'दिवालिया' होकर खुला दिमाग? इस देश में फूटा चीन के खिलाफ गुस्सा, भारत को बताया आखिरी उम्मीद
कोलंबो, जनवरी 21: पिछले कई सालों से चीन की गोदी में खेलने वाले श्रीलंका के अक्ल पर लगा 'ताला' लगता है अब खुलने लगा है और श्रीलंका के अंदर पहली बार चीन के खिलाफ विरोध भरी आवाजें उठनी शुरू हो गई हैं। हंबनटोटा बंदरगाह चीन के हाथों गिरवी रखने के बाद भी चीन की कम्युनिस्ट पार्टी के झांसे में फंसे श्रीलंका के नेताओं को लगता है पहली बार समझ में आ रहा है, कि ड्रैगन ने उसे कितने खतरनाक तरीके से जगड़ रखा है।

चीन पर भड़के श्रीलंकन सांसद
श्रीलंका की सत्ता पर कई सालों से सवार राजपक्षे भाईयों ने देश का मूड चीन के रंग में इस कदर रंग डाला, कि ड्रैगन के खिलाफ कम ही बार आवाज श्रीलंका में सुनाई दी। लेकिन, अब तक श्रीलंका दिवालिएपन के कगार पर खड़ा है और चीन ने श्रीलंका को जब किसी भी तरह की रियायद देने से इनकार कर दी है, तब श्रीलंकन नेताओं को असली दोस्त और दुश्मन का पता चल रहा है। श्रीलंका के वरिष्ठ सांसद डॉ. विजेदास राजपक्षे ने चीन पर श्रीलंका पर लगातार आर्थिक हमले करने, देश में भ्रष्टाचार बढ़ाने और श्रीलंका को कर्ज के जाल में फंसाने का आरोप लगाया है। डॉ. विजेदास राजपक्षे श्रीलंका के प्रमुख नेताओं में से एक हैं और उनका चीन के खिलाफ बोलना, श्रीलंका में चीन की काली नियत का पता चलने जैसा है।

चीन के खिलाफ फूटा गुस्सा
हांगकांग पोस्ट में छपी एक रिपोर्ट में कहा गया है कि, डॉ. विजेदास राजपक्षे ने कड़े शब्दों में चीन की आलोचना की है और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने जिस तरह से पारस्परिक सहयोग बढ़ाने के नाम पर श्रीलंका को कर्ज के दलदल में धकेल दिया है, उसके खिलाफ कड़े शब्दों में पत्र लिखने का साहस किया है। डॉ. विजेदास राजपक्षे श्रीलंका की सरकार ने कानून मंत्री और शिक्षा मत्री भी रह चुके हैं और उन्होंने चीन की कड़े शब्दों में आलोचना की है। आपको बता दें कि, डॉ. विजेदास राजपक्षे ने पिछले दिनों मांग की थी, कि देश में होने वाला अगला चुनाव, चावे वो प्रधानमंत्री का चुनाव हो या फिर राष्ट्रपति का, उसे जनमत संग्रह से जोड़ देना चाहिए, ताकि श्रीलंका के लिए हानिकारक या लाभदायत अनुबंधों और शर्तों पर देश की जनता की राय के मुताबिक फैसला किया जा सके।

चीन से एग्रीमेंट खत्म करने की मांग
रिपोर्ट के मुताबिक, डॉ. विजेदास राजपक्षे ने ये भी कहा है कि, चीन ने कोलंबो में जमीन लेने के लिए सेलेंडीवा (श्रीलंका की एक निजी कंपनी, जिसने चीन को कोलंबो में जमीन दिया है) के साथ जिन भी शर्तों पर करार किया है, उसे बिना किसी मुआवजे के फौरन रद्द किया जाए। आपको बता दें कि, चीन के खिलाफ लगातार आलोचनात्मक रवैया अपनाने की वजह से ही डॉ. विजेदास राजपक्षे को राजपक्षे
मंत्रिमंडल से इस्तीफा देना पड़ा था, क्योंकि श्रीलंका के राष्ट्रपति गोटबया राजपक्षे और प्रधानमंत्री महिन्द्रा राजपक्षे बहुत बड़े श्रीलंका समर्थक रहे हैं और उनके कार्यकाल में ही श्रीलंका ने चीन को हंबनटोटा पोर्ट भी गिरवी पर दिया था।

