सरहदों का अड़ंगा: भारत की गेंहू की बोरी 4 हजार किमी का सफर तय कर 10 दिन में पहुंचती है काबुल
नई दिल्ली। इन दिनों ईरान पर घमासान मचा हुआ है। अमेरिका ने ईरान के साथ व्यापार करने वाले देशों को चेतावनी दी है कि चार नवंबर तक व्यापार बंद करना होगा। अमेरिका का कहना है कि अगर ऐसा नहीं हुआ तो फिर वह उन देशों के खिलाफ बड़े फैसले ले सकता है। अमेरिका के इस ऐलान में भारत भी शामिल है। तेल के अलावा चाबहार बंदरगाह वह बिंदु है, जिस पर भारत और ईरान काफी करीब आ चुके हैं। चाबहार न केवल भारत और ईरान को करीब लाता है बल्कि रणनीतिक तौर पर भी काफी अहम साबित हो रहा है। इन सबके बीच बिना भारत से पाकिस्तान के जरिये सीधे काबुल तक पहुंचने का सीधा और छोटा रास्ता खुलने की जो संभावनाएं हाल के दिनों में बनी थीं उन पर पाकिस्तान के विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी ने पूरी तरह विराम लगा दिया है। अगर ये सीधा रास्ता खुलता तो तीनों मुल्कों को बड़ा फायदा हो सकता था।
पंजाब से गुजरात, गुजरात से ईरान और फिर काबुल
दरअसल अफगानिस्तान में अमेरिका के राजदूत जॉन बास की ओर से कहा गया था कि पाकिस्तान इस बात पर विचार कर रहा है कि भारत और काबुल के बीच होने वाले व्यापार के लिए अपनी सरजमीं का प्रयोग करने की इजाजत भारत को दे दी जाए। पाक के विदेश मंत्री ने इस पर कहा कि पाकिस्तान इस बात पर रजामंद नहीं है कि अफगानिस्तान के साथ व्यापार के लिए भारत को उसकी जमीन का प्रयोग करने की इजाजत दी जाए। अक्टूबर 2017 में भारत से गेहूं की पहली खेप काबुल पहुंची थी। यह गेहूं पहले गुजरात के कांदला पोर्ट पहुंचा था। यहां से ईरान के चाबहार पहुंचा और फिर काबुल पहुंच सका। कांडला से चाबहार की दूरी करीब 1,000 किलोमीटर है। चाबहार से काबुल की दूरी 1,839 किलोमीटर है। यह गेहूं पंजाब के जालंधर से गुजरात के कांडला पहुंचा था और इन दोनों जगहों की दूरी सड़क के रास्ते 1,389 किलोमीटर से कुछ ज्यादा है।
10 दिन बाद पहुंची काबुल गेंहू की पहली खेप
4,000 किलोमीटर का सफर तय करके गेहूं आठ से 10 दिन बाद काबुल पहुंच सका। अफगानिस्तान को ईरान के रास्ते गेहूं और दूसरा सामान भेजना भारत के लिए सस्ता नहीं है। अगर पाकिस्तान स्थित रास्ता खुल जाए तो सिर्फ कुछ घंटों की दूरी तय करके पंजाब से गेहूं ट्रकों पर लादकर पहले अमृतसर स्थित वाघा बॉर्डर और फिर तोरखम बॉर्डर के जरिए अफगानिस्तान पहुंचाया जा सकता है। वैसे अफगानिस्तान की ओर से भी उसके देश में पाकिस्तान और उसकी तरफ से आने वाले ट्रकों पर बैन लगा हुआ है। बॉर्डर चेक पोस्ट्स पर पाकिस्तान के ट्रकों पर लदे सामान को अफगानिस्तान के ट्रकों पर लादकर ही अफगानिस्तान तक भिजवाया जाता है। चाबहार बंदरगाह भारत, अफगानिस्तान और ईरान को करीब लाता है।
पाकिस्तान को मिलेगा बड़ा फायदा
अमेरिकी राजदूत की ओर से दिए गए बयान के अपने मायने हैं। इस रास्ते को खोलना भारत से ज्यादा पाकिस्तान के लिए फायदेमंद साबित हो सकता है। भारत, जिसकी अर्थव्यवस्था जो पाकिस्तान की तुलना में छह से सात गुना बड़ी है, वह काबुल भेजे जाने वाले गेहूं के महंगे होने से उतना परेशान नहीं होगा। लेकिन अगर भारत के लिए इस्लामाबाद रास्ता खोलने की मंजूरी देता है तो उसे बड़ा फायदा हो सकता है। सबसे बड़ा फायदा शायद उसे अमेरिका की तरफ से होगा। अमेरिका, पाकिस्तान के लिए उस मदद की रकम को रिलीज कर सकता है, जो उसने रोक दी है। कैश क्रंच से जूझते पाकिस्तान के लिए यह रकम एक संजीवनी बूटी साबित होगी। इसके अलावा आतंकवाद के खिलाफ जो लड़ाई उसने जारी रखी, उसमें भी उसे मदद मिल सकती है। इस कदम से पाक अपनी छवि बदल सकता है और अंतरराष्ट्रीय समुदाय पर भी एक सकारात्मक असर होगा।
भारत के सामने होगा ईरान का विकल्प
वहीं, भारत को अगर पाकिस्तान के जरिए रास्ता मिलता है तो फिर उसके लिए भी काफी बचत का सौदा साबित होगा। अमेरिका जो भारत पर लगातार दबाव बना रहा है कि वह ईरान के साथ अपने व्यापारिक संबंधों को बंद कर दे( उसे नई दिल्ली के सामने कोई विकल्प पेश करना होगा ताकि आने वाले दिनों में कोई कठिनाई न पैदा हो। ऐसे में अगर अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप पाकिस्तान के नए राष्ट्रपति इमरान खान को भारत के लिए रास्तों को खोलने पर राजी कर लेते हैं तो फिर शायद दुनिया को भारत-पाकिस्तान-अमेरिका-अफगानिस्तान इन चारों देशों के बीच एक नए रणनीतिक रिश्ते की शुरुआत देखने को मिल सकती है। हालांकि यह थोड़ा मुश्किल है क्योंकि चीन और पाकिस्तान का रिश्ता किसी से छिपा नहीं है। तोरखम बॉर्डर, पेशावर स्थित अफगानिस्तान की सीमा पर है। यह इलाका काफी खतरनाक है क्योंकि जलालाबाद और नागहर प्रांत इससे सटे हुए हैं। साथ ही खैबर पख्तूनख्वा का इलाका भी यहीं हैं। ये सभी इलाके आए दिन होने वाले आतंकी हमलों से पहले ही परेशान हैं। ऐसे में अगर पाकिस्तान, भारत को रास्ता दे भी देता है तो सुरक्षा का मुद्दा काफी अहम होगा।