भारत-इंग्लैंड संबंध की किस्मत तय
भारत और इंग्लैंड के बीच संबंध धीरे-धीरे उस दिशा में बढ़ रहे हैं जो परस्पर लाभकारी हो और जो दोनों देशों को अवसरों का फायदा उठाने के लिए तय खांचों से अलग सोच रखता हो। इंडिया इंक के संस्थापक और सीईओ मनोज यही मानते हैं। लंदन या दिल्ली में किसी विदेश नीति के जानकार से भारत-इंग्लैंड संबंध पर बात करें तो अपेक्षित उत्तर यही होगा कि दोनों देशों के संबंधों में गर्मजोशी है और वे एक-दूसरे के करीब हैं। मगर, कुरेदने पर यही विशेषज्ञ शब्द खोजने लग जाते हैं।
सच्चाई ये है कि दोनों देश पीढ़ियों से पुराने पारिवारिक मित्र की तरह हैं जो हर मामले में नजदीक होते हैं लेकिन जरूरत के वक्त कभी भी एक-दूसरे की पहली पसंद नहीं होते। इस दूरी की ऐतिहासिक वजह भी हैं।
लेकिन सबसे महत्वपूर्ण ये है कि क्यों न वैश्विक ब्रिटेन और वैश्विक भारत ऐसी दीर्घकालिक साझीदारी में जुड़ें जो तेजी से बंट रही दुनिया का नेतृत्व करे। दुनिया की जरूरत ये है कि वैश्वीकरण, व्यापार, खुलापन और सहयोग का ऐया युग शुरू हो जो विश्व की समृद्धि और आर्थिक विस्तार की आवश्यकता को पूरा करे।
मुझे कोई भ्रम नहीं है कि इसके लिए लम्बे और दुर्गम रास्ते पर चलना होगा। दुख की बात ये है कि भारत-ब्रिटेन संबंध एक-दूसरे की भावनाओं को समझने की क्षमता रखते हैं। इसके बावजूद यह संबंध लेन-देन में उलझ कर रह गया है। कोई भी पक्ष इससे ऊपर उठकर नहीं देखता। लंदन की बात करें, तो उसके लिए इस संबंध का मतलब अपने माल के लिए भारत में अधिक से अधिक पहुंच बनाना होता है। नयी दिल्ली की बात करें, तो अपने छात्रों और प्रोफेशनल्स के लिए आसान प्रवेश सुनिश्चित करने तक इसकी सोच होती है। दुनिया की पांचवीं और छठी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था इन दोनों लक्ष्यों को आसानी से हासिल कर सकती है।
भारतीयों के लिए इंग्लैंड छुट्टियां बिताने का पसंदीदा स्थान बन चुका है। ब्रेक्ज़िट यानी यूरोप से ब्रिटेन के बाहर निकलने का दौर। ब्रेक्जिट की बाधा उत्पन्न होने तक भारतीय कारोबारी घरानों ने यूके का इस्तेमाल केवल एक समुद्र तट के रूप में किया, जहां से वह बाकी यूरोप तक आसानी से पहुंच सके। दोनों ओर के मशहूर और गैर मशहूर लोगों ने पूंजी का विस्तार किया- न सिर्फ धन के रूप में बल्कि प्रयासों और व्यक्तिगत सम्पर्क के जरिए भी। यह सुनिश्चित करने की जरूरत है कि दोनों देशों के नेता उस नज़रिए को न भूलें जो भारत-ब्रिटेन के द्विपक्षीय संबंध को अगले स्तर तक ले जाने की क्षमता रखते हैं।
कॉमनवेल्थ
एक छोटी शुरूआत हुई है। भारत और ब्रिटेन सिद्धांत रूप में सहमत हुए हैं कि वे कॉमनवेल्थ को नये सिरे से देखेंगे और इसे पुनर्जीवित करेंगे। कॉमनवेल्थ जिसमें ब्रिटेन के पूर्व उपनिवेश रहे 53 देश हैं और जिन्हें 21वीं सदी के आधुनिक वैश्विक संगठन में बदलना है जिसका विस्तार हर महाद्वीप में हो और जो मुक्त व्यापार और वैश्विक समृद्धि के अनुकूल हो।
ब्रिटेन-भारत सहयोग पुराना है और आजमाया हुआ है। यह तथाकथित साम्राज्य को अलग नज़रिए से देखने की क्षमता रखता है। दोनों देशों की राजनीतिक सोच एक-दूसरे से से संबद्ध रहे हैं।
मीडिया में जैसा कि मैंने इसी हफ्ते पहले भी कहा है, "ब्रेक्जिट को लेकर कई देशों को परेशानी हो रही है और ब्रिटेन को इससे जुड़े निराशा को दूर करना होगा। इसके बजाए भारत जैसे खास देशों के साथ साझा भविष्य के लिए कठिन परिश्रम करना होगा। गहरे और रणनीतिक स्तर पर ब्रिटेन से जुड़ने के लिए भारत के लिए यह एक अवसर है। अगर दोनों देश इस दिशा में बढ़ें, तो दोनों के लिए ही यह जीत वाली 'विन-विन' स्थिति होगी।"
केवल दो देश ही नहीं! पर्दे के पीछे कई हस्तियां हैं, कई लोग हैं जो कठिन मेहनत कर रहे हैं ताकि दोनों देशों के लिए परस्पर लाभदायक सम्भावनाओं से भरपूर नतीजा निकल सके।
एक जैसे मूल्य, समान कानूनी व्यवस्था और एक-दूसरे से परिचित संस्थान ऐसी चीजें हैं जो भारत-ब्रिटेन संबंध को बेहतर उड़ान दे सकते हैं लेकिन इस संबंध को और अधिक मजबूत बनाने की जरूरत है।
