ कानूनी आदेशों का पालन करने के लिए प्रशिक्षित किया जाता है। लेकिन विद्रोह के इस वातावरण में वर्तमान सरकार के केवल वही आदेश माने जाएंगे जो कानूनी और नैतिक तौर पर सही हों।
न्यूक्लियर हथियारों का इस्तेमाल नहीं करेगी सेना
अमेरिका में राष्ट्रपति के आदेश के बाद ही न्यूक्लियर हथियारों का इस्तेमाल हो सकता है, और ट्रंप के बगावत के बाद सवाल उठ रहे थे, कि अगर डोनल्ड ट्रंप बतौर राष्ट्रपति सेना को न्यूक्लियर हथियार इस्तेमाल करने के लिए कहते हैं, तो सेना क्या करेगी ? तो अब सेना ने साफ कर दिया है, कि नई सरकार के कार्यभार संभालने तक सेना न्यूक्लियर हथियारों या मिसाइलों का इस्तेमाल नहीं करेगी।
हालांकि, अमेरिकी सेना ने अमेरिका की जनता और अमेरिकी नेताओं के लिए अपना संदेश साफ कर दिया है, लेकिन सेना के मन में अभी भी सवाल ये है, कि क्या डोनल्ड ट्रंप सेना के इस मैसेज को समझ पाएंगे।
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