
‘ध्वस्त हो चुकी है अर्थव्यवस्था, नहीं दे रहा कोई तेल’, श्रीलंका के PM ने मानी हार, अब आगे क्या होगा?
कोलंबो, जून 24: श्रीलंका के प्रधानमंत्री ने कहा है कि, महीनों तक भोजन, ईंधन और बिजली की कमी के बाद कर्ज में डूबे देश की अर्थव्यवस्था "ढह गई" है और अब दक्षिण एशियाई द्वीप राष्ट्र आयातित तेल भी नहीं खरीद सकता। श्रीलंका के प्रधानमंत्री रानिल विक्रमसिंघे ने संसद को बताया कि, 'अब हम ईंधन, गैस, बिजली और भोजन की कमी से कहीं अधिक गंभीर स्थिति का सामना कर रहे हैं। हमारी अर्थव्यवस्था पूरी तरह चरमरा गई है। आज हमारे सामने यह सबसे गंभीर मुद्दा है'।

प्रधानमंत्री ने कहा, ढह गई अर्थव्यवस्था
श्रीलंका के प्रधानमंत्री रानिल विक्रमसिंघे ने देश का वित्तमंत्रालय भी अपने ही पास रखा है और देश की अर्थव्यवस्था को संभालने की जिम्मेदारी उन्हीं के कंधे पर है, जो भारी कर्ज, खोए हुए पर्यटन राजस्व और महामारी से अन्य प्रभावों और वस्तुओं के लिए बढ़ती लागत के भार को संभालने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन उन्होंने संसद में जो बयान दिया है, उससे यही लग रहा है, कि प्रधानमंत्री विक्रमसिंघे अब हार मान रहे हैं। श्रीलंकन प्रधानमंत्री ने देश की संसद को संबोधित करते हुए कहा कि, 'वर्तमान में, सीलोन पेट्रोलियम कॉर्पोरेशन पर 700 मिलियन डॉलर का कर्ज है'। उन्होंने सांसदों को बताया कि, 'नतीजतन, दुनिया का कोई भी देश या संगठन हमें ईंधन उपलब्ध कराने को तैयार नहीं है। और वो पैसे लेकर भी ईंधन उपलब्ध करवाने से कतरा रहे हैं'।

‘स्थिति संभालने में रहे नाकामयाब’
श्रीलंकाई प्रधानमंत्री रानिल विक्रमसिंघे ने कहा कि सरकार स्थिति को बदलने के लिए समय पर कार्रवाई करने में विफल रही है, क्योंकि श्रीलंका का विदेशी भंडार घट गया है। उन्होंने कहा कि, 'अगर शुरुआत में कम से कम अर्थव्यवस्था के पतन को धीमा करने के लिए कदम उठाए गए होते, तो आज हम इस कठिन स्थिति का सामना नहीं कर रहे होते। लेकिन हम इस मौके से चूक गए। अब हम रॉक बॉटम में संभावित गिरावट के संकेत देख रहे हैं'। श्रीलंका मुख्य रूप से पड़ोसी भारत से 4 बिलियन डॉलर की क्रेडिट लाइनों द्वारा समर्थित है। लेकिन श्री विक्रमसिंघे ने कहा कि भारत श्रीलंका को बहुत अधिक समय तक बचाए नहीं रख पाएगा।

श्रीलंका ने कर्ज चुकाना किया सस्पेंड
श्रीलंका ने पहले ही घोषणा कर रखी है, कि वह इस साल पुनर्भुगतान के लिए देय 7 अरब डॉलर के विदेशी कर्ज के पुनर्भुगतान को सस्पेंड कर रहा है। वहीं, श्रीलंका की सरकार ने देश को आर्थिक संकट से बचाने के लिए अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष के साथ बातचीत कर रहा है, लेकिन बातचीत बीच में ही लंबित है। श्रीलंका को हर साल 2026 तक औसतन सालाना 5 अरब डॉलर का भुगतान करना होगा। विदेशी मुद्रा संकट के कारण भारी कमी हो गई है जिससे लोगों को ईंधन, खाना पकाने और दवा सहित आवश्यक सामान खरीदने के लिए लंबी लाइनों में खड़ा होना पड़ा है।