सहयोग का साझा क्षेत्र
दो देश जहां सहयोग कर सकते हैं वह क्षेत्र बहुत स्पष्ट है। व्यापार, रक्षा तकनीक हस्तांतरण, लंदन में कोष बनाना, दोनों देशों के लोगों के बीच संबंध ऐसे क्षेत्र हैं जहां मिलकर काम किया जा सकता है।
इंग्लैंड के चौंकाने वाले ब्रेक्जिट फैसले के बाद थेरेसा मे की सरकार की जरूरत है कि वह केवल यूरोपीय यूनियन के साथ ही नहीं, बल्कि दूसरे कारोबारी सहयोगियो के साथ भी परस्पर लाभकारी व्यापार समझौतों की समीक्षा करें। इस समय ब्रिटिश सरकार को यह प्रदर्शित करने की जरूरत है कि बिना शर्तों में बंधे वह वैकल्पिक बाजार खोज सकती है और कारोबारी समझौते कर सकती है जो ब्रेक्जिट के कारण हुए नुकसान की भरपाई कर सके।
समीक्षकों का मानना है कि इन न्यूनतम जरूरतों को पूरा किए बिना श्रीमती मे ब्रूशेल्स के साथ बेहतर कारोबारी समझौता नहीं कर सकतीं। इसी वजह से यह ब्रिटेन और भारत के लिए उपयुक्त समय है कि वे नयी शुरूआत करने की घोषणा करें कि वे मौजूदा प्लेटफॉर्म को और मजबूत बनाने जा रहे हैं।
ग्लोबल फिनान्शियल पावर हाउस और तकनीकी लीडर के तौर पर ब्रिटेन भारत के साथ जुड़ सकता है जो दुनिया में सबसे तेज विकास करती अर्थव्यवस्था है और जहां करोड़ों उपभोक्ता हैं।
ग्लोबल ब्रिटेन पर मे की सोच ब्रेक्जिट के बाद अलग-थलग नहीं पड़नी चाहिए। भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की वैश्विकृत भारत वाली सोच से उनकी सोच काफी मिलती-जुलती है जो अंतरराष्ट्रीय आपूर्ति श्रृंखला और वैश्विक स्तर पर जगह बनाने को लेकर एक जैसे हैं।
जीवंत सेतु (Living Bridge)
प्रधानमंत्री मोदी ने भारतीय मूल के लोगों से आग्रह किया है कि वे ब्रिटेन के सार्वजनिक जीवन और सामाजिक विविधता में जीवंत सेतु बनें जो दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय संबंध को कारोबारी और लेन-देन की अनिवार्यता से परे हटकर मजबूत बनाए।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की पिछले महीने ब्रिटेन यात्रा से एक छोटी शुरुआत हुई है। दोनों देशों के प्राइवेट सेक्टर्स के बीच कई समझौतों के अलावा दोनों सरकार ने कई एमओयू पर साइन किए हैं जो आने वाले समय में रास्ते तैयार करेंगे। इनमें शामिल हैं स्वतंत्र, मुक्त, शांतिपूर्ण और सुरक्षित साइबर स्पेस, सूचनाओं के हस्तांतरण में सहयोग और प्रभावी साइबर सुरक्षा प्रबंधन व धमकियों का जवाब, शहरी विकास के लिए स्थायी रूप से सांस्थानिक सहयोग की मजबूती, कारोबारी सहयोग को बढ़ावा देने के लिए कार्यक्रम और प्रॉजेक्ट निर्माण, वित्तीय सहयोग, ज्ञान के हस्तांतरण और अनुसंधान व नवाचार, स्मार्ट सिटी मिशन को लेकर वर्तमान सहयोग को मजबूत करना, और कौशल विकास की दिशा में व्यावसायिक शिक्षा और प्रशिक्षण ताकि संस्थानों को मिलाकर क्षमता का निर्माण किया जा सके और पशुपालन, मत्स्य पालन और एग्रो फॉरेस्टी में सहयोग को बढ़ावा दिया जा सके।
दो देशों के बीच लोगों की आवाजाही से विचारों का आदान प्रदान होता है और परस्पर विश्वास का निर्माण होता है। यही दीर्घकालिक संबंधों का आधार होता है।
ग्रेट ब्रिटेन को अपने उत्पाद और महत्वपूर्ण क्षेत्रों में विशेज्ञता से जुड़े नये बाज़ारों की जरूरत है और इसमें भारत पिछड़ा हुआ है। भारत को भरोसेमंद सहयोगी की जरूरत है। ऐसा इसलिए क्योंकि व्हाइट हाऊस में मौजूद राष्ट्रपति ने कई सुरक्षित मान्यताओं को हाल के दिनों में रद्द कर दिया है और उस पर सवाल उठाएं हैं।
यही वजह है कि मेरी राय में लंदन और नयी दिल्ली अपने संबंधो में साम्य स्थापित कर सकता है। जैसा कि मैंने पहले भी कहा था इसके लिए काफी प्रयास करने होंगे और आगे कई मीलों की दूरी तय करनी है। फिर भी यह कहा जा सकता है कि भारत-इंग्लैंड संबंध में वो सारे तत्व मौजूद हैं जो बदलते और अनिश्चित विश्व में वैश्विक साझेदारी से गेम बदल सकते हैं।
(मनोज लाडवा इंडिया इंक के संस्थापक हैं और एमएलएस चेज समूह के चीफ एक्जीक्यूटिव हैं @manojladwa)