अमेरिकी सांसदों ने डोनाल्ड ट्रंप से कहा पाकिस्तान को न मिले IMF बेलआउट पैकेज नहीं तो चुकाएगा चीनी कर्ज
वॉशिंगटन। अमेरिकी कांग्रेस के तीन सांसदों ने राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप को चिट्ठी लिखी है और चिट्ठी में उन्होंने पाकिस्तान को मिलने वाले अंतरराष्ट्रीय मुद्राकोष (आईएमएफ) बेलआउट पैकेज का विरोध किया है। इसके साथ ही उन्होंने ट्रंप प्रशासन से अनुरोध किया है कि वह भी इस बेलआउट पैकेज का विरोध करे। इन सांसदों का कहना है कि पाकिस्तान इस बेलआउट पैकेज की मदद से चीन के उस कर्ज को चुका सकता है जो उसने चीन-पाकिस्तान कॉरिडोर (सीपीईसी) के तहत आने वाले प्रोजेक्ट्स को पूरा करने के लिए लिया हुआ है।
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पाकिस्तान के रवैये से चिंता
रिपब्लिकन पार्टी के टेड योहो, जॉर्ज होल्डिंग और डेमोक्रेटिक पार्टी के एमी बेरा की ओर से यह चिट्ठी लिखी गई है। चिट्ठी में लिखा है, 'पाकिस्तान की सरकार ने आईएमएफ से बेलआउट पैकेज मांगा है और हमें इस बात की चिंता है कि इस फंड का प्रयोग चीनी इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट्स के कर्ज को चुकाने के लिए हो सकता है।' चिट्ठी विदेश मंत्री माइक पोंपेयो और वित्त मंत्री स्टीव म्यूशिन को पिछले शुक्रवार को लिखी गई है।
चीन का बिलियन डॉलर का कर्ज
पाकिस्तान पर सीपीईसी की वजह से चीन का बिलियन डॉलर का कर्ज है। बताया जा रहा है कि सीपीईसी में 10 बिलियन डॉलर से लेकर 40 बिलियन डॉलर की कीमत वाले प्रोजेक्ट्स शामिल हैं। हालांकि चीन के हमेशा इस आंकड़ें पर ऐतराज रहता है। पाकिस्तान ने आईएमएफ से बेलआउट पैकेज मांगा है ताकि विदेश मुद्रा के संकट को खत्म किया जा सके। फिलहाल शर्तों पर चर्चा जारी है।
अमेरिका लगा सकता है रोक
अमेरिका इस वार्ता को प्रभावित कर सकता है क्योंकि आईएमएफ में उसका योगदान सबसे ज्यादा होगा। अमेरिका आईएमएफ को हर वर्ष 17 प्रतिशत रकम यानी 475 बिलियन डॉलर देता है। पोंपेयो पहले ही इस बात को साफ कर चुके हैं कि पाकिस्तान को चीन का कर्ज चुकाने के लिए आईएमएफ बेलआउट पैकेज की अनुमति नहीं होगी। वर्ल्ड बैंक के नए मुखिया डेविड मालपास ने भी पोंपेयो की इस बात का समर्थन किया है।
श्रीलंका का उदाहरण
चिट्ठी में लिखा है कि चीन, सीपीईसी के पाकिस्तान में 62 अरब डॉलर निवेश कर रहा है। सांसदों ने चीन की कर्ज नीति पर भी सवाल उठाए हैं। चिट्ठी के मुताबिक चीन की कर्ज नीति का खतरनाक उदाहरण हंबनटोटा बंदरगाह है जिसे श्रीलंका से लिया गया है। श्रीलंका, चीन का कर्ज नहीं चुका पाया और आखिर में उसे यह बंदरगाह बीजिंग को सौंपना पड़ा।