भारत को फिर झेलना पड़ सकता है जान-माल का नुकसान, 2022 पर यूनाइटेड नेशंस की खट्टी-मिठी रिपोर्ट
नई दिल्ली, जनवरी 14: यूनाइटेड नेशंस ने भारतीय अर्थव्यवस्था को लेकर कुछ खट्टी और कुछ मिठी खबरें दी हैं और यूनाइटेड नेशंस की रिपोर्ट में कहा गया है कि, कोरोना वायरस के ओमिक्रॉन वेरिएंट की वजह से भारतीय अर्थव्यवस्था को फिर से बड़ा झटका लग सकता है और ओमिक्रॉन वेरिएंट देश की अर्थव्यवस्था में आ रहे सुधार को एक बार फिर से बाधित कर सकता है। इसके साथ ही यूनाइटेड नेशंस ने कहा है कि, पिछले साल कोरोना वायरस से अप्रैल और मई के महीने में करीब 2 लाख 40 हजार लोग मारे गये थे और कुछ ऐसा ही हाल एक बार फिर से भारत में हो सकता है।

भारत के लिए यूनाइटेड नेशंस का पूर्वानुमान
भारत के लिए यूनाइटेड नेशंस ने पूर्वानुमान जारी किया है, जिसे भारत के लिहाज से अच्छा नहीं कहा जाएगा। यूनाइटेड नेशंस ने भारत में कोरोना वायरस के ओमिक्रॉन मरीजों की बढ़ती संख्या को लेकर गहरी चिंता जताई है और कहा है कि, पिछले साल की ही तरह एक बार फिर से भारत को जान माल का गहरा नुकसान हो सकता है। हालांकि, तेज रफ्तार वैक्सीनेशन की वजह से भारत की अर्थव्यवस्था में तेजी से सुधार हो रहा था, लेकिन उसके पीछे देश में प्रतिबंधों का काफी कम होना और सरकार की राजकोषीय और मौद्रिक नीति थी, लेकिन अगर ओमिक्रॉन की वजह से फिर से प्रतिबंध लगते हैं, तो फिर भारत को इस साल भी गहरा झटका लग सकता है।

विकास की रफ्तार पड़ी धीमी
यूएन रिपोर्ट में कहा गया है कि, पिछले साल यानि 2021 में भारत की अर्थव्यवस्था में 9 प्रतिशत का विस्तार देखा गया, लेकिन इस साल एक बार फिर से भारत की अर्थव्यवस्था का विकास दर घट गया है और इसके 6.7 प्रतिशत पर आने की संभावना है। यूनाइटेड नेशंस ने अनुमान लगाया है कि, भारत के निर्यात में इस साल मजबूत वृद्धि दर्ज की जा सकती है और पब्लिक इन्वेस्टमेंट में भी मजबूती देखी जा सकती है, हालांकि, तेल की ऊंची कीमतों और कोयले की कमी से निकट भविष्य में आर्थिक गतिविधियों पर ब्रेक लग सकता है। वहीं, रिपोर्ट में ये भी कहा गया है कि, समावेशी विकास का समर्थन करने की वजह से सरकार के लिए निजी निवेश को प्रोत्साहित करना थोड़ा मुश्किल होगा।

भारत का लक्ष्य 2030
संयुक्त राष्ट्र के एक बयान में कहा गया है, "भारत ने साल 2030 तक कोयला और कार्बन उत्सर्जन करने वाले ऊर्जा स्रोतों को 50 प्रतिशत और साल 2070 तक कार्बन उत्सर्जन करने वाले ऊर्जा स्रोतों को शून्य तक ले जाने का लक्ष्य रखा है, जो भारत सरकार द्वारा उठाया गया बेहद महत्वपूर्ण कदम है। हालांकि, दक्षिण एशिया में अर्थव्यवस्था में सुधार को लेकर यूनाइटेड नेशंस उत्साहित नजर नहीं आ रहा है और यूएन का कहा है कि, दक्षिण एशिया में अर्थव्यवस्था के विकास में कई बाधाएं हैं और रोजगार में वृद्धि करना, गरीबी और असमानता से निपटने की दिशा में कई बड़ी बाधाएं हैं।

दक्षिण एशिया के विकास में परेशानियां
इसके साथ ही यूनाइटेड नेशंस ने कहा है कि, कोरोना वायरस संक्रमण का ग्राफ फिर से बढ़ने की वजह से दक्षिण एशियाई देश एक बार फिर से मुश्किलों में घिर गये हैं और अब इन देशों को साल 2030 तक अपने लक्ष्यों को पूरा करने में कई परेशानियों को सामना करना पड़ेगा। इसके साथ ही यूनाइटेड नेशंस ने कहा है कि, इन देशों में टीकाकरण की रफ्तार उम्मीद से काफी कम है, लिहाजा कोरोना वायरस के नये नये वेरिएंट्स सामने आ रहे हैं और वैक्सीन की आपूर्ति नहीं होने से कई देशों की विकास की रफ्तार पर गंभीर असर पड़ा है। रिपोर्ट में कहा गया है कि, दिसंबर 2021 तक बांग्लादेश, पाकिस्तान और नेपाल की सिर्फ 26 प्रतिशत आबादी ही वैक्सीनेट हो पाई है, जबकि भूटान, मालदीव और श्रीलंका जैसे देशों में 64 फीसदी वैक्सीनेशन का काम पूरा हो चुका है।

भारतीय अर्थव्यवस्था को लेकर बड़ी बातें
यूएन रिपोर्ट में कहा गया है कि, वैक्सीनेशन में तेजी और कम प्रतिबंधों की वजह से भारतीय अर्थव्यवस्था फिलहाल मजबूत रास्ते पर है और साल 2022 में भारतीय अर्थव्यवस्था का ग्रोथ रेट 6.7 प्रतिशत रहने का अनुमान है। हालांकि, इसके बाद भी साउथ एशिया में भारत ही एकमात्र देश है, जिसका ग्रोथ रेट सबसे ज्यादा होगा। इस रिपोर्ट में ये भी कहा गया है कि, साल 2008-09 में वैश्विक आर्थिक संकट के मुकाबले अब भारत की स्थिति काफी मजबूत है और इस रिपोर्ट में ये भी कहा गया है कि, आने वाले वक्त में भारत में गरीबी कम हो सकती है।
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