क्विक अलर्ट के लिए
नोटिफिकेशन ऑन करें  
For Daily Alerts
Oneindia App Download

शी जिनपिंग ने कहा- ताइवान को चीन से मिलना ही होगा

उधर माओ ने कहा कि हमें आधिकारिक रूप से मान्यता मिलनी चाहिए. इस बीच कम्युनिस्ट पार्टी के सदस्यों ने मांग उठाई कि देश का यह नाम कॉमिंगतांग का दिया हुआ है और अब वे ताइवान में जाकर खुद को रिपब्लिक ऑफ चाइना ही कह रहे हैं. ऐसे में उन्होंने अपनी सरकार बनाई और देश को नया नाम दिया- पीपल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना."

By BBC News हिन्दी
Google Oneindia News
शी जिनपिंग
EPA
शी जिनपिंग

चीन के राष्ट्रपति शीन जिनपिंग ने ताइवान के लोगों से कहा है कि वे इस बात को स्वीकार कर लें कि ताइवान को चीन के साथ 'मिलना होगा' और यह 'मिलकर ही रहेगा.'

ताइवान के साथ रिश्ते सुधारने की पहल के 40 साल पूरे होने पर दिए गए भाषण में जिनपिंग ने दोहराया कि चीन 'एक देश दो प्रणालियों' वाली व्यवस्था के तहत शांतिपूर्ण एकीकरण चाहता है.

उन्होंने चेताया भी कि चीन के पास 'शक्ति इस्तेमाल करने का अधिकार' है. हालांकि, ताइवान स्वयं शासित और वास्तविक रूप से स्वतंत्र है लेकिन उसने कभी यह आधिकारिक रूप से घोषित नहीं किया है कि वह चीन से स्वतंत्र है.

ताइवान को चीन अपने से अलग हुआ हिस्सा मानता है. ऐसे में जिनपिंग का बयान चीन की ताइवान को ख़ुद से मिलाने की पुरानी नीति के अनुरूप ही है.

जिनपिंग ने कहा कि दोनों पक्ष एक ही चीनी परिवार के हिस्से हैं और ताइवानी लोगों को 'यह समझना चाहिए कि स्वतंत्रता केवल मुश्किलें लेकर आएगी.' उन्होंने चेताते हुए कहा कि ताइवानी स्वतंत्रता को बढ़ावा देने की किसी भी गतिविधि को चीन बर्दाश्त नहीं करेगा.

इसके साथ ही उन्होंने इस बात पर भी ज़ोर दिया कि ताइवान के साथ उसके संबंध 'चीन की घरेलू राजनीति का हिस्सा हैं' और इसमें 'विदेशी दख़ल बर्दाश्त नहीं है.'

ताइवान
EPA
ताइवान

ताइवान का क्या मानना है?

बुधवार को ताइवान की राष्ट्रपति साई इंग-वेन ने कहा कि उनका देश चीन की शर्तों के आधार पर कभी एकीकरण के लिए तैयार नहीं होगा.

जिनपिंग के भाषण से एक दिन पहले ताइवान की राष्ट्रपति ने कहा था कि चीन को ताइवान के अस्तित्व को स्वीकार करना चाहिए और मतभेदों को सुलझाने के लिए शांतिपूर्ण साधनों का उपयोग करना चाहिए.

साई ने कहा, "मैं चीन से कहना चाहती हूं कि वह ताइवान में चीनी गणराज्य के अस्तित्व की वास्तविकता का सामना करें."

उन्होंने कहा कि चीन को 2.3 करोड़ लोगों की स्वतंत्रता और लोकतंत्र का सम्मान करना चाहिए और शांतिपूर्ण तरीक़े से मतभेदों को सुलझाना चाहिए.

साई इंग-वेन
EPA
साई इंग-वेन

नवंबर में साई की राजनीतिक पार्टी को क्षेत्रीय चुनावों में भारी झटका लगा था. चीन मानता है कि यह उसके अलगाववादी रुख़ के कारण हुआ था.

क्या है विवाद की वजह

'पीपल्स रिपब्लिक ऑफ़ चाइना' और 'रिपब्लिक ऑफ़ चाइना' एक-दूसरे की संप्रभुता को मान्यता नहीं देते. दोनों ख़ुद को आधिकारिक चीन मानते हुए मेनलैंड चाइना और ताइवान द्वीप का आधिकारिक प्रतिनिधि होने का दावा करते रहे हैं.

जिसे हम चीन कहते हैं उसका आधिकारिक नाम है 'पीपल्स रिपब्लिक ऑफ़ चाइना' और जिसे ताइवान के नाम से जानते हैं, उसका अपना आधिकारिक नाम है 'रिपब्लिक ऑफ़ चाइना.' दोनों के नाम में चाइना जुड़ा हुआ है.

