'सिर्फ भारत ही नहीं, सिंगापुर के इतिहास का भी अहम हिस्सा हैं सुभाष चंद्र बोस', जानिए कैसे दी गई श्रद्धांजलि
असद ने नेताजी की 125वीं जयंती पर बोलते हुए कहा कि, 'नेताजी एक स्वतंत्र सिंगापुर के निर्माण में भारत की भूमिका के केंद्र में हैं।"
सिंगापुर, जनवरी 23: नेताजी सुभाष चंद्र बोस सिंगापुर के इतिहास का उतना ही हिस्सा हैं जितना कि भारत का, कहना है सिंगापुर के प्रसिद्ध लेखक असद लतीफ का, जिन्होंने बेहद खास अंदाज में भारत के महान स्वतंत्रता सेनानी सुभाष चंद्र बोस को श्रद्धांजलि दी है। असद लतीफ, सिंगापुर के प्रसिद्ध लेखक हैं और उन्होंने सिंगापुर के इतिहास के लिए नेताजी कितने महत्वपूर्ण हैं, इसके बारे में दिलचस्प इतिहास का वर्णन किया है। भारत में भी रविवार को महान स्वतंत्रता सेनानी नेताजी को उनके 125 वें जन्म के अवसर पर समृद्ध श्रद्धांजलिदी गई और सिंगापुर में भी उन्हें याद किया गया है।
सिंगापुर में नेताजी को नमन
सिंगापुर में भारतीय उच्चायोग द्वारा नेताजी सुभाष चंद्र बोस की याद में आयोजित एक कार्यक्रम के दौरान इतिहासकार असद लतीफ ने कहा कि, नेताजी के इंडियन इंडिपेंडेंस लीग और इंडियन नेशनल आर्मी (आईएनए) के पुनरोद्धार ने मलाया (दक्षिणपूर्व एशिया के मलय प्रायद्वीप में ऐतिहासिक राजनीतिक संस्थाओं) में जन राजनीति को लाया था, क्योंकि उन्होंने मजदूरों के साथ काम किया और दक्षिण पूर्व एशियाई भारतीयों में एक दुर्लभ भाव को जगाया।
सिंगापुर में नेताजी की भूमिका
भारत के साथ साथ सिंगापुर में भी नेताजी की अहम भूमिका रही है। बोस की भूमिका पर बात करते हुए असद लतीफ ने कहा कि, ''सुभाष चंद्र बोस की वजह से ही भारत के साथ साथ सिंगापुर में भी ब्रिटिश शक्तियों की साम्राज्यवादी पकड़ को खत्म कर दिया''। उन्होंने कहा कि, रैफल्स (सर स्टैनफोर्ड रैफल्स, सिंगापुर के संस्थापक) के विपरीत सुभाष चंद्र बोस सिंगापुर के इतिहास का उतना ही हिस्सा हैं, जितना वो भारत के इतिहास का हिस्सा हैं''। असद ने नेताजी की 125वीं जयंती पर बोलते हुए कहा कि, 'नेताजी एक स्वतंत्र सिंगापुर के निर्माण में भारत की भूमिका के केंद्र में हैं।"
सिंगापुर के निर्माण में भारतीयों का योगदान
असद लतीफ ने कहा कि, ''1867 तक भारतीय सरकार के बंदरगाहों में कलकत्ता के बाद दूसरा महत्वपूर्ण स्थान सिंगापुर का था और एक तरह से कह सकते हैं कि, भारतीय उपनिवेश का विस्तार सिंगापुर था''। उन्होंने कहा कि, ''सिंगापुर के निर्माण में भारतीय लोगों का काफी अहम योगदान रहा है और सिंगापुर में भारतीय लोगों की मेहनत की अमिट छाप साफ तौर पर देखी जा सकती है।'' असद ने इस तथ्य पर प्रकाश डालते हुए कहा कि, ब्रिटिश राज ने लंदन के बजाय कोलकाता से औपनिवेशिक सिंगापुर की स्थापना की थी।
जब दुर्गापूजा में नहीं गये बोस
वहीं, कोलकाता में जन्मी और सिंगापुर में रहने वाली एक और लेखिका नीलांजना सेनगुप्ता ने सुभाष चद्र बोस की भूमिका पर चर्चा करते हुए कहा कि, ''बोस ने सिंगापुर में समृद्ध चेट्टियारों (एक समुदाय) के दशहरा उत्सव के निमंत्रण को ठुकरा दिया था, क्योंकि उस वक्त दुर्गा पूजा के उस उत्सव में कथित हिंदुओं की निचली जातियों का प्रवेश वर्जित था, लिहाज सुभाष चंद्र बोस ने भी दुर्गा पूजा में शामिल होने से इनकार कर दिया था। सेनगुप्ता ने कहा कि, चेट्टियार तब आईएनए के सबसे बड़े दानदाता थे, जो आईएनए आंदोलन के रिसर्च में शामिल रहे हैं और उन्होंने 2012 में नेताजी पर अपनी पहली पुस्तक 'ए जेंटलमैन्स वर्ड' प्रकाशित की थी।
पूजा में कैसे शामिल हुए बोस?
लेखिका नीलांजना सेनगुप्ता ने कहा कि, सुभाष चंद्र बोस के इनकार करने के बाद फिर से चेट्टियारों ने दशहरा के दिन राष्ट्रीय रैली का आयोजन किया था, जिसमें आईएनए की वर्दी में भारतीय मुसलमान भी शामिल हुए थे और हर जाति के लोगों से मंदिर परिसर भरा हुआ था और फिर सुभाष चंद्र बोस दुर्गा पूजा उत्सव में शामिल हुए थे, जहां उन्होंने एक मार्मिक भाषण भी दिया था। नीलांजना सेनगुप्ता ने कहा कि, दक्षिण एशिया के इतिहास का एक बेहद अहम हिस्सा सुभाष चंद्र बोस हैं, क्योंकि यहां पर उन्होंने अपने राजनीतिक विचारों को मूर्त रूप दिया है और यही वजह से सुभाष चंद्र बोस की वैचारिक उपस्थिति सिंगापुर में अभी भी मौजूद है।
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