
धरती से निकलकर चांद पर लड़ने पहुंचे अमेरिका और चीन, चंद्रमा पर US के NATO से भड़का ड्रैगन?
नई दिल्ली, जुलाई 05: पृथ्वी पर वर्चस्व की जंग में उलझे अमेरिका और चीन ने पूरी दुनिया को परेशान कर रखा है, लेकिन इनकी लड़ाई अब धरती से निकलकर चांद तक जा पहुंची है। चांद को लेकर अमेरिका और चीन के बीच की ये लड़ाई उस वक्त शुरू हुई है, जब अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा के चीफ ने चीन पर आरोप लगाया, कि चीन की कोशिश चंद्रमा पर कब्जा करने की है। इसके बाद चीन और अमेरिका के बीच जुबानी जंग शुरू हो गई है।

चांद पर अमेरिका बनाम चीन
दरअसल, अमेरिका और चीन के बीच का ये विवाद उस वक्त शुरू हुआ, जब नासा के शीर्ष अधिकारी बिल नेल्सन ने कहा कि, चीन पूरे चांद पर अपनी दावेदारी ठोक सकता है और यह दावा कर सकता है कि यह उसका सैन्य स्पेस ऑपरेशन का हिस्सा है, जिसके बाद चीन की तरफ से जोरदार प्रतिक्रिया दी गई है और चीन के राजनयिक ने कहा कि, बीजिंग का प्लान अपने पड़ोसी देशों की मदद करना है, कि चांद को लेकर उनका मिशन आगे बढ़े। चीन के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता झाओ लिजियन ने सोमवार को नासा के प्रशासक बिल नेल्सन पर दोनों देशों के बीच, अंतरिक्ष प्रतियोगिता के बारे में एक जर्मन टैब्लॉइड में कथित टिप्पणियों के जवाब में "अपने दांतों के माध्यम से" झूठ बोलने का आरोप लगाया है। वहीं, कई एक्सपर्ट्स का कहना है कि, अमेरिका के 'मिशन मून- आर्टिमिश' से चीन बौखलाया हुआ है और वो किसी भी हाल में नासा से आगे निकलना चाहता है और इसीलिए उसने रूस के साथ समझौता भी किया है और इसी वजह से अमेरिका और चीन के बीच चांद को लेकर लड़ाई शुरू हो गई है।

नासा प्रमुख ने क्या लगाए थे आरोप
जर्मन टैब्लॉइड ने अपनी रिपोर्ट में अमेरिकी स्पेस एजेंसी नासा चीफ के हवाले से कहा है कि, दुनिया को चिंतित होना चाहिए, कि चीन चंद्रमा पर दावा कर सकता है और अन्य देशों को इसकी खोज करने से रोक सकता है। इंटरव्यू में उन्होंने चीन पर अन्य देशों की टेक्नोलॉजी को चोरी करने का भी आरोप लगाया और कहा कि बीजिंग इस प्लान पर काम कर रहा है, कि अन्य देशों द्वारा लॉन्च किए गए उपग्रहों को कैसे नष्ट किया जाए। चीनी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता झाओ लिजियन ने दैनिक संवाददाता सम्मेलन में कहा कि, "यह पहली बार नहीं है जब नासा के प्रमुख ने अपने 'दांतों से झूठ' बोला और चीन को बदनाम करने की कोशिश की'। उन्होंने कहा कि, "हाल के वर्षों में अमेरिका ने खुले तौर पर अंतरिक्ष को युद्ध से लड़ने वाले डोमेन के रूप में परिभाषित किया है।" वहीं, हिंदुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक, नासा ने टिप्पणी के अनुरोध का जवाब नहीं दिया।

