श्रीलंका सरकार ने भारत के साथ पोर्ट डील की रद्द, चीन से कर्ज लेकर क्या 'पाकिस्तान' बन जाएगा श्रीलंका?
भारत के प्रमुख उद्यमी अडानी ग्रुप को श्रीलंका में बड़ा झटका लगा है। श्रीलंका सरकार ने अडानी ग्रुप का करोड़ों रुपये का पोर्ट टर्मिनल का करार रद्द कर दिया है।
कोलंबो: श्रीलंका सरकार(Sri Lanka) ने भारत और जापान के साथ मिलकर पोर्ट टर्मिनल (Port Deal) बनाने का करार रद्द करने का फैसला लिया है। श्रीलंकन सरकार ने देश में हुए भारी विरोध के बाद कोलंबो में पोर्ट बनाने का करार रद्द कर दिया है। श्रीलंका के प्रधानमंत्री महिंदा राजपक्षे (PM Mahindra Rajapaksa) की ऑफिस की तरफ से मंगलवार को कहा गया है कि उन्होंने ट्रेड यूनियनों और विपक्षी दलों के विरोध के बाद भारत और जापान के साथ मिलकर एक प्रमुख बंदरगाह टर्मिनल विकसित करने के लिए हुए समझौते को रद्द करने का फैसला किया है।
विरोध के चलते पोर्ट डील रद्द
श्रीलंका ने पहले भारत और जापान के साथ कोलंबो बंदरगाह पर पूर्वी कंटेनर टर्मिनल (East Container Terminal) विकसित करने पर सहमति जताई थी। सौदे के तहत, टर्मिनल के 49% शेयरों का स्वामित्व भारत और जापान के पास था, जबकि श्रीलंका के पोर्ट्स अथॉरिटी के पास 51 प्रतिशत की हिस्सेदारी थी। जिसे लेकर श्रीलंका में काफी विरोध प्रदर्शन हो रहा था। विरोध प्रदर्शनों को देखते हुए श्रीलंका सरकार ने उस करार को रद्द करते हुए कहा है कि अब श्रीलंका भारत और जापान से निवेश के साथ बंदरगाह के इस्ट कंटेनर टर्मिनल की जगह पश्चिम कंटेनर टर्मिनल को विकसित करेगी।
क्यों हो रहा था विरोध
कोलंबो
बंदरगाह
ट्रेड
यूनियनों
ने
भारत
और
जापान
के
निवेशकों
के
ईटीसी
में
49
फीसदी
हिस्सेदारी
खरीदने
के
प्रस्ताव
का
विरोध
किया
था।
ट्रेड
यूनियन
मांग
कर
रहे
थे
कि
ECT
में
श्रीलंका
को
किसी
दूसरे
देश
के
साथ
निवेश
नहीं
करना
चाहिए।
ECT
में
शतप्रतिशत
हिस्सेदारी
सिर्फ
श्रीलंका
की
होनी
चाहिए।
करार
के
मुताबिक
ECT
में
श्रीलंका
सरकार
यानि
SLPA
की
हिस्सेदारी
सिर्फ
51%
की
थी।
जबकि
49%
हिस्सेदारी
भारत
और
जापान
की
होने
वाली
थी।
पोर्ट
डील
का
विरोध
करने
के
लिए
23
ट्रेड
यूनियनों
ने
हाथ
मिलाया
था।
ट्रेड
यूनियनों
का
कहना
था
कि
भारत
का
अडानी
ग्रुप
के
साथ
हुआ
ये
सौदा
ECT
के
करार
का
बाहर
का
हिस्सा
है।
लिहाजा
श्रीलंका
सरकार
को
ये
करार
नहीं
करना
चाहिए।
जिसके
बाद
भारी
विरोध
के
चलते
श्रीलंकन
सरकार
ने
ECT
डील
को
रद्द
करने
का
फैसला
लिया
है।
सरकार
का
विरोध
करने
वाले
तमाम
संगठन
सत्ताधारी
श्रीलंकन
पिपुल्स
पार्टी
के
ही
समर्थक
हैं,
जिसकी
वजह
से
श्रीलंका
सरकार
को
इस
डिल
को
कैंसिल
करने
के
लिए
बाध्य
होना
पड़ा।
राष्ट्रपति ने डील को बताया था महत्वपूर्ण
