9/11 से पहले अमरीका पर आख़िरी बार हमला करने वाले जापानी बमों की कहानी
11 सितंबर 2001 से पहले आख़िरी मर्तबा अमरीका की धरती पर जापान ने ही हमला किया था. दूसरे विश्वयुद्ध के दौरान जापान ने बमों से लदे हज़ारों गुब्बारे अमरीका की ओर छोड़ दिए.
बात द्वितीय विश्व युद्ध में जर्मनी के आत्मसमर्पण के तीन दिन पहले की है, यानी 5 मई 1945 की, जब अमरीका के ओरेगॉन राज्य के ब्लाए शहर में छह लोगों की मौत की ख़बर आई.
हादसे से वक्त मौजूद चश्मदीदों से मिली जानकारी के आधार पर स्थानीय मीडिया में जो ख़बरें आईं उनमें कहा गया कि मरने वालों के ऊपर बारूद से भरे बड़े-बड़े गुब्बारे फूट गए हैं जिसक कारण उनकी तुरंत मौत हो गई.
मामले की जांच सेना ने अपने हाथों में ले ली. लेकिन उस वक्त उन्हें इस बात का अंदाज़ा नहीं था कि ये गुब्बारे 6,000 फीट ऊपर उड़ने वाले हॉट एयर गुब्बारों के समूह का हिस्सा थे जिन्होंने आसमान से बारूद भरे थैले गिराए थे और जो अमरीका पर हमले के लिए जापान के एक द्वीप से छोड़े गए थे.
हाल के सालों में युद्ध ने इन हथियारों से अवशेष अलास्का और उत्तर-पश्चिमी मेक्सिको के समुद्रतटीय इलाक़ों में मिले हैं. साल 2001 के 11 सितंबर तक गुब्बारों का ये हमला अमरीकी सरज़मीन पर आख़िरी हमला था.
इतिहासकार रॉस कॉएन बीबीसी को बताते हैं कि, "द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान अगर अमरीका की ज़मीन पर कोई हमला हुआ था तो वो ये था. जिन लोगों पर ये गुब्बारे गिरे थे उनमें से कुछ उस वक्त पिकनिक मना रहे थे और ये इस कहानी को और भी दिलचस्प बना देता है."
इस मुद्दे पर रॉस कॉएन ने 'फ़ू-गो: द क्यूरियस हिस्ट्री ऑफ़ द जापानीज़ बलून दैड ट्राएड टू बॉम्ब द यूएस' नाम की किताब लिखी है जो यूनिवर्सिटी ऑफ़ नेब्रास्का ने प्रकाशित की है.
वो कहते है, "लेकिन ये अकेला हमला नहीं था बल्कि ये एक जटिल हमले की योजना का हिस्सा था जिसमें ऐसे हथियार भी शामिल थे जो प्रशांत महासागर पार कर अमरीका पहुंच सकें और यहां लोगों में डर फैला सकें."
लेकिन ये योजना बनी कैसे और इसे लागू कैसे किया गया? ये हमला नाकाम कैसे साबित हुआ?
फ़ू-गो गुब्बारा बम
अमरीका और जापान दोनों ही लंबे वक्त से प्रशांत महासागर पर नियंत्रण चाहते थे. उनकी ये महत्वाकांक्षा द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान भी रही. ऐसे में जापान की इंपीरियल आर्मी के नेतृत्व कर रहे जनरल दुश्मन पर हमला करने के नए तरीकों के बारे में विचार कर रहे थे.
कॉएन कहते हैं, "जापान को प्रशांत महासागर में चलने वाले वायु प्रवाह की और अमरीका के पश्चिमी तट और इस इलाक़े की भौगोलिक स्थिति के बारे में अच्छी जानकारी थी."
अमरीकी सेना के दस्तावेज़ों के अनुसार जापान का उद्देश्य था अमरीका के पश्चिमी तट पर मौजूद जंगलों में आग लगाना ताकि इसे यहां की जनता के बीच डर फैल जाए. वो कहते हैं, "उन्हें इस बात का यक़ीन था कि गुब्बारों के ज़रिए बारूद डालने का उनका तरीका काम करेगा."
