145 अरब डॉलर खर्च कर अमेरिका ने अफगानिस्तान में कैसी अर्थव्यवस्था बनाई, जो एक महीने में ही ढह गई
वॉशिंगटन, सितंबर 28: अमेरिकी करदाताओं ने अफगानिस्तान में अर्थव्यवस्था के निर्माण पर 145 अरब डॉलर से ज्यादा खर्च किए, लेकिन अमेरिकी सैनिकों के अफगानिस्तान छोड़ने के एक महीने से भी कम समय में ही देश की अर्थव्यवस्था ढहने के कगार पर पहुंच चुकी है। अफगानिस्तान में लोगों को पेट भरने के लिए घर का कीमती सामान, टीवी, फ्रीज, फर्नीचर बेचने पर मजबूर होना पड़ रहा है, ऐसे में सवाल ये उठता है कि आखिर अमेरिका ने अफगानिस्तान में कैसी अर्थव्यवस्था बनाई है, जो ताश के पत्तों की तरह बिखरने के कगार पर है?

अफगानिस्तान में अर्थव्यवस्था का पतन
एक वरिष्ठ मानवाधिकार अधिकारी ने कहा है कि अफगानिस्तान की अर्थव्यवस्था ताश के पत्तों की तरफ बिखरने के कगार पर है। खतरे के इस अलार्म के बाद अफगानिस्तान के निर्माण में खर्च किए गये अमेरिकी डॉलर्स को लेकर सवाल उठ रहे हैं, कि आखिर अफगानिस्तान की अर्थव्यवस्था को किस तरह बनाया गया, जो एक महीने में दम तोड़ने के कगार पर पहुंच चुका है। नॉर्वेजियन रिफ्यूजी काउंसिल के महासचिव और संयुक्त राष्ट्र के सबसे वरिष्ठ मानवीय अधिकारी जान एगलैंड, जो काबुल का दौरा भी कर चुके हैं, उन्होंने कहा कि, 'अगर अर्थव्यवस्था ढह जाती है, तो सबसे बुनियादी सेवाएं भी काम नहीं करेंगी, और मानवीय ज़रूरतें और भी महंगी हो जाएंगी''।

नकदी की भारी संकट में अफगान
जॉन एगलैंड ने अफगानिस्तान की स्थिति पर चिंता जताते हुए कहा कि, 'अफगानिस्तान में नकदी संकट से निपटना महत्वपूर्ण है क्योंकि सहायता संगठन तत्काल मानवीय जरूरतों को पूरा करने के लिए बड़े पैमाने पर प्रयास करना चाहते हैं। उन्होंने कहा कि, 'हम कड़ाके की सर्दी के आने से पहले और तापमान-20 सेल्सियस तक गिर जाने से पहले लोगों की जान बचाने की दौड़ में हैं।' उन्होंने कहा कि, ''ऐसा होने का मतलब नहीं था, क्योंकि लगातार अमेरिकी प्रशासन ने एक नए अफगानिस्तान राज्य के निर्माण में करोड़ों डॉलर खर्च किए, जो एक स्थायी अर्थव्यवस्था के रूप में माना जाता था।

अमेरिका ने खर्च किए 154 अरब डॉलर
अफगानिस्तान पुनर्निर्माण के लिए अमेरिकी के स्पेशल इंस्पेक्टर जनरल द्वारा एकत्र किए गए आंकड़े बताते हैं कि अकेले वाशिंगटन ने अफगानिस्तान के पुनर्निर्माण पर 145 अरब डॉलक खर्च किए, जबकि, सैन्य सहायता के नाम पर अफगानिस्तान में 837 अरब डॉलर खर्च किए गये। अमेरिकी रक्षा विभाग के एक अधिकारी ने पिछले महीने प्रकाशित एक रिपोर्ट में ' SIGAR' को बताया था कि, "जब आप देखते हैं कि हमने कितना खर्च किया और इसके लिए हमें क्या मिला, तो यह आपके दिमाग को झन्ना देता है।" आलोचकों का कहना है कि सड़कों और स्वास्थ्य सुविधाओं जैसे बुनियादी ढांचे के लिए भुगतान की गई सहायता तो की गई, लेकिन अफगानिस्तान में औद्योगिक निर्माण का कार्यक्रम नहीं चलाया गया।

