मोदी की प्रतिरक्षा पर अमेरिकी विदेश विभाग से जवाब तलब
न्यूयार्क।
अमेरिका
की
एक
संघीय
अदालत
ने
भारतीय
प्रधानमंत्री
नरेंद्र
मोदी
को
दी
गई
राजनयिक
प्रतिरक्षा
को
चुनौती
देने
वाली
एक
याचिका
पर
विदेश
मंत्रालय
से
10
दिसंबर
तक
जवाब
मांगा
है।
यह याचिका एक मानवाधिकार संस्था ने दायर की है, जिसमें 2002 के गुजरात दंगे में मोदी की कथित सांठगांठ के मद्देनजर उन्हें दी गई प्रतिरक्षा को चुनौती दी गई है।
न्यूयार्क की संघीय जिला अदालत की न्यायाधीश अनालिसा टोरेस ने अमेरिकन जस्टिस सेंटर (एजेसी) द्वारा 14 नवंबर को दायर की गई याचिका पर मंत्रालय से जवाब दायर करने के लिए कहा है। याचिका में कहा गया है कि मुख्यमंत्री के रूप में उनके कार्य को देखते हुए उन्हें प्रतिरक्षा नहीं दी जा सकती।
एजेंसी और गुजरात दंगे में बच निकले दो लोगों के वकील ने दलील दी कि मोदी पर मुख्यमंत्री के रूप में किए गए इस कृत्य के लिए मामला दर्ज किया गया था, न कि देश के प्रधानमंत्री के रूप में उनके कृत्य के लिए।
एजेंसी की याचिका के अनुसार, "यह निर्विवाद है कि विदेशी संप्रभु प्रतिरक्षा सिर्फ विदेशी शासनाध्यक्ष को उनके कार्यकाल में उनके द्वारा किए गए कार्यो के लिए दी जाती है।"
एजेसी ने कहा कि कई संघीय अदालतों ने सरासर मानवाधिकार उल्लंघन के आरोपों का सामना कर रहे विदेशी अधिकारियों की प्रतिरक्षा खारिज कर दी है।
संस्था ने कहा है कि मोदी विदेशी संप्रभु प्रतिरक्षा अधिनियम (एफएसआईए) के तहत प्रतिरक्षित नहीं हैं, क्योंकि अमेरिकी सर्वोच्च न्यायालय ने व्यवस्था दी है कि 'विदेशी राष्ट्र' शब्द के दायरे में व्यक्तिगत सरकारी अधिकारी नहीं आते हैं।
संस्था ने कहा है कि मोदी के खिलाफ इस मामले में, मोदी को आरोपी बनाया गया है, न कि भारतीय गणराज्य को।
इंडो-एशियन न्यूज सर्विस।