सूडान संकटः वो देश जहां काबिज़ है भाड़े के सैनिकों की फ़ौज
सूडान में सरकारी सुरक्षा बल 'रैपिड सपोर्ट फ़ोर्स' पर ताक़त के बेज़ा इस्तेमाल के आरोप लगातार लगते रहे हैं. इन आरोपों में तीन जून का वो नरसंहार भी है जिसमें 120 लोगों की मौत हो गई थी. मारे गए कई लोगों को नील नदी में फेंक दिया गया था. सूडान मामलों के जानकार एलेक्स डे वाल ने 'रैपिड सपोर्ट फ़ोर्स' या 'आरएसएफ़' के उभार पर लंबे समय से नज़र रखी है.
सूडान में सरकारी सुरक्षा बल 'रैपिड सपोर्ट फ़ोर्स' पर ताक़त के बेज़ा इस्तेमाल के आरोप लगातार लगते रहे हैं.
इन आरोपों में तीन जून का वो नरसंहार भी है जिसमें 120 लोगों की मौत हो गई थी. मारे गए कई लोगों को नील नदी में फेंक दिया गया था.
सूडान मामलों के जानकार एलेक्स डे वाल ने 'रैपिड सपोर्ट फ़ोर्स' या 'आरएसएफ़' के उभार पर लंबे समय से नज़र रखी है.
सूडान में असली सत्ता किसके पास है? इस सवाल का एक ही जवाब है- आरएसएफ़. वे एक नई तरह की हुकूमत चला रहे हैं.
सूडान मूल के लोगों और कारोबार में दिलचस्पी रखने वाले लोगों की इस फ़ौज का दायरा सूडान की सरहदों के बाहर तक है.
एक तरह से कहा जाए तो भाड़े के सैनिकों की एक फ़ौज ने एक मुल्क पर कब्ज़ा कर लिया है. जनरल मोहम्मद हमदान 'हेमेती' डागोलो 'आरएसएफ़' के कमांडर हैं.
कैसे वजूद में आया आरएसएफ़
जनरल मोहम्मद और उनकी फ़ौज ने अरब मिलिशिया के शुरुआती दिनों से लेकर लंबा सफ़र तय कर लिया है.
साल 2013 में तत्कालीन राष्ट्रपति उमर अल-बशीर के हुक्म के बाद 'आरएसएफ़' वजूद में आया था. लेकिन उसकी पांच हज़ार लोगों की फ़ौज लंबे समय से हथियारबंद और सक्रिय थी.
'आरएसएफ़' की कहानी साल 2003 में उस वक़्त शुरू हुई थी जब बशीर की सरकार ने ऊंट चराने वाले चरवाहों को दारफुर में सक्रिय अफ़्रीकी लड़ाकों के ख़िलाफ़ जंग के लिए तैयार करना शुरू किया था.
उत्तरी दारफुर और इससे लगे चाड के इलाके में रहने वाले ये चरवाहे महामीद और महारिया जनजाति के थे जिनका मुख्य काम ऊंटों की देखभाल करना था.
ये लोग उस इलाके में तब से रह रहे हैं जब यहां मुल्कों की सरहदें भी नहीं खींची गई थी. ये चरवाहे जंजावीड कहे जाते हैं.
साल 2003 से 2005 के दरमियां जब दारफुर में युद्ध और नरसंहारों का दौर चल रहा था तब कुख्यात जंजावीड नेता मूसा हिलाल महामीद कबीले के मुखिया हुआ करते थे.
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सरकार से नाराज़गी
इन जंजावीड लड़ाकों ने ख़ून बहाने की अपनी काबिलियत को बखूबी साबित किया था.
बशीर ने इन्हें एक पैरामिलिट्री फ़ोर्स के ढांचे में ढाल दिया और इसका नाम दिया गया और इसका नाम दिया गया बॉर्डर इंटेलीजेंस यूनिट.
दक्षिणी दारफुर इस पैरामिलिट्री फोर्स की एक टुकड़ी के नौजवान कमांडर मोहम्मद डागोलो थे. बच्चे जैसी शक्ल होने की वजह से उन्हें हेमेती के नाम से जाना जाता है.
हेमेती का मतलब हुआ नन्हा मोहम्मद. हेमेती की पढ़ाई स्कूल के दिनों में ही छूट गई थी.
