श्रीलंका: मुसलमानों की दुकान से सामान नहीं ले रहे लोग
कुछ महीने पहले, श्रीलंका की राजधानी कोलंबो से 90 किलोमीटर दूर कोट्टरमुल्ला गाँव में मोहम्मद इलियास घरों की मरम्मत करने वाला सामान बेचा करते थे.
श्रीलंका के बहुसंख्यक सिंहली समाज के बीच सालों से दुकान चलाने वाले इलियास अपनी हार्डवेयर की दुकान से पर्याप्त कमाई कर लेते थे.
लेकिन बीते कुछ दिनों से उनकी ज़िंदगी बदल गई है.
कुछ महीने पहले, श्रीलंका की राजधानी कोलंबो से 90 किलोमीटर दूर कोट्टरमुल्ला गाँव में मोहम्मद इलियास घरों की मरम्मत करने वाला सामान बेचा करते थे.
श्रीलंका के बहुसंख्यक सिंहली समाज के बीच सालों से दुकान चलाने वाले इलियास अपनी हार्डवेयर की दुकान से पर्याप्त कमाई कर लेते थे.
लेकिन बीते कुछ दिनों से उनकी ज़िंदगी बदल गई है. दुकान अब पहले जैसी नहीं चलती है. उनकी दुकान पर लोगों का आना कम हो गया है.
इस बदलाव की शुरुआत उस दिन हुई जब श्रीलंका की राजधानी कोलंबो में सिलसिलेवार धमाकों में कई लोगों की मौत हुई थी.
हमले के बाद के दिनों को याद करते हुए इलियास बताते हैं, "जब से बम धमाके हुए हैं तब से मेरे 90 प्रतिशत सिंहली ग्राहकों ने दुकान पर आना बंद कर दिया है. मेरा काम-धंधा पूरी तरह से ठप हो गया है. लाखों रुपए का नुक़सान हो गया है."
छोटे चरमपंथी समूहों ने बड़े होटलों और चर्चों को टारगेट बनाकर कई लोगों की हत्या की थी.
हालांकि इस्लामिक स्टेट ने इन हमलों की ज़िम्मेदारी ली थी. इन हमलों ने पूरे देश को हिलाकर रख दिया था.
इलियास कहते हैं, "कुछ ग्राहकों ने हाल ही में वापस आना शुरू किया है लेकिन ये काफ़ी नहीं हैं. अगर ऐसा ही चलता रहा तो मैं जल्द बड़ी परेशानी में आ जाऊंगा."
कई मुसलमानों को लगता है कि चर्च पर हुए हमलों के बाद से उन्हें ख़लनायक की तरह देखा जाने लगा है.
कई मुसलमान व्यापारियों को लगता है कि उन्हें जानबूझकर टारगेट किया जाने लगा है. मई के महीने में श्रीलंका के कुछ हिस्सों में मुसलमानों की दुकानों और घरों पर हिंसक हमले हुए.
जून में एक बौद्ध साधु ने खुलेआम लोगों से मुसलमानों से सामान नहीं ख़रीदने की अपील की.
ये भी पढ़ें-
- श्रीलंका: मुसलमानों ने देशभक्ति के लिए तोड़ी मस्जिद?
- श्रीलंका में सभी मुसलमान मंत्रियों का इस्तीफ़ा
- श्रीलंका: सारे मुस्लिम मंत्रियों के इस्तीफ़े पर भड़के हिन्दू सांसद
श्रीलंका में जातीय और धार्मिक खाई अब बढ़ती जा रही है.
श्रीलंका की आबादी 20 करोड़ से ज़्यादा है जिसमें से 10 प्रतिशत मुसलमान हैं. बाकि सिंहली बौद्ध.
लगभग 12 प्रतिशत लोग हिंदू हैं, जिनमें से ज़्यादातर तमिल अल्पसंख्यक हैं और 7 प्रतिशत लोग ईसाई धर्म को मानने वाले हैं.
श्रीलंका ने कई दशकों तक गृहयुद्ध की मार झेली है, जो 2009 में अलगाववादी तमिल टाइगर विद्रोहियों की हार के बाद समाप्त हुआ था. इसमें दसियों हज़ार लोगों की जानें चली गई थीं. अब दस साल बाद फिर इस्टर पर हुए हमले के बाद से वो हिंसा लौट आई है.
श्रीलंका के मुसलमानों ने हिंसा और हमले में हुई हत्याओं की निंदा की लेकिन सिंहली कट्टपपंथियों को इससे संतुष्टि नहीं हुई. शुरुआत में सिंहली कट्टपपंथियों का ग़ुस्सा इस्लाम मानने वाले सभी लोगों पर निकला.
मुस्लिम नेताओं का कहना है कि मुसलमान समाज को लोगों की धमकी का सामना करना पड़ रहा है.
उन्हें लगता है कि मुख्यधारा के नेता और सुरक्षाबल मुसलमानों के साथ हो रही हिंसा के ख़िलाफ़ कोई ठोस क़दम नहीं उठा रहे हैं.
सरकार का कहना है कि उन्होंने सांप्रदायिक तनाव को रोकने के लिए सुरक्षाबल बढ़ाए हैं.
श्रीलंका के पुतलाम ज़िले में रहने वाले मोहम्मद नज़ीम कहते हैं, "सिंहली लोगों की भीड़ ने मेरे घर के बाहर ही मेरे भाई को मार डाला. मुझे नहीं पता था कि हमें इंसाफ़ मिल पाएगा या नहीं."
पुलिस का कहना है नज़ीम के भाई की हत्या से जुड़े मामले में मोहम्मद अमीर और मोहम्मद सैली नाम के दो लोगों को गिरफ़्तार किया गया है. इस मामले में जांच जारी है.
