जिस दुर्लभ बैक्ट्रियन खजाने की तलाश में चप्पा-चप्पा छान रहा है तालिबान, क्या है उसका भारत कनेक्शन?
तालिबान के सूचना और संस्कृति मंत्रालय ने कहा है कि उसने खजाने को ट्रैक करने के प्रयास शुरू कर दिए हैं और अगर उसे अफगानिस्तान से बाहर भेजा गया है, तो फिर सख्त कार्रवाई की जाएगी।
काबुल, सितंबर 19: तालिबान ने कहा है कि वो 2 हजार साल पुराने बैक्ट्रियन खजाने को ट्रैक करने और खोजने की कोशिश शुरू कर दी है। बैक्ट्रियन खजाना कहां है, इसकी अभी तक तालिबान को कोई जानकारी नहीं मिल पाई है, लेकिन तालिबान ने कहा है कि अगर खजाने को देश से बाहर भेजा गया है, तो फिर इसे देशद्रोह माना जाएगा और कार्रवाई की जाएगी। तालिबान के अंतरिम सरकार के सांस्कृतिक आयोग के उप प्रमुख अहमदुल्ला वासीक ने टोलो न्यूज से कहा कि ''खजाने की तलाश की जा रही है और अगर इसे देश से बाहर ले जाया गया है, तो फिर कड़ी कार्रवाई की जाएगी''। लेकिन, आईये जानते हैं कि जिस खजाने की तलाश में तालिबान पागल बना हुआ है, उसका भारतीय कनेक्शन क्या है?
तालिबान कर रहा खजाने की खोज
नेशनल ज्योग्राफिक के अनुसार, बैक्ट्रियन खजाने में दुनिया भर से जमा किए गये हजारों सोने के टुकड़े रखे गये हैं। रिपोर्ट के मुताबिक, इस खजाने में दुनियाभर से लाए गये सोने को ईसा पूर्व से पहली शताब्दी ईस्वी तक छह अलग अलग कब्रों के अंदर रखा गया था। रिपोर्ट में बताया गया है कि ''उनके पास 20,000 से अधिक वस्तुएं थीं, जिनमें सोने की अंगूठियां, सिक्के, हथियार, झुमके, कंगन, हार, हथियार और मुकुट शामिल थे। सोने के अलावा, इनमें से कई को फिरोजा, कारेलियन और लैपिस लाजुली जैसे बेशकीमती पत्थरों से तैयार किए गये कई दूसरी दुर्लभ चीजें मौजूद हैं''। इसके अलावा खजाने में बेशकीमती जवाहरातों से बनाया गया डॉल्फिन, देवता और ड्रैगन भी शामिल हैं, जिसकी वजह से ये खजाना अरबों रुपये का हो जाता है।
1978-79 में मिला था दुर्लभ खजाना
तालिबान के सूचना और संस्कृति मंत्रालय ने कहा है कि उसने खजाने को ट्रैक करने के प्रयास शुरू कर दिए हैं, जिसे बैक्ट्रियन गोल्ड के नाम से भी जाना जाता है। इस खजाने को चार दशक पहले शेरबर्गन जिले के तेला तपा इलाके में खोजा गया था, जो उत्तरी जवज्जान प्रांत का केंद्र है। तालिबान अंतरिम कैबिनेट के सांस्कृतिक आयोग के उप प्रमुख अहमदुल्ला वासीक ने कहा कि, उन्होंने संबंधित विभागों को बैक्ट्रियन खजाने को खोजने और जांचने का काम सौंपा है। लेकिन, सवाल उठ रहे हैं कि क्या बैक्ट्रियन गोल्ड खजाना अभी भी अफगानिस्तान में मौजूद है या फिर उसे अफगानिस्तान में निकाल लिया गया है। वहीं, अफगानिस्तान के कई लोगों का मानना है कि चूंकी खजाने का इतिहास पश्तूनों से अलगा है, लिहाजा तालिबान उस खजाने को खोजकर बर्बाद करना चाहता है, ताकि कट्टरपंथी पश्तून संगठन उस इतिहास को मिटा सके।
1922 में मिला था पहला सुराग
