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चीन और अमरीका के बीच 'अघोषित शीत युद्ध'

ट्रंप प्रशासन चीनी तकनीकी कंपनियों के अमरीका में दूरसंचार उपकरण बेचने पर रोक लगाने पर विचार कर रहा है.

समाचार एजेंसी रॉयटर्स के अनुसार इस आदेश का असर चीन की दो बड़ी तकनीकी कंपनियों हुवावे और ज़ेडटीई पर होगा.

हाल के दिनों में अमरीकी राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप ने सुरक्षा कारणों के मद्देनज़र इन दो कंपनियों के 

By BBC News हिन्दी
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अमरीका-चीन
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अमरीका-चीन

ट्रंप प्रशासन चीनी तकनीकी कंपनियों के अमरीका में दूरसंचार उपकरण बेचने पर रोक लगाने पर विचार कर रहा है.

समाचार एजेंसी रॉयटर्स के अनुसार इस आदेश का असर चीन की दो बड़ी तकनीकी कंपनियों हुवावे और ज़ेडटीई पर होगा.

हाल के दिनों में अमरीकी राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप ने सुरक्षा कारणों के मद्देनज़र इन दो कंपनियों के अमरीका में व्यवसाय पर रोक लगाने के लिए भी कदम उठाए हैं.

ट्रंप ने अमरीकी कंपनियों से अपील की है कि वो हुवावे और ज़ेडटीई का सामान ना बेचें क्योंकि ये अमरीकी नागरिकों की जासूसी कर सकते हैं.



अमरीकी दलील

अमरीका इन कंपनियों को चीनी सरकार के बेहद क़रीब बताता है.

अमरीकी सैन्य मुख्यालय पेंटागन ने सुरक्षा कारणों के तहत अमरीकी सैन्य अड्डों पर हुवावे और ज़ेडटीई के फ़ोन ना ख़रीदने का आदेश दिया है.

वॉशिंगटन पोस्ट के अनुसार, पेंटागन के प्रवक्ता मेजर डेव ईस्टबर्न का कहना है कि 'इनके बनाए उपकरण विभाग के कर्मचारियों, जानकारी और उद्देश्य के लिए ख़तरा पैदा कर सकते हैं जो स्वीकार्य नहीं है.'

और तो और पेंटागन ने सैन्य ठकानों पर मौजूद दोनों कंपनियों के सभी फ़ोन और वायरलेस उपकरण को भी नवहां से बाहर निकालने के आदेश दिए हैं.

हुवावे और ज़ेडटीई पर आरोप

हुवावे पर आरोप है कि 2010 में कंपनी के एक प्रमुख ईरानी सहयोगी ने देश के सबसे बड़े मोबाइल फ़ोन ऑपरेटर को कम से कम 17 लाख डॉलर के हेवलेट-पैकार्ड के प्रतिबंधित कंप्यूटर उपकरण बेचने की पेशकश कर उस पर अमरीका के लगाए व्यापार प्रतिबंधों से बचने में मदद करने की कोशिश की थी.

अमरीकी न्याय मंत्रालय इस मामले की जांच कर रही है.

इसी महीने न्याय विभाग ने कथित तौर पर ईरान के साथ व्यापार करने वाली इकाइयों को चलाने वाले कर्मचारियों के ख़िलाफ़ कदम ना उठाने और मामले पर पर्दा डालने की कोशिश के लिए ज़ेडटीई पर भी प्रतिबंध लगा दिए थे.

अमरीकी कंपनियों के ज़ेडटीई को अपना सामान बेचने पर भी सात साल की रोक लगा दी गई है.

चीन की कंपनी

'द हैकर न्यूज़' में छपी एक रिपोर्ट के अनुसार चीन की कंपनी शांघाई ऐड ऐप्स एक ऐसा सॉफ़्टवेयर बनाती है जो फ़ोन में सेंधमारी कर हर 72 घंटों में फ़ोन की अहम जानकारी चीन के सर्वर तक पहुंचाती है.

ये कंपनी एंड्रॉएड फ़ोन के लिए ये सॉफ्टवेयर बनाती है और इसे हुवावे और ज़ेडटीई को देती है.

अमरीकी अधिकारियों के अनुसार ये सॉफ्टवेयर जान-बूझकर बनाया गया है.

