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चीन के बाद US ने भी लैब में किया 'नकली सूर्य' का निर्माण, दुनिया में ऊर्जा संकट हमेशा के लिए खत्म?

अमेरिका से पहले चीन भी अपना आर्टिफिशियल सूरज तैयार कर चुका है और इसे हेफेई में स्थिति चीन के न्यूक्लियर फ्यूजन रिएक्टर में तैयार किया गया है। चीन ने न्यूक्लियर फ्यूजन रिएक्टर से 7 करोड़ डिग्री सेल्सियस ऊर्जा निकाली थी।

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Nuclear fusion

US Nuclear Fusion: पिछले साल पूरी दुनिया उस वक्त हैरान रह गई थी, जब चीन ने दावा किया था, कि उसने प्रयोगशाला में आर्टिफिशियल सूर्य का निर्माण कर लिया है। लेकिन, अब अमेरिका ने भी प्रयोगशाला में नकली सूर्य को बना लिया है। इतिहास में पहली बार अमेरिका के कैलिफोर्निया में लॉरेंस लिवरमोर नेशनल लेबोरेटरी में नेशनल इग्निशन फैसिलिटी में अमेरिकी वैज्ञानिकों ने कामयाबी के साथ न्यूक्लियर फ्यूजन रिएक्शन को अंजाम दिया है, जिसके परिणामस्वरूप सूर्य की तरह ही बिल्कुल शुद्ध ऊर्जा का उत्पादन किया गया। इस ऑपरेशन में शामिल एक वैज्ञानिक ने सीएनएन से न्यूक्लियर फ्यूजन के कामयाब होने की पुष्टि की है।

क्यों कहा जा रहा नकली सूर्य?

क्यों कहा जा रहा नकली सूर्य?

CNN की रिपोर्ट के मुताबिक, अमेरिकी ऊर्जा विभाग आज आधिकारिक तौर पर न्यूक्लियर फ्यूजन की सफलता की घोषणा करेगा। वैज्ञानिकों का ये प्रयोग स्वच्छ ऊर्जा उत्पादन के लिए एक ऐसे स्रोत की तलाश को पूरी करेगा, जिससे सूर्य की तरह स्वच्छ ऊर्जा निकले और जीवाश्म ईंधन पर इंसानों की निर्भरता हमेशा के लिए खत्म हो जाए। पिछले कई दशकों से शोधकर्ताओं ने परमाणु संलयन को फिर से बनाने का प्रयास किया है और इस प्रक्रिया के जरिए वैज्ञानिकों ने सूर्य की तरह ही शक्ति देने वाली ऊर्जा की नकल करने की कोशिश की है। इसीलिए इसे 'नकली सूर्य' कहा जाता है।

क्या है न्यूक्लियर फ्यूजन?

क्या है न्यूक्लियर फ्यूजन?

न्यूक्लियर फ्यूजन, यानि परमाणु संलयन एक मानव निर्मित प्रक्रिया है, जो सूर्य की तरह ही शक्ति प्रदान करने वाली ऊर्जा का निर्माण करता है। परमाणु संलयन तब होता है, जब दो या दो से अधिक परमाणु एक बड़े परमाणु में जुड़ जाते हैं, और इस प्रक्रिया के तहत भारी मात्रा में गर्म ऊर्जा का निर्माण होता है। दुनिया भर के वैज्ञानिक दशकों से परमाणु संलयन का अध्ययन कर रहे हैं, और एक ऐसी ऊर्जा का निर्माम करने की कोशिश कर रहे हैं, जो असीमित और कार्बन मुक्त ऊर्जा प्रदान करता है। वर्तमान में परमाणु रिएक्टरों से जो ऊर्जा उत्पन्न की जाती है और जिसका इस्तेमाल दुनिया में बिजली निर्माण के साथ साथ अलग अलग ऊर्जा आवश्यकताओं के लिए होता है, उसमें दिक्कत ये है, कि उसमें न्यूक्लियर कचरे का भी निर्माम होता है, जिसे खत्म करना काफी मुश्किल होता है। लेकिन, न्यूक्लियर फ्यूजन के जरिए मुख्य रूप से ड्यूटेरियम और ट्रिटियम तत्वों का इस्तेमाल किया जाता है और ये दोनों हाइड्रोजन के समस्थानिक हैं, लिहाजा किसी तरह का कोई कचरा उत्पन्न नहीं होता है।

कैसे किया जाता है न्यूक्लियर फ्यूजन?

