सऊदी अरब का जो मक्का गुलज़ार रहता था, वहां अभी कबूतरों का डेरा है
कभी इस शहर की सड़कों पर सफ़ेद लिबास पहने हाजियों का समंदर उमड़ा करता था लेकिन इस बरस सड़कें सूनी हैं. सड़क पर कबूतरों की फौज ने डेरा जमा रखा है.
सिर पर हाथ रखे सज्जाद मलिक का चेहरा लटका हुआ है. मक्का की ऐतिहासिक 'मस्जिद अल-हरम' के पास टैक्सी बुकिंग का उनका ऑफ़िस इन दिनों वीरान है.
वो कहते हैं, "यहाँ काम नहीं है, तनख्वाह नहीं है, कुछ भी नहीं है."
"आम तौर पर हज के पहले इन दो-तीन महीनों में मैं और मेरे ड्राइवर इतना पैसा कमा लेते थे कि पूरे साल का गुज़ारा चल जाता था. लेकिन इस बार कुछ नहीं है."
सज्जाद मलिक के लिए काम करने वाले ड्राइवरों में से एक समीउर रहमान भी हैं. वे सऊदी अरब की उस जमात का हिस्सा हैं, जो इस देश में रोज़ी-रोटी के लिए आए हैं.
समीउर हर रोज़ मक्का की मशहूर क्लॉक टावर के आस-पास की सड़कों पर चल रही गतिविधियों की जानकारी टैक्सी बुकिंग ऑफ़िस भेजा करते हैं.
कभी इस शहर की सड़कों पर सफ़ेद लिबास पहने हाजियों का समंदर उमड़ा करता था. कड़ी धूप से बचने के लिए उनके हाथों में छतरियाँ होती थीं.
लेकिन हाजियों से गुलज़ार रहने वाली सड़कें इस बरस सूनी हैं. सड़क पर कबूतरों की फौज ने डेरा जमा रखा है.
मक्का का सन्नाटा
आज इन ड्राइवरों की गाड़ियाँ ख़ाली हैं और मक्का का सन्नाटा किसी भुतहे शहर की तरह लग रहा है. सज्जाद के ड्राइवर उन्हें इन कबूतरों के वीडियो रिकॉर्ड करके भेज रहे हैं.
सज्जाद बताते हैं, "मेरे ड्राइवरों को खाने-पीने की चीज़ों की भी तंगी हो रही है. अब वे उन कमरे में चार या पाँच लोगों के साथ सो रहे हैं, जिनमें दो लोगों के रहने की जगह ही है."
मैंने सज्जाद से पूछा कि क्या उन्हें कोई सरकारी मदद मिल रही है?
वे कहते हैं, "नहीं, नहीं. कोई मदद नहीं मिल रही है. मैंने कुछ पैसे बचा रखे थे, जिससे काम चल रहा है. लेकिन मेरे पास कई स्टाफ़ हैं. 50 से भी ज़्यादा लोग मेरे साथ काम करते हैं और उन्हें परेशानी हो रही है."
सज्जाद अपनी बात कहना जारी रखते हैं, "मेरे एक दोस्त ने कल मुझे फ़ोन किया था. उसने कहा कि 'मेहरबानी करके मुझे कुछ काम दे दो. मुझे काम की तलाश है. मुझे परवाह नहीं तुम कितना पैसा देना चाहते हो.' मेरा यक़ीन मानिए, यहाँ लोग रो रहे हैं."
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सऊदी अरब में कोरोना महामारी
इस साल हज के लिए सऊदी अरब ने कड़ी पाबंदियाँ लगा रखी हैं. मध्य-पूर्व में सऊदी अरब कोरोना महामारी से सबसे ज़्यादा प्रभावित देशों में एक है.
महामारी रोकने की कोशिशों के मद्देनज़र सऊदी अरब ने कहा है कि आम तौर हज करने के लिए आने वाले 20 लाख मुसलमानों को इस बार धार्मिक यात्रा की इजाज़त नहीं दी जाएगी.
केवल सऊदी में रह रहे लोगों को ही इस बार हज पर जाने की इजाज़त दी जाएगी. माना जा रहा है कि इस साल महज 10 हज़ार लोग ही हज कर पाएँगे.
और जिन मुसलमानों को मक्का जाने की इजाज़त मिली भी है, वो ज़मज़म के पवित्र कुएँ का पानी पहले की तरह आज़ादी से नहीं पी पाएँगे.