क्यों ढह गई है श्रीलंका की अर्थव्यवस्था?
यूएन वर्ल्ड फूड प्रोग्राम का कहना है कि, श्रीलंका में 10 में से नौ परिवार को अपने दिन का खाना छोड़ना पड़ रहा है, या फिर वो खाना बचाने लिए कम खा रहे हैं, ताकि आगे उन्हें दिक्कत ना हो। वहीं, श्रीलंका के 30 लाख लोग मानवीय सहायता प्राप्त कर रहे हैं। आपको बता दें कि, रानिल विक्रमसिंघे ने पिछले महीने ही श्रीलंका के प्रधानमंत्री का काम संभाला है और उनसे पहले प्रधानमंत्री रहे महिंदा राजपक्षे पर देश की अर्थव्यवस्था को डूबोने का आरोप है और उन्होंने चीन से भीषण कर्ज लिया और फिर देश की अर्थव्यवस्था लगातार डूबती चली गई।

कितना गंभीर है श्रीलंका का संकट?
श्रीलंका में पेट्रोल पंपों के पास कई किलोमीटर लंबी लाइनें लगी रहती हैं और दो दिन पहले श्रीलंका में पांच दिनों तक लाइन में लगे रहने के बाद एक ट्रक ड्राइवर की मौत हो चुकी है। वहीं, श्रीलंकन लोगों को गैस सिलेंडर मिलना बंद हो गया है और अब लोगों ने लकड़ियों पर खाना बनाना शुरू करदिया है। वहीं, डॉक्टरों ने उपकरण और दवा की महत्वपूर्ण आपूर्ति प्राप्त करने के लिए सोशल मीडिया का सहारा लिया है। श्रीलंकाई लोगों की बढ़ती संख्या काम की तलाश में विदेश जाने के लिए पासपोर्ट की मांग कर रही है। सरकारी कर्मचारियों को तीन महीने के लिए अतिरिक्त दिनों की छुट्टी दी गई है ताकि उन्हें अपना भोजन खुद उगाने का समय मिल सके। संक्षेप में, लोग पीड़ित हैं और चीजों में सुधार के लिए बेताब हैं। लेकिन, ऐसा लग रहा है, कि सरकार ने हाथ खड़े कर दिए हैं।

प्रधानमंत्री ने क्यों कहा, ध्वस्त हो गई अर्थव्यवस्था
श्रीलंका के प्रधानमंत्री की अर्थव्यवस्था की स्थिति को लेकर इस तरह की कठोर घोषणा में किसी के भी विश्वास को कमजोर कर सकती है। ऐसा प्रतीत होता है कि विक्रमसिंघे अपनी सरकार के सामने आईएमएफ से मदद मांगने की चुनौती को रेखांकित कर रहे हैं और सुधार की कमी पर आलोचना का सामना कर रहे हैं, क्योंकि उन्होंने पिछले महीने ही पदभार ग्रहण किया था। वह देश के भीतर से आलोचना को भी दूर करने की कोशिश कर रहे हैं। उनकी टिप्पणी का उद्देश्य अधिक समय और समर्थन खरीदने का प्रयास करना हो सकता है, ताकि वो देश की अर्थव्यवस्था को फिर से संभालने के लिए कठोर कदम उठा सकें।

सिर्फ 2.5 करोड़ डॉलर विदेशी मुद्रा भंडार
श्रीलंकन वित्त मंत्रालय का कहना है कि श्रीलंका के पास प्रयोग करने योग्य विदेशी भंडार केवल 2.5 करोड़ डॉलर है और इतने पैसे से वो ना तो तेल का आयात कर सकता है और ना ही अरबों का कर्ज ही चुका सकता है। इस बीच श्रीलंकाई रुपया मूल्य में लगभग 80% कमजोर हो चुका है और इस वक्त एक डॉलर के मुकाबले श्रीलंकन करेंसी का वैल्यू 360 हो चुका है। लिहाजा, श्रीलंका के लिए सामान खरीदना और भी ज्यादा महंगा हो चुका है। श्रीलंका को साल 2026 तक 25 अरब अमेरिकी डॉलर का कर्ज चुकाना है और इस साल श्रीलंका को 7 अरब डॉलर के कर्ज का भुगतान करना है, जिसे चुकाने से श्रीलंका ने इनकार कर दिया है।
क्या
भारत
के
साथ
संबंधों
को
धीरे-धीरे
बर्बाद
कर
रहे
बाइडेन?
18
महीने
से
भारत
में
US
राजदूत
नहीं