Taiwan National Day: क्यों ताइवान से डरा हुआ है चीन, भारत-अमेरिका की वजह से कैसे बदल रही है गणित
ताइपे। ताइवान आज अपना राष्ट्रीय दिवस मना रहा है। हर वर्ष 10 अक्टूबर को होने वाला यह दिन पिछले वर्ष तक सिर्फ ताइवान के लिए होता था लेकिन आज यह भारत समेत अमेरिका और उन तमाम देशों के लिए भी एक आयोजन की तरह बन गया है जो चीन की आक्रामकता से त्रस्त हैं। भारत की मीडिया को भी चीन की तरफ से पिछले दिनों आगाह किया गया था कि वह इस मौके से दूर रहें और वन चाइना पॉलिसी का सम्मान करे। साथ ही चीनी सरकार भारत समेत दूसरे पड़ोसी देशों की सरकारों को चेतावनी देती रहती है कि वह ताइवान को एक देश की मान्यता हरगिज न दें और ऐसा करने से बचें। लेकिन इस बार ट्विटर और दूसरे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर भारतीय यूजर अपनी डीपी में ताइवान का झंडा लगा कर चीन को जवाब दे रहे हैं।
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सात दशकों से चीन की आक्रामकता झेलता ताइवान
ताइवान एशिया का वह देश है जिसने चीन की विस्तारवाद नीति का जवाब देने में सफलतापूर्वक संघर्ष किया है। पिछले सात दशकों से ताइवान, चीन की इस विस्तारवादी नीति का जवाब देता आ रहा है। इस वर्ष अंतरराष्ट्रीय स्तर पर समीकरण बदल चुके हैं। चीन से निकले कोरोना वायरस से पहले ही दुनिया परेशान थी। इस बीच भारत के पूर्वी लद्दाख में लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल (एलएसी) पर चीन की सेना आ पहुंची तो साउथ चाइना सी पर भी चीनी नेवी ने आक्रामकता को बढ़ा दिया। चीन का जवाब देने के लिए क्वाड संगठन सक्रिय हो गया है। इसमें अमेरिका के अलावा भारत, जापान और ऑस्ट्रेलिया शामिल हैं। चीन जो 'वन चाइना-पॉलिसी' को मानता है, इन सभी देशों से भी कहता आया है कि वह जमीन, पानी और हवा में भी इस नीति का पालन करें और ताइवान से दूर रहे हैं। लेकिन अब कोई भी देश उसकी इस बात को मानने के लिए तैयार नहीं है।
क्यों है चीन और ताइवान के बीच विवाद
चीन और ताइवान के बीच विवाद, चीन के सिविल वॉर के समय से ही चल रहा है। वर्ष 1927 में हुए इस सिविल वॉर की वजह से सेनाओं ने चीन की कम्यूनिस्ट पार्टी के साथ गठबंधन कर लिया और यह गठबंधन नेशनलिस्ट क्यूमिनटैंग आर्मी यानी केएमटी के विरोध में हुआ था। वर्ष 1949 में में जब चीन का सिविल वॉर खत्म हुआ तो चीन ने वन चाइना पॉलिसी को लागू कर दिया। हारे हुए देश के लोगों को क्यूओमिनटैंग कहा गया और ये ताइवान चले गए। यहां पर इन्होंने अपनी सरकार बना ली जबकि जीती हुई कम्यूनिस्ट पार्टी चीन पर शासन कर रही थी। दोनों ही पक्षों का कहना था कि वे चीन का प्रतिनिधित्व करते हैं। तब से ही चीन की सत्ताधारी कम्यूनिस्ट पार्टी ने ताइवान को धमकी दी हुई है कि अगर उन्होंने औपचारिक तौर पर खुद को एक आजाद देश घोषित किया तो फिर चीन को अपनी सेनाओं का प्रयोग करना पड़ेगा।
हमेशा मिलिट्री के प्रयोग की बात करता चीन
चीन हमेशा से कहता आया है कि वह मिलिट्री का प्रयोग करके ताइवान को अपने अधिकार में ले सकता है। 15 जनवरी 2020 को पेशे से टीचर रहीं साइ इंग वेन जब ने दोबारा चुनाव जीता तो उन्होंने चीन को स्पष्ट संदेश दिया। उन्होंने कड़ा बयान दिया और कहा, 'हमें उम्मीद है कि चीन इस बात को पूरी तरह से समझता है और ताइवान के लोगों ने चुनावों में जो उम्मीद दिखाई है, उसे मानेगा।' उन्होंने चीन को साफ संदेश दिया था कि वह अपनी वर्तमान नीतियों को फिर से देखे। चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने सपना देखा है कि साल 2049 तक ताइवान, चीन उनके देश की सीमा में आ जाएगा। फिलहाल साइ के रहते उनका यह सपना पूरा होते नहीं दिख रहा है।
