क्विक अलर्ट के लिए
नोटिफिकेशन ऑन करें  
For Daily Alerts
Oneindia App Download

वो बांग्लादेशी बूढ़ी गुड़िया, जो बच्चों की वजह से काल कोठरी पहुंची

ख़ालिदा ज़िया: बांग्लादेश की पूर्व प्रधानमंत्री की कहानी, जो अब पांच साल सत्ता में नहीं.. जेल में गुज़ारेंगी.

By BBC News हिन्दी
Google Oneindia News
ख़ालिदा ज़िया
Getty Images
ख़ालिदा ज़िया

'मैं मेजर ज़िया-उर-रहमान बांग्लादेश की आज़ादी का ऐलान करता हूं.'

ये आवाज़ ज़मीन के उस टुकड़े से दुनिया को सुनाई दी, जो भारत के पूर्वी हिस्से से कटकर 24 साल पहले पूर्वी पाकिस्तान बना था.

साल बीतने के साथ बंगाली अस्मिता मुखर हुई और नए देश की मांग की गई. भारत की मदद से 1971 में ज़मीन का ये टुकड़ा पाकिस्तान से आज़ाद होकर बांग्लादेश बना.

इस आज़ादी का पहला ऐलान जिस आदमी ने किया, वो बांग्लादेश की आज़ादी की लड़ाई के नेता शेख मुज़ीबुर रहमान नहीं थे. बल्कि चटगांव के ईस्ट बंगाल रेजीमेंट के ज़िया-उर-रहमान थे.

लेकिन ज़ियाउर के इस ऐलान में मुज़ीबुर के क़रीबियों को सत्ता की भूख नज़र आई. लिहाज़ा ज़ियाउर का नया बदला हुआ ऐलान दुनिया ने सुना.

'बांग्लादेश की संप्रभु सरकार और सुप्रीम कमांडर मुज़ीबुर रहमान की ओर से हम आज़ादी का ऐलान करते हैं. पड़ोसी और दुनिया के देश पाकिस्तान सेना के कब्ज़े और नरसंहार को रोकने के लिए प्रभावी कदम उठाएं. जय बांग्ला'

पाकिस्तान के ख़िलाफ लड़ाई में कमांडर रहे रहमान ही थे, जिन्होंने जूनियर फौजियों के तख्तापलट करने पर चुप्पी बनाए रखी और इस दौरान बांग्लादेश के राष्ट्रपति शेख मुज़़ीबुर रहमान की हत्या कर दी गई.

ये वही रहमान थे, जिनकी पत्नी और पूर्व प्रधानमंत्री ख़ालिदा ज़िया को बांग्लादेश की एक अदालत ने भ्रष्टाचार के मामले में 8 फरवरी को पांच साल की सज़ा सुनाई है.

लेकिन ख़ालिदा ज़िया की कहानी इस सज़ा से नहीं, उस गुड़िया से शुरू होती है जिसके साथ शायद आपके घर के बच्चे भी खेलते हों.

ख़ालिदा ज़िया
Getty Images
ख़ालिदा ज़िया

ख़ालिदा ज़िया: पलक झपकाती गुड़िया

बांग्लादेश के दीनाजपुर में एक व्यापारी के घर 15 अगस्त 1945 एक सुंदर सी बिटिया की किलकारी गूंजी.

भारत के बंटवारे के बाद ज़िया के पिता जलपाईगुड़ी का चाय बागान छोड़कर दीनाजपुर आकर बस गए.

ये बच्ची ख़ालिदा इतनी खूबसूरत थी कि इसे बाद में प्यार से पुतुल नाम भी दिया गया. पुतुल जिसका बंगाली में मतलब होता है गुड़िया.

साल 1960. 10वीं की पढ़ाई पूरी करने के बाद ख़ालिदा का निकाह सेना के रहमान से हुआ.

दीनाजपुर में 1965 तक रहते हुए ख़ालिदा ने अपनी पढ़ाई जारी रखी. लेकिन बाद में वो अपने पति के साथ पश्चिमी बांग्लादेश आ गईं.

