चीन के दोस्त समझे जाने वाले नेपाल में जलाए गए राष्ट्रपति शी जिनपिंग के पुतले
काठमांडू। नेपाल में चीन के खिलाफ काफी विरोध प्रदर्शन किया जा रहा है। सोमवार को हुए विरोध प्रदर्शन में चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग के पुतले भी जलाए गए हैं। यहां के लोग नेपाल की जमीन पर चीनी अतिक्रमण से परेशान हैं। विरोध प्रदर्शन के दौरान लोग सपतरी, कपिलवास्तु और बारदिया जिले की सड़कों पर एकत्रित हुए और चीन के खिलाफ नारेबाजी की।
विरोध प्रदर्शन के दौरान यहां लोगों ने हाथों में बैनर और प्लेकार्ड लिए हुए थे। इन्होंने नारे लगाते हुए कहा, 'चीन वापस जाओ और नेपाल की जमीन को वापस दो।' ये प्रदर्शन तब हुए जब हाल ही में सर्वे विभाग ने एक सर्वे रिपोर्ट जारी की। इस रिपोर्ट में कहा गया है कि चीन ने नेपाल की 36 हेक्टेयर भूमि पर अतिक्रमण कर लिया है।
आंकड़ों से पता चला है कि हुमला जिले में भदारे नदी में लगभग छह हेक्टेयर और करनाली जिले में चार हेक्टेयर भूमि पर अतिक्रमण किया गया है, जो अब तिब्बत के फिरंग क्षेत्र में बहती है।
नेपाली भूमि पर कब्जा
इसी तरह, सानजेन नदी और रसुवा के जम्भू खोला की लगभग छह हेक्टेयर नेपाली भूमि पर भी अतिक्रमण किया गया है। ये नदी दक्षिणी तिब्बत के केरुंग में भी बहती हैं। रिपोर्ट के अनुसार, चीन ने सिंधुपालचौक जिले के भोटेकोशी और खारेनखोला क्षेत्रों में भी 10 हेक्टेयर से अधिक भूमि पर अतिक्रमण किया हुआ है, जो अब तिब्बत के न्यालम क्षेत्र में है।
कई क्षेत्र तिब्बत का हिस्सा बने
संखुवासभा में, तिब्बत के स्वायत्त क्षेत्र में सड़क विस्तार के कारण नौ हेक्टेयर भूमि का अतिक्रमण किया गया है, जहां कमूखोला, अरुण नदी और सुमजंग नदी के आसपास के क्षेत्र अब तिंगस्यान काउंटी क्षेत्र में आ गए हैं। सर्वे के डाटा में इस बात का भी खुलासा हुआ है कि कुछ हिस्से जैसे अरुण खोला, कामू खोला और सुमजंग के पास के कुछ स्थान अब तिब्बत के तिंगिस्यान क्षेत्र का हिस्सा बन गए हैं।
अपनी कई सौ एकड़ भूमि खो देगा नेपाल
वहीं मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार, नेपाल अपनी कई सौ हेक्टेयर भूमि खो देगा। जिसपर चीन लगातार कब्जा करता जा रहा है। हालांकि चीन ऐसा केवल नेपाल के साथ ही नहीं कर रहा, बल्कि वह अपनी ताकत को बढ़ाने के लिए अधिकतर देशों की जमीन और बंदरगाहों पर भी कब्जा करता जा रहा है। वह श्रीलंका, बांग्लादेश जैसे देशों को कर्ज के जाल में पहले ही फंसा चुका है। इसके अलावा वह अफ्रीकी देशों को भी विकास के नाम पर फंसाकर उनकी जमीन पर कब्जा करता जा रहा है।
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