रूसी S-400 खरीद पर Turkey पर प्रतिबंध, अमेरिका के रुख से भारत को कितना चिंतित होने की जरूरत ?
नई दिल्ली। अपने कार्यकाल के आखिरी समय में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने एक ऐसा फैसला किया है जिसके चलते भारत को भी भविष्य में मुश्किल हो सकती है। ट्रंप ने रूस एयर डिफेंस सिस्टम S-400 खरीदने पर तुर्की के ऊपर प्रतिबंध लगा दिया है। डोनाल्ड ट्रंप इसे लागू करने से अब तक बचते रहे थे जिसके चलते अमेरिकी कांग्रेस इस मुद्दे पर बंट गई थी। वहीं अब इसके लागू होने से तुर्की और राष्ट्रपति रेचेप तैयप अर्दोआन को नाराज कर दिया है। नाटो के सहयोगी तुर्की पर ये प्रतिबंध ऐसे समय में लगाए गए हैं जब उसके अपने पश्चिमी सहयोगियों से रिश्ते पहले से ही तनाव में चल रहे थे।
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क्या है अमेरिका के प्रतिबंध में ?
तुर्की पर प्रतिबंध अमेरिका का उस नीति के तहत हैं जो वह अपने विरोधियों को निशाना बनाने के लिए लाई गई थी। इसे काउंटरिंग अमेरिकाज एडवर्सरीज थ्रो सैंक्शन एक्ट (CAASTA) कहा जाता है। इसके निशाने पर ईरान, उत्तर कोरिया और रूस हैं। इसके तहत रूस से किसी भी तरह का महत्वपूर्ण रक्षा या जासूसी उपकरणों का सौदा करने वाले देश पर प्रतिबंध लगाए जाएंगे।
प्रतिबंधों के बारे में बताते हुए अमेरिकी विदेश मंत्री माइक पॉम्पियों ने कहा है कि "ये प्रतिबंध साफ संदेश हैं कि अमेरिका से CAASTA 232 को लागू करने के लिए प्रतिबद्ध है। अमेरिका किसी भी देश का रूस से रक्षा और जासूसी उपकरण खरीदना सहन नहीं करेगा।" उन्होंने आगे कहा कि "मैं तुर्की से आग्रह करता हूं कि वह तुरंत अमेरिका के साथ मिलकर S-400 समस्या को हल करे। तुर्की अमेरिका का महत्वपूर्ण सहयोगी और क्षेत्री रक्षा साझेदार है। हम जल्द से जल्द तुर्की की S-400 की समस्या को खत्म करके रक्षा क्षेत्र के अपने दशकों पुराने रिश्ते को जारी रखना चाहते हैं।"
तुर्की पर प्रतिबंध भारत के लिए भी मुश्किल
यही वजह है कि ट्रंप के इस फैसले ने भारत को भी मुश्किल में डाल दिया है। जिस S-400 के मिसाइल को लेकर तुर्की पर प्रतिबंध लगाया गया है भारत ने भी इसी मिसाइल के लिए रूस से सौदा किया है। भारत के लिए यह प्रतिबंध इसलिए भी चिंता बढ़ाने वाला है क्योंकि 20 जनवरी को ट्रंप का कार्यकाल खत्म हो रहा है और नव निर्वाचित राष्ट्रपति जो बाइडेन का कुछ मुद्दों पर रुख भारत के अनुकूल नहीं रहा था।
अगर ट्रंप की बात करें तो उन्होंने इस प्रतिबंध का इस्तेमाल सबसे कम किया है। इसके पहले वह सिर्फ चीन के खिलाफ ही इस प्रतिबंध की मंजूरी दे चुके हैं। वहीं बाइडेन का रुख अमेरिका के पुराने समझौतों और प्रतिबंधों को लागू करने को लेकर रहा है। बाइडेन आरोप लगाते रहे हैं कि ट्रंप ने पुतिन से अपनी दोस्ती निभाने के लिए रूस की कई निरंकुश और गैर जिम्मेदार व्यवहार को नजर अंदाज किया है। माना जा रहा है कि बाइडेन सत्ता में आने के बाद रूस के लिए कड़ा रुख अपनाएंगे अगर ऐसा होता है तो ये भारत के लिए भी चिंता की बात होगी।
भारत-रूस के सौदे में क्या है ?