चीन-श्रीलंका दोस्ती पर सवाल
इनके अलावा डॉ. विजेदास राजपक्षे ने चीन की श्रीलंका को लेकर नीयत पर भी सवाल उठाए हैं और कहा है कि, श्रीलंका को लेकर चीन की नियत साफ नहीं है और चीन की श्रीलंका के साथ दोस्ती भी वास्तविक और स्पष्ट नहीं है। उन्होंने कहा कि, विश्व शक्ति बनने के लिए चीन श्रीलंका के निर्दोष लोगों की जान की कीमत लगा रहा है। आपको बता दें कि, पिछले साल भी डॉ. विजेदास राजपक्षे ने चीन द्वारा कोलंबो में बनाई जा रही पोर्ट सिटी को लेकर पेश किए गये आर्थिक आयोग विधेयक को लेकर कड़ी आपत्ति जताई थी और श्रीलंका के राष्ट्रपति गोटबया राजपक्षे, महिन्द्रा राजपक्षे और उनके भाई और वर्तमान में देश के वित्तमत्री बेसिल राजपक्षे पर तीखा हमला बोला था।

श्रीलंका को अब भारत से उम्मीद
श्रीलंका ने इस महीने की शुरूआत में श्रीलंका के राष्टराजपक्षे ने चीन से कर्ज स्ट्रक्चर में रियायत देने की अपील की थी, लेकिन चीन ने उनके अनुरोध को सिरे से खारिज कर दिया था। चीन से करीब 8 अरब डॉलर का कर्ज ले चुके श्रीलंका के पास अब विदेशी मुद्रा भंड़ार पूरी तरह से खत्म हो चुका है और श्रीलंका में भारी खाद्य संकट पैदा हो चुका है। जिसके बाद अब श्रीलंका को दिवालिया होने से बचाने के लिए भारत मदद कर रहा है। जिसको लेकर भारत में श्रीलंका के हाई कमीशन मिलिंडा मोरागोडा ने भारत का आभार जताया है और कहा है कि, भारत के मदद करने से दोनों देशों के बीच विश्वास बहाली में मदद मिलेगी।

श्रीलंका को भारत की मदद
आपको बता दें कि, मंगलवार को भारत ने श्रीलंका को 50 करोड़ डॉलर की मदद दी है, जिससे श्रीलंका पेट्रोलियम पदार्थ खरीद पाया और देश अंधेरे में डूबने से बच पाया। श्रीलंका के हाईकमीशन ने टाइम्स ऑफ इंडिया से बात करते हुए कहा कि, ''इनर्जी सेक्टर में श्रीलंका का हमेशा भारत के साथ सहयोग रहा है और एक बार फिर जैसे ही हम बिजली सेक्टर्स पर काम करना शुरू कर देंगे, बाकी चिंताओं के लिए भी कोई जगह नहीं रह जाएगी।'' उन्होंने कहा कि, ''हमें एक प्लान बनाकर आगे बढ़ना होगा और अपने लक्ष्य के प्रति निश्चित रहना होगा और फिर बाकी चीजें अपने आप हो जाएंगी''। इसके साथ ही श्रीलंकाई हाई कमीशन ने भारत को श्रीलंका की अर्थव्यव्यवस्था के लिए चाबी बताया है।

श्रीलंका की अर्थव्यवस्था की चाबी भारत
इसके साथ ही भारत में श्रीलंका के हाईकमीशन ने कहा कि, ''सबसे अहम बात ये है कि, हमारी नई अर्थव्यवस्था की चाबी भारत है और भारत हमें इस स्थिति से निकालने में मदद कर रहा है और दोनों देश लगातार जरूरी क्षेत्रों में सहयोग बढ़ा सकते हैं।'' उन्होंने कहा कि, ''पर्यटन क्षेत्र श्रीलंका की जीडीपी का बड़ा हिस्सा रहा है और श्रीलंकाई पर्यटन उद्योग के लिए भारत सबसे बड़ा बाजार रहा है''। आपको बता दें कि, भारत को हमेशा से श्रीलंका में चल रही चीनी परियोजनाओं को लेकर चिंता रही है। पिछले साल ही श्रीलंका ने भारत और जापान की मदद से बनने वाले कोलंबो बंदरगाह के ईस्ट कंटेनर टर्मिनल विकसित करने का करार रद्द कर दिया था, जबकि चीन की परियोजनाएं काफी तेजी से चल रही हैं। लेकिन, अब सवाल ये उठ रहे हैं कि, चीन से 'दगाबाजी' मिलने के बाद क्या श्रीलंकाई लीडरशिप की अक्ल खुलेगी और उसे सही दोस्त की पहचान हो पाएगी?
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