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माली का वो इमाम जिसने हिला रखी है देश की सत्ता, कोरोना से भी नहीं डर

इमाम महमूद डिको इस वक़्त राष्ट्रपति इब्राहिम बाउबकर कीटा के लिए सबसे बड़ी चुनौती बन गये हैं.

By पॉल मेली
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महमूद डिको: माली के इमाम जो राष्ट्रपति को चुनौती दे रहे
AFP
महमूद डिको: माली के इमाम जो राष्ट्रपति को चुनौती दे रहे

कोरोना वायरस महामारी से जुड़ी चिंताओं का ध्यान ना रखते हुए, एक बड़ी भीड़ पूरे माली में बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शनों को बनाये रख रही है, जो इस पश्चिम अफ़्रीकी देश के राष्ट्रपति इब्राहिम बाउबकर कीटा के इस्तीफ़े की माँग कर रही है.

भ्रष्टाचार और रूढ़िवाद, कमज़ोर सार्वजनिक सेवाओं और राष्ट्रीय नेतृत्व का अभाव, चुनावी कदाचार और अंतर-सांप्रदायिक और जिहादी हिंसा को समाप्त करने में सरकार की अक्षमता ने लोगों में इस हताशा को हवा दी है कि वो सड़कों पर उतर आए हैं.

विपक्षी राजनीतिक दल भी प्रदर्शनों को आयोजित करने में एक साथ हो गए हैं, लेकिन उनकी आवाज़ अब निर्णायक नहीं रह गई है.

वो कोई और हैं जिन्होंने कीटा और उनकी सरकार के मंत्रियों को बातचीत के लिए मजबूर कर दिया है और वो हैं इमाम महमूद डिको जो इन विशाल प्रदर्शनों का नेतृत्व कर रहे हैं.

इमाम महमूद डिको इस वक़्त राष्ट्रपति इब्राहिम बाउबकर कीटा के लिए सबसे बड़ी चुनौती बन गए हैं.

वो भी ऐसे समय में जब राष्ट्रपति इब्राहिम के बारे में समझा जा रहा है कि 15,000 अंतरराष्ट्रीय सैनिकों की मौजूदगी और लगातार मिली बाहरी वित्तीय सहायता के बावजूद वो माली के सामने खड़ी समस्याओं को लेकर बेपरवाह हैं और दीवानों की तरह अपने अंदाज़े लगा रहे हैं.

महमूद डिको: माली के इमाम जो राष्ट्रपति को चुनौती दे रहे
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महमूद डिको: माली के इमाम जो राष्ट्रपति को चुनौती दे रहे

इमाम महमूद डिको इस मुस्लिम बहुल देश में कोई नौसिखिए नहीं हैं.

वे कम से कम एक दशक तक सार्वजनिक जीवन में एक बड़ा नाम रहे हैं, लेकिन अब-वे पहले से कहीं अधिक अपने दबदबे का प्रदर्शन कर रहे हैं.

अप्रैल 2019 में उन्होंने तत्कालीन प्रधानमंत्री सौमेलू बाउबे माऐगा को बर्ख़ास्त करने के लिए विरोध प्रदर्शन आयोजित किया था.

इस साल के भारी विरोध प्रदर्शन, पाँच जून को शुक्रवार की नमाज़ के दौरान, राजधानी बमाको और दक्षिण में स्थित शहर सिकास्सो तक सीमित था.

लेकिन दो हफ़्ते बाद भीड़ पश्चिम में कायेस, दक्षिण-मध्य में सेगौ और यहाँ तक कि प्राचीन रेगिस्तानी शहर टिम्बकटू और सहारा के किनारे पर भी जमा दिखाई देने लगी और आंदोलन बढ़ता चला गया.

ये इमाम महमूद डिको की लोगों को लामबंद करने की शक्ति ही है जिसने उनके पारंपरिक राजनीतिक सहयोगियों को बातचीत की ताक़त दी है.

बीते मंगलवार को राष्ट्रपति कीटा की सरकार के मंत्रियों ने विपक्षी गठबंधन 'M5' के साथ बैठकर बातचीत की.

लेकिन वे दो दिन पहले, पहली बार इमाम से भी मिले जिनके बारे में उन्हें पता है कि उनकी काफ़ी लोकप्रिय पहुँच है, जो निर्णायक हो सकती है.

अंतरराष्ट्रीय मध्यस्थ भी, चाहे वो संयुक्त राष्ट्र शांति मिशन हो या फिर यूरोपीय संघ और पश्चिम अफ़्रीकी देशों का आर्थिक समुदाय, सभी ने इमाम महमूद डिको की बात सुनने का भी ध्यान रखा है.