कैसे किया जाता है न्यूक्लियर फ्यूजन?

न्यूक्लियर फ्यूजन के लिए एक गिलास पानी से ड्यूटेरियम, जिसमें थोड़ा सा ट्रिटियम मिलाया जाता है, वो एक घर को एक साल तक लगातार बिजली दे सकता है। ट्रिटियम काफी दुर्लभ खनिज है और इसे प्राप्त करना काफी ज्यादा चुनौतीपूर्ण है, हालांकि इसे कृत्रिम रूप से बनाया जा सकता है। कार्बन डायरेक्ट के मुख्य वैज्ञानिक और लॉरेंस लिवरमोर के एक पूर्व मुख्य ऊर्जा प्रौद्योगिकीविद् जूलियो फ्रीडमैन ने सीएनएन को बताया कि, "कोयले के विपरीत, आपको केवल थोड़ी मात्रा में हाइड्रोजन की आवश्यकता होती है, और यह ब्रह्मांड में सबसे प्रचुर मात्रा में पाई जाने वाली चीज है।" उन्होंने कहा कि, "हाइड्रोजन पानी में पाया जाता है, इसलिए जो पदार्थ इस ऊर्जा को उत्पन्न करता है वह बेतहाशा असीमित है और यह पूरी तरह से स्वच्छ है।"

चीन भी बना चुका है नकली सूर्य

चीन भी बना चुका है नकली सूर्य

अमेरिका से पहले चीन भी अपना आर्टिफिशियल सूरज तैयार कर चुका है और इसे हेफेई में स्थिति चीन के न्यूक्लियर फ्यूजन रिएक्टर में तैयार किया गया है। चीन के न्यूक्लियर फ्यूजन प्लांट से प्रयोग के दौरान करीब 17 मिनट तक इस न्यूक्लियर फ्यूजन रिएक्टर से 7 करोड़ डिग्री सेल्सियस ऊर्जा निकलती रही, जो असली सूरज से निकलने वाली ऊर्जा से भी ज्यादा है। रिपोर्ट के मुताबिक, चीन ने आर्टिफिशियल सूरज के साथ ये प्रयोग बीते 30 दिसंबर को किया था और ऐसा पहली बार हुआ था, जब इतनी ज्यादा देर के लिए परमाणु फ्यूजन रिएक्टर से इतनी ज्यादा ऊर्जा निकलती रही। चीन ने इससे पहले अपने नकली सूरज से करीब 1.2 करोड़ डिग्री ऊर्जा निकाली थी और अब ड्रैगन ने अपने ही रिकॉर्ड को ब्रेक किया है।

करीब 1056 सेकंड चला प्रयोग

करीब 1056 सेकंड चला प्रयोग

चीन के न्यूक्लियर फ्यूजन प्रोजेक्ट के डायरेक्टर के मुताबिक, फ्यूजन रिएक्टर में प्लाज्मा ऑपरेशन करीब 1,056 सेकंड तक चला है और इस दौरान हमने 7 करोड़ डिर्गी सेल्सियस के करीब तापमान हासिल किया जो करीब 17 मिनट तक स्थिर रहा।' आपको बता दें कि, ईएएसटी और अन्य फ्यूजन रिएक्टरों के केंद्र में टोकामक है। यह एक उपकरण है, जिसकी शुरुआत 1950 के दशक में सोवियत संघ के वैज्ञानिकों ने ऊर्जा पैदा करने के लिए की थी। एक टोकामक हाइड्रोजन आइसोटोप को एक गोलाकार आकार में सीमित करने के लिए एक शक्तिशाली चुंबकीय क्षेत्र का इस्तेमाल करता है, और ये एक कोर्ड सेब के समान होता है, जहां संलयन के बाद उत्पन्न ऊर्जा माइक्रोवेव द्वारा प्लाज्मा में गर्म होते हैं।