भारत ने दिया चीन को बड़ा संदेश
मई माह में जब लद्दाख में चीन की सेना ने घुसपैठ की तो उस समय केंद्र सरकार ने एक बड़ा फैसला लिया। केंद्र की सत्तारूढ़ बीजेपी सरकार के दो सांसदों ने ताइवान की राष्ट्रपति साइ इंग वेन के शपथ ग्रहण समारोह में हिस्सा लिया। इस फैसले से यह संदेश गया कि भारत भी अब वन चाइना पॉलिसी को किनारे करने लगा है। इसके बाद चीन की कम्युनिस्ट पार्टी ने भारत से कहा कि वह ताइवान का समर्थन करना बंद करें। साथ ही उसने भारत को चीन के आतंरिक मामलों में दूर रहने के लिए कह दिया। ताइवान की राष्ट्रपति के शपथ ग्रहण समारोह में बीजेपी सांसद मिनाक्षी लेखी और राहुल कासवान ने शिरकत की थी और वेन को बधाई भी दी थी।
चीन की वन चाइना पॉलिसी किनारे
वन चाइना पॉलिसी चीन के राजनयिक दर्जे को स्थान देती है। इस पॉलिसी के तहत एक चीनी सरकार को ही स्वामी माना जाता है। इस नीति के तहत अमेरिका, चीन के साथ औपचारिक संबंधों को पहचान देता है। वह ताइवान को मान्यता नहीं देता है। चीन, ताइवान को अपना हिस्सा मानता है और उसका भरोसा है कि एक दिन ताइवान भी चीन का हिस्सा होगा। पिछले वर्ष तक वन चाइना पॉलिसी चीन के दूसरे देशों जैसे भारत और अमेरिका के साथ रिश्तों की आधारशिला होती थी। चीन इसी पॉलिसी के तहत अपनी नीतियां बनाता है। लेकिन अब यह स्थिति बदलने लगी है। आज दुनिया के कई देश इस नीति को खारिज करने लगे हैं और जो ताइवान इंटरनेशनल कम्यूनिटी से कटा हुआ करता था अब उसे दुनिया के कई देश हाथों-हाथ लेने लगे हैं।
जब अमेरिका ने पास किया ताइवान एक्ट
चीन के साथ अमेरिका ने वर्ष 1979 में पूर्व राष्ट्रपति जिमी कार्टर के समय में औपचारिक तौर पर राजनयिक रिश्तों की शुरुआत की थी। इसका नतीजा हुआ कि अमेरिका को ताइवान के साथ अपने रिश्ते तोड़ने पड़े और ताइवान की राजधानी ताइपे में दूतावास को बंद करना पड़ गया। लेकिन इस वर्ष अमेरिका ने ताइवान रिलेशंस एक्ट पास किया, जो ताइवान को समर्थन देने की गारंटी था। यह एक्ट यह भी कहता था कि अमेरिका को हर हाल में ताइवान की मदद करनी चाहिए ताकि वह अपनी सुरक्षा कर सके। इसी वजह से अमेरिका आज भी ताइवान को अपने हथियारों की बिक्री करता है। ताइवान में अमेरिका का आज एक अमेरिकन इंस्टीट्यूट है और अनाधिकारिक तौर पर अमेरिका की मौजूदगी भी है। यहीं से अमेरिका अपनी सभी राजनयिक गतिविधियों को भी चलाता है।
ट्रंप के आने से बदली तस्वीर
साल 2016 में जब डोनाल्ड ट्रंप ने अमेरिकी राष्ट्रपति का पद संभाला तो उन्होंने ताइवान की राष्ट्रपति साइ इंग वेन को फोन किया। ट्रंप, जिमी कार्टर के बाद दूसरे आखिरी ऐसे राष्ट्रपति बने जिन्होंने ताइवान के नेतृत्व से संपर्क किया। साल 2016 से पहले जिमी कार्टर आखिरी राष्ट्रपति थे जिन्होंने ताइवान के नेता से बात की थी। साल 1979 में कार्टर और ताइवान के नेता से संपर्क किया था। आज अमेरिका की सेनाएं लगातार ताइवान में मौजूद रहती हैं और अमेरिकी मिलिट्री हर मौके पर देश की मदद करने को तैयार नजर आता है। खुद राष्ट्रपति ट्रंप भी कह चुके हैं कि अगर चीनी सेना ताइवान पहुंची तो फिर उसका जवाब दिया जाएगा।