तब ज़ियाउर रहमान पाकिस्तानी सेना में थे. लेकिन बंगाल में आज़ादी की मांगें उठने लगी थीं. इस वक्त में ख़ालिदा और रहमान के बीच दूरियों की भी ख़बरें आईं.

'लिबरेशन वॉर: अनोन चैप्टर्स' किताब में नदीम कादिर लिखते हैं, ''एक बार जनरल रहमान ने कहा था कि इस बात की कोई गारंटी नहीं है कि बांग्लादेश कभी आज़ाद हो पाएगा.''

इसी दौर का एक दावा लेखक और वरिष्ठ पत्रकार अब्दुल गफ्फार चौधरी करते हैं.

चौधरी के मुताबिक, ''जब ख़ालिदा पाकिस्तानी सेना के नियंत्रण वाली छावनी से जाने के लिए बिलकुल तैयार नहीं हुईं. तब रहमान ने कहा था कि युद्ध ख़त्म होने के बाद वो ख़ालिदा को तलाक दे देंगे. लेकिन ऐसा कभी नहीं हो पाया.''

ख़ालिदा और ज़िया के दो बेटे हुए अराफात और तारिक रहमान. अराफात की साल 2015 में दिल का दौरा पड़ने से निधन हो गया. रहमान बांग्लादेशी क्रिकेट और राजनीति में एक्टिव हैं.

ख़ालिदा ज़िया
Getty Images
ख़ालिदा ज़िया

पहली बार जेल कब गईं ख़ालिदा ज़िया?

1971 में जब पाकिस्तान से आज़ादी की जंग चल रही थी, तब पाक सेना ने ख़ालिदा को हिरासत में लिया था. ख़ालिदा को ये सज़ा रहमान के पाक सेना के ख़िलाफ होने की वजह से मिली थी.

ख़ालिदा की हिरासत तब ख़त्म हुई, जब 16 दिसंबर 1971 को पाकिस्तान ने सरेंडर किया. तब ढाका में मुल्क के साथ ख़ालिदा को आज़ादी नसीब हुई.

बांग्लादेश की आज़ादी के बाद रहमान के अरमानों ने पंख फैलाना शुरू किया. रहमान को बहादुरी के कई पुरस्कार मिले. 25 अगस्त 1975 में ज़िया सेनाप्रमुख बने.

बीएनपी बांग्लादेश की वेबसाइट के मुताबिक़, तख्तापलट के बाद रहमान को इस्तीफा देना पड़ा और वो घर में नज़रबंद कर लिए गए. लेकिन वक्त बदलता है और तब बनाई गई अंतरिम सरकार में रहमान को भी शामिल किया गया.

ख़ालिदा ज़िया
Getty Images
ख़ालिदा ज़िया

राजनीति में कब दाखिल हुईं ख़ालिदा?

21 अप्रैल 1977 को रहमान का वो ख्वाब सच हुआ, जिसकी झलक कुछ लोगों ने उनके आज़ादी के ऐलान में देखी थी.

ये वो तारीख थी, जब रहमान बांग्लादेश के राष्ट्रपति की कुर्सी पर बैठे. बीएनपी की वेबसाइट के मुताबिक, इस दौरान ज़िया ने सेना में अनुशासन और प्रेस की आज़ादी को लेकर काफी काम किया.

दक्षिण एशियाई देशों के सार्क सम्मेलन को 1980 में शुरू करने का श्रेय जिन कुछ लोगों को जाता है, उनमें रहमान का नाम भी शामिल था.

1978 में रहमान ने नई पार्टी बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (बीएनपी) बनाई. 1979 में हुए चुनावों में बीएनपी 300 में 207 सीटें जीती.

भविष्य में यही बीएनपी, ख़ालिदा को प्रधानमंत्री की कुर्सी दिलवाने वाली थी. लेकिन ख़ालिदा को इस कुर्सी तक पहुंचने के लिए दर्द के रास्ते से होकर गुज़रना था.

30 मई 1981 को चटगाँव दौरे पर राष्ट्रपति रहमान तख्तापलट की साजिश में जुटे कुछ फौजियों के हाथों अपनी जान गंवा बैठे.

