सुनंदा वशिष्ठ: कश्मीर पर अमरीका में इस महिला का दिया भाषण क्यों छाया
भारत प्रशासित कश्मीर में मानवाधिकार की स्थिति की पड़ताल के लिए अमरीकी कांग्रेस के निचले सदन के सदस्यों के एक समूह की ओर से आयोजित एक सुनवाई का वीडियो भारत के सोशल मीडिया में चर्चा में आ गया है. टॉम लैंटोस एचआर कमिशन की ओर से आयोजित एक कार्यक्रम में सुनंदा वशिष्ठ नाम की महिला ने भारत प्रशासित कश्मीर की वर्तमान स्थिति को लेकर मानवाधिकार की वकालत करने वालों पर सवाल उठाए.
भारत प्रशासित कश्मीर में मानवाधिकार की स्थिति की पड़ताल के लिए अमरीकी कांग्रेस के निचले सदन के सदस्यों के एक समूह की ओर से आयोजित एक सुनवाई का वीडियो भारत के सोशल मीडिया में चर्चा में आ गया है.
टॉम लैंटोस एचआर कमिशन की ओर से आयोजित एक कार्यक्रम में सुनंदा वशिष्ठ नाम की महिला ने भारत प्रशासित कश्मीर की वर्तमान स्थिति को लेकर मानवाधिकार की वकालत करने वालों पर सवाल उठाए.
हालांकि, पैनल में शामिल अन्य लोगों ने पांच अगस्त को भारत की ओर से जम्मू कश्मीर से विशेष राज्य का दर्जा वापस लेने और इसे दो केंद्र शासित प्रदेशों में बांटे जाने के बाद पैदा हुए हालात पर चिंता जताई.
विटनस पैनल में ख़ुद को लेखिका, राजनीतिक टिप्पणीकार और नस्लीय नरसंहार की पीड़ित कश्मीरी हिंदू के तौर पर प्रस्तुत करने वालीं सुनंदा ने कहा कि 'कश्मीर में अराजकता के ख़िलाफ़ लड़ने में भारत की सहायता करने के लिए यह उपयुक्त समय है.'
सुनंदा के भाषण को कई लोग सोशल मीडिया पर शेयर कर रहे हैं. भारतीय जनता पार्टी के आधिकारिक ट्विटर हैंडल से भी उनके भाषण के अंश को ट्वीट किया गया है और पार्टी से जुड़े लोग भी इसे शेयर कर रहे हैं.
'Where were the advocates of human rights when my rights were taken away?’ asks noted columnist Sunanda Vashisht at the US Congressional hearing on Human Rights in Washington.
'Abrogation of Article 370 is in fact a restoration of human rights’, she says. A must watch. pic.twitter.com/TTqLN1ZDNq
— BJP (@BJP4India) November 15, 2019
क्या है यह कमिशन?
टॉम लैंटोस एचआर कमिशन अमरीकी संसद के निचले सदन हाउस ऑफ़ रिप्रज़ेंटेटिव्स का द्विपक्षीय समूह है जिसका लक्ष्य अंतरराष्ट्रीय रूप से मान्य मानवाधिकार नियमों की वकालत करना है.
कमिशन की ओर से "भारत के पूर्व राज्य जम्मू और कश्मीर में ऐतिहासिक और राष्ट्रीय संदर्भ में मानवाधिकार की स्थिति की पड़ताल" के विषय पर सुनवाई का आयोजन किया गया था.
कमिशन की ओर से होने वाली इस तरह की विभिन्न सुनवाइयों में शामिल होने वाले 'गवाह' अमरीकी कांग्रेस को संबंधित विषय पर क़दम उठाने को लेकर सुझाव देते हैं.
जम्मू-कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा देने वाले संविधान के अनुच्छेद 370 को निष्प्रभावी किए जाने और इसे दो केंद्र शासित राज्यों में बांटने के बाद मानवाधिकार की स्थिति को लेकर उठ रहे सवालों पर शुक्रवार को हुई टॉम लैंटोस एचआर कमिशन की इस सुनवाई में दो पैनल थे.
पहले पैनल में अमरीका के अंतरराष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता आयोग की आयुक्त अरुणिमा भार्गव थीं जिन्होंने भारत प्रशासित कश्मीर में अल्पसंख्यकों की स्थिति पर बात रखी. दूसरे पैनल में सुनंदा वशिष्ठ समेत छह लोग थे.
क्या कहा सुनंदा ने?
सुनंदा ने दावा किया कि 'पश्चिम और बाक़ी अंतरारष्ट्रीय समुदाय का ध्यान कश्मीर में मानवाधिकार की ख़राब स्थिति पर जाने से पहले घाटी ने उसी तरह के आतंक और बर्बरता को देखा है जिसे इस्लामिक स्टेट ने सीरिया में अंजाम दिया था.''
उन्होंने कहा, "मुझे ख़ुशी है कि आज इस तरह की सुनवाइयां हो रही हैं क्योंकि जब मेरे परिवार और हमारे जैसे लोगों ने अपने घरों, आजीविका और जीवनशैली को छोड़ना पड़ा, तब दुनिया चुप बैठी थी. जब मेरे अधिकार छीने गए थे तब मानवाधिकार की वकालत करने वाले लोग कहां थे?"
