क्विक अलर्ट के लिए
नोटिफिकेशन ऑन करें  
For Daily Alerts
Oneindia App Download

मॉस्को के थिएटर में 140 लोगों के मारे जाने की रोंगटे खड़े करने वाले कहानी: विवेचना

18 साल पहले मध्य मॉस्को के दुब्रोवका थियेटर 50 हथियारबंद चेचेन विद्रोहियों ने नाटक देख रहे 850 लोगों को बंदी बना लिया था.

By रेहान फ़ज़ल
Google Oneindia News
मॉस्को के थिएटर में 140 लोगों के मारे जाने की कहानी

23 अक्टूबर, 2002 को मध्य मॉस्को में क्रेमलिन से करीब पाँच किलोमीटर दूर रात नौ बजे दुब्रोवका थियेटर में नए रूसी रोमांटिक म्यूज़िकल 'नॉर्ड ओस्ट' का मंचन चल रहा था.

1100 लोगों की क्षमता वाले थियेटर में इंटरवेल के बाद मंच पर मौजूद अभिनेता सैनिक वर्दी में नाच और गा रहे थे. तभी थियेटर के कोने से एक शख्स प्रकट हुआ. वो भी सैनिक वर्दी पहने हुए था. उसने हवा में गोली चलाई.

दर्शकों ने पहले समझा कि ये मंच पर चल रहे अभिनय का हिस्सा है. लेकिन उन्हें ये समझने में ज़्यादा देर नहीं लगी कि ये अभिनय नहीं बल्कि उनके सामने हो रही एक घटना है जिसे वो अपनी पूरी ज़िंदगी भुला नहीं पाएंगे और उनमें से बहुत से लोग जीवित बाहर नहीं निकल पाएंगे.

करीब 50 हथियारबंद चेचेन विद्रोहियों ने नाटक देख रहे 850 लोगों को बंदी बना लिया.

उनकी माँग थी कि रूसी सैनिक तुरंत और बिना शर्त चेचेन्या से हट जाएं, वरना वो बंधकों को मारना शुरू कर देंगे.

मॉस्को के थिएटर में 140 लोगों के मारे जाने की कहानी

राष्ट्रपति पुतिन ने बुश के साथ अपनी बैठक रद्द की

दर्शकों में से एक थे ऑस्ट्रेलिया में रहने वाले एलेक्स बॉबिक जो अपनी एक रूसी दोस्त के साथ नाटक देखने पहुंचे थे.

बॉबिक ने बीबीसी को बताया, ''यकायक हमें थियेटर के पीछे की तरफ़ से बूटों के चलने की आवाज़ सुनाई दी. फिर किसी ने हवा में एक गोली चलाई. मैंने अपनी रूसी दोस्त की तरफ़ मुड़ कर कहा ये नाटक का हिस्सा नहीं है. मुझे उसी समय अंदाज़ा हो गया था कि कुछ अनहोनी, एक बड़ी अनहोनी हो रही है.''

कुछ देर बाद थियेटर की बारमेड ओल्गा ट्रिमैन ने एक युवा महिला को चेचेन विद्रोहियों से झगड़ते हुए सुना. तभी वहाँ से एक आवाज़ सुनाई दी, ''इस महिला को गोली से उड़ा दो.''

तभी ओल्गा ने एक के बाद एक पाँच गोलियों चलाईं और एक महिला की चीख़ की आवाज़ सुनी.

पहले दिन चेचेन बंदूकधारियों ने करीब 150 ऐसे बंधकों को रिहा कर दिया जो उनकी नज़र में उनके अभियान में रोड़ा साबित हो सकते थे. इनमें कुछ विदेशी लोग और रूसी महिलाएं और बच्चे थे.

इन बंधकों के द्वारा बाहर संदेश भेजा गया कि अगर रूसियों ने विद्रोहियों को मारने की कोशिश की तो एक मरने वाले विद्रोही के बदले में वो 10 बंधकों की हत्या करेंगे.

