Afghanistan में चलने लगे सीक्रेट स्कूल, जानिए तालिबान को 'धोखा' देकर कैसे पढ़ती है लड़कियां?
पूर्वी अफगानिस्तान के एक गांव में एक गुप्त स्कूल में पढ़ने वाली नफीसा ने कहा कि, "लड़कों के पास रसोई घर में करने के लिए कुछ नहीं है, इसलिए मैं अपनी किताबें वहां रखती हूं।"
काबुल, अगस्त 09: अफगानिस्तान में तालिबान की सरकार ने लड़कियों की पढ़ाई-लिखाई पर बैन लगा दिया है, लेकिन तालिबान राज के अंदर सीक्रेट स्कूल चल रहे हैं, जहां लड़कियां तालीन हासिल करती हैं। ऐसी ही एक लड़की हैं नफीसा, जिन्होंने तालिबान में शामिल अपने भाई की नजरों से बचकर सीक्रेट स्कूल जाना शुरू कर दिया है, जहां शायद ही कभी तालिबान पहुंच पाए। एक साल पहले तालिबान के सत्ता में आने के बाद से नफीसा जैसी हजारों लड़कियों और युवतियों की पढ़ाई-लिखाई बंद हो गई है, लेकिन सीखने की ललक अभी भी उनमें कम नहीं हुई है।
कैसे चलता है सीक्रेट स्कूल?
ये सीक्रेट स्कूल अफगानिस्तान के किस हिस्से में चलता है, वो जगह लड़कियों की सुरक्षा और उनकी पढ़ाई-लिखाई जारी रहे, इसलिए अज्ञात रखा गया है, लेकिन पूर्वी अफगानिस्तान के एक गांव में एक गुप्त स्कूल में पढ़ने वाली नफीसा ने कहा कि, "लड़कों के पास रसोई घर में करने के लिए कुछ नहीं है, इसलिए मैं अपनी किताबें वहां रखती हूं।" उन्होंने कहा कि, "अगर मेरे भाई को इस बारे में पता चला, तो वह मुझे बहुत पीटेगा।" एक साल पहले सत्ता पर कब्जा करने के बाद से तालिबान ने लड़कियों और महिलाओं पर इस्लाम के अपने कठोर आदेश का पालन करने के लिए कठोर प्रतिबंध लगाए हैं, तालिबान ने लड़कियों की सार्वजनिक जीवन पर पाबंदी लगा दी है। महिलाएं अब अपने पुरुष रिश्तेदार के बिना लंबी यात्राओं नहीं कर सकती हैं।
कई हिस्सों में खुल गये हैं गुप्त स्कूल
लड़कियों के लिए हिजाब पहनना अनिवार्य कर दिया गया है, जिसमें उनकी आंखें भी ढंकी होनी चाहिए और अगर उन्हें घर से बाहर अकेले यात्रा पर निकलना है, तो पहले उन्हें तालिबान के ऑफिस में रजिस्ट्रेशन करवाना होगा और सारी जानकारियां विस्तार से देनी होंगी, ताकि तालिबान के अधिकारी संतुष्ट हो सकें। अफगानिस्तान में लड़कियों के माध्यमिक स्कूलों को भी बंद कर दिया गया है, लेकिन अब देश के कई हिस्सों में तालिबान की नजरों से बचाकर गुप्त स्कूल खुल गये हैं, जहां नफीसा जैसी सैकड़ों लड़कियां पढ़ाई करने जाती हैं। ये स्कूल सामान्य घरों में खुले हैं और उनके बारे में तालिबान को शायद ही खबर लग पाए। समाचार एजेंसी एएफपी के पत्रकारों की एक टीम ने इनमें से तीन स्कूलों का दौरा किया और उन छात्रों और शिक्षकों का इंटरव्यू लिया। वहीं, उन छात्राओं को शिक्षकों का असली नाम भी छिपा लिया गया है, लेकिन ये सीक्रेट स्कूल कैसे चलता है, उसके बारे में काफी दिलचस्प बातें पता चलीं हैं।
‘हमें चाहिए आजादी’