मॉस्को पुरातत्वविद्, विक्टर सारिनिडी, जिन्होंने कब्रों की खोज करने वाली संयुक्त सोवियत-अफगान टीम का नेतृत्व किया था, उन्होंने इस खजाने की खोज की तुलना 1922 में तूतनखामेन के मकबरे की खोज से की। स्मिथसोनियन पत्रिका के अनुसार सारिनिडी ने लिखा है, "बैक्ट्रिया के सोने ने पुरातत्व की दुनिया को हिला दिया। पुरातनता में कहीं भी इतनी अलग-अलग संस्कृतियों के इतनी अलग-अलग वस्तुएं नहीं हैं। चीनी-प्रेरित बूट बकल, रोमन सिक्के, साइबेरियाई शैली में खंजर-सीटू भी इस खजाने में एक साथ पाए गए हैं,"।
कलाकृतियों का अद्भुत प्रदर्शन
स्मिथसोनियन मैगज़ीन ने 2009 में कहा था कि, "खजाने में मिली 2,000 साल पुरानी कलाकृतियां सौंदर्य प्रभावों (फारसी से शास्त्रीय ग्रीक तक) का एक दुर्लभ मिश्रण प्रदर्शित करती हैं और बड़ी संख्या में कीमती वस्तुओं ने पुरातत्वविदों को आश्चर्यचकित कर दिया, खास तौर पर छठे मकबरे में पाया गया जटिल सुनहरा मुकुट,"। मैगज़ीन ने कहा था कि, "खजाने में हीरे का हथौड़ा, सोने की पत्ती का पांच इंच लंबा मुकुट, यात्रा के लिए सुविधाजनक रूप से सिलवटों, और एक पहाड़ी भेड़ के अंगूठे के आकार की सोने की आकृति को घुमावदार सींगों और नथुने के साथ नाजुक रूप से उकेरा गया है, जो काफी दुर्लभ है।"
कुशाण राजवंश से संबंध
रूसी पुरातत्वविद सरीनिदी का मानना था कि, खजाना चीन से यूझी रईसों द्वारा इकट्ठा किया गया था, जो दूसरी शताब्दी ईसा पूर्व के आसपास बैक्ट्रिया क्षेत्र में पहुंचे थे और बाद में भारत में कुषाण साम्राज्य की स्थापना की थी। कई और विद्वानों का कहना है कि आधुनिक ईरान के सीथियन द्वारा होर्ड में हस्तक्षेप किया गया था। वहीं, नेशनल ज्योग्राफिक पत्रिका ने 2016 में कहा था कि, "प्रतियोगी सिद्धांत विभिन्न प्रकार के प्रभावों को प्रकट करते हैं जो वस्तुओं के इस विशाल संग्रह को बनाते हैं। अन्य वस्तुओं में सम्राट टिबेरियस की तस्वीर के साथ एक रोमन सिक्का, चीनी उत्कीर्णन के साथ एक चांदी का दर्पण, ग्रीक पाठ के साथ अंगूठियां और बौद्ध इमेजरी वाला एक सिक्का शामिल है,"।
गहनो से लदी एक महिला की खोपड़ी
रूसी पुरातत्वविद सरियानिदी और उनके कार्यकर्ताओं को खुदाई के दौरान सोने के आभूषणों और गहनों से लदी एक खोपड़ी और कंकाल मिला। ये खोपड़ी एक 25 से 30 साल की महिला के अवशेष थे, जिसे सारियानिदी ने खानाबदोश राजकुमारी कहा था। स्मिथसोनियन मैगज़ीन के अनुसार, "उन्होंने बाद में पांच अतिरिक्त कब्रों को की खोज की और उसरी खुदाई की, जिसमें ढक्कन रहित लकड़ी के ताबूत वाले साधारण खाइयां मिलीं, जो एक बार अलंकृत रूप से सजी हुई लाशों के अवशेष थे।" इसके साथ ही वहां पर खुदाई के दौरान भारतीय सोने का सिक्का भी मिला, जिसको लेकर पुरातत्वविदों ने कहा कि, ये बुद्ध के जीवनकाल का सिक्का है और उनके शुरूआती दिनों के जीवन का प्रतिनिधित्व करता है।