दूसरे दिन 39 और बंधकों को रिहा किया गया. राष्ट्रपति पुतिन से अपने सभी कार्यक्रम रद्द कर दिए. यहाँ तक कि राष्ट्रपति बुश से भी उनकी मुलाकात ये कहते हुए रद्द कर दी गई कि विचार विमर्ष के लिए पुतिन का मॉस्को में रहना ज़रूरी है.

अपने मंत्रिमंडल से सलाह मशवरे के बाद पुतिन ने चेचेन विद्रोहियों को रूस से सुरक्षित दूसरे देश भिजवाने की पेशकश की बशर्ते वो सारे बंधकों को रिहा कर दें.

मॉस्को के थिएटर में 140 लोगों के मारे जाने की कहानी

चारों तरफ़ पेशाब की बदबू

अपनी आपबीती सुनाते हुए एलेक्स बॉबिक ने बीबीसी को बताया, ''उन्होंने ऑक्रेस्टा के पिट को सबका टायलेट बना दिया था. हर चार घंटे बाद लोगों को वहाँ जाने की अनुमति होती और वो लाइन बना कर अपनी बारी का इंतेज़ार करते. ज़मीन पर करीब ढ़ाई इंच तक पेशाब जमा हो गया था और लोगों को उसमें से चलते हुए पेशाब करने जाना होता. ''

''चारों तरफ़ बदबू ही बदबू थी. उन्होंने हमें खाने के लिए कुछ भी नहीं दिया. कभी-कभी वो थियेटर के एक स्टोर से कुछ टॉफ़ियाँ ला कर हम लोगों के बीच फेंक देते थे. कभी कभी हमें पीने के लिए पानी दिया जाता था लेकिन वो हमेशा अपर्याप्त रहता था.''

''हमें ज़मीन पर लेटने की इजाज़त नहीं थी. हम बैठे-बैठे ही थोड़ी झपकी ले लिया करते थे. वो हमें जगाने के लिए हवा में फ़ायरिंग करना शुरू कर देते थे.''

मॉस्को के थिएटर में 140 लोगों के मारे जाने की कहानी

वेंट के ज़रिए गैस छोड़ी गई

ब्रिटेन में रह रहे एसएएस टीम के पूर्व सदस्य रोबिन हॉर्सफ़ाल का मानना है कि बंधकों को छुड़ाने का सबसे स्वाभाविक तरीका ये होता कि आप विभिन्न एंट्री प्वाएंट्स से तेज़ी दिखाते हुए अंदर घुस कर विद्रोहियों को हतप्रभ कर देते.

लेकिन इसमें दिक्कत ये थी कि इसमें सरप्राइज़ एलिमेंट नहीं के बराबर होता क्योंकि चेचेन इसके लिए पूरी तरह से तैयार थे.

ऐसा करने के लिए रूसी सैनिकों को करीब 100 फ़ीट का गलियारा पार कर हॉल में घुसना पड़ता. उनको सीढ़ियों पर भी हमला करना पड़ता जहाँ विद्रोहियों ने ज़बरदस्त रक्षण कर रखा था.

इस हमले को अंजाम देने में कुछ मिनटों का समय ज़रूर लगता और चेचेन विद्रोहियों के लिए इतना समय विस्फोट से थियेटर को उड़ा देने के लिए पर्याप्त होता.

48 घंटे बाद पुतिन ने ये तय किया कि वो अगले दिन तड़के डुब्रोवका थियेटर में चेचेन विद्रोहियों पर काबू करने के लिए रूसी सैनिकों को भेजेंगे.

जानबूझ कर ख़बर लीक कराई गई कि हमला सुबह तीन बजे होगा जबकि हमला करने का समय सुबह पाँच बजे निर्धारित किया गया.

ये भी तय किया गया कि थियेटर में वेंट के ज़रिए गैस छोड़ी जाएगी ताकि सारे हमलावर शिथिल हो जाएं और तभी हमला कर उन्हें काबू किया जा सके. लेकिन दिक्कत ये थी कि चरमपंथियों ने मास्क पहन रखे थे इसलिए उन पर गैस का कोई असर नहीं हो रहा था.