भारत ने 2018 में रूस के साथ S-400 मिसाइल सिस्टम को लेकर समझौता किया था। इसके तहत 5.43 बिलियन डॉलर में एयर डिफेंस सिस्टम की 5 यूनिट खरीदने पर सहमति बनी थी। इस सौदे को लेकर अमेरिका का भारत पर बहुत दबाव था लेकिन भारत ने इसे किनारे रखते हुए समझौते पर हस्ताक्षर किए थे। इस सौदे के बाद भारत में मामले को कूटनीतिक स्तर पर सुलझा लिया था और भारत-अमेरिका के संबंध और ऊंचाइयों पर पहुंचे थे। 2019 में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप भारत भी पहुंचे थे। यही नहीं क्वाड देशों की बैठक भी करने में भारत सफल रहा था। लेकिन कार्यकाल के आखिरी दिनों में जिस तरह डोनाल्ड ट्रंप को CAASTA को लागू करना पड़ा है उसके चलते ये खतरा भारत के सामने भी आ सकता है। खासतौर पर ट्रंप ने ऐसी स्थिति में इस पर हस्ताक्षर किए हैं जब वह खुद इसके पक्ष में नहीं रहे हैं। कई मौकों पर वह खुलकर तुर्की के S-400 खरीद को जायज ठहरा चुके हैं।
S-400
क्यों
है
इतना
महत्वपूर्ण
?
रूस
में
विकसित
किया
गया
S-400
एयर
डिफेंस
सिस्टम
को
दुनिया
की
उन्नत
श्रेणी
का
सिस्टम
माना
जाता
है।
यह
सिस्टम
जमीन
से
हवा
में
मार
करत
है
और
किसी
भी
हवाई
हमले
का
पता
लगाकर
उसे
हवा
में
ही
नष्ट
करने
में
सक्षम
है।
रडार
और
सेटेलाइट
से
जुड़ा
रहने
के
कारण
यह
600
किमी
तक
अपने
लक्ष्य
पर
नजर
बना
सकता
है
और
उसे
400
किमी
की
दूरी
पर
ही
उसे
मारकर
गिरा
सकता
है।
इसे
5
मिनट
में
तैनात
किया
जा
सकता
है।
तुर्की की तरह ही क्या आसान होंगे भारत पर प्रतिबंध ?
अमेरिका ने भले ही तुर्की के ऊपर इन प्रतिबंधों को लागू किया है लेकिन भारत के साथ ये करना आसान नहीं होगा। यहां ध्यान देना होगा कि तुर्की भले ही नाटो का सदस्य हैं लेकिन उसके रिश्ते अपने नाटो सहयोगियों से भी बिगड़े हुए हैं। समुद्र में तेल की खोज को लेकर ग्रीस और तुर्की आमने-सामने हैं। वहीं फ्रांस और तुर्की में भी तनाव चरम पर है। आर्मीनिया और अजरबैजान की लड़ाई में तुर्की ने अजरबैजान का खुलकर साथ दिया था जो अमेरिका और उसके पश्चिमी सहयोगियों को पसंद नहीं आया था। फ्रांस और पश्चिमी देश यथास्थिति बनाए रखने के पक्षधर थे जबकि तुर्की ने अजरबैजान के हमले का समर्थन किया। यही नहीं तुर्की में बने ड्रोन की मदद से अजरबैजान को काफी मदद मिली। वहीं मध्य पूर्व में इजरायल के साथ बन रहे नए समीकरणों का तुर्की खुलकर विरोध कर रहा है। तुर्की पर प्रतिबंधों के पीछे भले ही ये तात्कालिक कारण न रहे हों लेकिन इसके पीछे इनकी भूमिका बहुत महत्वपूर्ण है।
भारत क्यों बच सकता है प्रतिबंधों से ?
तुर्की के मुकाबले अगर भारत की बात करें तो स्थिति बिल्कुल अलग नजर आती है। तुर्की ने जब रूस से S-400 का सौदा किया उसके बाद अमेरिकी राष्ट्रपति ने तुर्की को अमेरिका के अगली पीढ़ी के लड़ाकू विमान F-35 की खरीद से बाहर कर दिया था। जबकि भारत और रूस में सौदा होने (2018) के बाद डोनाल्ड ट्रंप भारत आए थे और भारत के साथ 3.5 बिलियन डॉलर का समझौता किया था।
इसके साथ ही अमेरिका को चीन से मुकाबले के लिए क्षेत्रीय ताकत की जरूरत है जो कि भारत से बेहतर दूसरी नहीं हो सकती। पाकिस्तान भले ही अमेरिका का सहयोगी रहा हो लेकिन चीन से उसकी नजदीकी जगजाहिर है। ऐसे में भले ही भारत विरोधी समझे जा रहे हों लेकिन भारत को छोड़कर चल पाना अब अमेरिका के लिए आसान नहीं होगा। इस साल ही क्वाड देशों के बीच बना महत्वपूर्ण गठजोड़ इसी का नतीजा है। अमेरिका दक्षिण एशिया में अपने मजबूत सहयोगी को अलग नहीं होने देगा।
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