अब अफगानिस्तान के बिगड़े हालात
अब जबकि दान देने वाली सरकारों ने देश के नए तालिबान शासकों को सहायता भुगतान बंद कर दिया है, तो काबुल सरकार के वित्त और शिक्षा मंत्रालयों के लिए काम करने वाली सलमा अलोकोज़ाई बताती हैं कि, अब अफगानिस्तान के पतन के अलावा कोई और रास्ता नहीं बचा हुआ है। उन्होंने वॉल स्ट्रीट जर्नल को बताया कि, "जब हमारे पास सहायता उपलब्ध थी, हम वेतन देने, बिजली खरीदने और अपनी राष्ट्रीय सेना को वित्तपोषित करने में सक्षम थे, उस वक्त निजी क्षेत्र ठीक काम कर रहा था। लेकिन, अब देश में कोई निजी क्षेत्र नहीं है, और कोई सहायता राशि नहीं है।' विदेशों में रखी केंद्रीय बैंक की अरबों डॉलर की संपत्ति भी फ्रीज है, जिसने बैंकिंग प्रणाली पर और दबाव डाला है और अर्थव्यवस्था को दबा दिया है। 'सिगार' की रिपोर्ट के मुकाबिक, अमेरिकी कांग्रेस ने अफगानिस्तान में खर्च होने वाले पैसों को लेकर एक निगरामी टीम का गठन किया था, उसने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि, अफगानिस्तान में एक गलती के बाद दूसरी गलती की गई है।

अफगानिस्तान कृषि क्षेत्र का भी बुरा हाल
हालांकि, अमेरिका ने अफगानिस्तान के किसानों को अफीम की खेती के अलावा दूसरी फसलों के उत्पादन के लिए काफी प्रोत्साहित किया था और कई किसानों ने दूसरे फसल उगाने भी शुरू किए, लेकिन अब एक बार फिर से किसानों के पास अफीम पैदावार के अलावा कोई और विकल्प नहीं है। अमेरिका ने अफगानिस्तान में खेतों की सिंचाई के लिए नहरों का भी निर्माण किया था और भारत ने बांध भी बनाए, लेकिन कई रिपोर्टों में कहा गया है कि उसका इस्तेमाल से अफीम के ही उत्पादन में वृद्धि हुई है।

अफगानिस्तान को समझ नहीं पाया अमेरिका
पिछले महीने पेश की गई अंतिम रिपोर्ट में कहा गया है कि अमेरिका के अधिकारी असल में अफगानिस्तान को समझ ही नहीं पाए, लिहाजा उन्होंने अफगानिस्तान को लेकर जो भी प्लानिंग की, वो फेल होता गया। मिसाल के तौर पर अमेरिका ने अफगानिस्तान में सोयाबीन की खेती में किसानों को प्रोत्साहित करने से लेकर तमाम सुविधाएं मुहैया कराने में करीब 2 अरब डॉलर खर्च किए, लेकिन बाद में ब्रिटिश रिपोर्ट में कहा गया, कि अफगानिस्तान की भौगोलिक परिस्थिति सोयाबीन की खेती के लिए अनुकूल ही नहीं है। 'सिगार' की रिपोर्ट में कहा गया है कि, "अमेरिकी सरकार द्वारा अफगानिस्तान की सामाजिक और राजनीतिक वातावरण को गलत तरीके से पढ़ा गया, जिसका नुकसान अमेरिका को हार के तौर पर अफगानिस्तान में बर्बादी के तौर पर देखने को मिल रहा है।
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