थियेटर में बैठी अन्या अंद्रियानोवा ने सबसे पहले करीब सुबह साढ़ पाँच बजे एक अजीब सी महक महसूस की. बहुत से बंधकों की तरह वो सीट पर कुछ नींद लेने के प्रयास में अधलेटी सी थीं.

थियेटर पर हमले की आशंका को देखते हुए अंद्रियानोवा की एक दोस्त ने अपने मोबाइल फ़ोन से मास्को को 'एखो मोस्कवी' रेडियो शो में फ़ोन लगाया.

उन्होंने लगभग चिल्लाते हुए कहा, ''वो हमारे ऊपर गैस का इस्तेमाल कर रहे हैं.''

तभी अंद्रियानोवा ने उनसे फ़ोन लेते हुए रेडियो शो के प्रस्तोता से कहा , ''हम न सिर्फ़ इसे देख रहे हैं बल्कि महसूस भी कर रहे हैं.''

एक क्षण के बाद रेडियो के श्रोताओं को बंदूक की आवाज़ सुनाई दी. अंद्रियानोवा चिल्लाई, ''आपने भी सुना. हम सब लोगों को उड़ाया जाने वाला है.''

मॉस्को के थिएटर में 140 लोगों के मारे जाने की कहानी

मुख्य हॉल के दरवाज़े को बम से उड़ाया

टाइम पत्रिका के चार नवंबर, 2002 के अंक में जोहाना मेक्गियरी और पॉल क्विन जज ने लिखा, ''ये गैस भवन के वेंटिलेशन सिस्टम के ज़रिए डाली गई. रूसी सैनिकों ने भवन के फ़र्श के नीचे सुरंग बनाते हुए उसमें छेद कर दिए थे. वहाँ से भी गै़स अंदर डाली गई.''

''कुछ महिला चरमपंथियों ने भाग कर बालकनी तक पहुंचने की कोशिश की लेकिन वहाँ तक पहुंचने से पहले ही ज़मीन पर गिर गईं.''

गैस प्रवाहित होने के एक घंटे बाद 6 बजकर 33 मिनट पर 200 रूसी सैनिक अंदर घुसे. सात मिनट बाद उन्होंने मुख्य हॉल के दरवाज़ों को बम से उड़ा दिया.

जितने भी चरमपंथी जगे हुए थे रूसी सैनिकों ने उन पर गोली चला कर उन्हें मार डाला. यहाँ तक कि जो चरमपंथी गैस के असर से बेहोश हो गए थे, उनको भी नींद में ही गोली मारी गई.

बाद में रूसी बलों के एक सदस्य ने पत्रकारों को बताया, ''हमने इन हमलावरों पर प्वाइंट ब्लैंक रेंज से गोली मारी. ये क्रूर था लेकिन अगर कोई शख़्स अपनी कमर में 2 किलो प्लास्टिक विस्फोटक बाँधे हो तो उसके साथ तो ऐसा ही बर्ताव किया जाना चाहिए था. थियेटर के पूरे फ़र्श पर बम ही बम फैले हुए थे.''

सबसे बड़ा बम 50 किलो टीएनटी का था जिसे 15 नंबर की लाइन के बीचोंबीच रखा गया था. दिलचस्प बात ये थी कि विद्रोहियों ने इसे वहाँ रखवाने में बंधकों की मदद ली थी. लेकिन इनमें से किसी में विस्फोट नहीं हुआ.

कुछ बंधकों ने हमले के दौरान बाहर भागने की कोशिश की लेकिन उन्हें बाहरी गेट पर तैनात चेचेन विद्रोहियों ने गोली से उड़ा दिया.'

