सद्दाम हुसैन की बेटी रग़द हुसैन बचपन में शादी और पिता से संबंधों पर खुलकर बोलीं
फ़रवरी 1996 में 25 साल की उम्र में रग़द ने अपने परिवार वालों के कहने पर तलाक़ लिया और तलाक़ के दो दिन बाद उनके पति की हत्या कर दी गई. रग़द ने बताया कि हत्या का फ़ैसला उनके घरवालों का ही था.
इराक़ के पूर्व राष्ट्रपति सद्दाम हुसैन की बड़ी बेटी रग़द हुसैन जब स्कूल में पढ़ती थीं, तो उनकी शादी हो गई.
तब उनकी उम्र महज़ 15 साल थी. शादी के वक़्त इराक़ और ईरान में जंग चल रही थी. फ़रवरी 1996 में 25 साल की उम्र में रग़द ने अपने परिवार वालों के कहने पर तलाक़ लिया और तलाक़ के दो दिन बाद उनके पति की हत्या कर दी गई.
रग़द की शादी सद्दाम हुसैन के चचेरे भाई हुसैन कैमेल अल माजिद से हुई थी. हुसैन कैमेल तब सद्दाम हुसैन की सुरक्षा में लगे थे. सद्दाम की दूसरी बेटी राना सद्दाम की शादी भी हुसैन कैमेल के भाई सद्दाम कैमेल अल माजिद से हुई थी.
दोनों बेटियों की शादी, तलाक़ और इनके पतियों की हत्या की बहुत ही दुखांत कहानी है. 2018 में रग़द सद्दाम हुसैन का नाम तत्कालीन इराक़ी सरकार ने मोस्ट वॉन्टेड की लिस्ट में डाल दिया था.
रग़द सद्दाम हुसैन ने अल-अरबिया को दिए इंटरव्यू में अपने निजी जीवन की कई अहम बातें कही हैं. रग़द से पूछा गया कि इस शादी के लिए उन्हें उनके पिता सद्दाम हुसैन ने दबाव डाला था या अपने मन से किया था?
शादी अपने मन से
जवाब में रग़द ने कहा, ''मेरे पिता ने अपने पाँच में से किसी भी बच्चे पर शादी का दबाव नहीं डाला. उनकी बेटियों के सामने किसी ने शादी के लिए प्रस्ताव भी रखा, तो उन्होंने हमलोगों से पूछा कि क्या करना है. उन्होंने पूरी आज़ादी दी थी. मैं तब किशोरी थी. गर्मी के दोपहर का वक़्त था. मेरे पिता ने दरवाज़ा खटखटाया और रूम में आए. मैं झपकी ले रही थी और उन्होंने बहुत प्यार से जगाया. वो मेरे बगल में बिस्तर पर बैठ गए. उन्होंने हालचाल पूछा. फिर उन्होंने पूछा कि तुम्हारा एक प्रेमी है? उन्होंने उसका नाम भी बताया.''
रग़द ने कहा कि शादी तो परिवार के भीतर ही होनी थी, इसलिए यह बहुत असहज स्थिति नहीं थी.
''मेरे पिता ने कहा कि तुम रिश्ता स्वीकार करने या ठुकराने के लिए स्वतंत्र हो. जब वो ये सब कह रहे थे, तो मैं लजा रही थी. तब उन्होंने कहा कि बेटी तुम अपना फ़ैसला अपनी माँ को बता देना. हुसैन कैमेल अल-माजिद मेरे पिता के रक्षा दल में थे, इसलिए उनकी मुलाक़ात सद्दाम हुसैन से रोज़ होती थी. मेरे पिता बाक़ी के अंगरक्षकों को लंच पर बुलाते थे, जिसमें ये भी शामिल रहते थे.''