हालांकि, अब तक ये स्पष्ट नहीं है कि ये जानकरी विज्ञापनों के लिए एकत्र किया जाता है या फिर सरकार इसे जासूसी के लिए इकट्ठा करती है.

क्या इन चीनी कंपनियों से डरता है अमरीका?

हुवावे और ज़ेडटीई से अमरीका का डर आज का नहीं है.

साल 2011 में अमरीकी कांग्रेस ने अमरीका में व्यवसाय कर रही चीनी कंपनियों से देश की सुरक्षा को ख़तरा है या नहीं, इसके संबंध में जांच शुरू की.

जांच के नतीजे 2012 में एक रिपोर्ट में बताए गए थे जिसमें इन दोनों कंपनियों को 'अमरीका की सुरक्षा के लिए राष्ट्रीय ख़तरा' बताया गया.

रिपोर्ट के अनुसार ये कंपनियों के जासूसी उपकरणों के ज़रिए चीन को अमरीकी संचार नेटवर्क का नियंत्रण हासिल हो सकता है.

इस रिपोर्ट के अनुसार, "युद्ध जैसी संकट की स्थिति में अमरीका में आने वाले चीनी दूरसंचार पुर्ज़ों के ज़रिए चीन अमरीका की बेहद अहम राष्ट्रीय सुरक्षा व्यवस्था को बंद कर सकता है. अमरीकी पावर ग्रिड और आर्थिक नेटवर्क (बैंक और शेयर मार्केट) में अगर ये पुर्ज़े पहुंचे तो ये चीन के लिए हथियार साबित हो सकते हैं."

साइबर हमला

डिजिटल दुनिया में जहां एक बटन से देश की लगभग अहम सेवाएं जुड़ी हों, वहां इस तरह का डर लाज़मी लगता है.

तकनीकी सेवाएं मुहैया कराने वाली कंपनी केपजेमीनी में साइबर सुरक्षा सलाहकार खुआन कार्लोस पासकल के अनुसार ईरान पर स्टुक्सनेट हमला और जनवरी 2016 में यूक्रेन की बिजली व्यवस्था पर साइबर हमला इस बात के सबूत हैं कि साइबर हथियारों का इस्तेमाल किसी देश की व्यवस्था को बिगाड़ने के लिए किया जा सकता है.

2013 में ब्लूमबर्ग में छपी एक रिपोर्ट के अनुसार अमरीकी सरकार के सेवा देने वाली ब्रितानी डिफेंस कॉनट्रेक्टर कीनेटक्यू के सर्वर और कंप्यूटरों में सेंध लगा कर 13 लाख पन्नों का अहम डेटा की चोरी की गई थी.

साल 2007 से लेकर 2010 तक हुई इस चोरी का आरोप चीन पर लगाया गया.

साइबर सिक्योरिटी कंपनी मैनडियांट के अनुसार इन हमलों का आरोप चीन की पीपल्स लिबरेशन आर्मी की युनिट 61398 पर लगाया गया था.

हुवावे के सर्वर में सेंध लगा चुका है अमरीका

अमरीका के डर की वजह इस बात से भी स्पष्ट है कि उसने खुद सेंधमारी करने में सफलता पाई है और वो इस बात को जानता है कि ऐसा हो पाना बिल्कुल संभव है.

न्यूयॉर्क टाइम्स में मार्च 2014 में छपी एक रिपोर्ट के अनुसार अमरीकी विसलब्लोअर एडवर्ड स्नोडेन के साझा किए दस्तावज़ों की मानें तो अमरीका की राष्ट्रीय सुरक्षा एजेंसी ने हुवावे के शेनज़ेन स्थित मुख्यालय के सर्वर में सेंधमारी की थी.

2010 के एक दस्तावेज़ के अनुसार 'शॉटजायट' नाम के इस अभियान का उद्देश्य था हुवावे और चीन की पीपल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) के बीच के नाते के बारे में जानकारी जुटाना.

आईईईई सपेक्ट्रम के अनुसार अमरीका ने हुवावे के संस्थापक रेन ज़ेंगफ़ेई (रेज़ेंगफ़ेई इससे पहले पीएलए में इंजीनियर के तौर पर काम कर चुके हैं) के ईमेल की जासूसी भी की. साथ ही इसके ज़रिए जिन देशों में अमरीका अपने डिवाइस नहीं बेच पाता था वहां हुवावे के डिवाइस में सेंधमारी कर के कंप्यूटर और टेलीफ़ोन नेटवर्क की जासूसी करने की योजना भी थी.