बम धमाकों के बाद हिजाब पहनने वाली मुसलमान महिलाओं को भी लोगों ने टारगेट किया. सरकार ने सुरक्षा कारणों से अब सार्वजनिक जगहों पर मुंह ढँक कर चलने पर रोक लगा दी है.
हालांकि, हिजाब और बुर्का पहनने वाली मुसलमान महिलाओं को ख़ासतौर पर केंद्रित नहीं किया गया.
महिला अधिकारों की बात करने वाले संगठनों ने कहा वो महिलाएं जो सिर पर स्कार्फ़ पहनकर चलती हैं उन्हें भी उत्पीड़न का सामना करना पड़ रहा है.
मुसलमान महिला विकास ट्रस्ट की निदेशका जुवैरिया मोहिदीन कहती हैं, "जो मुसलमान महिलाएं सरकारी दफ़्तरों में काम करती हैं उन्हें भी दिक्क़तों का सामना करना पड़ता है. वो महिलाएं जो सिर्फ़ सिर पर स्कार्फ़ पहन कर भी दफ़्तर जाती हैं उन्हें घर जाकर साड़ी पहन कर आने के लिए कहा जाता है."
कई सिंहली महिलाएं बसों में मुसलमान महिलाओं के साथ बैठने तक से इनकार कर देती हैं क्योंकि उन्होंने पारंपरिक अबाया (एक ढीली ड्रेस पहनी) पहना होता है.
मुसलमान समाज के प्रतिनिधियों का कहना है मुसलमान व्यावसायिक प्रतिष्ठानों का बहिष्कार और उनके साथ होने वाली घटनाएं बौद्ध भिक्षुओं के संदेशों से प्रेरित हैं.
राष्ट्रवादी सेना बौद्ध शक्ति सेना के एक साधु पर मुसलमान विरोधी भावनाएँ भड़काने का आरोप लग चुका है.
इस पर उन्होंने कहा, "किसी संस्थान ने नहीं कहा है कि मुसलमानों से सामान न ख़रीदें, लोग अपनी मर्ज़ी से ऐसा कर रहे हैं."
राष्ट्रपति मैत्रीपाला सिरिसेना ने इस साल मई में उस साधु को माफ़ कर दिया जिस साधु ने ऐसा कहा था.
अदालत की अवमानना के लिए उन्हें छह साल की जेल मिली थी लेकिन एक साल से भी कम समय की सज़ा काटने के बाद उन्हें जेल से मुक्त कर दिया.
बीबीएस पार्टी के एक नेता ने कहा, "मुसलमान समुदाय को आपस में बात करके अपने जवाब तलाशने होगें. हम ये नहीं कहते कि सभी मुसलमान ऐसी हिंसक गतिविधियों में शामिल हैं लेकिन व्यापारियों को उन लोगों का पर्दाफाश करने में मदद करनी चाहिए जो ऐसे गतिविधियों का हिस्सा हैं."
लेकिन मुसलमान नेताओं का कहना है कि इन साधुओं को ख़ुद के नज़रिए पर सवाल उठाना चाहिए.
श्रीलंका मुस्लिम कांग्रेस के नेता और सरकार के मंत्री रौफ हक़ीम कहते हैं, "हमें इन पर उंगली उठाना बंद कर देना चाहिए और ख़ुद के भीतर झांक कर देखना चाहिए"
रौफ कहते हैं मुसलमान इस बात का पता लगाने के लिए पहले से ही आत्ममंथन कर रहे हैं कि समुदाय में कहां क्या ग़लत हो रहा है.
हाल के कुछ हफ्तों में श्रीलंका के मुसलमानों की हालत कुछ बेहतर हुई है.
पूरे समुदाय को आतंकवाद से जोड़ कर देखे जाने पर जिस मंत्री ने अपने पद से इस्तीफा दिया था, उन्होंने अब वापस अपने मंत्री पद की शपथ ले ली है.
एक मुसलमान स्त्री रोग विशेषज्ञ पर बौद्ध महिलाओं की नसबंदी करने का आरोप लगा था. उन्हें अब बेल पर बरी कर दिया गया है.
एक सिंहली अख़बार ने बिना सबूत के ये रिपोर्ट छापी थी जिसके बाद डॉक्टर मोहम्मद शैफी को मई में हिरासत में ले लिया गया था.
अपराध जांच विभाग ने कोर्ट को सूचित किया था कि मामले से जुड़ा कोई सबूत नहीं मिला है. इसके बाद भी उन्हें कई हफ्ते हिरासत में रखा गया.
कोलंबो के कई मुसलमान व्यापारियों ने भी कहा कि अब सिंहली लोगों ने उनकी दुकानों पर आना शुरू कर दिया है. आने की रफ़्तार धीमी है लेकिन लोग आना शुरू कर रहे हैं.
लेकिन वो आने वाले चुनावों को लेकर चिंता में हैं, उन्हें डर है कि चुनावों के चलते देश की स्थिति क्या मोड़ लेती है.
राष्ट्रीय सुरक्षा आने वाले चुनावों के लिए एक बड़ा मुद्दा है.
मुसलमान नेताओं को डर है कि मुसलमानों के ख़िलाफ़ होने वाली बयानबाज़ी का इस्तेमाल समुदाय बांटने और राजनीतिक फ़ायदों के लिए किया जाएगा.
श्रीलंका के मुसलमान ये प्रार्थना कर रहे हैं कि वे इतने बड़े राजनीतिक खेल में बस एक मोहरा बन कर न रह जाएं.