''हम दोनों एक दूसरे को प्यार करने लगे थे. मेरी माँ को पता था. तब मैं बच्ची ही थी, लेकिन प्यार जल्दी ही शादी में तब्दील हो गया. मैं तब स्कूल में ही पढ़ती थी. शादी के बाद भी मैंने पढ़ाई जारी रखी और ग्रैजुएशन की पढ़ाई पूरी की. मेरे पति पढ़ाई के पक्ष में नहीं थे लेकिन मैंने पढ़ाई पूरी की. शायद मेरे पति ने ऐसा ईर्ष्या के कारण किया हो. इराक़ में तब सुरक्षा को लेकर कोई दिक़्क़त नहीं थी इसलिए स्कूल नहीं जाने देने की ज़िद करने के पीछे ये कोई कारण नहीं हो सकता. हालाँकि मेरे पति मुझे प्यार और आदर दोनों देते थे. वे मेरे माता-पिता का भी आदर करते थे.''
'पिता के प्यार की तुलना नहीं'
''मेरे पिता मुझे बेपनाह प्यार करते थे. इसकी तुलना किसी से नहीं की जा सकती. उन्होंने जितना प्यार दिया, उसकी तुलना न तो पति से की जा सकती है और ना ही मेरे बच्चों से.''
रग़द ने कहा कि इराक़-ईरान युद्ध के दौरान वो छोटी थीं और स्कूल में पढ़ती थीं. उस जंग से जुड़ी अपनी यादों को साझा करते हुए रग़द ने बताया, ''तब हमलोग का एक और घर था. वहाँ भी हमलोग आ-जा सकते थे. एक दिन मैं स्कूल नहीं गई, क्योंकि भारी बमबारी हुई थी. मेरे पिता सेना की ड्रेस में आए और बोले कि तुम स्कूल क्यों नहीं गई. मैंने युद्ध के ख़तरों को लेकर कहा, तो उनका जवाब था कि इराक़ के बाक़ी बच्चे भी स्कूल जा रहे हैं, तुमको भी जाना चाहिए. उन्होंने कहा कि अगर तुम स्कूल जाओगी, तो स्कूल में पढ़ने वाले बाक़ी के बच्चों का साहस बढ़ेगा. तुम्हें उनका भी ख़्याल रखना चाहिए. मेरे पिता चाहते थे कि हमें सद्दाम हुसैन की संतान होने की वजह से कोई विशेषाधिकार ना मिले. मेरे भाइयों की जान तो इराक़ की रक्षा में ही गई. ''
रग़द ने कहा कि वो राजनीतिक फ़ैासलों में शामिल नहीं होती थीं, लेकिन कई मानवतावदी फ़ैसलों का हिस्सा रहीं. रग़द ने कहा कि कई मामलों में मेरे पति से भी बहस होती थी.
पति और पिता में टकराव
रग़द ने अपने पति हुसैन कैमेल और पिता सद्दाम हुसैन के रिश्तों में आई कड़वाहट पर भी बात की. रग़द ने कहा, ''मैं कोई अकेली नहीं थी, जिसके पति मारे गए. तब इराक़ में बड़ी संख्या में महिलाओं ने अपने आदमियों को खोया. इनमें उनके पति, पिता और बच्चे भी शामिल थे. मेरे पति 1995 के अगस्त महीने में जॉर्डन गए. उन्होंने जाते वक़्त मुझसे संपर्क किया था. मुझे लगा कि अगर वे यहाँ रहेंगे, तो ख़ून ख़राबा होगा. ऐसा परिवार के बीच ही होता. इसीलिए मैंने उनके इराक़ छोड़ने के फ़ैसले का समर्थन किया. सद्दाम हुसैन की बेटी होने के नाते यह आसान नहीं था कि मैं दूसरे मुल्क जा सकूँ. हालाँकि जॉर्डन में हमारा स्वागत गर्मजोशी से हुआ. कभी ऐसा नहीं लगा कि मैं बाहरी हूँ. लेकिन जब प्रेस कॉन्फ़्रेंस कर इसे सार्वजनिक किया गया, तो मुझे इसका अंदाज़ा नहीं था कि क्या बात कही जाएगी.''
रग़द ने इस इंटरव्यू में कहा, ''जॉर्डन जाने के बाद प्रेस कॉन्फ़्रेंस में क्या कहा जाएगा, इसका मुझे कोई इल्म नहीं था.''
इस प्रेस कॉन्फ़्रेंस में हुसैन कैमेल ने सद्दाम हुसैन के ख़िलाफ़ बोला था. हुसैन कैमेल ने कहा था कि उनके जॉर्डन आने से सद्दाम का शासन हिल गया है. कैमेल ने इराक़ के सैनिकों से सत्ता परिवर्तन के लिए तैयार रहने को कहा था.