इमाम महमूद डिको साल 2009 में हाई इस्लामिक काउंसिल के प्रमुख के रूप में एक बड़े राजनीतिक कैंपेन का नेतृत्व कर रहे थे, जिसका मक़सद माली के तत्कालीन राष्ट्रपति अमादौ तौमानी टूरे पर दबाव बनाकर, उनसे परिवार संबंधी क़ानून में बदलाव करवाना था जिससे महिलाओं के अधिकारों में सुधार किया गया.

इसने एक प्रमुख धार्मिक रूढ़िवादी नेता के रूप में उनकी भूमिका की पुष्टि की.

महमूद डिको: माली के इमाम जो राष्ट्रपति को चुनौती दे रहे
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महमूद डिको: माली के इमाम जो राष्ट्रपति को चुनौती दे रहे

टिम्बकटू क्षेत्र में 1950 के दशक के मध्य में पैदा हुए इमाम महमूद डिको मूल रूप से अरबी भाषा के शिक्षक थे जिन्होंने सऊदी अरब में पढ़ाई की और बाद में बामाको के एक उप-नगरीय कस्बे में स्थित मस्जिद के धार्मिक नेता बन गए.

वे लगभग तीन दशक पहले, एकदलीय शासन व्यवस्था के अंत और लोकतंत्र की स्थापना होने तक, एक मुख्य सरकारी धार्मिक संगठन के सचिव भी थे.

अपनी सऊदी शिक्षा के बावजूद, इमाम महमूद डिको ने कभी भी इस्लाम की कट्टरता और कट्टरपंथी वहाबी व्याख्या की निंदा नहीं की.

वे वास्तव में परंपरावादी पश्चिम अफ़्रीकी इस्लाम के समर्थक हैं, पारिवारिक मुद्दों के प्रति उनके विचार रूढ़िवादी हैं, लेकिन वे माली की पूर्व-मुस्लिम सांस्कृतिक जड़ों और बहुलतावादी धार्मिक संस्कृति के प्रबल रक्षक हैं. उनके मन में रहस्यवाद के लिए भी श्रद्धा है.

इमाम डिको ने हमेशा इस्लाम के नाम पर कठोर शारीरिक दंड देने और हिंसक जिहाद की विचारधारा, दोनों का विरोध किया है.

साल 2012 में जब इस्लामिक आतंकवादियों ने माली के उत्तर में कब्ज़ा कर लिया, तो डिको ने बातचीत के माध्यम से एक समाधान तक पहुँचने की कोशिश की, यहाँ तक कि जिहादी कमांडर इयाद अग-घाली से भी मुलाक़ात की.

मगर जब उग्रवादियों ने बातचीत छोड़ दी और एक नया आक्रामक अभियान शुरू करने के साथ बामाको की ओर बढ़ने की धमकी दी तो इमाम डिको ने जनवरी 2013 में यह तर्क देते हुए फ़्रांस के सैन्य हस्तक्षेप का स्वागत किया कि 'फ़्रांस के सैनिकों ने संकट में फंसे माली के नागरिकों को बचाया, वो भी तब जब साथी मुस्लिम देशों ने उनका साथ छोड़ दिया था.'

महमूद डिको: माली के इमाम जो राष्ट्रपति को चुनौती दे रहे
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फिर भी इमाम महमूद डिको के लिए, फ़्रांसीसी हस्तक्षेप का स्वागत करना - जिसने बामाको को जिहादियों से बचाया था - का अर्थ कभी भी कुछ व्यापक उदारवादी-आधुनिकता के एजेंडा का समर्थक होना नहीं था क्योंकि उन्होंने हमेशा ही सामाजिक रूढ़िवाद का बचाव किया है.

आज भी उनका यही नज़रिया है. वे कह चुके हैं कि 'बामाको में रेडिसन ब्लू होटल पर साल 2015 के हमले के लिए ज़िम्मेदार आतंकवादियों को अल्लाह ने पश्चिम से आयातित समलैंगिकता में लिप्त माली के लोगों को दण्ड देने के लिए भेजा था.'

इमाम महमूद डिको के कुछ बयानों से उनकी राष्ट्रवादी भावना भी नज़र आती है, ख़ासतौर से जब वे फ़्रांस पर अपने देश में एक बार फिर उपनिवेश की महत्वाकांक्षाएं रखने का आरोप लगाते हैं.