दशकों की उथल-पुथल ने अफगानिस्तान की शिक्षा प्रणाली को तबाह कर दिया है, इसलिए नफीसा अभी भी माध्यमिक विद्यालय के विषयों का ही अध्ययन कर रही है, भले ही अब उनकी उम्र 20 साल हो चुकी हो। वो स्कूल जाती हैं, उसके बारे में सिर्फ उनकी मां और बड़ी बहन को ही पता है। उसके भाई ने पहाड़ों में रहकर पूर्व अफगान सरकार और अमेरिका के नेतृत्व वाली ताकतों के खिलाफ तालिबान के साथ वर्षों तक लड़ाई लड़ी है औऱ अब सरकार बनने के बाद अपने कट्टर सिद्धांतों के साथ घर लौट आया है, जो कहता है, कि महिलाओं का स्थान घर के अंदर होता है और उन्हें किताबों से दूर रहना चाहिए। नफीसा को भाई की तरह से पास के मदरसे में जाकर कुरान का अध्ययन करने की इजाजत मिली हुई है, लेकिन दोपहर में वो गुप्त स्कूल में चली जाती है, जिसे 'रिवोल्यूशनरी एसोसिएशन ऑफ वूमन ऑफ अफगानिस्तान' (RAWA) द्वारा चलाया जाता है। नफीसा ने कहा कि, "हमने इस जोखिम को स्वीकार कर लिया है, अन्यथा हम अशिक्षित रहेंगे।"
लड़कियों की बड़ी-बड़ी ख्वाहिशें
गुप्त स्कूल में पढ़ने वाली लड़कियों की बड़ी बड़ी ख्वाहिशें हैं। नफीसा कहती है, कि "मैं एक डॉक्टर बनना चाहती हूं... हम अपने लिए कुछ करना चाहते हैं, हम आजादी चाहते हैं, समाज की सेवा करना चाहते हैं और अपने भविष्य का निर्माण करना चाहते हैं।" जब एएफपी ने उनके स्कूल का दौरा किया, तो नफीसा और नौ अन्य लड़कियां अपनी महिला शिक्षक के साथ 'बोलने की स्वतंत्रता' पर चर्चा कर रही थीं, एक कालीन पर कंधे से कंधा मिलाकर बैठी लड़कियां एक पाठ्यपुस्तक पढ़ रही थीं। सीक्रेट स्कूल जाने के लिए इन लड़कियों को काफी संघर्ष करना पड़ता है और हर दिन पकड़े जाने का डर रहता है। स्कूल जाने के लिए वो उन रास्तों का इस्तेमाल नहीं करती हैं, जो पश्तून बहुल हैं और हर दिन वो रास्ता बदल देती हैं। स्कूल जाने के लिए वो कई घंटे पहले निकलती हैं और बचत-बचाते हुए वो स्कूल पहुंचती हैं। अगर तालिबान का कोई लड़ाका पूछता है, तो लड़कियों का कहना होता है, कि उन्होंने एक सिलाई कार्यशाला में दाखिला लिया है। वो अपनी स्कूली किताबों को शॉपिंग बैग में या फिर अपने अबाया में या फिर बुर्का के अंदर छिपा कर रखती हैं। ये लड़कियां पढ़ाई करने के लिए ना सिर्फ जोखिम उठाती हैं, बल्कि बलिदान भी देती हैं। नफीसा की बड़ी बहन ने सिर्फ इसलिए पढ़ाई बंद कर दिया, ताकि उसकी नफीसा पढ़ सके और उसकी बहन भाई के किसी शक को खत्म कर सके।
क्या इस्लाम में लड़कियों की पढ़ाई है प्रतिबंधित?
धार्मिक विद्वानों और इस्लाम के जानकारों का कहना है कि, इस्लाम में लड़कियों की माध्यमिक स्कूली शिक्षा पर प्रतिबंध लगाने का कोई औचित्य नहीं है और सत्ता संभालने के एक साल बाद भी तालिबान अभी तक फैसला नहीं कर पाया है, कि अफगानिस्तान में फिर से स्कूल खोले जाएंगे या नहीं। हालांकि, समाचार एजेंसी एएफपी ने बताया कि, लड़कियों को पढ़ने दिया जाए या नहीं, इसको लेकर तालिबान के अंदर दो गुट बन चुके हैं। एक कट्टरपंथी ग्रुप ने तालिबान के सर्वोच्च नेता हिबतुल्लाह अखुंदजादा को सलाह दी है, कि लड़कियों को पढ़ने की इजाजत किसी भी हाल में नहीं दी जाए और स्कूल नहीं खोले जाएं। इस धड़े ने सलाह दी है, कि लड़कियों को सिर्फ धार्मिक किताबों का अध्ययन करना चाहिए और उन्हें खाना पकाना और सिलाई-कटाई के काम ही करने चाहिए।
तालिबान का आधिकारिक लाइन क्या है?