महारिया कबीले से ताल्लुक रखने वाले हेमेती के दादा जब चाड में रहते थे, तो उनकी हैसियत कबीले में मुखिया के बाद नंबर दो की हुआ करती थी.
हेमेती के करियर में साल 2007 में उस वक़्त एक बड़ा मोड़ आया जब जब उनकी टुकड़ी वेतन देने में सरकार की नाकामी को लेकर नाराज़ हो गई.
दारफुर के अश्वेत अफ़्रीकी
हेमेती के साथी लड़ाकों को ये लगा कि उनका शोषण किया गया, उन्हें लड़ाई के अगले मोर्चे पर तैनात किया गया, ज़्यादतियों के लिए वे लोग ही बदनाम हुए और उन्हें अकेले ही छोड़ भी दिया गया.
हेमेती और उनके लड़ाकों ने बग़ावत कर दी और 'क़यामत के दिन तक' खार्तूम के साथ जंग का एलान किया.
इतना ही नहीं दारफुर में सक्रिय विद्रोहियों से उन्होंने समझौते की भी कोशिश की. उसी दौर में 'मीट द जंजावीड' टाइटल से एक डॉक्युमेंट्री की शूटिंग हुई थी.
इस डॉक्युमेंट्री में हेमेती दारफुर के अश्वेत अफ़्रीकियों को अपनी फ़ौज में भर्ती करते हुए दिख रहे थे.
हालांकि हेमेती की फौज में कमांडर के ओहदे पर केवल उनके अपने महारिया कबीले के लोग ही थे लेकिन दूसरे कबीलों के लोगों को फौज में शामिल करने पर उन्हें कोई एतराज नहीं था.
हाल ही में हेमेती की 'रैपिड सपोर्ट फोर्स' में दारफुर के दूसरे कबीलों का विलय इसकी तस्दीक करता है.
सरकार से समझौता हो जाने के बाद हेमेती खार्तूम लौट आए. दरअसल सरकार ने हेमेती के साथी सैनिकों के लिए वेतन की बात मान ली थी.
उनके सैनिकों को सेना में ओहदे दिए गए यहां तक कि हेमेती खुद ब्रिगेडियर जनरल बनाए गए. हेमेती को आर्मी स्टाफ़ कॉलेज की ज़िम्मेदारी के अलावा बड़ी रकम भी मिली.
उनके सैनिकों को राष्ट्रीय ख़ुफ़िया एवं सुरक्षा सेवा (एनआईएसएस) की कमान में रखा गया था, तब चाड से छद्म युद्ध चल रहा था.
हेमेती के कुछ लड़ाकों ने, चाड के विपक्ष के बैनर तले, 2008 में चाड की राजधानी तक अपनी लड़ाई लड़ी.
इस बीच, हेमेती का अपने पूर्व गुरु हिलाल से झगड़ा हो गया. डारफुर में उनकी लड़ाई 10 साल तक चली. हिलाल एक सीरियल बाग़ी थे लिहाजा बशीर के जनरलों ने हेमेती को अधिक भरोसेमंद पाया.
2013 में हेमेती के नेतृत्व में एक नए अर्धसैनिक बल आरएसएफ़ का गठन किया गया.
सेना प्रमुख को यह पसंद नहीं था- वह चाहते थे कि पैसा नियमित सैनिकों को मजबूत करने में लगाया जाये और बशीर एनआईएस के हाथों में इतनी अधिक ताक़त देने को लेकर चिंतित थे. उन्होंने अपने डायरेक्टर को उनके ख़िलाफ़ तथाकथित साज़िश रचने को लेकर निकाल दिया.
इसलिए आरएसएफ़ को बशीर के प्रति जवाबदेह बनाया गया- राष्ट्रपति ने हेमेती को 'हिमायती' उपनाम दिया.
खार्तूम के पास प्रशिक्षण शिविर लगाये गये. सैकड़ों लैंड क्रूज़र पिक-अप ट्रकों का आयात किया गया और उन पर मशीन गने लगायी गयीं.
आरएसएफ़ के सैनिक दक्षिण कोर्डोफन में विद्रोहियों के ख़िलाफ़ लड़े लेकिन अनुशासनहीन होने की वजह से अच्छा नहीं किया. जबकि डारफुर में विद्रोहियों के ख़िलाफ़ वो बेहतर थे.