मॉस्को के थिएटर में 140 लोगों के मारे जाने की कहानी

140 लोगों की मौत

एलेक्स बॉबिक याद करते हैं, ''मैंने अपना सिर नीचे झुकाया हुआ था, तभी मुझे बाहर गोली चलने की आवाज़ सुनाई दी. कुछ देर बाद मेरी साथी ने कहा कि वो कुछ सूँघ पा रही है. लेकिन मुझे कुछ भी ऐसा नहीं लगा. उसने ही मुझे बताया कि थियेटर के अंदर गैस पहुंच चुकी है."

"उसने अपने चेहरे पर रुमाल लगा लिया और मुझे भी ऐसा करने के लिए कहा. मैंने भी ऐसा करने की कोशिश की लेकिन इससे पहले ही मैं बेहोश हो गया. जब मुझे थोड़ा होश आया तो मैंने देखा कि रूसी सैनिक थियेटर में इधर उधर दौड़ रहे थे."

इस पूरे अभियान में 90 से अधिक बंधक और 50 चेचेन विद्रोही मारे गए लेकिन एक भी रूसी सैनिक को कोई खरोंच तक नहीं आई.

मॉस्को के थिएटर में 140 लोगों के मारे जाने की कहानी

सामान्य ख़ुराक से पाँच गुना स्लीपिंग एजेंट का इस्तेमाल किया गया

विद्रोहियों के कमाँडर 27 वर्षीय मोवसार बरेयेव को दूसरी मंज़िल पर रसोईघर के पास गोली से उड़ा दिया गया.

जोहाना मेक्गियरी और पॉल क्विन जज ने लिखा, ''कुछ बंधक तो अपनेआप चल कर बाहर निकले लेकिन अधिक्तर को रूसी सैनिक और आपातकर्मी अपनी गोद में उठा कर बाहर लाए और बाहर इंतज़ार कर रही बसों और एमबुलेंसों में डाल दिया. वो उन्हें मास्को के अलग अलग अस्पतालों में ले गए जहाँ करीब 450 लोगों का इलाज किया गया.''

क्रेमलिन के एक नज़दीकी सूत्र ने बताया कि 'सामान्य ख़ुराक से पाँच गुना ज़्यादा स्लीपिंग एजेंट का इस्तेमाल किया गया.

मारे गए सभी बंधक गैस के दुष्प्रभाव से मरे. मास्को के स्कलीफ़ोसोस्की अस्पताल के डाक्टर व्लादिमिर रयाबिनिन ने मुझे बताया कि उनके अस्पताल में 42 मरीज़ों का इलाज किया गया.'

दिलचस्प बात ये रही कि इस दौरान लो प्रोफ़ाइल रखे हुए रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन डाक्टर की पोशाक पहन कर इन बंधकों को देखने मास्को के एक अस्पताल में पहुंचे.

थियेटर के निदेशक जॉर्जी वसिलयेव ने रायटर्स को दिए इंटरव्यू में बताया, ''जैसे ही गोलियाँ चलनी शुरू हुईं, विद्रोहियों ने हमसे अपनी सीट पर झुक जाने और अपने सिर को अपने हाथों से कवर कर लेने के लिए कहा. लेकिन इसके बाद सभी बेहोशी की मुद्रा में चले गए.''

हमलावरों में एक तिहाई महिलाएं

चेचेन हमलावरों में एक तिहाई महिलाएं थीं. रूसी आंतरिक सुरक्षा एजेंसी एफ़एसबी के अनुसार ये वो महिलाएं थीं जिनके पति या भाई रूस से हुई लड़ाई में मारे गए थे.

वो अपने उद्देश्य के लिए अपनी कुर्बानी देने के लिए तैयार थीं. आँखों को छोड़ कर उनका पूरा शरीर काले कपड़ों से ढ़का हुआ था.

उनके एक हाथ में पिस्टल थी और दूसरे हाथ में उनकी बेल्ट में लगे विस्फोटकों तक पहुंचने वाला केबल. काले नकाब पहने हुए पुरुष विद्रोहियों ने खंबों, दीवारों और सीटों में प्लास्टिक बम लगा दिए थे.