जॉर्डन में शरण
हुसैन कैमेल अल माजिद और उनके भाई सद्दाम कैमेल अल माजिद 1995 में अगस्त महीने के दूसरे हफ़्ते में इराक़ छोड़ जॉर्डन आ गए थे. दोनों भाइयों के साथ इनकी पत्नी रग़द और राना भी थीं.
दोनों भाई तब सद्दाम हुसैन के बड़े विश्वासपात्र और सेना का पूरा काम देखते थे. कहा जाता है इराक़ के हथियार प्रोग्राम के पीछे इन्हीं का दिमाग़ था. जब ये जॉर्डन आए, तो इनके साथ इराक़ी सेना के 15 अधिकारी भी थे. जॉर्डन आने पर वहाँ के किंग हुसैन ने इन्हें पनाह दी थी और इसे लेकर सद्दाम हुसैन ख़ासे नाराज़ थे.
तब अमेरिकी राष्ट्रपति बिल क्लिंटन ने किंग के फ़ैसले का स्वागत किया था.
आख़िर रग़द के पिता सद्दाम हुसैन और पति हुसैन कैमेल के बीच आई दरार की वजह क्या थी? इसके जवाब में रग़द कहती हैं, ''मेरे पति का सितारा बुलंद हो रहा था. मेरे पिता के बाद वे इराक़ में दूसरे नंबर की हैसियत रखने लगे थे. उनकी एक भूमिका थी. ऐसा परिवार से क़रीबी संबंध के कारण था. उनमें निर्णय लेने की क्षमता थी. उनमें वो साहस था कि हर भूमिका को ठीक से निभाएँ. मुझसे शादी से पहले से ही वो इस मामले में आगे बढ़ रहे थे. जब हमारी शादी हुई, तब हुसैन कैमेल स्पेशल सिक्यॉरिटी के प्रभारी थे. जब ईरान से जंग हुई, तो उसमें शामिल फ़ौज के भी हुसैन कैमेल ही प्रभारी थे. इसी फ़ौज की ज़िम्मेदारी सद्दाम हुसैन की सुरक्षा की थी. उन पर पूरे देश की सुरक्षा की ज़िम्मेदारी थी.''
'पति की हत्या का फ़ैसला मेरे घर वालों का था'
हुसैन कैमेल से तलाक़ के बारे में रग़द ने कहा, ''हुसैन इराक़ छोड़ने के बाद चीज़ों को झेल नहीं पाए. एक महीने में ही इसका अंदाज़ा हो गया था. तलाक़ का फ़ैसला फ़रवरी 1996 में इराक़ लौटने के एक दिन बाद ही ले लिया था. मैंने अपने पिता से बात की और फ़ैसला किया. मेरे पिता बहुत दुखी थे. उनसे लंबी बातचीत हुई थी. वो इतने ज़्यादा दुखी थे कि बात करने की स्थिति में नहीं थे. इस दौरान मेरे भाई भी थे और वहीं फ़ैसला हुआ कि हमें तलाक़ लेना है.''
जॉर्डन से लौटने के तीन दिन बाद ही हुसैन कैमेल अल माजिद और उनके भाई सद्दाम कैमेल अल माजिद की हत्या कर दी गई. सद्दाम कैमेल की शादी सद्दाम हुसैन की दूसरी बेटी राना सद्दाम से हुई थी. रग़द हुसैन ने इस इंटरव्यू में कहा है कि उनके पति की हत्या का फ़ैसला उनके परिजनों का था. रग़द ने इस बात को भी स्वीकार किया है कि उनके पति की हत्या में उनके भाई उदै सद्दाम हुसैन की भी भूमिका थी.''
रग़द कहती हैं, ''जब मेरे पति की हत्या हुई, तो मैं 25 साल की थी. जितना दुख हुआ, वो बता नहीं सकती. मेरे पिता को भी इसका अहसास था और उन्होंने मुझे सहारा देने की कोशिश भी की.''
2003 में इराक़ में अमेरिका के हमले के बाद रग़द जॉर्डन चली गई थीं और तब से वहीं हैं.