कभी अपनों के लिए खूबसूरत गुड़िया रही ख़ालिदा को अब मखमल के गद्दों पर नहीं, सत्ता की कुर्सी पर बैठना था, जिसके कांटे सत्ता छोड़ने के बाद भी चुभते हैं.

संकट से जूझ रही बीएनपी की कमान 10 मई 1984 को ख़ालिदा के हाथ आई.

ख़ालिदा ज़िया और शेख हसीना
Getty Images
ख़ालिदा ज़िया और शेख हसीना

तानाशाही के ख़िलाफ बेगमों की जोड़ी

1982 में अब्दुस सत्तार को सत्ता से बाहर कर खुद को राष्ट्रपति घोषित करने वाले हुसैन मोहम्मद इरशाद की तानाशाही बढ़ चली थी.

इस दौरान ख़ालिदा को कई बार हिरासत में लिया गया. 1990 के दौर में मुज़ीबुर रहमान की बेटी शेख हसीना और ख़ालिदा एकजुट हुईं और इरशाद को सत्ता को अलविदा कहना पड़ा.

1991 में बांग्लादेश में हुए आम चुनावों में ख़ालिदा ज़िया पांच सीटों से चुनाव लड़ीं और तीन में जीत हासिल की. इन चुनावों में बीएनपी सबसे बड़ी पार्टी बनी.

20 मार्च 1991 को बांग्लादेश को अपनी पहली महिला प्रधानमंत्री मिली, ख़ालिदा ज़िया. ख़ालिदा ने वो कानून पास किया, जिससे बांग्लादेश का सर्वोच्च नेता राष्ट्रपति की बजाय प्रधानमंत्री हो गया.

1996 में हुए चुनावों में बीएनपी फिर जीती. लेकिन इन चुनावों का बाकी सभी पार्टियों ने बहिष्कार किया. फिर से चुनाव कराए जाने की मांगों के बीच ख़ालिदा सत्ता छोड़ती हैं. फिर हुए चुनावों में बीएनपी को आवामी लीग के हाथों शिकस्त मिली. शेख हसीना प्रधानमंत्री पद की शपथ लेती हैं.

अगले पांच साल ख़ालिदा के विपक्ष में बीते. 2001 में हुए चुनावों में जीत मिलने के बाद ख़ालिदा तीसरी बार प्रधानमंत्री पद की शपथ ली और 2006 में केयरटेकर सरकार को कुर्सी सौंपकर सत्ता से बाहर हुईं.

2000, 2005 और 2006 में दुनिया की 100 सबसे ताकतवर महिलाओं की फोर्ब्स लिस्ट में ख़ालिदा को जगह मिली.

ख़ालिदा ज़िया
AFP
ख़ालिदा ज़िया

ख़ालिदा पर क्या-क्या हैं आरोप?

ख़ालिदा के सत्ता से बाहर जाने पर केयरटेकर सरकार को देश संभालने का ज़िम्मा मिला. इस दौरान ख़ालिदा पर भ्रष्टाचार के कई मामले दर्ज हुए.

2001 में सरकार बनाने के लिए खालिदा ने देश की सबसे बड़ी इस्लामी पार्टी जमात-ए-इस्लामी से भी हाथ मिलाया. ये पार्टी अपने शुरुआती दिनों में अलग बांग्लादेश का विरोध करती थी. तर्क था कि ये इस्लाम विरोधी है.

1971 में बांग्लादेश की आज़ादी की लड़ाई में इस पार्टी के कई नेताओं पर लोगों पर अत्याचार के संगीन आरोप लगे. इस पार्टी से क़रीबी के चलते भी ख़ालिदा को मतभदों का सामना करना पड़ा.

इस इस्लामी पार्टी का भारत से भी कनेक्शन है. अयोध्या में बाबरी विध्वंस के बाद पार्टी के नेताओं पर बांग्लादेश में हिंदू विरोधी दंगे भड़काने का भी आरोप लगा था.

2015 में भ्रष्टाचार के मामले में ख़ालिदा कोर्ट में हाज़िर नहीं हुईं. इसके बाद कोर्ट ने ख़ालिदा की गिरफ्तारी के आदेश दिए.