लेकिन, तालिबान का आधिकारिक लाइन यह बनी हुई है, कि लड़कियों की पढ़ाई एक "तकनीकी मुद्दा" है और इस्लामी नियमों पर आधारित पाठ्यक्रम परिभाषित होने के बाद कक्षाएं फिर से शुरू होंगी। प्राथमिक स्कूल की लड़कियां अभी भी स्कूल जाती हैं, फिलहाल के लिए और युवा महिलाओं को कई शर्तों के साथ विश्वविद्याल में जाने की इजाजत मिली है, लेकिन, दिक्कत ये है, कि उन्हें पढ़ाने के लिए अब महिला प्रोफेसर कहां से आएं? लड़कियों के लिए माध्यमिक विद्यालय बंद हैं और बिना माध्यमिक विद्यालय के सर्टिफिकेट के किशोर लड़कियों को कॉलेज में दाखिला कैसे मिलेगा? लिहाजा, युवा लड़कियों की एक पूरी जेनरेशन का ही भविष्य खराब हो रहा है।
‘शिक्षा इस्लाम का अनिवार्य अधिकार’
समाचार एजेंसी एएफपी से बात करते हुए इस्लामिक स्कॉलर अब्दुल बारी मदनी ने एएफपी को बताया कि, "इस्लाम में पुरुषों और महिलाओं, दोनों के लिए शिक्षा एक अनिवार्य अधिकार है।" उन्होंने कहा कि, "अगर यह प्रतिबंध जारी रहा, तो अफगानिस्तान आदिवासी युग में वापस चला जाएगा और लड़कियों की एक पूरी पीढ़ी के भविष्य और उनके सपनों को दफना दिया जाएगा।" अफगानिस्तान में लड़कियों की एक पीढ़ी का भविष्य बर्बाद होने के कगार पर है और इस डर की वजह से तमकिन नाम की महिला शिक्षक ने अपने घर को स्कूल में बदल दिया है। साल 1996 से 2001 तक, जब सभी लड़कियों की स्कूली शिक्षा पर प्रतिबंध लगा दिया गया था, उस वक्त खुद तमकिन की पढ़ाई बंद हो गई और वो नहीं चाहती हैं, कि और लड़कियों के साथ ऐसा हो।
तालिबान के खिलाफ बढ़ता गुस्सा
तमकिन 40 साल से कुछ ऊपर की हैं और वो लड़कियों को पढ़ाने का काम कर रही हैं। तालिबान राज से पहले तमकिन एक स्कूल में टीचर बन गईं थीं, लेकिन तालिबान की वापसी के साथ ही उनकी नौकरी चली गई। उन्होंने एएफपी से बात करते हुए कहा, कि "मैं नहीं चाहती थी कि ये लड़कियां भी मेरी तरह बनें।" इतना कहकर तमकिन की आंखों से निकला आंसू उनके गालों पर बह आए। उन्होंने कहा, कि "उनका भविष्य बेहतर होना चाहिए।" अपने पति के सहयोग से, तमकिन ने सबसे पहले एक स्टोररूम को एक क्लास में बदल दिया है। फिर उन्होंने पाठ्यपुस्तकों के लिए धन जुटाने के लिए एक पारिवारिक गाय बेच दी, क्योंकि ज्यादातर लड़कियां काफी गरीब माहौल से आती हैं और किताब खरीदने के लिए उन्हें पैसे कौन देगा? इन लड़कियों के मन में तालिबान को लेकर भारी गुस्सा है और स्कूल के अंदर उन्हें तालिबान से कैसे लड़ना है, उसके बारे में भी बताया जाता है।
स्कूल को बताती हैं मदरसा
तमकिन के स्कूल में करीब 25 लड़कियां हैं, जो 12वीं कक्षा में पढ़ती हैं। लड़कियों से भरे कमरे में नरविन नाम की एक छात्रा ने कहा, कि "मैं सिर्फ पढ़ना चाहता हूं। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि जगह कैसी है।" स्कूल के बाहर मकान के दीवार पर कई तरह के पोस्ट लिखे हैं, जिसमें नम्र, विचारशील और मजबूत होने की अपील की गई है। इस तरह के स्लोगन ने घर के अंदर स्कूल होने की बात को छिपाया है और अगर कभी तालिबान के लड़ाके पहुंचते हैं, तो उन्हें कहा जाता है, कि घर के अंदर मदरसा चलता है। तमकिन के पड़ोसियों को भी पता है, कि अंदर एक मदरसा चलता है। वहीं, 17 साल की लड़की मलिहा कहती है, कि एक दिन जरूर ऐसा आएगा, जब तालिबान सत्ता से बाहर रहेगा और लड़कियों के पास पूरी आजादी होगी। तब हम अपने ज्ञान का सदुपयोग करेंगे। (सभी तस्वीर- फाइल)
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