ये पवित्र जल हरेक हाजी को बोतल में पैक होकर ही मिलेगा. मीना में शैतान को पत्थर मारने की रस्म अदायगी में इस्तेमाल होने पत्थर भी स्टरलाइज्ड किए हुए होंगे.
हज के दौरान श्रद्धालु मक्का से पाँच किलोमीटर दूर मीना में जाते हैं और वहाँ जमरात कहे जाने वाले तीन स्तंभों को सात पत्थर मारने की रस्म अदा की जाती है.
ये तीन स्तंभ शैतान के प्रतीक माने जाते हैं.
संकट सिर्फ़ सऊदी का नहीं...
सऊदी अरब से दूर कीनिया के लिए भी मुश्किलें हज न हो पाने से बढ़ गई हैं.
महामारी से पहले के दौर में हज के लिए बड़ी संख्या में सऊदी आने वाले लोगों के खाने-पीने के इंतजाम के लिए बड़े पैमाने पर पालतू पशु आयात किए जाते थे.
कीनिया इन पालतू पशुओं का बड़ा सप्लायर देश था, लेकिन इस बार कीनिया के किसानों के जानवर बिक नहीं पाएँगे.
कीनिया लाइवस्टॉक प्रोड्यूसर्स एसोसिएशन के पैट्रिक किमानी कहते हैं कि कीनिया में बिक्री के लिए उपलब्ध पालतू पशुओं का बड़ा स्टॉक है. देश के किसानों और बहुत से परिवारों के लिए ये आजीविका का प्रमुख ज़रिया भी है. इनके लिए कारोबार के लिहाज से हज के समय की बड़ी अहमियत है.
पैट्रिक किमानी की एसोसिएशन के सदस्य हज के लिए सऊदी अरब को औसतन पाँच हज़ार जानवरों की आपूर्ति करते हैं.
वो बताते हैं कि किसान इस बार स्थानीय बाज़ारों की तरफ़ रुख़ कर रहे हैं. उन्हें डर है कि बाहर माल न जा पाने की सूरत में पशुओं की स्थानीय क़ीमतें और गिर जाएँगी.
हज क्या है?
मुसलमानों का ऐसा मानना है कि इस्लाम के आख़िरी पैग़ंबर हज़रत मोहम्मद (570-632) को अल्लाह ने कहा कि वो काबा को पहले जैसी स्थिति में लाएँ और वहाँ केवल अल्लाह की इबादत होने दें. साल 628 में पैगंबर मोहम्मद ने अपने 1400 अनुयायियों के साथ एक यात्रा शुरू की.
इस्लाम के कुल पाँच स्तंभों में से हज पाँचवाँ स्तंभ है. सभी स्वस्थ और आर्थिक रूप से सक्षम मुसलमानों से अपेक्षा होती है कि वो जीवन में एक बार हज पर ज़रूर जाएँ.
मुसलमानों के लिए इस्लाम के पाँच स्तंभ काफ़ी मायने रखते हैं. ये स्तंभ पाँच संकल्प की तरह हैं. इस्लाम के मुताबिक़ जीवन जीने के लिए ये काफ़ी अहम हैं.
जब पैगंबर अब्राहम फ़लस्तीन से लौटे, तो उन्होंने देखा कि उनका परिवार एक अच्छा जीवन जी रहा है और वो पूरी तरह से हैरान रह गए.
मुसलमान मानते हैं कि इसी दौरान पैगंबर अब्राहम को अल्लाह ने एक तीर्थस्थान बनाकर समर्पित करने को कहा. अब्राहम और इस्माइल ने पत्थर का एक छोटा-सा घनाकार इमारत निर्माण किया. इसी को काबा कहा जाता है.
अल्लाह के प्रति अपने भरोसे को मज़बूत करने को हर साल यहाँ मुसलमान आते हैं.
परेशानी पाकिस्तान में भी है...
दशकों से चली आ रही आमदनी का ज़रिया अचानक छिन जाने से कई ट्रैवल कंपनियों को परेशानी का सामना करना पड़ रहा है.
पिछले साल पाकिस्तान से सबसे ज़्यादा लोग सऊदी अरब हज के लिए गए थे.
लेकिन कराची में ट्रैवल कारोबार से जुड़े शहज़ाद ताज कहते हैं कि उनकी कंपनी, सस्ती हज यात्रा और उमरा के यात्रा पैकेज, अब सब कुछ ख़त्म होने की कगार पर हैं.