अमरीकी नौसेना के पुराने दस्तावेज़ों के अनुसार ये बलून 10 मीटर चौड़े, 20 मीटर ऊंचे थे और इनमें हाइड्रोजन गैस भरी हुई थी. कॉएन कहते हैं, "ये गुब्बारे छोड़ते वक्त जापान ने प्रशांत महासागर के वायु प्रवाह का लाभ उठाया था. उन्हें पता था कि हवा इन्हें सीधे अमरीका तक बहा ले जाएगी."
अमरीकी सेना के पुराने दस्तावेज़ों से पता चलता है कि ये गुब्बारे बेहद हल्के कागज़ से बने थे जिन पर सेन्सर लगे बम लगाए गए थे. इनकी ट्यूब्स में बारूद भरा गया था और साथ में एक एक्टिवेशन डिवाइस भी लगाया गया था.
ये गुब्बारे 12 किलोमीटर की ऊंचाई तक उड़ने में सक्षम थे और एक बार में 7,500 किलोमीटर तक की उड़ान भर सकते थे.
कॉएन कहते हैं, "उस वक्त के हिसाब से देखें तो ये एक तरह के इंटरओशिएनिक रॉकेट थे जो आज कुछ देशों के पास हैं. इस वक्त कोई भी इस तरह के हमले की कल्पना भी नहीं कर सकता था. इस हमले को बड़े पैमाने पर नाकाम कहा जा सकता है लेकिन इस बात से भी इनकार नहीं किया जा सकता है इस कारण ओरेगॉन में छह लोगों की जान गई."
इन गुब्बारों पर लिखने वाले इतिहासकार ब्रेट वेबर के अनुसार मेजर तेईजी ताकाड़ा के नेतृत्व में जापानी सेना की नौवीं डिविशन की डिज़ाइन लेबोरेटरी में ये गुब्बारे बनाए गए थे.
कॉएन कहते हैं, "जापानियों ने इन गुब्बारों को नाम दिया फ़ू-गो. फ़ू जापानी शब्द फ़ूशेन का पहला अक्षर था, जिसका अर्थ था गुब्बारा और गो एक कोड था जो इस लेबोरेटरी के बनाए सभी हथियारों के नाम के साथ लगाया जाता था."
"जापानी लोग बेवकूफ नहीं थे. कई महीनों तक वो हज़ारों गुब्बारे प्रशांत महासागर के पार इस उम्मीद में भेजते रहे कि कम से कम दस फीसदी गुब्बारे तो अमरीकी ज़मीन पर पहुंच कर अपना उद्देश्य पूरा करेंगे."
दस्तावेज़ों से पता चलता है कि जापान को इस बात की जानकारी थी कि नवंबर से मार्च के बीच महासागर पर वायु का प्रवाह सबसे तेज़ होता है. उन्होंने गुब्बारे छोड़ने के लिए यही वक्त चुना था.
एक बार ये गुब्बारे ज़मीन पर गिरते तो फिर उनमें आग लग जाती और विस्फोट हो जाता. सैन्य विशेषज्ञों के अनुसार इस बारूद से जंगल में बड़ी आग लग सकती थी. उन्हें ये भी डर था कि ये गुब्बारे जैविक हथियार भी हो सकते हैं. हालांकि बाद में उनकी ये चिंता ख़त्म हो गई थी.
पिकनिक मनाने निकले परिवार के साथ हादसा
अब तक जितनी जानकारी उपलब्ध है उसके अनुसार गुब्बारों का ये हमला मई 1945 में हुआ था. लेकिन सच्चाई ये है कि अमरीकी वायु सेना को इन गुब्बारों की जानकारी 1944 के आख़िर में हो गई थी, जब उन्होंने द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान प्रशांत महानसागर में युद्ध में शिरकत की थी.
इतिहासकार वेबर अपनी रीसर्च में कहते हैं कि इन गुब्बारों की पहली खेप को नवंबर 1944 में छोड़ा गया था.
और इसी महीने कैलिफोर्निया के सेन पेद्रो शहर में पहली बार इन गुब्बारों को देखा गया था. जनवरी 1945 को सेना के कुछ कर्मचारियों ने ओरेगॉन में हुए हमले के बारे में विस्तार से बताया था. इसके बाद हमले में हमले का मलबा देख कर ये साबित हो गया कि ये जापानी गुब्बारे ही थे.