ग्रीन एनर्जी की दिशा में बड़ा कदम

ग्रीन एनर्जी की दिशा में बड़ा कदम

चीन का कहना है कि, उसके रिएक्टर को परमाणु संलयन प्रक्रिया को दोहराने के लिए डिज़ाइन किया गया है जो प्राकृतिक रूप से सूर्य और तारों में होती है, ताकि लगभग अनंत स्वच्छ ऊर्जा निकाली जा सके।चीन के पूर्वी अनहुई प्रांत में स्थित और 2020 के अंत में पूरा हुए इस रिएक्टर को अक्सर अत्यधिक गर्मी और बिजली पैदा करने के कारण 'कृत्रिम सूर्य' कहा जाता है। फ्यूजन पावर प्लांट बिजली उत्पादन क्षेत्र से ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करने के लिए तैयार हैं, जो विश्व स्तर पर इन उत्सर्जन के प्रमुख स्रोतों में से एक है। आपको बता दें कि, न्यूक्लियर फ्यूजन अंततः कोयला और गैस जैसे ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन करने वाले ऊर्जा स्रोतों को बदलकर जलवायु परिवर्तन का मुकाबला कर सकता है।

काफी ज्यादा कीमती है ये टेक्नोलॉजी

काफी ज्यादा कीमती है ये टेक्नोलॉजी

संलयन को ऊर्जा की पवित्र स्रोत माना जाता है और यह हमारे सूर्य की तरह की ऊर्जा प्रदान करता है और इससे प्रदूषण भी नहीं निकलता है। इस तरह के रिएक्टर से करीब डेढ़ करोड़ डिग्री सेल्सियस ऊर्जा आसानी से मिल सकती है और यह भारी मात्रा में ऊर्जा बनाने के लिए परमाणु नाभिक का विलय करता है और यह प्रक्रिया परमाणु हथियारों और परमाणु ऊर्जा संयंत्रों में उपयोग की जाने वाली विखंडन प्रक्रिया के विपरीत होता है, जिसमें उन्हें टुकड़ों में विभाजित किया जाता है। नाभिकीय विखंडन के विपरीत, संलयन कोई ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन नहीं करता है और दुर्घटनाओं या परमाणु सामग्री की चोरी का भी कम खतरा रहता है। लेकिन, न्यूक्लियर फ्यूजन को हासिल करना काफी ज्यादा महंगा है और आईटीईआर की कुल लागत 22.5 अरब डॉलर होने का अनुमान है।

न्यूक्लियर फ्यूजन से कब मिलेगी एनर्जी?

न्यूक्लियर फ्यूजन से कब मिलेगी एनर्जी?

वैज्ञानिकों और विशेषज्ञों को अब यह पता लगाने की जरूरत है, कि बड़े पैमाने पर परमाणु संलयन से अधिक ऊर्जा कैसे पैदा की जाए। इसके साथ ही, उन्हें यह पता लगाने की आवश्यकता होगी, कि अंततः परमाणु संलयन की लागत को कैसे कम किया जाए, ताकि इसका व्यावसायिक उपयोग किया जा सके। वैज्ञानिक चित्तेंडेन ने सीएनएन से कहा कि, "फिलहाल हम हर प्रयोग के लिए बहुत अधिक समय और पैसा खर्च कर रहे हैं।" उन्होंने कहा कि, "हमें लागत को एक बड़े कारक से नीचे लाने की जरूरत है।" वैज्ञानिकों को भी संलयन द्वारा उत्पादित ऊर्जा को नियंत्रित करने और इसे बिजली के रूप में पावर ग्रिड में ट्रांसफर करने की आवश्यकता होगी। इसमें अभी कई साल लगेंगे और संभवतः अभी कई दशक लग सकते हैं। विशेषज्ञ फ्रीडमैन ने कहा कि, "यह अगले 20-30 वर्षों में जलवायु परिवर्तन में कमी लाने में सार्थक योगदान नहीं देगा।" उन्होंने कहा कि,"यह माचिस जलाने और गैस टरबाइन बनाने के बीच के जैसा अंतर है और अभी हम माचिस जलाने के ही चरण में हैं।"

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English summary
Nuclear fusion: After China, America has also created artificial sun in the laboratory.
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