वो बताते हैं, "हक़ीक़त में कारोबार पूरी तरह से ठप है. यहाँ तक कि यात्रा से जुड़ी दूसरी गतिविधियाँ भी बंद है. हवाई जहाज़ नहीं उड़ रहे हैं, सामान ढोने वाली गाड़ियाँ खड़ी हैं. ऐसा लगता है कि कुछ बेचने के लिए बचा ही नहीं है. सच कहें तो हम इन हालात के लिए तैयार ही नहीं थे."
"हमने अपने स्टाफ़ में कटौती कर दी है. इतने ही लोग बचे हैं जितने में काम चल जाए. हालात ऐसे हो गए हैं कि हमें मजबूरी में कंपनी की प्रोपर्टी और कार तक बेचनी पड़ रही है. कोशिश इतनी है कि बस किसी तरह से इन हालात से उबर जाएँ. मैंने अपनी टीम में काम करने वालों लोगों को बुरे वक़्त के लिए बचाकर रखे पैसे से मदद की है. मैं उनके लिए बस इतना ही कर सकता था."
मक्का और मदीना का नुक़सान
इस साल की पाबंदियों की वजह से मक्का और मदीना को बहुत आर्थिक नुक़सान हुआ है. यहाँ आने वाले हाजियों से अरबों डॉलर की कमाई होती थी.
माज़ेन अल सुदाइरी रियाध में वित्तीय सेवाएँ मुहैया कराने वाली फर्म अल-राझी कैपिटल के रिसर्च विभाग के चीफ़ हैं.
वो कहते हैं, "हालाँकि हज के आयोजन में सऊदी अरब की सरकार को जो ख़र्च करना पड़ता था, वो इस साल बच जाएगा. लेकिन मक्का और मदीना को नौ से 12 अरब डॉलर की रकम के बराबर कारोबार का नुक़सान होगा."
माज़ेन बताते हैं कि सरकार ने मदद के लिए हाथ बढ़ाया है. वो बताते हैं, "मुमकिन है कि छोटे और मंझोले कारोबारी नुक़सान उठा रहे हैं. लेकिन सऊदी सेंट्रल बैंक इस तबके की मदद के लिए कोशिश कर रहा है. उनके लोन की मियाद दो या तीन महीने के लिए बढ़ाई गई है. हमारा मानना है कि अब हालात बेहतर हो रहे हैं. बुरा दौर हमने पीछे छोड़ दिया है."
क्रेडिट रेटिंग एजेंसी मूडी के सॉवरेन रिस्क ग्रुप से जुड़े एलेक्ज़ेंडर पर्जेसी के अनुसार सऊदी अरब की कुल आमदनी का 80 फ़ीसदी हिस्सा तेल की बिक्री से आता है लेकिन तेल की क़ीमतों में गिरावट को देखते हुए आय के दूसरे रास्ते खोजे जा रहे हैं. इसके बावजूद सब कुछ ठीक नहीं चल रहा है.
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सऊदी अरब की अर्थव्यवस्था
एलेक्ज़ेंडर पर्जेसी कहते हैं, "सरकार ने मार्च, 2020 में कहा था कि वो कई सरकारी शुल्कों की वसूली रोक रहे हैं. साथ ही वैट (वैल्यू ऐडेड टैक्स) पर भी रोक लगाई गई थी. लेकिन इससे अर्थव्यवस्था के उस हिस्से में चल रही मंदी पर कोई असर नहीं पड़ा जो तेल से जुड़ी हुई नहीं थी. हमें लगता है कि सऊदी अरब की अर्थव्यवस्था को चार फ़ीसदी का नुक़सान होगा."
उधर, मक्का मे सज्जाद मलिक की बुकिंग ऑफ़िस में भले ही ग्राहकों का टोटा पड़ा हुआ है, लेकिन इसके बावजूद वे अपने घर पाकिस्तान नहीं लौटना चाहते हैं.
पड़ोस के देशों में जो लोग कमाई के लिए तरस रहे थे, सऊदी अरब ऐसे लोगों के लिए आख़िरी ठिकाना हुआ करता था.
सज्जाद मलिक बताते हैं, "हम पिछले आठ सालों से सऊदी अरब में काम कर रहे हैं. इससे घर पर हमारे परिवार और बच्चों का जीवन चलता है. यहाँ हमें मुफ़्त में मेडिकल सुविधाएँ मिलती हैं. और जब हज का समय आता है तो बहुत अच्छी कमाई होती है."
"मेहनतकश लोगों को अब संघर्ष करना पड़ रहा है. लेकिन फिर भी ये देश हमारे लिए नंबर वन पर है. अल्लाह इसको बरकत दे."