वो बार-बार चेतावनी दे रहे थे कि अगर रूसी सैनिकों ने भवन के अंदर घुसने की कोशिश की तो वो विस्फोट कर देंगे और थियेटर का पूरा भवन ज़मीन पर आ गिरेगा. सिर्फ़ उनके नेता बारायेव ने अपने चेहरे पर कोई नकाब नहीं पहन रखा था.

मॉस्को के थिएटर में 140 लोगों के मारे जाने की कहानी

डॉक्टरों को अँधेरे में रखा गया

इतने लोगों के मर जाने के बावजूद रूसी सरकार इस अभियान की सफलता का दावा करती रही. उन्होंने इसके लिए एक अजीब सा तर्क दिया. उनके अनुसार जो बंधक मारे गए वो पहले से ही किसी न किसी बीमारी से पीड़ित थे.

रशन सेंटर फॉर डिज़ास्टर मेडिसिन के विक्टर प्रियोब्रेजेन्सकी ने कहा ''अधिक्तर मामलों में लोग तनाव और थकान की वजह से हुए दिल के दौरे से मरे. ज़ाहिर है लोगों ने इस सफ़ाई पर यकीन करने से इंकार कर दिया.''

सवाल उठता है कि इतने सारे लोगों की मौत क्यों हुई,हो सकता है इसके लिए बचाव अभियान ही ज़िम्मेदार हो.

जैसे ही सैनिकों ने थियेटर को अपने नियंत्रण में लिया, मास्को रेस्क्यू सर्विस के डॉक्टर बंधकों का इलाज करने के लिए पहुंच गए. लेकिन किसी ने उन्हें पहले से गैस के बारे में नहीं बताया.

मॉस्को रेस्क्यू सर्विस के एलेक्ज़ांडर शबालोव ने बीबीसी को बताया, ''किसी ने हमें पहले से ख़ास गैस इस्तेमाल किए जाने के बारे में आगाह नहीं किया था.''

हमने सारे निर्देश सरकार के रेडियो पर सुने. हमसे सिर्फ़ इतना कहा गया था कि हम अपनी मेडिकल किट ले कर आएं ताकि बंधकों को फ़र्स्ट एड दी जा सके.

करीब 1,000 बेहोश बंधकों के इलाज के लिए सिर्फ़ 17 डॉक्टर उपलब्ध थे. आखिरकार सैनिक इन बेहोश लोगों को अपनी गोद में उठा कर बाहर लाए. उन्हें इस तरह के बचाव ऑपरेशन का कोई अनुभव नहीं था.

कई सैनिकों ने बंधकों को एंबुलेंस में पीठ के बल लिटाया जिसकी वजह से उनका दम घुट सकता था और कई मामलों में ऐसा हुआ भी.

लोग इतने बेतरसीब ढ़ंग से एंबुलेंस में लिटाए गए कि ये कहना मुश्किल था कि किसको इंजेक्शन लगा है और किसको नहीं.

इस घटना से रूसी सैनिकों ने कोई सबक नहीं लिया. दो साल बाद रूसी सैनिकों की एक बार फिर परीक्षा हुई जब चेचेन विद्रोहियों ने बेस्लान स्कूल में सैकड़ों बच्चों को बंधक बना लिया.

इस अभियान में भी 300 लोग जिनमें अधिक्तर बच्चे थे, मारे गए और रूसी सुरक्षा बलों की ख्याति को ज़बरदस्त धक्का लगा.

BBC Hindi
Comments
देश-दुनिया की ताज़ा ख़बरों से अपडेट रहने के लिए Oneindia Hindi के फेसबुक पेज को लाइक करें
English summary
Russia: The story of 140 people killed in Moscow's theater
तुरंत पाएं न्यूज अपडेट
Enable
x
Notification Settings X
Time Settings
Done
Clear Notification X
Do you want to clear all the notifications from your inbox?
Settings X
X