सोने की दौड़
जब 2012 में उत्तर डारफुर के जेबेल अमीर में सोने की खोज की गयी तब हेमेती और हिलाल के बीच प्रतिद्वंद्विता और तेज़ हो गयी.
तब सूडान आर्थिक संकट का सामना कर रहा था, क्योंकि उस वक्त अपने साथ देश का 75 फ़ीसदी तेल लेकर दक्षिण सूडान टूट कर अलग हो गया था.
जो उस वक्त वरदान माना जा रहा था लेकिन बाद में अभिशाप से कहीं बड़ा साबित हुआ.
कुछ दिनों बाद ही हज़ारों नौजवान दारफुर के एक सुदूर कोने में उथले खानों में उपकरणों के साथ अपनी किस्मत की आजमाइश में लग गये.
कुछ सोने को पाने में सफल रहे और अमीर बन गये बाकी उन खानों में दब गये या कच्चे सोने को तैयार करने में इस्तेमाल किये जाने वाले पारे और संखिया (आर्सेनिक) के ज़हर की भेंट चढ़ गये.
स्थानीय बेनी हुसैन समूह के 800 से अधिक लोगों की हत्या करके हिलाल मिलिशिया ने जबरन इलाके पर कब्ज़ा कर लिया और खनन और सोने की बिक्री से समृद्ध होने लगे.
कुछ सोना सरकार को बेचा गया, जिसके लिए सूडान पैसे में बाज़ार से अधिक के भाव दिये गये क्योंकि हार्ड करेंसी की लालसा में यह सोना वो आसानी से दुबई में बेच सकते थे.
इस बीच सीमा पार से सोने की कुछ तस्करी चाड में की जा रही थी, जहां चोरी की गाड़ियों को ख़रीदने और उसे सूडान में वापस तस्करी करने का रैकेट चलता था.
उत्तर चाड के रेगिस्तानी बाज़ार टिबेस्ति में 1.5 किलो सोने के बदले एक 2015 मॉडल की लैंड क्रूज़र ली गई थी, जो शायद डारफुर की एक एजेंसी से चुराया गई थी. नंबर प्लेट को बदल कर उसे वापस डारफुर में भेज कर बेचा गया था.
2017 तक सूडान के निर्यात में सोने का हिस्सा 40 फ़ीसदी था और यही वजह थी कि हेमेती की नज़र इसे नियंत्रित करने पर थी.
पहले से ही उनके पास कुछ खान थे और उन्होंने अल-जुनैद के नाम से एक ट्रेडिंग कंपनी स्थापित कर रखी थी. लेकिन जब हिलाल ने जेबेल अमीर के खदानों में सरकार को घुसने से रोक कर एक बार फिर बशीर को चुनौती दी, तो हेमेती के नेतृत्व वाले आरएसएफ़ ने जवाबी हमला किया.
नवंबर 2017 में, उनकी सेना ने हिलाल को गिरफ़्तार कर लिया और फिर आरएसएफ़ ने सूडान की सबसे फायदे वाले सोने की खानों को भी अपने कब्जे में ले लिया.
क्षेत्रीय ताक़त
हेमेती रातोंरात देश में सोने के सबसे बड़े व्यापारी बन गये. और चाड और लीबिया की सीमाओं पर नियंत्रण के साथ देश के सबसे बड़ी सीमा के रक्षक भी. हिलाल जेल में हैं.
खार्तूम शांति प्रक्रिया के तहत, सहारा से लीबिया तक प्रवासियों को नियंत्रित करने के लिए यूरोपीय संघ सूडान की सरकार का वित्त पोषण करता है.
हालांकि यूरोपीय संघ लगातार इसे नकारता रहा है, लेकिन कई सूडानी मानते हैं कि इसकी वजह से आरएसएफ़ को सीमा संचालन, रिश्वत और फिरौती के लाइसेंस के साथ साथ अवैध व्यापार का लाइसेंस मिल गया.
सूडान का अधिकतर सोना आधिकारिक रूप से या तस्करी से दुबई पहुंचता है. लेकिन जल्द ही हेमेती का यूएई से संपर्क बहुत बढ़ गया.