ECT डील को लेकर श्रीलंका के राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे (Gotabaya Rajapaksa) ने कहा था कि श्रीलंका के लिहाज से ECT डील बेहद महत्वपूर्ण है। इस सौदे पर रोक लगाने से ECT द्वारा संभाला गया 66% भारतीय माल परिवहन बंद हो जाएगा। लगातार दूसरी कंपनियों के साथ प्रतिस्पर्धा बनी रहे और श्रीलंका का विकास हो सके इसके लिए ECT डील बेहद महत्वपूर्ण है।
डील कैंसिल होने पर भारत का बयान
श्रीलंका सरकार द्वारा ECT डील कैंसिल करने के बाद श्रीलंका स्थिति भारतीय दूतावास ने अपने बयान में कहा है कि हमें उम्मीद थी कि 2019 में तीन देशों के बीच हुए समझौते के मुताबिक तय समय में ECT डील पर हम काम करते। इस संबंध में श्रीलंका सरकार से पिछले कई महीनों में कई बार बात की गई है। श्रीलंकन कैबिनेट ने विदेशी निवेशकों के साथ इस परियोजना को लागू करने के लिए तीन महीने पहले भी एक बार फैसला लिया था। लेकिन अब हमें पता चल रहा है कि श्रीलंका सरकार ने इस डील को कैंसिल करने का फैसला लिया है।
क्या चीन है डील कैंसिल होने के पीछे?
हिंद
महासागर
पर
भारत
का
प्रभुत्व
है।
लेकिन
चीन
पिछले
कुछ
सालों
से
लगातार
हिंद
महासागर
में
घुसपैठ
की
कोशिश
कर
रहा
है।
श्रीलंका
के
कई
बड़े
नेता
चीनी
सरकार
के
संपर्क
में
भी
रहे
हैं।
इसके
साथ
ही
श्रीलंका
का
हम्बनटोटा
द्वीप
भी
चीन
ने
श्रीलंका
से
लीज
पर
ले
रखा
है।
लिहाजा
भारत
के
लिए
इस
डील
का
कैंसिल
होना
चिंता
की
बात
है।
हिंद
महासागर
में
प्रभुत्व
जमाने
के
लिए
चीन
श्रीलंका
को
एक
अहम
कड़ी
मानता
है।
इसके
लिए
पिछले
10
सालों
में
श्रीलंका
के
स्वामित्व
वाले
समुन्द्री
हिस्से
और
जमीनी
इलाके
में
इन्फ्रास्ट्रक्चर
विकास,
हाईवे
निर्माण,
एयरपोर्ट
निर्माण
से
लेकर
सीपोर्ट
बनाने
तक
के
लिए
चीन
ने
श्रीलंका
को
करोड़ों
डॉलर
का
कर्ज
दे
रखा
है।
एक्सपर्ट्स
का
मानना
है
कि
जितना
लोन
श्रीलंका
ने
चीन
से
लिया
है
उस
कर्ज
का
भुगतान
श्रीलंका
के
लिए
करना
नामुमकिन
सा
है।
लिहाजा
डर
इस
बात
को
लेकर
है
कि
क्या
आने
वाले
वक्त
में
श्रीलंका
का
हाल
पाकिस्तान
जैसा
हो
जाएगा।
क्या श्रीलंका बन जाएगा पाकिस्तान?
2017 में श्रीलंका ने चीन की मदद से समुन्द्र में एक पोर्ट का निर्माण किया था। मगर श्रीलंका को उस पोर्ट से कोई फायदा ही नहीं हुआ। मजबूरन श्रीलंकन सरकार को वो पोर्ट चीन को 99 सालों के लिए लीज पर देना पड़ा। अब एक बार फिर से चीन ने श्रीलंका सरकार को चीनी सीपोर्ट से श्रीलंका के महत्वपूर्ण चाय उत्पादन करने वाले क्षेत्र सेंन्ट्रल रीजन तक एक्सप्रेसवे निर्माण के लिए 989 मीलियन डॉलर कर्ज देने का प्रस्ताव दिया है। सबसे खास बात ये है कि इस प्रोजेक्ट से श्रीलंका को फायदा होने के बजाए चीन का ही फायदा होगा और चीन ही श्रीलंका को लोन पर 989 मीलियन डॉलर कर्ज देगा। ऐसे में अगर श्रीलंका ये डील करता है तो आने वाले वक्त में श्रीलंका की स्थिति क्या हो सकती है, इसका अंदाजा लगाया जा सकता है।
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