चीन के पर कतरने की कोशिश

2008 में हुवावे और बेन कैपिटल मिल कर थ्रीकॉम कॉर्प को खरीदने की योजना बना रहे थे. ये 2.2 अरब डॉलर का सौदा था. थ्रीकॉम पेंटागन को कंप्यूटर नेटवर्क सुरक्षा इक्वीपमेंट की सप्लाई करता था और इस कारण इस सौदे को ख़तरनाक माना गया और ये सौदा नहीं हो सका.

सुरक्षा संबंधी चिंताओं के मद्देनज़र साल 2010 में स्प्रिंट नेक्स्टेल ने अरबों डॉलर का देने के मामले में ज़ेडटीई और हुवावे को शामिल नहीं किया. अन्य कंपनियों के मुकाबले इन दोनों चीनी कंपनियों की बोली कम थी लेकिन फिर भी इन्हें ये कॉ़न्ट्रैक्ट नहीं मिल सका.

इस साल की शुरुआत में अमरीकी सरकार ने एटीएंडटी कंपनी पर हुवावे के स्मार्टफ़ोन अमरीका में बेचने के सौदा आख़िरी घड़ी में रद्द करने का दवाब डाला था.

20 दिसंबर को अमरीकी सीनेट और हाउस इंटेलिजेंस कमिटी ने फेडेरल कम्यूनिकेशन कमीशन को एक पत्र लिखा था जिसमें ये आरोप लगाए गए थे कि हूआवेई के फ़ोन जासूसी कर सकते हैं.

हालांकि अमरीका के इस फ़ैसले के बाद हुवावे ने अपने फ़ोन मेट 10 प्रो को ख़ुद ही बेचने का फ़ैसला लिया. हुवावे के वॉशिगटन स्थित प्रवक्ता विलिय़म प्लमर ने कहा था कि कि "निजता बनाए रखना और सुरक्षा कंपनी की प्राथमिकता है."

सबसे ताकतवर बनने की लड़ाई

हाल के वक्त में जहां अमरीका और चीन के बीच ताकतवर बनने को लेकर खींचतान जारी है. लेकिन विश्लेषकों का मानना है कि आने वाले वक्त में तकनीक की ताकत ये तय करेगी कि कौन सा देश राजनीतिक और आर्थिक रूप से दूसरे से आगे है.

एक तरफ अमरीका ने हुवावे और ज़ेड़टीई को अमरीका में सामान बेचने से रोक तो चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने इसके उत्तर में चीनी कंपनियों के अमरीका से डिवाइसेस के पुर्जे खरीदने पर प्रतिबंध लगा दिया. साथ ही उन्होंने कहा कि वो तकनीकी रिसर्च के कम में और पैसे लगाएंगे.

पूर्व ऑस्ट्रेलियाई प्रधानमंत्री केविन रुड ने सीएनबीसी से बातचीत में इसे "एक अघोषित शीतयुद्ध" बताया जो कि तकनीक के क्षेत्र में लड़ा जा रहा है. उनका कहना था कि दुनिया की बड़ी ताकतों के लिए उनकी ताकत के केंद्र तकनीक है.

रुड का कहना था कि तकनीक के कारण पैदा होने वाला ख़तरा अलुमीनियम या स्टील पर लगाए गए प्रतिबंधों से कहीं अधिक गंभीर है.

सीएनएन की एक रिपोर्ट के मुताबिक़ आने वाले समय में अमरीका और चीन दोनों ही एक दूसरे की तकनीक के लिए अपने बाज़ार बंद कर देंगे और ऐसे में एक तरह की चीज़ को दो वर्जन उपलब्ध होंगे, जैसे अमेज़न और अलीबाबा, गूगल और बायडू.

और ऐसे में दोनों देशों के बीच होड़ होगी एशिया, अफ्रीका, यूरोप और लातिन अमरीका के बाज़ारों में अपना प्रभुत्व कायम करने की.

BBC Hindi
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English summary
Undeclared Cold War between China and USA
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