कॉएन कहते हैं, "लेकिन गुब्बारों के कारण गंभीर हादसा बाद में ओरेगॉन में ही सामने आया था जब छह लोगों की इस कारण मौत हुई. मरने वालों में एक गर्भवती महिला भी शामिल थी."
कई चश्मदीदों के अनुसार ब्लाए शहर के बाहरी इलाक़े में जंगलों के पास एक गुब्बारा गिरा था. दुर्भाग्य से पांच मई 1945 को एस स्थानीय चर्च से जुड़े एक समूह के कुछ लोग उस इलाक़े में पिकनिक मनाने गए हुए थे.
अनजाने में उन्होंने गुब्बारे में लगे डिवाइस को एक्टिवेट कर दिया जिसके धमाका हो गया. हादसे में चर्च के पादरी और उनकी गर्भवती पत्नी समेत चार बच्चे मारे गए.
ब्रितानी अख़बार द गार्डियन में छपी एक रिपोर्ट के मुताबिक़ ब्लाए की रहने वाली एनी पात्ज़्के ने बताया था, "मैंने ये कहानी कई लोगों को सुनाई है लेकिन कोई मेरी बात का यकीन नहीं करता. ख़ास कर इस बात का कि एक जापानी बम हमारे ओरेगॉन के जंगलों में गिरा था."
युद्ध के दौरान किए गए हमलों में जापानी गुब्बारों का ये हमला साल 1982 तक इतिहास का सबसे बड़ा इंटरओशिएनिक हमला था. साल 1982 में ब्रिटेन ने फ़ॉकलैंड्स द्वीप पर हमला किया था.
ब्लाए में हुए हमले के बारे में अमरीकी नैशनल रजिस्टर ऑफ़ हिस्टोरिक मॉन्यूमेन्ट ने कहा था, "ये हमला और हमले की जगह बताती है कि विश्व युद्ध के समय जापान ने बेहद योजनाबद्ध तरीके से अमरीका पर हमला किया था. ये एक तरह से इतिहास में इंटरकॉन्टिनेन्टल बैलिस्टिक मिसाइल के इस्तेमाल का पहला वाकया था."
सालों तक छिपा कर रखी गई हमले की जानकारी
अमरीकी सेना ने कई सालों तक हमले के बारे में सभी जानकारी सार्वजनिक नहीं की. हालांकि उस दौर में इस विस्फोट के बारे में कई मीडिया में खबरें छपी थीं और इतिहासकार देश के अलग-अलग हिस्सों में मिल रहे गुब्बारों के हिस्सों की जांच भी करने लगे थे.
कॉएन कहते हैं, "मेरा ध्यान अलास्का में मिले कुछ गुब्बारों के टुकड़ों पर था. उन गुब्बारों के हिस्सों के वहां मिलने का नाता कहीं न कहीं जापान के हमले से था."
जब जापान को इस बात का अहसास हुआ कि गुब्बारे के ज़रिए हमले करने का उनका उद्देश्य पूरा नहीं हो पा रहा तो उसने ये हमले रोक दिए. अप्रैल 1945 को इस तरह का आख़िरी हमला किया गया था. इसके बाद अगस्त में जापान के सम्राट हिरोहितो ने जापान के आत्मसमर्पण की घोषणा कर दी.
युद्ध तो इसी साल समाप्त हो गया लेकिन बीच-बीच में गुब्बारों का मिलना जारी रहा. अक्तूबर 2014 में कनाडाई नौसेना ने लुंबी शहर के पास मिले इस तरह के एक गुब्बारे को नाकाम किया था. अक्तूबर 2019 में भी इसी तरह का एक बम कनाडा में राउश नदी के पास मिला था.
कॉएन कहते हैं, "ये स्पष्ट हो चुका है कि जापान का उद्देश्य लोगों को नुक़सान पहुंचाना नहीं था बल्कि बड़े पैमाने पर जंगलों में आग लगा और लोगों के बीच डर का माहौल पैदा करना था."
"लेकिन सच तो से है कि कई अमरीकियों को आज भी ये आधुनिक किस्म के नहीं पता कि ये हमले उनकी ज़मीन पर हुए थे और योजनाबद्ध तरीके से अंजाम दिए गए थे."