सीरिया, ईराक और लीबिया में जंग के समर्थक और भारत के विरोधी हैं डोनाल्ड ट्रंप के NSA जॉन बोल्टन
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने व्हाइट हाउस में आने के 14 माह के अंदर तीसरे नेशनल सिक्योरिटी एडवाइजर (एनएसए) की नियुक्ति की है। अब जॉन बोल्टन ट्रंप के एनएसए होंगे और बोल्टन के नाम का ऐलान सुनते ही कई लोग सकते में आ गए हैं।
वॉशिंगटन। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने व्हाइट हाउस में आने के 14 माह के अंदर तीसरे नेशनल सिक्योरिटी एडवाइजर (एनएसए) की नियुक्ति की है। अब जॉन बोल्टन ट्रंप के एनएसए होंगे और बोल्टन के नाम का ऐलान सुनते ही कई लोग सकते में आ गए हैं। स्वीडन के प्रधानमंत्री कार्ल बिल्ड्ट की ट्वीट पढ़कर न सिर्फ उनकी हैरानी बल्कि उनके डर का भी अंदाजा लगाया जा सकता है। वहीं ट्रंप ने जिस व्यक्ति को एनएसए चुना है उसने किसी समय में युनाइटेड नेशंस सिक्योरिटी काउंसिल (यूएनएससी) में भारत की सदस्यता का विरोध किया था। बोल्टन अगस्त 2005 से दिसंबर 2006 तक पूर्व राष्ट्रपति जॉर्ज बुश के कार्यकाल में यूनाइटेड नेशंस (यूएन) में अमेरिका के राजदूत रहे चुके हैं।
भारत के खिलाफ बोल्टन
बोल्टन भारत को लेकर कई सारी आशंकाओं से घिरे हैं। बुश के कार्यकाल में जब वह यूएन में राजदूत थे तो उन्होंने अपनी चीनी समकक्ष के साथ मिलकर यूएनएससी में भारत की स्थायी सदस्यता की कोशिशों को करारा झटका दिया था। इसके अलावा उस समय भारत के यूएन में राजदूत निरुपम सेन के साथ कई मुद्दों पर उनका टकराव था। आपको बता दें कि पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने हमेशा से ही भारत की यूएनएससी में स्थायी सदस्यता का समर्थन किया था लेकिन अब बोल्टन के आने के बाद ट्रंप ऐसा करेंगे इस पर काफी आशंकाएं हैं।
क्यों ट्रंप ने बोल्टन को चुना एनएसए
अमेरिकी जर्नलिस्ट डेविड ब्रुक्स के मुताबिक वर्तमान समय में अगर कोई रिपब्लिकन पार्टी में ट्रंप के विचारों से सहमत नजर आता है तो वह बस बोल्टन ही हैं। विदेश नीति पर उनके विचार ट्रंप से काफी मेल खाते हैं। नौ अप्रैल को बोल्टन अपना कार्यभार संभालेंगे। बोल्टन वर्तमान समय में अमेरिकन एंटरप्राइज इंस्टीट्यूट (एईआई) में सीनियर फेलो हैं। साल 2012 में उन्होंने अमेरिकी राष्ट्रपति चुनावों के लिए मैदान में किस्मत भी आजमाई थी।
'वॉर हॉक' बोल्टन
जिस समय बोल्टन के नाम का ऐलान ट्रंप ने किया स्वीडन के पीएम बिल्ड्ट ने ट्वीट किया, 'बोल्टन? सच में? तो फिर बंकर कहा है?' स्वीडन के पीएम ने जब यह ट्वीट किया तो उसके पीछे भी एक वजह भी थी। बोल्टन ईरान और नॉर्थ कोरिया में शासन को बदलने की वकालत करते आए हैं। साथ ही वह ईरान डील के भी आलोचक रहे हैं। सिर्फ इतना ही नहीं बोल्टन ईराक वॉर के सबसे बड़े समर्थक हैं। वह सीरिया, लीबिया और ईरान में सत्ता बदलने को लेकर जारी मिलिट्री संघर्ष का भी समर्थन करते हैं। न्यूयॉर्क टाइम्स के एडीटोरियल में तो लिखा है, 'जॉन बोल्टन वाकई में काफी खतरनाक हैं।' इसमें लिखा है कि अगर बोल्टन जैसे कुछ और लोग आ जाएं तो कोई भी देश वॉर की शुरुआत कर सकता है।
अमेरिका के सबसे विवादित राजदूत
जिस समय बोल्टन, यूएन में अमेरिका के राजदूत थे, उस समय इकोनॉमिस्ट ने लिखा था, 'बोल्टन यूएन में अमेरिका की ओर से भेजे गए अब तक के सबसे विवादित राजदूत हैं।' बोल्टन ने साल 2005 में यूएन के लिए कहा था, 'यूएन जैसी कोई चीज दुनिया में है ही नहीं। अगर न्यूयॉर्क में 10 मंजिला इसका हेडक्वार्टर गायब हो जाए तो भी कोई फर्क नहीं पड़ेगा।' न्यूयॉर्क टाइम्स ने उस समय लिखा था कि बोल्टन यूनाइटेड नेशंस ह्यूमन राइट्स काउंसिल में बदलाव के लिए सही काम कर रहे हैं। अखबार का कहना था कि जॉन बोल्टन सही हैं और तत्कालीन यूएन महासचिव कोफी अन्नान गलत हैं।
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