गुस्साई ख़ालिदा ने इसी साल अपने समर्थकों से रेल और सड़क यातायात ठप करने की अपील की थी. इस चक्काजाम के बाद भड़की हिंसा में 100 से ज़्यादा लोगों की मौत हो गई थी.

इंदिरा गांधी और ज़ियाउर रहमान
Getty Images
इंदिरा गांधी और ज़ियाउर रहमान

बांग्लादेश, बेगम और 15 अगस्त

अगर बीएनपी की वेबसाइट की मानें तो ख़ालिदा ज़िया के जन्म की तारीख़ 15 अगस्त है.

इसी तारीख़ को ख़ालिदा की विरोधी और बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना का जन्मदिन होता है. हसीना के पिता और शेख मुजीबुर रहमान की हत्या भी इसी तारीख़ को की गई थी.

बांग्लादेश में ऐसा कहा जाता है कि 15 अगस्त को ख़ालिदा का असल जन्मदिन नहीं है. वो इसे 1991 में प्रधानमंत्री बनने के बाद से मना रही हैं.

किसी भी सरकारी दस्तावेज में ख़ालिदा के जन्म की तारीख़ 15 अगस्त नहीं मिलती है. ये तारीख़ अहम इसलिए भी है क्योंकि 15 अगस्त को बांग्लादेश में राष्ट्रीय शोक मनाया जाता है.

ऐसे में ख़ालिदा और उनके समर्थकों का सार्वजनिक तौर पर 15 अगस्त को केक काटकर जश्न मनाना कुछ लोगों को अखरता है.

ख़ालिदा के अपने 69वें जन्मदिन पर 69 पॉन्ड का केट काटने की तस्वीरों ने बांग्लादेश में काफी लोगों की भावनाओं को ठेस पहुंचाई थी.

ख़ालिदा ज़िया
Getty Images
ख़ालिदा ज़िया

'गुड़िया' ने बच्चों के रुपये चुराए?

अदालत ने जब ख़ालिदा को सज़ा सुनाई, तब उनके बेटे तारिक रहमान बांग्लादेश में नहीं थे.

ख़ालिदा ज़िया को जिस मामले में पांच साल की सज़ा सुनाई गई है, वो दुनियाभर से अनाथ बच्चों के लिए जमा किए एक करोड़ 61 लाख रुपये के दुरुपयोग का है.

यानी एक वक्त में अपनों के लिए गुड़िया (पुतुल) रही ख़ालिदा अब अपने अपराधों के लिए जेल में हैं. एक ऐसे अपराध, जिसके केंद्र में वही बच्चे हैं, जो शायद खाने, खिलौनों के लिए मोहताज थे लेकिन उनके लिए जोड़ी रकम को किसी और काम में खर्च कर दिया गया.

सफेद साड़ी में जेल जाते हुए अपने बिलखते रिश्तेदारों से 72 साल की ख़ालिदा कहती हैं, 'ख़ालिदा ज़िया ने चिंता न करो, हिम्मत रखो, मैं वापिस आऊंगी.'

जेल की सज़ा सुनकर लोकतंत्र, इंसाफ की दुहाई देती ख़ालिदा ज़िया समेत समर्थकों के गुस्से भरे नारे सुनकर शेख मुज़ीबुर रहमान की एक बात याद आती है.

शेख ने एक बार कवि को याद करते हुए कहा था, 'हे महान कवि वापस आओ और देखो किस तरह तुम्हारे बंगाली लोग उन विलक्षण इंसानों में तब्दील हो गए हैं, जिसकी कभी तुमने कल्पना की थी.'

BBC Hindi
Comments
देश-दुनिया की ताज़ा ख़बरों से अपडेट रहने के लिए Oneindia Hindi के फेसबुक पेज को लाइक करें
English summary
Those Bangladeshi old dolls who reached Kal Kothari due to children
तुरंत पाएं न्यूज अपडेट
Enable
x
Notification Settings X
Time Settings
Done
Clear Notification X
Do you want to clear all the notifications from your inbox?
Settings X
X