सुनंदा वशिष्ठ ने कहा, "राजनियक मामलों में भारत को किसी प्रमाणपत्र की आवश्यकता नहीं. लोकतांत्रिक व्यवस्था के तहत भारत ने पंजाब और उत्तर पूर्व में अराजकता को पराजित किया है. इस तरह की अराजकता से निपटने के लिए भारत को मज़बूत करने का यह सही समय है ताकि मानवाधिकार से जुड़ी समस्याओं को हमेशा के लिए ख़त्म किया जा सके."
पाकिस्तान पर आरोप
वशिष्ठ ने कहा, "हम कश्मीर में इस्लामी आतंकवाद से लड़ रहे हैं. हमें इस तथ्य का पता होना चाहिए. सभी मौतें पाकिस्तान की ओर से ट्रेनिंग पाने वाले आतंकवादियों के कारण हो रही हैं. दोहरी बातों से भारत को कोई मदद नहीं मिल रही."
लेखिका ने कहा कि अंतरराष्ट्रीय समुदाय को 'कट्टरपंथी इस्लामी आतंक' से निपटने में भारत की सहायता करनी होगी, तभी मानवाधिकारों को संरक्षण दिया जा सकेगा.
सुनंदा वशिष्ठ ने यह भी कहा कि कश्मीर में कभी जनमत संग्रह नहीं होगा. उन्होंने कहा, "जनमत संग्रह के लिए ज़रूरी है कि पूरा समुदाय एक फ़ैसला ले. मगर इस मामले में कश्मीर का एक हिस्सा भारत के पास है और दूसरा पाकिस्तान के पास; चीन के पास भी एक हिस्सा है."
आख़िर में सुनंदा ने कहा, "भारत ने कश्मीर पर कब्ज़ा नहीं किया और वह हमेशा से भारत का अभिन्न हिस्सा था."
उन्होंने कहा, "भारत की पहचान 70 साल की नहीं है बल्कि यह 5000 साल पुरानी सभ्यता है. कश्मीर के बिना भारत नहीं है और भारत के बिना कश्मीर नहीं."
अन्य पैनलिस्ट क्या बोले
पहले पैनल में शामिल अमरीकी अंतरराष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता आयोग की आयुक्त अरुणिमा भार्गव ने बताया कि पांच अगस्त को भारत सरकार द्वारा घाटी में पाबंदियां लगाए जाने के बाद शुरुआती हफ़्तों में ऐसी रिपोर्टें आईं कि लोग नमाज़ नहीं पड़ पाए या मस्जिदों में नहीं जा सके. उन्होंने कहा कि उसके बाद भी सख़्ती के कारण हिंदू और मुस्लिम समुदाय के लोग त्योहारों को मनाने के लिए एकत्रित नहीं हो पाए.
दूसरे पैनल की सबसे पहली वक्ता ओहायो यूनिवर्सिटी में मानवविज्ञान की एसोसिएट प्रोफ़ेसर हेली डुशिंस्की ने 370 को निष्प्रभावी किए जाने को 'भारत का तीसरी बार किया कब्ज़ा' बताया. उन्होंने कहा कि इसस पहले 'भारत ने 1948 और फिर 1980 के दशक में अतिरिक्त सेना की तैनाती करके कश्मीर पर नियंत्रण किया था.'
वहीं मानवाधिकार की वकालत करने वालीं सेहला अशाई भारत सरकार पर कश्मीर के दमन का आरोप लगाया. उन्होंने कहा कि भारत द्वारा 370 को निष्प्रभावी बनाने से सभी धर्मों और समुदायों के लोग प्रभावित हुए हैं. उन्होंने इस संबंध में अमरीका से कूटनीतिक प्रयास करने की मांग की.
वहीं यूसरा फ़ज़िली नाम की पैनलिस्ट ने कहा कि भारत प्रशासित कश्मीर में उनके चचेरे भाई मुबीन शाह को हिरासत में ले लिया गया है. उन्होंने कहा, "बहुत से लोग सामने नहीं आ रहे हैं क्योंकि उन्हें परिजनों की चिंता है. वे सामान लाने तक बाहर नहीं जा पा रहे. इंटरनेट तक वहां नहीं हैं. स्वास्थ्य और बुनियादी सुविधाओं को बहार करने के लिए कांग्रेस को भारत पर दबाव डालना चाहिए.'
पैनल में शामिल जॉर्जटाउन लॉ में सहायक प्रोफ़ेसर वाले अर्जुन एस. सेठी ने भी भारत के क़दम की आलोचना की और न सिर्फ़ कश्मीर बल्कि असम को लेकर केंद्र सरकार के रवैये पर भी सवाल उठाए.
आख़िर में मानवाधिकार संगठन ह्यूमन राइट्स वॉच के एशिया एडवोकेसी डायरेक्टर जॉन सिफ़्टन कहा कि भारत ने हज़ारों लोगों को हिरासत में लिया है मगर ऐसा क्यों किया, इसका क़ानूनी कारण बताने में सरकार असमर्थ रही है.
उन्होंने कहा, "लोग कई परेशानियों से जूझ रहे हैं. वहां इंटरनेट नहीं है. लोग बंधन महसूस कर रहे हैं. कारोबारी परेशान हैं, डॉक्टर परेशान हैं. ईमेल तक नहीं कर पा रहे."