व्यावहारिक तौर पर ताइवान ऐसा द्वीप है जो 1950 से ही स्वतंत्र रहा है. मगर चीन इसे अपना विद्रोही राज्य मानता है. एक ओर जहां ताइवान ख़ुद को स्वतंत्र और संप्रभु राष्ट्र मानता है, वहीं चीन का मानना है कि ताइवान को चीन में शामिल होना चाहिए और फिर इसके लिए चाहे बल प्रयोग ही क्यों न करना पड़े.

ताइवान
AFP
ताइवान

इस विवाद के कारण को समझने के लिए इतिहास में जाना होगा. दिल्ली की जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी के सेंटर फॉर चाइनीज़ एंड साउथ ईस्ट एशियन स्टडीज़ में असिस्टेंट प्रोफेसर गीता कोचर बताती हैं, "चीन में साल 1644 में चिंग वंश सत्ता में आया और उसने चीन का एकीकरण किया. साल 1895 में चिंग ने ताइवान द्वीप को जापानी साम्राज्य को सौंप दिया. मगर 1911 में चिन्हाय क्रांति हुई जिसमें चिंग वंश को सत्ता से हटना पड़ा. इसके बाद चीन में कॉमिंगतांग की सरकार बनी. जितने भी इलाके चिंग रावंश के अधीन थे, वे कॉमिंगतांग सरकार को मिल गए."

गृहयुद्ध से कैसे बदले हालात

कॉमिंगतांग सरकार के दौरान चीन का आधिकारिक नाम रिपब्लिक ऑफ चाइना कर दिया गया था.

चीन और ताइवान के इस पेचीदा विवाद की कहानी शुरू होती है साल 1949 से. ये वो दौर था जब चीन में हुए गृहयुद्ध में माओत्से तुंग के नेतृत्व में कम्युनिस्टों ने चियांग काई शेक के नेतृत्व वाली राष्ट्रवादी कॉमिंगतांग पार्टी को हराया था.

चीन में सत्ता में आ चुके कम्युनिस्टों की नौसैनिक ताक़त न के बराबर थी. यही कारण था कि माओ की सेना समंदर पार करके ताइवान पर नियंत्रण नहीं कर सकी.

माओत्से तुंग
Getty Images
माओत्से तुंग

डॉक्टर गीता कोचर बताती हैं, "कम्युनिस्टों से हार के बाद कॉमिंगतांग ने ताइवान में जाकर अपनी सरकार बनाई. इस बीच दूसरे विश्वयुद्ध में जापान की हार हुई तो उसने कॉमिंगतांग को ताइवान का नियंत्रण सौंपा. यह हस्तांतरण दो संधियों के आधार पर हुआ. इस बीच यह विवाद उठ खड़ा हुआ कि जापान ने ताइवान किसको दिया. ऐसा इसलिए क्योंकि चीन में कम्युनिस्ट सत्ता में थे और ताइवान में कॉमिंगतांग का शासन था. माओ का मानना था कि जीत जब उनकी हुई है तो ताइवान पर उनका अधिकार है जबकि कॉमिंगतांग का कहना था कि बेशक चीन के कुछ हिस्सों में उनकी हार हुई है मगर वे ही आधिकारिक रूस से चीन का प्रतिनिधित्व करते हैं."

डॉक्टर गीता कहती हैं कि यहीं से दो राजनीतिक इकाइयां अस्तित्व में आ गईं और वे दोनों आधिकारिक चीन होने का दावा करने लगीं.

चियांग काई शेक
Getty Images
चियांग काई शेक

वह बताती हैं, "1911 में कॉमिंगतांग ने देश का नाम रिपब्लिक ऑफ़ चाइना कर दिया था और 1950 तक यही नाम रहा. 1959 में कॉमिंगतांग ने ताइवान में सरकार बनाई तो उन्होंने कहा कि बेशक चीन के मुख्य हिस्से में हम हार गए हैं फिर भी हम ही आधिकारिक रूप से चीन का नेतृत्व करते हैं न कि कम्युनिस्ट पार्टी, इसलिए हमें मान्यता दी जाए.

उधर माओ ने कहा कि हमें आधिकारिक रूप से मान्यता मिलनी चाहिए. इस बीच कम्युनिस्ट पार्टी के सदस्यों ने मांग उठाई कि देश का यह नाम कॉमिंगतांग का दिया हुआ है और अब वे ताइवान में जाकर खुद को रिपब्लिक ऑफ चाइना ही कह रहे हैं. ऐसे में उन्होंने अपनी सरकार बनाई और देश को नया नाम दिया- पीपल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना."

इसके बाद से दोनों 'चाइना' खुद को आधि

कारिक चीन बताते रहे और इसी आधार पर विश्व समुदाय से मान्यता चाहते रहे.

ये भी पढ़ें:

BBC Hindi
Comments
देश-दुनिया की ताज़ा ख़बरों से अपडेट रहने के लिए Oneindia Hindi के फेसबुक पेज को लाइक करें
English summary
Shi Jinping said Taiwan must meet China
तुरंत पाएं न्यूज अपडेट
Enable
x
Notification Settings X
Time Settings
Done
Clear Notification X
Do you want to clear all the notifications from your inbox?
Settings X
X