2016 की तैयारियों में व्यस्त जिंदल, बोले भारतीय-अमेरिकी नहीं सिर्फ अमेरिकी हैं!
लुइसियाना। अमेरिका में वर्ष 2016 में राष्ट्रपति चुनाव होने वाले हैं और लगता है कि लुइसियाना के गर्वनर बॉबी जिंदल ने अभी से इसकी तैयारियां शुरू कर दी हैं। उनका ताजा बयान इसकी एक मिसाल भर है। बॉबी ने अपने एक भाषण में कहा है कि वह सिर्फ अमेरिकी हैं और टुकड़ों में बनती पहचान में बिल्कुल भी यकीन नहीं रखते हैं।
अमेरिका ने पूरा किया सपना
बॉबी ने बताया कि करीब चार दशक पहले उनके माता-पिता भारत से अमेरिका में अमेरिकी बनने के लिए आए थे, भारतीय-अमेरिकी बनने नहीं। बॉबी ने अपने इंडियन बैकग्राउंड के बारे में जिक्र जरूर किया। उन्होंने इस दौरान कहा कि भारत से आए प्रवासी भी अमेरिका की सभ्यता के साथ घुलमिल जाएं।
जिंदल ने एक तैयार भाषण में कहा, मेरे माता-पिता अमेरिका एक सपने की खोज में आए थे और उन्होंने उसे पूरा किया। उनके लिए अमेरिका सिर्फ एक जगह नहीं थी, वह एक विचार था। मेरे माता-पिता ने मेरे भाई और मुझसे कहा था कि हम अमेरिका, अमेरिकी बनने आए हैं। भारतीय-अमेरिकी नहीं, सिर्फ अमेरिकी।
जिंदल अगले सप्ताह यह भाषण देंगे लेकिन उसके कुछ अंश ही फिलहाल जारी किए गए हैं। जिंदल किसी अमेरिकी राज्य के पहले भारतीय-अमेरिकी गवर्नर हैं और वह सोमवार को लंदन में हेनरी जैकसन सोसाइटी को संबोधित करेंगे।
भारत से भी प्यार है
जिंदल के तैयार भाषण की टिप्पणियां जारी करते हुए उनके कार्यालय ने कहा कि लुईसियाना के गवर्नर देशों को मजबूत करने और स्वतंत्रता की सुरक्षा के लिए प्रवासियों से स्थानीय सभ्यता से घुलमिल जाने की अपील करेंगे।
भारतीय-अमेरिकी के रूप में पुकारा जाना पसंद न करने की वजह बताते हुए जिंदल ने कहा, यदि हम भारतीय ही रहना चाहते थे तो हमें भारत में ही रहना चाहिए था। ऐसा नहीं है कि उन्हें भारत से होने की शर्मिंदगी है, उन्हें भारत से प्यार है। लेकिन वे अमेरिका आए क्योंकि वे बड़े अवसर और आजादी को खोज रहे थे।
उन्होंने कहा, मैं टुकड़ों में अमेरिकी होने पर यकीन नहीं करता। यह विचार मुझे कुछ परेशानी में डाल देता है। वे भारतीय-अमेरिकी, आइरिश-अमेरिकी, अफ्रीकी-अमेरिकी, इतालवी-अमेरिकी, मेक्सिकन-अमेरिकी आदि कहकर पुकारते हैं। एक बात साफ कर दूं कि मैं यह नहीं कह रहा कि लोगों को उनकी सांस्कृतिक विरासत के प्रति शर्मिंदा होना चाहिए।
अमेरिका एक संप्रभु देश
उन्होंने कहा, मैं स्पष्ट तौर पर यह कह रहा हूं कि देशों के लिए यह पूरी तरह से तर्कसंगत है, कि वे अपने देश में लोगों को आने की अनुमति देते हुए यह भेद कर सकें कि आने वाले लोग इस देश की संस्कृति को अपनाना चाहते हैं या इस देश की संस्कृति को नष्ट करना या इसके भीतर ही एक अलग संस्कृति की स्थापना करना चाहते हैं।
उन्होंने कहा, एक संप्रभु देश के लिए यह पूरी तरह तर्कसंगत और यहां तक कि जरूरी है कि वह यह भेद कर सके कि कौन लोग उनसे जुड़ना चाहते हैं और कौन उन्हें बांटना चाहते हैं।
आव्रजन की नीति का किसी व्यक्ति की त्वचा के रंग से कोई मतलब नहीं होना चाहिए। मुझे लगता है कि जो लोग त्वचा के रंग के बारे में चिंता करते हैं, वे सबसे कम समझ वाले होते हैं। मेरा उससे कोई वास्ता नहीं है।