2015 में सूडान की सरकार यमन में सऊदी-यूएई गठबंधन के साथ अपनी सेना भेजने पर सहमत हुई. इसके कमांडर जनरल अब्देल फतह अल-बुरहान थे, जो अब सत्तारूढ़ ट्रांन्ज़िशनल मिलिट्री काउंसिल के प्रमुख हैं.
लेकिन कुछ महीने बाद, यूएई ने दक्षिण यमन में युद्ध के लिए आरएसएफ़ की बड़ी सेना भेजने के लिए हेमेती के साथ एक समानांतर सौदा किया.
हेमेती सऊदी अरब की यमन से लगी सीमा के लिए भी अपनी सेना की मदद दे रहे हैं.
अब तक आरएसएफ़ की ताक़त दस गुना बढ़ चुकी थी. लेकिन इसके कमांड में बदलाव नहीं हुआ- इसके सभी जनरल दारफुर के 'दागोलो' नाम वाले थे.
70 हज़ार सैनिकों और 10 हज़ार से अधिक सशस्त्र पिक-अप ट्रक के साथ आरएसएफ़ सूडान की राजधानी खार्तूम और अन्य शहरों की सड़कों को नियंत्रित करने वाली वास्तविक सेना बन गयी है.
सोने और आधिकारिक रूप से अपने सैनिकों के बल पर हेमेती के हाथ में सूडान का एक बड़ा राजनीतिक बजट आ गया- ये पैसा जिसे वो बिना कोई जवाबदेही के अपनी निजी सुरक्षा या अन्य गतिविधियों पर खर्च कर सकते हैं.
कैश बांटना और पीआर पॉलिसी
उनके रिश्तेदारों द्वारा संचालित अल-जुनैद कंपनी खनन, निवेश, परिवहन, कार रेंटल, लोहे और इस्पात जैसी वस्तुओं की एक विशाल समूह बन गयी.
जब बशीर अप्रैल में सूडान की सत्ता से अपदस्थ किये गये तब हेमेती सूडान के सबसे अमीर लोगों में से एक थे- शायद किसी भी राजनेता से कहीं अधिक धनी.
हेमेती राजनीतिक और व्यावसायिक रूप से बहुत तेज़ी से आगे बढ़ते रहे हैं.
वे पुलिसवालों को काम पर लौटने के लिए, बिजली कर्मचारियों को सेवा बहाल करने के लिए या शिक्षकों को पढ़ाने के लिए लौटने को लेकर पैसे देते हर हफ़्ते न्यूज़ में दिखते हैं. आदिवासी मुखियाओं को उन्होंने कारें दी हैं.
संयुक्त राष्ट्र शांति सेना डारफुर से वापस हट रही थी तो आरएसएफ़ ने तब तक उनके कैंपों को अपने कब्ज़े में ले लिया जब तक उन्होंने वापसी रोक नहीं दी.
हेमेती का कहना है कि उन्होंने आरएसएफ़ सेना को यमन में बढ़ा दिया है और एक ब्रिगेड को जनरल ख़लीफ़ा हाफ्तार का साथ देने लीबिया भेजा है. मुमकिन है यूएई के पेरोल पर लेकिन उसे मिस्र का समर्थन भी हासिल हो सकता है क्योंकि मिस्र जनरल हाफ़्तार की लीबिया नेशनल आर्मी का समर्थन करता है.
हेमेती ने अपनी छवि चमकाने और रूस और अमरीका में राजनीतिक पहुंच हासिल करने लिए कनाडा की एक पब्लिक रिलेशन कंपनी के साथ करार किया है.
आज हेमेती एक ऐसे सैन्य-राजनीतिक उद्यमी हैं जिनका सेना मुहैया कराने का व्यापार देश की सरहदों और क़ानूनी सीमाओं के बाहर तक फैला है.
यह कम पढ़ा लिखा व्यापारी आज सूडान में किसी भी सैन्य जनरल या नेता की तुलना में कहीं अधिक ताक़तवर है.
और जिस राजनीतिक बाज़ार को वह संभाल रहे हैं वो किसी भी ग़ैरफ़ौजी सरकार के कमज़ोर संस्थानों के मुक़ाबले कहीं अधिक सक्रिय है.
(एलेक्स डी वाल फ्लेचर स्कूल ऑफ़ लॉ एंड डिप्लोमेसी, टफ्टस विश्वविद्यालय मेंवर्ल्ड पीस फाउंडेशन के कार्यकारी निदेशक हैं.)