चीन ने कई देशों को दिया है ऑफर
कंबोडिया, लाओस, म्यांमार, थाईलैंड और वियतनाम के अधिकारियों के साथ सोमवार को एक बैठक के दौरान, चीनी विदेश मंत्री वांग यी ने दक्षिण पूर्व एशियाई देशों से 'अंतर्राष्ट्रीय चंद्र अनुसंधान स्टेशन' मिशन में शामिल होने का आह्वान किया है, जिसको लेकर नासा चीफ ने चिंता जताई है और कहा कि, इस मिशन के जरिए चीन आगे जाकर पूरे चांद पर अपना अधिकार होने की बात कर सकता है। आपको बता दें कि, चीन की इस परियोजना को रूस का समर्थन हासिल है और चीन काफी आक्रामकता के साथ अपने इस मिशन की दिशा में काम कर रहा है। आपको बता दें, चीन के स्पेस प्रोग्राम की तुलना में अमेरिकी स्पेस प्रोग्राम काफी ज्यादा आगे है, लिहाजा चीन ने हाल ही में रूस के साथ स्पेस प्रोग्राम समझौता किया है, जिसके तहत दोनों देशों की योजना है कि वह चांद पर एक बेस बनाएंगे। चीन-रूस की योजना है कि 2036 तक दोनों देशों का अपना एक बेस होना चाहिए जहां पर दोनों देशों के नागरिक रहेंगे। ऐसे में उस वक्त सीमा के बंटवारे का सवाल खड़ा होगा। 2036 के बाद चीन-रूस की योजना है, कि चांद पर दोनों देशों के एस्ट्रोनॉट भी रहेंगे। यानि, चंद्रमा पर सीमा रेखा बनना तय होगा और जो देश सबसे पहले चांद पर पहुंचेंगे, उनका दावा सबसे ज्यादा होगा।

अमेरिकी अभियान को मिल रही कामयाबी
दरअसल, चीन अपने अभियान को लेकर इसलिए भी काफी ज्यादा आक्रामक है, क्योंकि अमेरिका के मिशन मून और मिशन मंगल को यूरोप के अलावा कई और छोटे देशों का समर्थन मिला है, लेकिन चूंकी दुनिया के सभी देश चीन की आक्रामकता और उसकी हड़प नीति से वाकिफ हैं, लिहाजा रूस के अलावा चीन के मिशन मून को किसी भी दूसरे देश का समर्थन नहीं मिला है, जिससे चीन और भी ज्यादा गुस्से में है। अमेरिका के 'आर्टिमिटिस समझौते' के साथ कनाडा, इटली और यूके के साथ-साथ ब्राजील, मैक्सिको और यूक्रेन जैसे नाटो सहयोगी शामिल हैं, वहीं पिछले महीने, फ्रांस आर्टेमिस क्लब में हस्ताक्षर करने वाला 20 वां देश बन गया है, जबकि सिंगापुर और कोलंबिया जैसे देशों ने भी हस्ताक्षर कर दिए हैं, जिससे ये लड़ाई एकतरफा होती जा रही है, जिसने चीन के गुस्से को और भी भड़का दिया है।

अमेरिकी समझौते से भड़का चीन
चीन ने 'आर्टिमिटिस समझौते' को पृथ्वी के बाहर अमेरिका द्वारा बनाया गया नाटो बताया है और उसकी आलोचना की है। हाल ही में कम्युनिस्ट पार्टी समर्थित ग्लोबल टाइम्स अखबार में प्रकाशित 3 जुलाई की राय में कहा गया है कि, 'आर्टेमिस समझौते के रूप में जानी जाने वाली अमेरिकी चंद्र अन्वेषण परियोजना के विपरीत, जो विशेषज्ञों का मानना है कि अंतरिक्ष-आधारित नाटो की नकल करने के लिए इसकी विशिष्ट प्रकृति का पता चलता है।" लेख में आगे कहा गया है कि, चीन और रूस की साझेदारी सभी के लिए उन्नति के रास्ते पर लाने पर जोर देती है, जिसके पास एक निर्माण की दृष्टि है और जो मानव जाति के साझा भविष्य के लिए काम करने का उद्येश्य रखता है'। ग्लोबल टाइम्स के इस लेख को चीन की बौखलाहट कहा गया।

क्या चांद को लेकर कोई नियम हैं?
पृथ्वी के बाहर ऑउटर स्पेस के लिए अंतर्राष्ट्रीय नियम तो हैं, लेकिन ये कहावत भी काफी पुरानी है, कि जिसकी लाटी होती है, उसी की भैंस भी होती है। इंटरनेशनल स्पेस लॉ के अनुसार चांद पर कोई भी देश अपना उपनिवेश स्थापित नहीं कर सकता है। इसके साथ ही, दुनिया का कोई भी देश चांद के किसी भी हिस्से पर अपना दावा नहीं कर सकता है। लेकिन चांद पर अमेरिका और चीन की प्रतिस्पर्धा चल रही है। दोनों देशों के बीच मिशन चांद प्रतिष्ठा का विषय बना हुआ है। चांद पर खनन को लेकर आने वाले समय में दोनों देशों के बीच टकराव की स्थिति पैदा हो सकती है। संभव है कि आने वाले समय में दोनों देशों के बीच इसको लेकर टकराव देखने को मिले। लेकिन यहां गौर करने वाली बात यह है कि चांद को लेकर सिर्फ अमेरिका और चीन के बीच ही टकराव नहीं चल रहा है।
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