इस मामले में वे अपने अधिकांश हमवतनों की तरह हैं जिन्हें साल 2013 में फ़्रांस से मदद मिलने की ख़ुशी है, क्योंकि फ़्रांसीसी सैनिकों ने बहुत से माली नागरिकों का बचाया, पर वे अब फ़्रांसीसी सैन्य अभियानों को देख-देखकर थक चुके हैं. इसकी बड़ी वजह यह भी है कि फ़्रांस की सेना अभी भी जिहादी सशस्त्र समूहों को समाप्त करने में क़ामयाब नहीं हुई है.

आज यह एक लोकलुभावन अपील बन चुकी है जो मौजूदा राजनीतिक संकट में उन्हें बहुत ही प्रभावशाली खिलाड़ी बनाती है.

साल 2013 के चुनाव में उन्होंने राष्ट्रपति कीटा को समर्थन दिया था जो पिछले दो वर्षों के संकट के बाद 'राष्ट्रीय गौरव बहाल करने' के नारे पर राष्ट्रपति पद की दौड़ में थे. लेकिन कीटा को सफलता मिली साल 2018 के चुनाव में जिन्हें कीटा ने काफ़ी अच्छे मार्जिन से जीता. जबकि उनके प्रतिद्वंद्वी सोमालिया सिस्से को हार का सामना करना पड़ा.

महमूद डिको: माली के इमाम जो राष्ट्रपति को चुनौती दे रहे
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मगर अब राष्ट्रपति कीटा राजनीतिक घेराबंदी में फंस गए हैं, जबकि सोमालिया सिस्से जिहादी चरमपंथियों के कब्ज़े में हैं जिनका मार्च के महीने में संसदीय चुनावों के प्रचार के दौरान एक ग्रामीण इलाक़े से अपहरण कर लिया गया था.

उधर साल 2017 में राष्ट्रपति कीटा का साथ छोड़ चुके इमाम महमूद डिको ने पिछले साल हाई इस्लामिक काउंसिल के पद से भी इस्तीफ़ा दे दिया और अपने ख़ुद के इस्लामवादी राजनीतिक आंदोलन की शुरुआत की. इसके लिए उन्होंने सीएमएएस नाम का संगठन बनाया है.

वे अब इयाद अग-घाली समेत अन्य जिहादी नेताओं के साथ भी एक नया संवाद स्थापित करने की कोशिशों में शामिल बताये जाते हैं. ये जिहादी नेता अब भी सशस्त्र संघर्ष के रास्ते पर आगे बढ़ने का प्रयास कर रहे हैं जिसे कीटा भी अपनाना चाहते हैं.

लेकिन राष्ट्रपति कीटा के साथ इमाम महमूद डिको की राजनीतिक दरार गहरी बनी हुई है.

उनके विपक्षी सहयोगी धर्मनिरपेक्ष हैं और मौजूदा विरोध प्रदर्शन उन सभी चीजों पर गुस्से से भर रहे हैं जो ग़लत हुई हैं और यह भी देखा गया है कि इन लोगों के बीच माली को इस्लामी गणतंत्र में बदलने की कोई व्यापक लोकप्रिय माँग नहीं है.

माली के उत्तर में अथक सुरक्षा संकट के अलावा, भ्रष्टाचार-घोटालों की एक कड़ी बन गई है. यही वजह है कि शिक्षकों की एक बड़ी हड़ताल ने कोविड-19 की रोकथाम के लिए शुरू हुए लॉकडाउन से बहुत पहले ही कई स्कूलों को बंद करा दिया था.

महमूद डिको: माली के इमाम जो राष्ट्रपति को चुनौती दे रहे
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हालांकि इस बात की भी संभावना कम ही है कि एक ठोस जनादेश के साथ सत्ता में आये राष्ट्रपति कीटा पद छोड़ने के लिए तैयार होंगे.

लेकिन वे नाममात्र की भूमिका में पीछे हटने के लिए सहमत हो सकते हैं, जबकि विपक्ष एक मिलीजुली सरकार में शामिल हो सकता है जो वास्तविक तौर पर सत्ता को कीटा से अपने हाथ में ले ले.

बहरहाल जो भी हो, परिस्थितियाँ ऐसी बन गई हैं जो राष्ट्रपति के 2023 चुनाव में खड़े होने को सीमित करती हैं.

तो क्या इमाम महमूद डिको के लिए राजनीतिक मैदान खुला समझा जा सकता है, जो पारंपरिक राजनीतिक वर्ग से समझौता करके एक राष्ट्रवादी परंपरा के मानक वाहक के रूप में उभर सकते हैं?

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English summary
The Imam of Mali who has shaken the country's power, not afraid of Corona
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